Hotel Haunted - 45 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 45

Featured Books
Categories
Share

हॉंटेल होन्टेड - भाग - 45

शाम के वक्त शिल्पा अपने कमरे में बैठी हुई पहाड़ों के बीच ढलते हुए सूरज को देखते हुए कुछ सोच में डूबी हुई थी और उस चीज के बारे मैं सोचते हुए उसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था,"क्या हुआ शिल्पा क्या सोच रही हो?" पीछे से आकर ध्रुव ने शिल्पा के कंधे पे हाथ रखा तो शिल्पा अपने खयालों की दुनिया से बहार आई,"नहीं बस..ऐसे ही...." शिल्पा ने पलकों को झुकते हुए कहा, पर ध्रुव जानता था की कोई बात है जो उसे परेशान कर रही है, इसलिए ध्रुव भी शिल्पा के हाथो को थामे उसके बगल में बैठ गया,"शिल्पा तुम जानती हो ना की तुम्हारे साथ यह वक्त कब बीत गया पता ही नही चला,कब यह छोटे से लड़के इतने बड़े और समजदार हो गए पर इन सब के साथ कुछ बढ़ा है तो वो है हमारा प्यार।" ध्रुव के कहते ही शिल्पा उसकी तरफ देखने लगी, दोनो कुछ पल एक दूसरे की आँखों में देखने लगे,शिल्पा ने धीरे से अपना सर ध्रुव के सीने पर रख दिया "जानती हूं ध्रुव,अगर तुम ना कहो फिर भी आज भी वो प्यार तुम्हारी आंखों मैं दिखता है।" शिल्पा ने अपनी आंखें बंद करते हुए कहा।


"तो फिर, इतना पता होगा ना कि तुम जब भी झूठ बोलती हो मुझे पता चल जाता है।"इस बात पर शिल्पा ने कोई जवाब नही दिया।
"तो फिर बता क्या बात है? क्यों तुम इतनी परेशान हो?" ध्रुव ने शिल्पा के चेहरे को उठाते हुए उसकी आँखों में देखते हुए कहा।
“ध्रुव, कहीं हमारी ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई तो?"
"क्यों ऐसा सोच रही हो,ऐसा कुछ नहीं होगा।"
“पर ध्रुव ना जाने क्यूं पर मेरा दिल घबरा रहा है, मेरे बच्चों थोड़ी बहुत ख़ुशी मिली है और में नहीं चाहती की उसको किसी की भी नजर लगे।" शिल्पा की आँखें हल्की सी भीगने लगी।
"शिल्पा मेरी आँखों में देखो,ऐसा कुछ भी ऐसा जो तुझे अंदर से तकलीफ़ दे रहा हो, तुम बिल्कुल फिकर मत करो, हम अपने अतीत को कभी किसी के सामने नहीं आने देंगे और आज के बाद हम इसका ज़िक्र भी कभी नही करेंगे।"


"फिर भी एक अलग सा डर लग रहा है श्रेयस तो फिर भी समझता है पर मुझे हर्ष की चिंता है,आज भी वो पल मुझे याद है जब वो हमे पहली बार मिला था।"कहते हुए शिल्पा के चेहरे पर घबराहट आ गईं।
"ऐसा कुछ नहीं हो...." ध्रुव ने अभी इतना ही कहा था कि उससे महसस हुआ की कमरे में कोई खड़ा है, उसने अपनी नजरे कमरे के गेट की तरफ घुमाई तो उसकी नजरें वहीं थम गई ,वहीं ध्रुव के ऐसे अचानक से बोलते हुए रुक जाने से शिल्पा ने अपनी नजरें घुमाकर ध्रुव को देखा और फिर उसकी नजरों का पीछा करते हुए सामने देखा तो उसकी सांसें भी अटक गईं सी गई।
"हर्ष??!!" उसके मुँह से बस यहीं निकला, वही हर्ष उन दोनो को अजीब सी नज़रों से घूर रहा था, उसको देख शिल्पा जल्दी से ध्रुव के पास से हट्टी और उसके पास आकर खड़ी हो गई।
"बेटा तू, कुछ चाहिए क्या?" शिल्पा ने ख़ुशी का दिखावा करते हुए पूछा पर उसका दिल अंदर से भगवान से बार बार यही प्रार्थना कर रहा था की उसने कुछ सुना न हो, पर वक़्त ने आज कुछ और ही सोचा हुआ था।


"आप दोनो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?" हर्ष ने गुस्से भर्री आँखों से शिल्पा ​​की तरफ घूरते हुए कहा।
“हर्ष मेरी बात सुन बेटा....ऐसा कुछ नहीं है जो तू सोच रहा है। " शिल्पा ने हर्ष के कन्धों को पकड़ते हुए कहा तो उसने शिल्पा के हाथ झटका दिए।
“मत कहिये मुझे अपना बेटा...नहीं हुन में आपका बेटा.... अगर में आपका बेटा होता तो इतनी बड़ी बात आप मुझसे छुपाते नहीं, नहीं हैं आप मेरी माँ, इतनी बड़ी बात आप ने मुझसे छुपाई।" कहते हुए हर्ष गुस्से से कभी शिल्पा को देखता तो कभी ध्रुव को, वही हर्ष के मुँह से यह सब सुन शिल्पा की आँखों से आंसु बाहर आने लगे।
“ऐसा मत कह बेटा... मैं हूं तेरी माँ...मेने तुझे इन हाथों में पाला है..." शिल्पा ने रुआंसे गले से कहा।
"ये झूठे आंसू किसी और को दिखाना, मुझे नहीं" हर्ष ने शिल्पा की तरफ देखते हुए गुस्से में कहा और उसने हल्का सा धक्का दे दिया, जिसे देखकर ध्रुव गुस्से में पागल हो गया।
“shut up.....अब अगर तूने एक शब्द भी आगे कहा मैं कसम खाता हूँ मेरा हाथ उठ जाएगा।"ध्रुव ने हर्ष का हाथ पकड़ते हुए कहा।

"हां आप धोखा देने और मारने के अलावा कर भी क्या सकते हैं? कुछ नहीं....कितना खुश था,मैं अपनी खुशी आपके साथ बांटना चाहता था पर आपने वो खुशी भी मुझे छीन ली।"हर्ष ने चिल्लाते हुए कहा।
“तू हमारी बात करता है पर तुझे यह बात कहते हुए एक बार भी शर्म नही आई, जिस माँ को तू अभी धक्का दे है ना उसकी मां ने तुझे बड़ा करा है, जिसने तेरी हर ख़ुशी का ध्यान रखा है तुझे हर पल अपने सीने से लगाकर रखा है और अगर तू यह बात भी नही समझ सकता तो लानत है मुझे तुझे अपना बेटा कहने पर शर्म आती है, आज तू जो है वो इसकी वजह से है जिसने अपना सब कुछ तुझे दे दिया,तुम्हारे अंदर भी उसी आदमी का खून बह रहा है।" ध्रुव ने सख्त चेहरे के से अपनी बात कह डाली।



कुछ देर बाद......


मैं अपने कमरे से निकलकर किचन मैं पानी लेने के लिए आया, गला काफी सुख रहा था, पानी का ग्लास भर ही रहा था तभी मेरे कानो में मां के चिल्लाने की आवाज पड़ी जिसे सुनकर मैं फौरन हॉल मैं आ गया।
"हर्ष सुन तो,प्लीज एक बार तेरी इस मां की बात सुन ले " माँ के ऐसे चिल्लाने पर मेने देखा तो भाई तेजी से चलता हुआ मां के कमरे से निकल रहा था, उसके चेहरे पे गुस्से की झलक साफ़ दिखाई दे रही थी, वो गुस्से में मेरे सामने से होता हुआ घर से बाहर निकल गया.... उसके जाने के बाद मैंने देखा तो माँ वही पर खड़े हुए रो रही थी," माँ क्या हुआ आप रू क्यों रही हो? और भाई को अचानक यह क्या हुआ?" मां को रोते हुए देख मैने उनसे पूछा।


“नहीं कुछ नहीं.... तू तो जानता है ना हमारा झगड़ा होता रहता है, वही हुआ... तू जा अपने कमरे में कुछ नहीं हुआ।" माँ ने इतना कहा और वो तेजी से अपने कमरे की तरफ चली गई, मैं वहीं खड़ा कुछ पल सोचता रहा लेकिन आज के बीते दिन की वजह से मैने उस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने कमरे मैं चला गया।


गुस्से मै घर से निकलते ही हर्ष ने अपनी कार निकल और चल पड़ा।इस तरफ एक cafe मैं बैठकर प्राची और आंशिका आपस मैं बाते कर रहे थे,"उसे मिलकर,जानकर और वक्त बीतने से ही समझ आया की वो एक अच्छा इंसान है, दरअसल श्रेयस ने भी मेरी बहुत मदद की है,उसने ही मुझे समझाया की हर्ष दिल से एक अच्छा इंसान है बस वो अपनी बातो को कहने से घबराता है।"आंशिका मुस्कुराती हुई प्राची से बात कर रही थी।

"लेकिन मुझे तो अभी तक यकीन नही हो रहा है की तूने हां कर दिया।" प्राची ने उछलते हुए कहा।
“यकीन तो मुझे भी नही हो रहा,मेरे लिए भी वो एक सपने की तरह था,इतने लोगो के सामने बिना घबराएं अपने दिल की बात को कहना कोई प्यार करने वाला ही कह सकता है।" आंशिकाने अभी अपनी बात खतम की थी तभी श्रुति और प्रिया भी वहा आ गई।
"मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं" प्रिया ने आंशिका को गले लगाते हुए कहा।

"इसी खुशी को celebrate करने के लिए हम सब पार्टी मैं जा रहे है।" प्राची खुशी में झूमती हुई बोली।
"हां पर ये सब boys कहां रह गए?" श्रुति ने अभी इतना कहा ही था कि तभी अविनाश, मिलन और सेम आपस में बात करते हुए cafe मैं enter हुए। जैसे ही मिलन कि नज़र सामने खड़ी श्रुति पर पड़ी तो उसके होश ही उड गए, सिंपल सी दिखने वाली लड़की आज उसे एक अलग ही रूप में नज़र आ रही थी।
"अवि निधि नहीं आई?" प्राची ने उसे देखते हुए पूछा।
"नहीं उसकी तबियत ठीक नहीं है।" अविनाश ने तुरत जवाब दीया, वही आंशिका की नज़र हर्ष को खोज रही थी, तभी उसकी car आकर cafe के पास रूकी जिसे देखते ही उसके चेहरे पे मुस्कान आ गई, आते ही उसने आंशिका को प्यार से गले लगा लिया और कहा "Guys...Are you excited for this party?"
"अबे यह भी कोई पूछने की बात है?" अविनाश की बात उड़कर सब हंसने लगे।

"it's a long time we do party like this" प्रिया ने प्राची के सामने देखकर कहा।
college केे दोस्तो के साथ अपने वक्त को बिताकर हर्ष अपने सारे दर्द को भूल जाना चाहता था क्योंकि उस उमर मैं मन बहुत चंचल होता है एक ही पल मैं खुश या नाराज हो जाता है, हर्ष के साथ भी अभी वही हो रहा था।
“So Guys, Let's Go मुझसे तो अब इंतज़ार नही हो रहा है।"अविनाश ने भी उछलते हुए कहा और उसके साथ सब लोग cafe से निकलकर अपनी या अपने दोस्त की car मैं बैठ गए, इस तरफ हर्ष और आंशिका वार मैं बैठे थे,हर्ष ने आंशिका को अपनी और खींचते हुए कहा 'चले?'
" एक मिनट " आंशिकाने हाथ को रोकते हुए कहा।
"क्या हुआ?"
"हर्ष श्रेयस कहाँ है?"आंशिका की बात सुनते हैं ही हर्ष के चेहरे पर हल्का सा गुस्सा उभर आया जिसे उसने अपनी आवाज़ में ना दिखाते हुए कहा,"नही,वो नहीं आ रहा।"
"नहीं आ रहा पर क्यों?"
"मुझे नहीं पता, मैंने उसे पूछा तो उसने मना कर दिया, come on आंशिका हमें देर हो रही है। "हर्ष ने इतना कहा और उसने कार का दरवाजा बंध कर लिया, आंशिका ने कुछ नहीं कहा और कुछ पल बस ऐसे ही सोचती रही।


मैं अपने कमरे की बुक शेल्फ के पास खड़ा बुक्स को इधर उधर लगा रहा था,मन तो नहीं था लेकिन उसी दूसरे काम मैं लगाने की कोशिश कर रहा था, मेरे हाथ कांप रहे थे मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था, वो तो बस लेट जाना चाहता था लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकी मैं जानता था कि अगर मैने ऐसा किया तो मैं उसी दर्द मैं दोबारा डूब जाऊंगा तभी मेरे पीछे से कुछ गिरने की आवाज आई मेने पीछे मुड़ के देखा तो मेरी नज़र वहीं जम गई, सामने कमरे के दरवाजे पर खड़ी आंशिका मुझे देख रही थी।
"क्या मैं अंदर आ सकती हूं?" आंशिका की आवाज कानों में पढ़ते ही मेने अपनी नजरें वापस घुमा ली, उसको मेरे पास मेहसूस कर न जाने क्यों दिल मैं एक घबराहट होने लगी,तेज़ चल रही सांसों पर मैं किसी तरह काबू करने की कोशिश करने लगा।


"श्रेयस Any Problem?" पर मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
"श्रेयस.... क्या हुआ??मेरी और देखो" वो बार-बार मुझसे पूछे रही थी और वो बाते सुनकर मेरी आंखो के सामने वो सब पल फिर से आने लगे।" नहीं.. कुछ नहीं.. " आख़िर मैने बड़ी मुश्किल से जवाब दिया।
"तो फिर हमारे साथ क्यों नहीं आ रहे?"
"बस ऐसे ही, मन नहीं है आंशिका" मेने शेल्फ से कुछ किताबें उठाई और उन्हें टेबल पर रखने लगा और ऐसे ही चक्कर लगाते हुए चीज़े रखने लगा क्योंकि में उससे अपनी नज़रें छुपा सकूँ।उसने मेरे हाथ से किताब छीन ली और मेरी ओर देखने लगी ना चाहते हुए भी मेरी नजर उससे टकरा गई,दिल को एक बार फिर उसी एहसास ने छू लिया।


"क्या हुआ, काफ़ी परेशान लग रहे हो?" मैं घूम गया और टेबल को पकड़कर खड़ा हो गया,"नही तो ऐसी कोई बात नही है।"
"तो फिर मुझसे नजरे क्यों चुरा रहे हो।" उसकी बात सुनकर मैने कोइ जवाब नही दिया।
"ठीक है, जब तुम्हारा मन नहीं है तो मैं फोर्स नहीं करूंगी।" आंशिका कुछ पल ऐसी ही खड़ी रही और फिर रूम से बाहर जाने लगी, लेकिन रूम से बहार जाते हुए उसने कहा,"मैंने सोचा था आज के दिन तुम मेरी बात को मना नही करोगे पर तुम तो मुझसे नज़रे भी नही मिला रहे हो।" वो अभी जाने ही वाली थी तभी मैने कहा।
"हैप्पी बर्थडे आंशिका...." मेरी आवाज सुनते ही उसके बढ़ते कदम रुक गए और वो घूम के मेरी तरफ देखने लगी।वही बाहर कार में बैठे बैठे हर्ष को गुस्सा आ रहा था, पर किसी तरह उसने हमसे गुस्से पे काबू किया हुआ था,आंशिका के कहने पर वो श्रेयस को साथ ले जाने के लिए मान गया था कि तभी कार का गेट खुला और आंशिका हर्ष की बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई।
“मैंने कहा था कि वो नहीं आएगा लेकिन तुमने मेरी नहीं मानी, अब चलें।" हर्ष को गुस्सा तो आ रहा था लेकिन उसने किसी तरह अपने गुस्से को अपने शब्दों में जाहिर नहीं होने दिया,इससे पहले आंशिका कुछ जवाब देती, इतने में हर्ष के कानो में कार के गेट के खुलने की आवाज आई और उसने पीछे मुडकर देखा तो श्रेयस कार मैं आकर बैठ गया है।


"अब चलो" मेरे बैठते ही आंशिका ने कहा तो हर्ष ने कार दौड़ा दी, करीब 15 मिनट में हम pub पहुंच गए जहा पर सब लोग हमारा wait कर रहे थे,party शुरू होने से पहले ही सब बेहद excited थे और अपनी ही मस्ती मैं खोए हुए थे, "आज full night enjoy करेंगे dude" अविनाश खुशी मैं चिल्लाते हुए बोला और सब उसकी बातों में उसका साथ देते हुए अंदर जाने लगे।मैं कुछ पल सबको अंदर जाता देखता रहा, रात की इस खुली ठंड को कुछ पल मेहसूस करने के बाद मेने गेट खोला और जैसे ही अंदर कदम रखा वहां का माहोल देखकर मुझे बेचनी सी होने लगी,क्योंकि मैं आज से पहले कभी pub मैं नही गया था। ना के बराबर पर जगमती थोड़ी बहुत सी लाइट्स, शोर शराब, डांस, लोगों के चिल्लाने की आवाज, शराब के ग्लास आपस में टकराने की आवाज, ये सब देखते ही मन तो किया यहीं से लौट जाऊं लेकिन ना चाहते हुए भी आंशिका का दिल रखने के लिए मैं आगे बढ़ गया।



उधर बाकी सब एक साथ बार काउंटर के पास खड़े थे, सबके सामने टेबल एक - एक शॉट्स राखे और सभी कभी एक दूसरे को देखते तो कभी सामने रखे उस शॉट को। "मैं इसे नहीं पी सकती क्योंकि मैंने ऐसा पहले कभी नहीं किया.." कहते हुए आंशिका ने बुरा सा मुंह बनाया।
"come on आंशिका....You can do this" हर्ष ने अपना shot उठते हुए कहा, हर्ष के साथ सबके कहने पर आंशिका ने ग्लास को उठाया।
"Let's have fun guys।" हर्ष ने चिल्लाते हुए कहा और उस शॉट को एक ही बार मैं खत्म कर दिया,हर्ष को देखकर एक-एक करके अविनाश और समीर ने भी अपना ग्लास खाली कर दिया, मिलन पहले थोड़ी सी जिजक हुई पर उसने भी ग्लास खाली कर दिया।
"woooo जरा गर्ल्स को तो देखो " अविनाश ने हंसते हुए कहा तो लड़कियाँ एक दूसरे की तरफ देखने लगी और मुस्कुराते हुए प्राची ने तो एक ही झटके में ग्लास खाली कर दिया, प्रियाने भी उसका साथ दिया, अब सबकी निगाहें आंशिका पे टिकी हुई थी, आंशिका हल्का सा घबरा रही थी लेकिन फिर उसने ग्लास को मुंह से लगाया और एक ही बार में उस vodka को उसने अपने गले से नीचे उतार दिया, जैसे ही वो गले से होती हुई अंदर गई आंशिका का चेहरा ऐसा हो गया मानो पूरे शरीर में झुनझुनी सी दौड़ गई हो।

"Wow that's like my girl" हर्ष ने आंशिका को अपने गले से लगाया, अभी उसने इतना ही कहा था की सबके सामने एक ओर शॉट तैयार था, इस बार सभी ने किसी की परवाह किए बिना खाली कर दिया फिर तो मानो एक अलग ही खेल शुरू हो गया हो, एक के बाद एक शॉट लगते गए, सब उस नशे मैं चूर हो गए तभी हर्ष ने एक बोतल उठाई और उसे मुँह से लगा लिया, सभी उसको ऐसा करते हुए देख cheer करने लगे, वही आंशिका उससे मना कर रही थी, पर कुछ ही पल में उसने वो बोतल खाली कर दी।


"आहह...wooo....लोग कहते है की मैं शराबी हूं " गुनगुनाते हुए हर्ष आंशिका का हाथ पकड़कर डांस फ्लोर पे ले गया,प्राची ने समीर का हाथ पकड़ा और वो उसे खींचती हुई डांस फ्लोर पर ले गई, श्रुति भी नशे में चूर हो चुकी थी उसने बिना वक्त गवाये मिलन का हाथ पकड़ा और उसे भी खींचकर ले गई,मिलन उसकी इस हरकत से थोड़ा चौंक गया था लेकिन इस मस्ती के आलम में चूर उसने कुछ नहीं कहा, आखिरी में बचे अविनाश ने भी प्रिया से डांस के लिए पूछ तो उसने मना नहीं किया और वो दोनो भी dance floor पे पहुंचकर enjoy करने लगे, मैं दूर एक कोने मैं बैठा सबको देख रहा था तभी मेरी नज़र सामने डांस फ्लोर पे जा रुकी... हर्ष ने आंशिका को अपने से चिपका रखा था और उसके बाहों में अपना हाथ डाला हुआ था, आंशिका शरमाते हुए वैसे ही खड़ी थी,इस पूरी दुनियां से दूर दोनो अपने प्यार मैं इस खादर खोए हुए थे की वो दोनो एक दम करीब आ गए थे,जिसकी वजह से दोनो की सांसें आपस मैं टकरा रही थी,आंशिका से आती उसके perfume की महक उसको पागल सा बना रही थी। में इससे ज्यादा नहीं देखा पाया और चलता हुआ बार के पास जा पहुंचा,मेरी भाई की खुशी मैं तो मुझे खुश होना चाहिए ये बात मैने अपने मन को बार बार समझाने की कोशिश की लेकिन दिल इस बात को मानने से इन्कार कर रहा था क्योंकी आज मेरी आंखों के सामने ही मेरा प्यार किसी ओर की बाहों मैं था, मेने एक बार अपनी नजर पीछे घुमाकर उन्हे देखा तो जलन ओर बढ़ गई जिसकी वजह से सामने पड़े 5 शॉट्स को मैंने एक के बाद एक अपने गले के नीचे उतार दिए,कुछ देर बाद में अपनी जगह से खड़ा हुआ और वहां से जाने के लिए चल दिया, जाते जाते एक बार सबकी तरफ देखा और फिर इस शोर शराबे की अजीब सी नशे की दुनिया से बाहर निकल गया।



बाहर निकलकर एक सुनसन सड़क पर चला पड़ा, ना तो सड़क का पता था ना ही किसी ठिकाने का।अपने प्यार को खत्म होते हुए देख दिल अंदर एक कोने मैं कही छुप सा गया था इसलिए वो अपने दुख की तकलीफ अपने शरीर को दे रहा था। आंखें भरी हुई थी और पर ना जाने क्यों खाली होने का नाम नहीं ले रही थी, ठंडी हवा चेहरे पर पढ़ रही थी जिसकी चुभन पूरे चेहरे पर मेहसूस हो रही थी और उसकी वजह से नाक लाल हो चुकी थी,अंदर से मेरे जज़्बात इतने बिखर चुके की वो अब किसी एहसास को मेहसूस नही करना चाहते थे।

इंसान तब नही थकता इसका शरीर थक जाए पर वो तब थकता और हारता है जब उसका दिमाग़ उसका साथ छोड़ दें,अपने जज्बातों को इस कदर उसने दबाया था की वो खुद उसका दुश्मन बन चुका था, जो उसे पल पल अंदर से कमजोर बना रहा था और यही सब जज़्बात गुस्से के रूप मैं बाहर आ रहे थे, पता ही नहीं चला कि चलते हुए कब में घर के बाहर आकर खड़ा हो गया,उसने आसपास देखा तो उसके अलावा कोई नहीं था, उसके चारो तरफ एक अंधेरा फैला हुआ था। कुछ पल वो ऐसे ही गेट के बाहर खड़ा रहा,अपनी भरी सांसों को हल्का करने लगा,आंखें बंध करके उसने अपनी सांसों को शांत किया।धीरे से उसने दरवाजा खोलकर को घर मैं enter हुआ।उसे घर के हॉल मैं आकर देखा तो Dinning table पर शिल्पा उन दोनो का इंतजार करते हुए वो अपना सर रखकर सो गई थी,अपनी जिस मां को वो सबसे ऊपर रखता था बस कुछ दुख के पल की वजह से आज वो उस मां से भी बात नही करना चाहता था।


"श्रेयस.. बेटा तू आ गया" माँ की आवाज़ सुनते ही में रुक गया पर बोला कुछ नहीं।
"क्या हुआ बेटा इतनी जल्दी कैसे आ गए?"
"बस ऐसे ही मेरा मन नहीं था इसलिए" मैंने बात को जल्दी ख़तम करके अपने रूम मैं जाना चाहता था।
"अच्छा कोई बात नही चल मैं तेरे लिए खाना लगा देती हूं।"
"नही मां मैं बाहर खाकर आया हूं।"
"अच्छा तो फिर तुम और आंशिका सब साथ मैं आए हो ना?" माँ के मुँह से यह नाम सुनते ही बेहद गुस्सा आया, मैं बिना कुछ बोले अपने कमरे की तरफ जाने लगा।
"श्रेयस पर इतना तो बता दे कि हर्ष कहा है और वो कब तक लौटेगा?" इस बार मैंने चिल्लाते हुए कहा।
"मैने कहा ना मुझे नही पता तो आप बार बार क्यों एक ही सवाल कर रहे हो, उसे जहा जाना है जाए क्या मैने उसका खयाल रखने का ठेका ले रखा है?"मैने सीधे कमरे मैं जाकर दरवाजे को पीटकर बंध कर दिया।


शिल्पा बस वही टेबल पे पास खड़ी श्रेयस को ऐसे जाते हुए देखती रही, उसकी आंखें उसकी हालत साफ बयां कर रही थी क्योंकि सुबह से ही उसकी तबियत धीरे धीरे बिगड़ती जा रही थी और इस वक्त उसे काफ़ी तेज़ बुखार भी था पर सबसे ज्यादा वो इस बात से हैरान थी की जो बेटा उसके मन ही हर बात समझ लेता है वो आज यह बात नही समझ सका। वो कुछ देर वही खड़ी रही और टेबल का सहारा लिए हुए अपने कमरे में चली गई।


कमरे मैं जाकर मै साइड बाथरूम नई चला गया और नल खोलकर अपना चेहरा धोने लगा मैने आईने मैं देखा तो आंखो के पास आंसुओं की वजह से निशान बन चुके थे,मैने अपना चेहरा धोया और बाहर आकर उस टेबल के पास खड़ा हो गया जहा अभी भी वो sketch पड़ा हुआ था।आंखे अब लाल हो चुकी थी,पूरा शरीर थक गया था,पर मैने पेंसिल उठाई और उस स्केच पास एक लाइन लिख दी


"किसी की खामोशी मैं जीने की वजह मिली थी,
आज मैं खामोश हूं पर कुसूर उसके लफ्जों का है।"


इतना लिखने के बाद chair पे सर लगाकर बैठ गया,चारो तरफ एक अलग ही खामोशी छाई हुई थी, कुछ पल ही हुए थे तभी दरवाजे पे किसी के ज़ोर ज़ोर से मारने की आवाज आई, मेने फ़ौरन आँख खोली और दरवाज़े की वो आवाज सुनकर ऐसा लगा मानो कोई दरवाज़ा तोड़ना चाहता हो, मैं फ़ौरन अपनी जगह से उठा और दरवाजा खोला।
"पापा... क्या..." अभी इसके में कुछ कहता था उसने पहले ही उन्हें अपनी बात कही जिसे सुनते ही मैंने पापा को हल्का सा धक्का दिया और वहां से भागते हुए सीढ़िया उतरकर नीचे जाने लगा, मैं सारी बात भूल चुका था और दिमाग अब सिर्फ एक ही बात घूम रही थी,मेरे तेज़ चलती सांसों की आवाज मेरे कानो मैं गूंज रही थी।


To be Continued.......