Somavansham in Hindi Fiction Stories by Hari Gadhvi books and stories PDF | सोमवंशम

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सोमवंशम


सबके अंदर विद्यमान ब्रम्ह को।नमन।
ये कहानी है सोमवंश के साम्राज्य की।सोमवंश के प्रथम राजा थे राजा सूर्यदेवव्रत।इन्होंने अपने पराक्रम और साहस से पूरी दुनिया मैं सोमवंश के साम्राज्य को एक छत्र राष्ट्र बनाया।उनके इस देश का नाम था सूर्यानगर। सूर्यानगर के युवराज केशवव्रत ने जब राजगद्दी अपने हाथ मैं ली तब उसके राज्यकी समृद्धता बढ़ने लगी।ऐसे ही सोमवंश की आगे की पेढ़ी के शासकों के पराक्रम और साहस से सोमवंश की कीर्ति बढ़ने लगी।ये राज्य ज्ञान,
विज्ञान,व्यापार,समुद्री विजय,धर्म और दर्शन मैं आगे बढ़ने लगे।सूर्यदेवव्रत के पौत्र के पुत्र यानी की युवराज आदित्यव्रत यानी आदित्य अब राजा बनने वाले थे।देश विदेश से लोग उनका राज तिलक देखने आने वाले है।राजा हर्षवव्रत के राजगुरु आचार्य सोमाचार्य युवराज आदित्य का राजतिलक करने वाले है।भव्य समारोह मैं आनंद और उल्लास के साथ तैयारिया चालू है।राज तिलक को एक माह की देरी थी।आचार्य सोमाचार्य ने एक माह पूर्व की तिथि निकली थी युवराज के राज तिलक के लिए।इस समारोह मैं केशवकुंज की राजकुमारी जगतमोहिनी आने वाली है की नही इस बात की पृष्टि करने के लिए युवराज भेष बदल कर केशवकूंज अपने सखाओ के साथ निकल पड़ते है।
(अंक १ : युवराज और जगतमोहिनी का मिलन)
(पात्र:युवराज,बालनंद,प्रमोद, भार्गव,प्रहलाद,बैलगाड़ी वाला,महाराज यशवीर सिंह,प्रेमवती की दो सखियां,दरबारी,सैनिक,जगतमोहिन)
(मार्ग मैं युवराज और उनके मित्र जा रहै हैं।और उनमें बाते हो रही है)
प्रमोद : युवराज क्या हो अगर राजकुमारी आपके राज तिलक मैं ना आराही हो।
प्रहलाद :(कटाक्ष के स्वर मैं बात करते हुए) अरे मूर्ख कभी तुम्हारे मुंह से अच्छी बात निकली है के नही।हमारे युवराज के साहस,वीरता और पराक्रम के चर्चे पूरी दुनिया मैं प्रसिद्ध हैं। अरे राजकुमारी तो हमारे युवराज के राजतिलक के समारोह मैं समलित होने के लिए उत्सुक होंगी।
बालनंद :(दोनो को टोकते हुए) अरे भई तुम दोनो फिर से मत शुरू हो जाना।और इस तरह बात मत करो वरना पता चल जाएगा कि हम कौन है।( युवराज मनो मन हस रहे और मुख पर एक अलग ही खुशी है)
भार्गव :( युवराज को देखते हुए) अरे कोई इन्हें तो देखो एक अलग ही खुशी जलक रही है।क्या हो गया है युवराज किनके खयालों मैं हो।
बालनंद : और किसके उन्ही के जिनके पास हम जा रहे है।क्यों युवराज( हस्ते हुए)
( युवराज चुप है)
प्रमोद:(थोड़े बड़े स्वर मैं)क्या..अब क्या युवराज हमे छोड़के राजकुमारी के बारे मैं सोचेंगे।
प्रहलाद:अरे मूर्ख तू तो मूर्ख का मूर्ख ही रहेगा।इतनी जोर से बात करने की क्या आवश्यकता है।कोई सुन लेगा तो।
युवराज : तुम सब क्या ये बातो मै लगे पड़े हो।संध्या से पूर्व हमे केशवकुंज की सीमाओं तक पहुंच जाना है।इसलिए शीघ्रता करो।
बालनंद : अच्छा हुआ युवराज आप कुछ बोलेतो सही।
भार्गव : सब शांत हो जाओ देखो सामने से बैलगाड़ी वाला आ रहा है...
(बैलगाड़ी वाला धीरे स्वर मैं गाता हुआ आ रहा है) राजा सूर्यदेव भगवन् राज्यं प्रतिपालनं ......(तभि उसके बैलगाड़ी का पैया कीचड़ मैं फस जाता है।अब बेलवाला पैये को निकलने के निष्फल प्रयत्न करता है।तभी युवराज और उनके मित्र उसके पास आके बाते करते है..)
युवराज : ( नम्र होकर)महोदय लगता है आपको मदद की आवश्यकता है।क्या हम आपकी मदद करे
बैलगाड़ी वाला: है सूर्य की भाती तेजमान युवक मुझे प्रसन्नता होगी अगर आप मेरी मदद करेंगे।
भार्गव : है बलशाली अशोक(आदित्य) अपने बल से इस पैये को दलदल मैं निकल दो।
( युवराज अपने ताकतवर भुजाओं से पैये को निकाल ने जाता है और निकल देता है।)
बैलगाड़ी वाला: धन्यवाद महोदय।आपके जैसा बलशाली और तेजस्वी युवक आज पहली बार देखा है।अभी मैं युवराज के राजतिलक में समान पहोचाने में देरी हो रही है वरना आपका अच्छे से धन्यवाद करता।
बालनंद: अच्छे से धन्यवाद करने का मतलब??
बैलगाड़ी वाला : मैं राजतिलक मैं मिठाइयों के लिए समान ले जा रहा हु।आज दयालु राजा के कारण मुझे अच्छा काम मिला है।मेरा ये समान विक्र नहीं हों रहा था।लेकिन महाराज के कारण यह कार्य संपन्न होनें जा रहा है।मैं हम भाग्यशाली हैं की ऐसे दयावान और चक्रवर्ती राजा हमे मिले।
भार्गव : अतः आपका कथन सर्वोच सत्य है।यह तो हमारा भाग्य है की ऐसे राजा मिले।
बेलगड़ी वाला : हा लेकिन अब युवराज राजा बनने वाले है।अब उन्हीं पे तै होगा की वो कैसे राजा बनते है।
बालनंद : युवराज भी उनके पूर्वजों की तरह एक अच्छे राजा बनेंगे।
बेलगाड़ी वाला : चलो मैं चलता हूं।मुझे संध्या से पूर्व राजमहल सूर्यनगर की सीमाओं तक पहुंचना है।( ऐसे बोलकर वो निकल जाता है।)
(अब युवराज और उनके मित्र केशव कुंज के सीमाओं के अंदर पहुंच जाते है।अब राजकुमारी जगतमोहिनी से मिलने और इस बात की पुष्टि करने की की वे समारोह मैं उपस्थित होंगे इस बात की पुष्टि करने के लिए सब एक योजना बनाते है।जिसके अंतर्गत वो सब राजा यशवीर सिंह के दरबार मैं जायेंगे।एक कलाकार के तौर पे वे सब जायेगे।इस युक्ति का सुझाव युवराज ने ही दिया था।युवराज कलाप्रेमी थे।उन्होंकि योजना अनुसार युवराज सर्वकालाओ मैं परिपूर्ण हैं।और उनके सखा उनके मित्र बनेंगे।ऐसा स्वांग वो सब रचेगे।और फिर वो दरबारियों के चुनौती देंगे।