Kangan - 1 in Hindi Short Stories by Ashish Bagerwal books and stories PDF | कंगन - 1

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कंगन - 1

गांव की सभी महिलाएं अपने कंगन तोड़ रही थी परंतु एक बुजुर्ग महिला जो की मृत शरीर था उसको कंगन पहनाये जा रहे थे। यह गतिविधि शहर से आए एक रिपोर्टर ने भी देखी और वह आश्चर्यचकित हुआ तथा उसने जानने का निश्चय किया कि इसके पीछे क्या कहानी है।
यह कहानी शुरू होती है राजस्थान के छोटे से गांव विरासतगढ़ से जहां सभी लोग खुशहाल जिंदगी जीते थे।
गांव में एक प्रथा थी जो सदियों से वहां चली आ रही थी।
बेटी के जन्म पर उसे पिता द्वारा , शादी के बाद पति द्वारा वह मृत्यु के समय बेटों द्वारा कंगन पहनाने की प्रथा थी। प्रथम बार इन्हीं के द्वारा कंगन पहनाए जाने पर ही अन्य बार खुद से कंगन पहने जा सकते थे
इस गांव में एक महिला जिसका नाम किशोरी था उसके घर एक बेटी पैदा हुई बेटी के जन्म के समय उसके पिता गांव से बाहर थे परंतु जब वह एक माह की हुई तब खबर आई की बस की टक्कर के कारण उनकी मृत्यु हो चुकी है इसका सदमा किशोरी को इस तरह हुआ कि वह यह सदमा सहन न कर सकी और उसी समय मृत्यु को प्राप्त हुई।
किशोरी की बेटी पदमा अत्यंत खूबसूरत और बहुत होशियार थी, मां-पिता का साया सर पर न होने होने पर खुद पर क्या बीतती है यह सोचकर उसके मामा ने उसे बचपन से ही अपने पास रखा, क्योंकि मामा ने भी बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। मामा के घर में उसे कभी भी मात-पिता की कमी महसूस नहीं हुई क्योंकि उसके मामा-मामी भी उसे बेटी की तरह ही प्यार करते थे।
वो अक्सर कहते थे कि उनके दो नहीं तीन संताने हैं-
सरिता जोकी पदमा की छोटी ममेरी बहन थी, बहुत शरारती और नटखट थी, पिता से रुपए लेकर बाजार जाकर हमेशा अपनी बहन व मां के लिए कुछ ना कुछ ले आती थी, इस बार सरिता मां व बहन के लिए कंगन लेकर आई और सरिता ने भी कंगन पहन लिए थे। सरिता ने अपनी मां को कंगन दिया और कहा यह कंगन दीदी के लिए है तब मां ने फिर सरिता को डांटा। इस बात से सरिता काफी नाराज हुई और उसने पिता से जीद करी कि वह दीदी को भी कंगन पहनते हुए देखना चाहती है।
जानकी वल्लभजी जानते थे कि सरिता की जिद सही नहीं है पर वह क्या कर सकते थे, उन्होंने कहा तेरी दीदी की हम विवाह कर देंगे उसके बाद उसे कंगन पहना देना। जानकी वल्लभ जी उसकी शादी को लेकर चिंतित होने लगे क्योंकि सारा भार उन्ही के ऊपर था क्योंकि उनका पुत्र अभी केवल 10 वर्ष का ही था , पदमा जो कि अब 17 वर्ष की हो चुकी थी, विवाह की बात सुनकर शर्मा गई, एक डेढ़ वर्ष बाद पदमा का विवाह एक बहुत ही संपन्न परिवार में कर दिया गया, उसका पति सेना में कमांडो था, जो की विशेष परिस्थिति में विवाह के लिए अवकाश लेकर आया था। विवाह के दो दिन पश्चात ही वह ड्यूटी पर चला गया, जल्दी आने का आश्वासन देकर..
पदमा का भी उसके बीना मन नहीं लगता था, बावरी होकर उनका इंतजार करती रहती थी।