Naam Jap Sadhna - 10 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 10

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नाम जप साधना - भाग 10

नाम जप और चिंतन

भाय कुभाय अनरव आलसहुँ।
नाम जपत मंगलदिसि दसहूँ।।

नाम किसी भी भाव से किसी भी प्रकार जपो, दसों दिशाओं में मंगल ही मंगल है। नाम जप करते समय अगर मन से भगवान् के रूप या लीलाओं का चिंतन किया जाए तो भजन बहुत जल्दी अपना असर दिखाने लगता है। चिंतन में सहज भाव से प्रवेश करें। मन से ज्यादा खींचा तानी ना करें। सबसे पहले अपने खान-पान को सात्विक करें। कुसंग का त्याग करें, वाणी पर संयम करें। प्रतिदिन धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें, सत्संग करें। इस तरह थोड़ी सी सावधानी से मन में अपने आप सत्वगुण का संचार होने लगेगा।
इस प्रकार चिंतन की भूमिका तैयार होने पर एकांत स्थान पर सुखपूर्वक जैसे भी बैठ सकते हो बैठ जाओ। हाथ में माला हो तो बहुत अच्छा है। यदि न हो तो बिना माला के ही एक बार महामन्त्र या किसी भी नाम का एक बार उच्चारण करो। साथ ही एक नाम या मन्त्र पर एक बार अपने इष्ट (राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव ) आदि (जिसको भी मानते हों) के रूप का चिंतन करो। अधिक देर नहीं तो एक सैकण्ड ही सही। इसके बाद दोबारा फिर उच्चारण करो। फिर एक सैकिण्ड के लिए इष्टदेव के रूप की झाँकी का चिंतन करो। अगर मन में चिंतन नहीं हुआ तो माला का मनका वहीं रोक कर रखो। जब तक चिंतन में झाँकी न हो तब तक मनका रूका रहे। एक बार इष्टदेव की झाँकी होने के बाद ही माला का मनका आगे बढ़ाएँ। इस प्रकार एक माला अर्थात् 108 बार चिंतन सहित जप हो जाएगा। धीरे-धीरे जप संख्या बढ़ाते जाएँ। जितना जप चिन्तन बढ़ेगा उतनी ही मन में सात्विकता आएगी और जितनी सात्विकता आएगी उतनी ही चिंतन में प्रगाढ़ता आएगी।
इस प्रकार चिंतन सहित जप आप काम करते या चलते-फिरते भी कर सकते हैं। बस थोड़ी सी सावधानी और अभ्यास की आवश्यकता है। बस मुख से नाम जप होता रहे और मन से रूप या लीलाओं का चिन्तन होता रहे। प्रारम्भ में एक माला या पन्द्रह मिनट का नियम बना लेना चाहिए। प्रतिदिन एक माला चिन्तन सहित जप बिना नागा करो। बाद में अभ्यास बढ़ाते जाएँ। अगर करना चाहो तो ये कठिन नहीं है। कोई भी कर सकता है। अगर चाह नहीं है तो दुनिया का सबसे कठिन कार्य भी यही है। सच मानो, करके देखो, हो जाएगा।
जप करते समय ऐसी भावना करो कि यमुना जी का किनारा है। सुन्दर वृन्दावन में बसन्त ऋतु के कारण प्रत्येक तरू लता, पुष्प के गुच्छों व फलों के भार से झुक गए हैं। सदाबहार वृक्षों पर लताएँ छाई हुई हैं। वृक्ष व लताओं से निर्मित सुन्दर कुञ्जों व निकुञ्जों की शोभा देखते ही बनती है। शीतल मन्द, सुगन्ध समीर बह रही है। भ्रमरों की मधुर गुञ्जार, मंदगति से बहती हवा की सनसनाहट, कोकिल, मयूर, चातक, शुकादि पक्षियों के मधुर कलरव से समस्त वातावरण संगीतमय हो उठा।
शुकादि पक्षियों के मधुर कलरव से समस्त वातावरण संगीतमय हो उठा। वृन्दावन का धरातल हरी हरी कोमल घास से आच्छादित है। यमुना जी के सुन्दर घाट रत्न मणियों से निर्मित हैं। नील, रक्त, पीत व उज्जवल वर्ण के कमलों से यमुना जी शोभायमान हो रही हैं। थोड़ी दूरी पर हँस तैर-से रहे हैं। श्रीवन की शोभा अपार है। वृन्दावन का प्रत्येक वृक्ष कल्पवृक्ष को लज्जित कर देने वाला है। यहाँ सब कुछ अप्राकृतिक है, चिन्मय है।
इसी दिव्यातिदिव्य वृन्दावन में एक कल्पवृक्ष है। वृक्ष के चारों ओर सवा हाथ ऊँचा गोल चबूतरा है जो कि दिव्य मणियों से जड़ित है। चबूतरे के चारों ओर चबूतरे का आधार लिए एक अति सुन्दर रत्न मणियों से निर्मित कमल बना हुआ है। इस सुन्दर वेदी के ऊपर भी चौसठ पंखुड़ियों वाला कमल है। इसके ऊपर सुंदर आसन पर श्रीराधाकृष्ण विराजमान हैं। श्रीकिशोरी जी के श्री चरणकमल एक चकोर चरण पीठ पर हैं। इसी प्रकार श्यामसुन्दर के भी श्रीचरण चरण पीठ पर हैं। पीठिका की दाईं तरफ दायाँ चरण एवं बाईं तरफ बायाँ चरण कुछ तिरछापन लिए है। आसन के पीछे व कल्पवृक्ष के तने के सहारे एक स्वर्ण दंड का आधार लिए युगल सरकार के ठीक ऊपर एक छत्र है। जिसमें चारों तरफ मोतियों की लड़े व पुष्पों के गुच्छे लटके हुए अति सुन्दर लग रहे हैं।
योगपीठ के चारों ओर भाँति भाँति के पुष्पों की छोटी-छोटी क्यारियाँ हैं। प्रत्येक क्यारी गोलाई लिए और प्रत्येक क्यारियों के ठीक बीच में एक वृक्ष है। इस प्रकार मन ही मन योगपीठ की झाँकी करते हुए नाम जप करते रहो । इसके बाद प्रिया-प्रियतम के एक एक अंग प्रत्यंग का चिंतन करना चाहिए । श्रीराधारानी ने नीली साड़ी व लाल कंचुकी तथा श्री ठाकुर जी ने पीताम्बर धारण किया हुआ है। प्रिया प्रियतम का नख से शिख तक बार बार चिंतन करते रहें। कभी श्री अंगों का, कभी श्रृंगार का, कभी परिधान का चिंतन करते ही रहें। प्रिया लालजी के रूप के साथ साथ उनकी लीलाओं का भी चिंतन करना चाहिए। इस प्रकार नाम जप करते हुए चिन्तन का भी अभ्यास करना चाहिए।