Asamartho ka bal Samarth Rmadas - 21 in Hindi Biography by ՏᎪᎠᎻᎪᏙᏆ ՏOΝᎪᎡᏦᎪᎡ ⸙ books and stories PDF | असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 21

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 21

दासबोध ग्रंथ – अल्प परिचय

मन, बुद्धि और शक्ति (शारीरिक सामर्थ्य ) का महत्त्व जानकर समर्थ रामदास ने तत्कालीन समाज को क्रियाशीलता का मंत्र दिया। आजीवन समाज को एकसंघ और कर्मनिष्ठ बनाने का व्रत निभानेवाले संत श्रीसमर्थ रामदास ने अपने विचारों और वाणी से पूरे हिंदुस्तान में जागृति लाने का कार्य किया।

लगभग चार सौ साल पहले उनकी वाणी द्वारा निकले हुए उपदेश– समय के साथ ग्रंथरूप में अमर हो गए। ये ग्रंथ आज भी समाज को ज्ञान का प्रकाश दे रहे हैं। पूरे मानव समाज को सकारात्मकता की तरफ ले जानेवाले ये ग्रंथ ईश्वरीय चैतन्य की अनुभूति से कम नहीं हैं।

उनमें से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, ग्रंथराज “दासबोध।” दासबोध का अर्थ है, एक दास (रामदास) को मिला हुआ बोध (आत्मज्ञान)। उस बोध को उन्होंने ग्रंथ रूप में अमर किया है। सांसारिक पारमार्थिक तथा जीवन के सभी पहलुओं पर इस ग्रंथ में मार्गदर्शन दिया गया है इसलिए इसे ग्रंथराज (ग्रंथों का राजा) कहा जाता है। इस ग्रंथ का पठण करने वाले को इस बोध का अलौकिकत्व उसके चिंतन द्वारा ही समझ में आता है।

इस पुस्तक में कुछ हमारे रोजमर्रा के जीवन में उपयुक्त और कुछ आध्यात्मिक मार्गदर्शक ऐसे दासबोध के चुनिंदा अंश प्रस्तुत हैं। इन्हें समझकर अपने जीवन में उतारें तो जीवन का स्तर ऊपर उठने में ये कारगर साबित होंगे।

मूर्खलक्षण सार:
दासबोध ग्रंथ के ‘मूर्खलक्षण’ इस समास में समर्थ रामदास इंसान के वे दुर्गुण बताते हैं, जिससे कि इंसान की गिनती मूर्खों में हो सकती है। संसारी इंसान को आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए इस ग्रंथ के समासों की रचना हुई है ताकि संसार में रहते हुए भी इंसान मुक्ति के मार्ग पर चल सके। इस समास में बताए गए दुर्गुण अगर कोई त्याग दे तो मूर्खता से ऊपर उठकर उसका आंतरिक और सामाजिक विकास भी संभव है।

मूर्खलक्षण की कुछ मुख्य बातें:
* अपने से श्रेष्ठ ( उम्र, पद, ज्ञान, अधिकार और योग्यता में ) लोगों के सामने जो अहंकारपूर्ण व्यवहार करता है, बिना अधिकार रोब जताता है वह मूर्ख है।

* जो अपनी प्रशंसा खुद करता है, अपने पिताजी का बड़प्पन लोगों को सुनाकर रोब जताता है, वह मूर्ख है।

* जो अकारण हँसता है, दूसरों के परामर्श को अनसुना करता है, अनेक लोगों को शत्रु बनाता है, वह मूर्ख है।

* जो अपनों से (अपने हितचिंतकों से) दूरियाँ बनाकर पराए (जिनका उद्देश्य मालूम नहीं है) लोगों से मित्रता करता है, दूसरों के अवगुण सुनाता रहता है, वह मूर्ख है।

* जो अपने मान-अपमान का वर्णन अपने ही मुख से करता है, जिसका मन व्यसन के अधीन है वह मूर्ख है।

* जो आलस करता है, कार्य को बाद में करने के लिए टालता रहता है, बिना कुछ किए आराम करने में ही जिसे आनंद आता है, वह मूर्ख है ।

* जो घर में बड़े बोल सुनाता है (डींगे हाँकता है) लेकिन बाहर बात करने का समय आए तो जिसकी ज़ुबान चुप हो जाती है, वह मूर्ख है ।

* जो अपने से श्रेष्ठ लोगों से नज़दीकियाँ बनाता है लेकिन कोई कुछ उपदेश दे तो उसे मानने में आनाकानी करता है वह मूर्ख है।

* जो बात न माननेवालों को उपदेश देता है, श्रेष्ठों के सामने शेखी बघारता है, अच्छे लोगों को मुसीबत में फँसाता है, वह मूर्ख है।

* विषय वासना में अंधा होकर जो मर्यादा लाँघता है, इसके लिए जो निर्लज्ज और उधमी बनता है, वह मूर्ख है ।

* व्याधि (रोग/बीमारी) होकर भी जो दवाई नहीं लेता, व्याधि बढ़ानेवाली चीज़ों से परहेज नहीं करता, जो मिला है उसे स्वीकार नहीं कर पाता, वह मूर्ख है।

* बिना पर्याप्त जानकारी लिए अनजान प्रदेश में प्रवेश करता है, बिना जानेपहचाने (अनजान लोगों से) तुरंत मित्रता कर लेता है, बाढ़ के पानी में (पानी का वेग, गहराई जाने बिना) कूदता है, वह मूर्ख है।

* कहीं मान-सम्मान मिलने पर जो वहाँ बार-बार जाता है और अपना सम्मान दाँव पर लगा देता है, वह मूर्ख है।

* जो किसी को बिना किसी अपराध दंड करता है, छोटी-छोटी बातों में जो कंजूसी करता है, वह मूर्ख है।

* जो बलहीन, ज्ञानहीन, शक्तिहीन होकर भी बड़बोलापन करता है वह मूर्ख है।

* जो घर में शेर लेकिन बाहर बिल्ली / बकरी बनकर रहता है ऐसा अज्ञानी मूर्ख है।

* जो कभी किसी के काम नहीं आता, मिले हुए उपकार का बदला उपकार करनेवाले का नुकसान करके चुकाता है, जो क्रियाशून्य होता है लेकिन बेशुमार बातें करता है, वह मूर्ख है।

* धन, ज्ञान, विद्या, सामर्थ्य कुछ भी न होते हुए भी जो अभिमान करता है, वह मूर्ख है।

* जिसके दाँत, आँखें, नाक, शरीर और कपड़े सदा मैले होते हैं, वह मूर्ख है।

* जो बहुत क्रोध करता है, अपमान सह न पाने की वजह से जो आत्मघात करता है, जिसकी बुद्धि चंचल है, वह मूर्ख है।

* जो अपनों को दुःख देता है लेकिन नीच, हीन लोगों के सामने दुबका रहता है, वह मूर्ख है।

* ‘जो सिर्फ अपनी सोचता है, ज़रूरतमंद को जो अपमानित करता है, लक्ष्मी मेरे पास सदा के लिए है ऐसा विश्वास जो करता है, वह मूर्ख है।

* जो सिर्फ अपने परिवार की सोचता है और उसके लिए ईश्वर को भी भुला देता है, वह मूर्ख है।

* ‘जो देंगे वह पाएँगे’, यह राज़ जो नहीं समझता, वह मूर्ख है।

* दुर्जनों की संगत में रहकर जो मर्यादा लाँघता है, आँखें होकर भी अंधा बनता है, वह मूर्ख है।

* ईश्वर, गुरु, माता-पिता, स्वामी इनके साथ जो विश्वासघात करता है, वह मूर्ख है।

* जो दूसरों की खुशी में दुःखी होता है, दूसरों की पीड़ा देखकर संतोष मनाता है, खोई हुई चीज़ों का शोक मनाता रहता है, वह मूर्ख है।

* बिना पूछे जो अपनी राय देता है, जिसकी बातों में आदरयुक्त भाव नहीं होता, जो गलत चीज़ें साथ रखता है, वह मूर्ख है ।

* जो अपना सम्मान नहीं सँभालता, सदा उपहास करता है लेकिन उस पर कोई हँसे तो बुरा मानता है, वह मूर्ख है।

* जो कठिन शर्तें लगाता है, बहुत बड़बड़ करता है लेकिन ज़रूरत हो तब बात नहीं करता, वह मूर्ख है।

* जो श्रेष्ठों से घृणा करता है, अप्राप्य चीज़ों के प्रति मन में ईर्ष्या रखता है, अपने ही घर में चोरी करता है, वह मूर्ख है ।

* संसार में जो दुःख भुगत रहा है, उसके लिए ईश्वर को कोसता है, मित्रों के दोष लोगों के सामने सुनाता है, वह मूर्ख है।

* छोटी-छोटी बातों में भी जो क्षमा नहीं कर पाता, गलती करनेवाले को डाँटता रहता है लेकिन खुद भी गलतियाँ करता है, वह मूर्ख है।

* जो विश्वसनीय सेवकों को त्यागकर नए, अनजाने सेवकों से काम लेता है, वह मूर्ख है।

* जो अपना धन दूसरों के भरोसे छोड़ता है, दूसरों के धन की कामना करता है, हीन लोगों की स्तुति कर उन्हें बड़ा बना देता है, वह मूर्ख है।

* दो लोगों के वार्तालाप को बीच में जाकर टोकता है, ऊपर से अनजान बनता है, वह मूर्ख है।

* जो नीच लोगों की सेवा करता है, वह मूर्ख है।

* जिसका पाला हुआ कुत्ता अनुशासित नहीं है, वह मूर्ख है।

* जो स्त्री के साथ कलह करता है, वह मूर्ख है।

* जो दूसरों के झगड़े दिलचस्पी से देखता है, झगड़े सुलझाने की बजाय उसके मज़े लेता है, वह मूर्ख है।

* जो धन मिलने पर रिश्ते-नाते भुला देता है, वह मूर्ख है ।

* जो मीठी वाणी बोलकर अपने काम करवाता है लेकिन कभी दूसरों के काम नहीं आता, वह मूर्ख है।

* जो पठन अधूरा छोड़ता है, वह मूर्ख है।

* जो कभी पठन नहीं करता, दूसरों को भी करने नहीं देता और पुस्तकें सिर्फ दिखावे के लिए सजाकर रखता है, वह मूर्ख है।

* जो मूर्खों की संगत में रहता है, वह मूर्ख है।

* मूर्ख लक्षण अनेकों हैं। जो आज भी तर्कसंगत हैं, उन्हें इस पुस्तक में चुना गया है। अपने अंदर जो भी मूर्ख लक्षण दिखाई दें, उससे बाहर निकलें तो यह पठन सफल है।