Aehivaat - 6 in Hindi Women Focused by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | एहिवात - भाग 6

Featured Books
Categories
Share

एहिवात - भाग 6

कोल समुदाय मूलरूप से आदिवासी जनजाति है रहन सहन तीज त्योहार अमूमन भारत के अन्य समुदायों कि तरह ही होते है रहन सहन भी कुछ विशिष्ट पहचान के साथ मिलता जुलता ही होता है।
 
कोल जन जाती को कहीं आदिवासी जनजाती तो कही अनुसूचित जाती का दर्जा प्राप्त है तीज त्योहारो में होली, दिवाली, संक्रांति ,आखा तीज, दिवासा रक्षाबन्धन, नागपंचमी आदि है कोल जनजाती का मुख्य कार्य कृषि एव वन उपज ही है ।
 
कोल जन जाती के लोग अपनी बस्तियां बना कर रहते है मकान में कोई खिड़की नही होती मिट्टी बांस फुश के संयोग से घर बनाते है कोल जन जाती के लोग निर्धनता के कारण वस्त्रों का प्रयोग कम करते है ।
 
पुरुष धोती कमीज एव सर पर बिभिन्न प्रकार के रंगों के साफे का प्रयोग करते है गाय बैल बकरियां आदि पालते है ।
 
कोल जन जाती का रहन सहन बहुत सादा दैनिक पहनने के अलावा घर मे बिछाने के लिए मोटी चादर एव कम्बल होती है खाना बनाने के लिए मिट्टी का चूल्हा एल्युमीनियम मिट्टी लोहे के बर्तन अनाज पीसने का पत्थर का जाता अनाज रखने के लिए मिट्टी कि कूठिया आदि कोल जन जाती का मुख भोजन मकई ,ज्वार, बाजरा, गेंहू ,कोदो ,धान का भात, चना, उड़द, तुअर मौसमी घर कि बाड़ी में उगाई सब्जियां एवम मांस मछली का बहुत प्रचलन है।
 
कोल जन जातियो का निवास एव बस्तियां वन प्रदेशो के आस पास एव घने जंगलों के प्रदेश में जंगलों के किनारे किनारे है अक्सर कोल आवंटन आदिवासी जंगलों में अपने पशुओं को चराने या जंगल से लकड़िया शहद एव अन्य वन उपज जैसे जड़ी बूटियां जो उपयोगी होते है के लिए घने जंगलों में जाते है और उंसे बेचते है जो उनके आय के प्रमुख श्रोतों में एक है ।
 
तीखा और जुझारू कोल जन जातीय समुदाय से ही सम्बंधित थे कोल जनजाति में लड़के लडकिया महिलाएं सभी अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करते एव घर परिवार में अपना सहयोग देते सौभाग्य लकड़ियां बीनकर लाती और घरेलू उपयोग से अधिक लकड़ियों को बेचने बाज़ार में बापू जुझारू के साथ जाती जुझारू भी शहद जंगली जड़ी बूटियां आदि बाज़ार में लेकर जाते कभी अच्छा पैसा मिल जाता तो कभी कुछ भी नही मिलता लेकिन सौभाग्य कि लकड़ियां हर बाज़ार को बिकती कभी ऐसा नही होता कि उसकी लकड़िया बापू कि जड़ी बूटी और शहद कि तरह ना बिके लकड़ियां बेचने से जो पैसा मिलता उसे सौभाग्या अपने बापू को दे देती जुझारू बिटिया के लिये जो उसे पसंद होता खरीद लेते ऐसे ही जुझारू का परिवार चल रहा था।
 
शेरू के आने से परिवार में एक सदस्य कि संख्या बढ़ गयी थी और खुशियां भी शेरू आदिवासी बस्तियों के बच्चों के साथ ऐसे खेलता जैसे कोई इंसानों का सबसे निकटवर्ती मित्र वही एव उसके वंशज हो बस्ती के बच्चे जो भी शेरू के मन पसंद व्यंजन बनता घरों में लाकर खिलाते घुमाते खेलते खिलाते शेरू था तो छोटा बच्चा ही लेकिन था तो शेर का ही बच्चा जिसके कारण जंगली जानवरों के आतंक बस्तियों में समाप्त हो गए थे शेरू दिन रात पूरी बस्तियों में घूमता रहता इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे ।
 
तीखा एव जुझारू के जीवन मे कोई परेशानी नही थी जीवन परिवार वन देवता कि कृपा आशीर्वाद से बहुत अच्छा एव खुशहाल चल रहा था सौभाग्य बापू के संग अपनी जंगल से लाई लकड़िया बेचने सप्ताह में दो दिन मंगलवार एव शनिवार अवश्य जाती बाज़ार ।
 
कोसो दूर गांवों से लोग अपनी जरूरतों के सामान खरीदने साप्ताहिक बाजार में आते रहते किरिन डुबान होते ही जुझारू बिटिया सौभाग्य के साथ घर वापस आ जाते चाहे बाजार में कुछो बिके या नाही ।
 
सौभाग्य कि आयु लगभग बारह तेरह वर्ष थी आकर्षक तीखा नाक नक्स सुडौल गोरी चिट्टी देखने पर कोई कल्पना भी नही कर सकता था कि वह आदिवासी समाज की लड़की होगी क्योकि अक्सर आदिवासी समाज के विषय मे जो धारणा आम जन समुदाय है कि आदिवासी समाज कि बनावट आदि मानव से मिलती जुलती है दक्षिणी अफ्रीका के मैड्रिल का रंग एव ठोस ताकतवर शरीर खूबसूरती कि कल्पना भी आदिवासी समाज के परिपेक्ष्य में करना मात्र कल्पना ही है लेकिन यह अतिश्योक्ति नही होगा की मैले कुचैले आदिवासी पोशाक में सौभाग्य ऐसे लगती थी जैसे कोई आमस्या के चादर में लिपटी पूर्णिमा कि चांद जिसके चाँदनी कि किरणे आमवस्या के चादरों से बाहर निकल कर एक अजीब सुंदर क्या सुदरतम कल्पना के सत्यार्थ को दृष्टिगत कर रही थी ।
 
चिन्मय ने जब से सौभग्या को देखा वह मर मिटा चिन्मय कक्षा आठ में बाज़ार के निकट के ही स्कूल में पढ़ता था।
 
मंगलवार का दिन था स्कूल के प्राचार्य कि माता जी का देहावसान हो गया और दोपहर इंटरवल के बाद स्कूल बंद कर दिया गया साथ ही साथ अगले दिन पूरे दिवस के लिये अवकाश घोषित कर दिया गया।
 
चिन्मय ने सोचा कल तो स्कूल आना नही है अतः बाज़ार घूमते हुए चलते है वह बाज़ार घूमने लगा घूमते घूमते उसकी नज़र बाज़ार में सड़क के किनारे बैठे बाप बेटी पर पड़ी जो जंगली जड़ी बूटी शहद आदि एव लकड़िया बेच रहे थे जुझारू सुगा के दो तीन बच्चे भी लेकर आये थे बाज़ार में बेचने के लिए ।
 
चिन्मय सौभाग्य को देखा तो देखता ही रह गया वह यह सोचने लगा कि आखिर किस बहाने से जाए वह बाप बेटी के पास जिससे कि बात करने का बहाना मिल जाए तभी चिन्मय कि नजर सुगा पर पड़ी चिन्मय बिना किसी लाग लपेट के बाप बेटी के पास पहुंचा और बेटी से बोला सुगा बेचने है ?
सौभाग्य बोली बेचे खातिर नाही लाए है त का सुगा लोगन के दिखावे खातिर लाये है का
जुझारू बिटिया सौभाग्य से बोले बिटिया गहकी से ऐसन बात नाही बोला जाता है गाहक है तबे त दू पईसा हम लोग आपन समान बेचके कमाइत है