सुबह की गिरती ओस के साथ मौसम मैं ठंडक बिखरी हुई थी।नवंबर महीने की गुलाबी सुबह मैं में कॉलेज के गार्डन मैं बैठा अपनी सोच मैं डूबा हुआ था क्योंकि एक हफ्ते बाद आंशिका का बर्थडे आने वाला था उसने मेरे बर्थडे को मेरी जिंदगी का memorable day बनाया था, तो मैं भी उसे कोई ऐसी चीज देना चाहता था जो उसे एक Momentum की तरह हर पल एक खुशी का एहसास कराता रहे पर अभी कोई भी चीज दिमाग़ मैं नही आ रही थी।अभी क्लास शुरू होने मैं डेढ़ घंटे का वक्त था तो गार्डन मैं भी ज्यादा स्टूडेंट्स नही थे,मौसम पूरी तरह से साफ था,आसमान भी पूरी तरह से नीला था जैसे सूरज की रोशनी ने सब बादलों को धुआं बनाकर गायब सा कर दिया हो।सुनहरी धूप गार्डन की घास और फूल मैं जैसे नए रंग भर रहा हो तभी उस कोमल घास पर अपने नाज़ुक पांवो मैं पायल पहने white dress में सामने आंशिका खड़ी थी।रेशम से घने बाल,माथे पर एक छोटी सी बिंदी,हाथो मैं कंगन और अपनी चुनरी को लहराते हुए उन सफेद फूलों की महक ले रही थी,ठंड की वजह से उसकी नाक हल्की सी लाल हो गई थी,उसका यह प्यारा सा चेहरा देखकर मन मैं एक ख्याल आया और अपनी दिल की बात रखने के लिए मैने अपनी drawing sheet निकाली और उस जज़्बात को पेपर पर निखारने लगा।
आंशिका खड़ी अपने दोस्तों से बातें कर रही थी,आज सब उसके इस नए रूप को देखकर हैरान थे और सब उसकी तारीफ कर रहे थे,अपनी तारीफ सुनकर आंशिका की नाक की लालिमा उसके गालों पर भी चमक रही थी,मैं दूर बैठकर पेड़ की छांव में draw करने मैं लगा हुआ था,अपना सारा प्यार और जज़्बात मैं उस कागज पर उतारने लगा था।आखिरकार वो मेरी आंखो से ओझल हो गई और मैने अपनी आंखे बंध की तो उसकी हंसती हुई आकृति जैसे मेरे मन मैं बस गई हो और कुछ देर बाद मैने अपना काम खत्म करके उसे अपने बैग मैं रख दिया।
" 2 दिसम्बर "
शाम हो गई थी,ढलते सूरज के साथ ही अपनी बातो को एक शायरी मैं ढालकर मैने pen को बीच मैं रखकर अपनी डायरी को बंध किया। मैं आंखे बंध करके उस पल के बारे मैं सोचने लगा की कल इसको सुनकर आंशिका क्या reaction देंगी,दिल मैं excitement के साथ एक डर भी लग रहा था।कल कॉलेज जाने के लिए दिल मैं बैचेनी बढ़ती जा रही थी।
"कोई बात नहीं, वैसे भी बस कल तक की ही बात है, कल अपनी बात कहकर अपने दिल की धड़कन को उसके साथ मिला दूंगा,उसके बाद सब इंतजार खत्म हो जायेगा।" खुशी में मेने डायरी को दोबारा खोला और एक पन्ने पर आकर रुक गया जिस पर एक tittle लिखा हुआ था,"दिल की जरुरत।"
"उम्मीद है कि आंशिका को ये जरूर पसंद आएगी।" अपनी लिखी लाइन को पढ़कर मैं वॉशरूम चला गया,कुछ देर बाद जब वॉशरूम से बाहर आया तो अपनी टेबल के पास पहुंच उस पर bag मैं से वो sketch निकालकर उस चेहरे पर छाई प्यारी मुस्कान को देखने लगा,मैने मुस्कुराते हुए उसे वापस बेग मैं रखा तभी मेरा ध्यान टेबल पर गया।
"मेरी डायरी कहां गई?" बोलते हुए मैंने अपनी नज़र इधर-उधर घुमाई लेकिन मुझे वो नहीं मिली तभी मेरी नज़र बिस्तर पर गई "ohh....तो यहां रखी थी मेने।" कहतें हुए मैने फिर उसे बेग मैं डाल दिया।पता नही क्यों पर आज मैं कुछ अलग ही behave कर रहा था, माँ ने भी मुझे एक-दो बार कहा लेकिन मैंने हंसकर उनकी बात टाल दी।इन्ही सब ख्यालों मैं अपनी करवटें बदल रहा था पर नींद जैसे आंखो से कोसों दूर थी मैंने घड़ी मैं time देखा तो 12 कबके बज चुके थे,"सॉरी आंशिका अभी नहीं कहूंगा,तुम्हे थोड़ा ओर इंतज़ार करना होगा।" मैने आंखें बंद की ओर कब नींद की आगोश में चला गया पता ही नहीं चला।
अगली सुबह जल्दी उठा और नहाकर फ्रेश होकर कॉलेज जाने के लिए ready हो गया, पास के Drawer मैं रखी एक perfume की बॉटल निकालकर हल्का सा लगा दिया,अपने बालों को set करते हुए मैं mirror मैं देख रहा था,आज मैं जैसे मैं नहीं था आज पहली बार ऐसा मेहसूस हो रहा था।
"घबराओ मत....घबराओ मत... सब कुछ ठीक होगा" अपने आप को समझाना कितना आसान होता है लेकिन जब यही बात किसी ओर से कहने मैं इतनी मुुश्किल क्यों हो जाती है?बैग लेकर जब कमरे से बाहर निकला तो डाइनिंग टेबल के पास मां मेरा इंतज़ार कर रही थी उन्हे देखते हुए कहा,"Good Morning Mom."
"Good Morning बेटा, अच्छा हुआ तुम ready हो गए चलो चल बैठ में ब्रेकफास्ट लगाती हूं।"
"sorry मोम आज नही...आज बहुत important काम है तो मुझे जल्दी निकलना होगा।" इतना कहकर मैंने अपना बैग उठाया और जाने लगा, फिर अचानक से रुका और वापिस आकर माँ के पैर छुए।
"अरे... क्या बात है? कोई ज़रूरी काम पे जा रहा है क्या?" माँ ने अपनी आइब्रो को हल्का सा ऊपर की तरफ करते हुए पूछा।
"हां मां,आप बस ये समझ लो आज मैं अपनी जिंदगी में आपके और अपने लिए एक बहुत बड़ा गिफ्ट लाने के लिए जा रहा हूं।'' मेने हल्का सा खुश होते हुए कहा, माँ मेरी उस खुशी को मेरी आँखों में अच्छी तरह देख पा रही थी,वो इसके आगे कुछ कहती पर मैंने मौका नहीं दिया और माँ को bye कहकर घर से निकल गया।जैसे ही घर से बाहर निकला तो बाहर छाई हुई फूलों की महक ने जिसे मेरी मन की सब उथल-पुथल को शांत कर दिया। सूरज की रोशनी को शरीर को अंदर से हल्का सा गर्म कर रही थी,मौसम मैं फैली ठंडक को अपने चेहरे पर महसूस करते हुए मैं मेट्रो मैं बैठा और अपने कॉलेज की तरफ निकल गया।
थोड़ी देर बाद....
आज कॉलेज का सब कुछ मुझे अलग ही लग रहा था,सामने मुझे एक ही रास्ता दिखायी दे रहा था जो मुझे अपनी मंजिल की ओर ले जा रहा था,जहां पहुंचने के लिए मैं कब से इंतजार में था।आखिरकार मैं classroom मैं पहुंच गया,क्लास में थोड़ी हलचल मची हुई थी, ज्यादातर स्टूडेंट्स क्लास के बाहर गार्डन मैं या फिर canteen मौसम का लुफ्त उठ रहे थे , वही आंशिका निधि,प्रिया और प्राची के साथ बातें कर रही थी।
"मुझे पता है यार.... Thank you Very much" आंशिका हंसती हुई बातें कर रही थी तभी खड़े हुए उन students के बीच मैं से एक आवाज़ गूंजी।
"जिस दिल ने तुम्हे पाने की ख्वाहिश की वो जरूरत हो तुम,
ये आवाज सुनते ही आंशिका ने हंसना बंद किया और वो घूम गई घूमते ही उसके सामने वो शख्स आ गया।
घनी रातों मैं छाई पूनम की चांदनी सा सुकून हो तुम
हर पल चलती इन सांसों में बसी गहराई हो तुम
बस कभी इन सांसों को थमने मत देना क्यों की
क्योंकि इन सांस मैं बसे उस प्यार का एहसास हो तुम।
सामने खड़े शख्स के मुँह से निकलते अल्फ़ाज़ों को सुनकर वो समझ नहीं कर पा रही थी कि क्या reaction दे?उसके दिल मैं खुशी,डर और हैरानी के सभी भाव एक साथ उमट पड़े थे। इतनी आवाज के बाद कुछ पल पूरी क्लास में शांति हो गई, सब लोग आंशिका की तरफ देख रहे जैसे उस शख़्स के साथ वो सभी लोग आंशिका के जवाब का इंतजार कर रहे हो।
"आंशिका मैं नही जानता की प्यार क्या होता है क्योंकि मैं आज से पहले कभी कोई लड़की के साथ रिलेशन मैं नहीं रहा तो इन बातो को कैसे बयान करते है मुझे नही पता पर हा अगर मेरी feelings, मेरा प्यार सच्चा हैं तो आज मेरी बात तुम्हारे दिल तक जरूर पहुंचेगी,तुम्हारे साथ बिताई वो हर शाम,वो लम्हा,हर पल जिंदगी का एक हसीन ख्वाब जैसा लग रहा है और मैं चाहता हूं कि मैं इस ख्वाब मैं हमेशा के लिए खो जाऊं।आज तक मेरी मां के अलावा मैंने कभी उस प्यार को महसूस नहीं किया उनके बाद अगर किसी से वो प्यार और अपनेपन की feeling आई है तो वो तुम हो आंशिका।क्या तुम मेरी ज़िंदगी का वो प्यार बनोगी आंशिका?"
जैसे-जैसे आंशिका उन बातों को सुन रही थी, वैसे उसके दिल की धड़कने और फीलिंग्स बढ़ती जा रही थी,एक लड़की के अंदर चल रहे इस एहसास को समझना बेहद मुश्किल होता है,ये ओर भी मुश्किल हो जाता है जब कोई उसे इतना प्यार देने के लिए कह रहा हो,वो तो वही से अपने प्यार के पलों को सजाने लग जाती है,अपने सपने और ख्वाबों को उसी शख्स के साथ जी लेने चाहती है,इस वक्त आंशिका की भी यही हालत थी, वो सामने खड़े उस खुबसूरत पल को जीने मैं इतनी खो गई थी कि कोई रिएक्शन देना ही भूल गई।उसके आंख से हल्की सी पानी की धारा बह निकली।
हर्ष ने आगे बढ़कर उसके गालों के पास आए उस आंसू को अपनी उंगली की मदद से हटाकर कहा "इन आंसुओं को कहो कोई और पलको पर जाकर बैठे क्योंकि मेरे रहते इन्हे बहने का हक नहीं है।" उसने आंशिका के कानों के पास जाकर अपनी गर्म सांसों के साथ हल्के से कहा,'I Love you Aanshika' यह बात सुनते ही उसके दिल मैं एक सिरहन सी दौड़ गई अपने जोरो से धड़कते हुए दिल के साथ उसने हर्ष को कसकर गले लगाते हुए कहा,"I also love you Harsh."
"मैं तुम्हारी जिंदगी का प्यार बनूगी और अपने हर लम्हे को तुम्हारे साथ बाटना चाहूंगी" कहते हुए आंशिका ने अपनी पकड़ को थोड़ा ओर कस लिया। जैसे ही आंशिका के लफ्जों से निकले शब्दों को सुना मेरी आंखों ने अपने दर्द को बहा दिया, शरीर बिखरने सा लगा और खुद बा खुद पीछे हटने लगा और बेग कंधे से फिसलता हुआ नीचे गिर गया।आंशिका के बढ़ाएं हाथ को देख हर्ष ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी जगह से उठाकर हवा मै उठाकर घुमाने लगा,आंशिका भी खुश होती हुई उसकी बाहों में खोती चली गई।आंशिका की हां सुनकर वहा खड़े सारे लोग शोर मचाने लगे, जितने लोग बहार खड़े थे वो भी शोर सुनकर चिल्लाते हुए श्रेयस को धक्का देते हुए अंदर जाने लगे, सब हर्ष और आंशिका की इस ख़ुशी मैं उनका साथ दे रहे थे।
मैं सबको अंदर जाते हुए देख रहा था, सब खुश थे पर में नहीं था क्योंकि मैं अंदर से रो रहा था लेकिन अभी कुछ महसूस नहीं कर सकता था।अब मैं यहां ओर खड़ा नहीं रहना चाहता था इसलिए मैंने अपना बैग उठाया, चेहरे पर आएं आंसू को पोंछ लिया,मैं जल्दी से कॉलेज से निकला और रास्ते पर भागने लगा आँखों से निकलते आंसूओने सब कुछ धूंधला सा कर दिया था,दिल मैं एक गुस्सा, दुःख और दर्द लिए पूरी ताकत से मैं रास्ते पर भागे जा रहा था,ऐसी दौड़ते हुए मैं कितनी दूर आ गया पता नही,आखिर मैं थककर मैं के जगह पर बैठ गया,यह जंगल वाला इलाका था इसलिए आसपास बहुत घने पेड़ थे,मेरी नजर थोड़ी दूर गई तो रास्ता खतम हो रहा था,आगे दूर तक अपनी मजबूती से खड़े पहाड़ दिख रहे थे।मैं एक पेड़ का सहारा लेकर बैठ गया,इस वक्त सांसे और दिल की धड़कन बहुत तेज़ चल रही थी जैसे दिल अचनाक से बहुत भारी हो गया हो। इस खुले मौसम में गहरी गहरी सांसें लेने लगा,मानो किसी चीज को अंदर से बहार आने के लिए रोक रहा हूं, पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
यहां दूर-दूर तक कोई इंसान का नामो निशान नहीं था,दिन चड़ने के साथ पेड़ो के बीच मैं से आती हुई सूरज की हल्की रोशनी मेरे चेहरे पर पद रही थी। मैने अपना बैग खोला और उसमें से आंशिका के लिए बनाया हुआ वो कार्ड और sketch निकाला,कई नाकाम कोशिश करने के बाद आंखो से निकले आंसू टप-टप करते हुए उस कार्ड पर गिरने लगे और मैं घुटनो के बल बैठ के ज़ोर से चिल्लाते हुए रोने लगा, चिल्लाते की वजह से मेरी आवाज दूर तक गूंज रही थी,पता नही क्यूं मुझे आज इतना गुस्सा आ रहा था पर आज जैसे अंदर जैसे सालों से दबा हुआ दर्द आंखो से बाहर आना चाहता था, "नहीं...नहीं,मेरे भाई की खुशी मैं मुझे रोना नही चाहिए।" फुली हुई सांसों के साथ मैं अपने आप को जूठा दिलासा देने की कोशिश कर रहा था,पर इसका कोई फायदा नही हुआ।
मेरी नज़र जब उसके स्केच पर पड़ी तो आंखों से निकलते आंसू के साथ-साथ दिल भी अपना सारा दर्द को बहाने लगा और मैंने गुस्से मैं आकर उसे अपने से थोड़ा दूर फेंक दिया,जब अपना प्यार हमसे छीन जाता है तो कितनी तकलीफ होती है यह मुझे आज समझ आ रहा था,अपने प्यार को एक मुस्कान के साथ किसी और के साथ जाते हुए देखना सब जूठ है,हमारी ज़िंदगी मैं जब सच मैं वो प्यार हमसे दूर हो जाए तो कितनी दर्द होता है आज पता चला क्योंकि दिल भी एक हमसफ़र या साथी की ख्वाहिश रखता है।
पता नहीं पर ना जाने कितनी देर तक में इस खुले मौसम में ऐसे ही बैठा रहा,शाम हो गई थी मेरा दिल अब उन आंसुओं को बहाते हुए थक चुका था क्योंकि वो अब ये बात जान चूका था कि उसकी इस तकलीफ को सुनने वाला कोई नहीं है सिर्फ ये सांसें ही हैं जो उस तकलीफ के साथ चलती रहेंगी।क्या सोच के आया था में कि आज हर खुशी को अपना नाम कर लूंगा, पर इस वक्त ने मुझसे वो हर खुशी छीन ली। बार-बार आंशिका की परछाई मेरे सामने आ जाती और आँखों के कोने मैं छुपे आंसू को बहाकर बाहर ले आती, पर कब तक यूं की बैठा रहता, दिल तो बिखर चुका था।
मैंने अपने आप को संभाला bottle मैं से पानी निकालकर चेहरे को साफ किया बैग के साथ उस sketch को उठाया उस और कुछ पल उसे देखने के बाद मैं उससे बैग मैं डाल दिया,धीरे से चलते हुए उस जंगल से बाहर निकला और मेट्रो पकड़कर घर आ गया,पर जैसा ही घर में घुसा, तभी माँ मेरे पास आई और मेरे माथे को चूमते हुए खुशी से कहा,"तूने सही कहा था तू मुझे बहुत बड़ा गिफ्ट देगा और तूने दे दिया, तूने मुझे बताया नहीं कि हर्ष आंशिका से इतना प्यार करता है, आज में बहुत खुश हूँ, बहुत खुश।" कहती हुई माँ ने मुझे अपने साथ सोफे पर बिठा दिया और उन दोनो के साथ अपने भी ख्वाबों का महल सजाने लगी,मां को मैं आज से पहले इतना खुश कभी नही देखा था,मैं अपना सर झुकाकर उनकी बाते सुन रहा था, जिस बात के दर्द को भुलाकर मैं घर तक पहुंचा था मां मेरे सामने वही सब बाते रखने लगी थीं,मैं यह जानता था कि मैं कभी इस बात से दूर नहीं भाग पाऊंगा पर अभी मैं इसका सामना करने के लिए तैयार नहीं था इसलिए मैने मां को हल्के से गले लगाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा क्योंकि अब मैं थोड़ी देर वही खड़ा रहा तो रो पडूंगा। मुझमें अब ज्यादा सुनने समझने की शक्ति नहीं बची थी तभी भाई के कमरे के सामने से निकलती हुई आवाज मेरे कानों में पड़ीं जिसे सुनकर मेरे कदम वहीं रुक गए।
"अबे कमीने, तूने मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाई,मुझे...अपने भाई तक को नहीं बताई।" कहते हुए अविनाश हर्ष को मारने के लिए खड़ा हुआ।
" शांत हो जा भाई , शांत हो जा जान बूझकर मैं तुम्हे ये बात नही बताई। " हर्ष ने अपने बेड पर बैठे हुए कहा।
"अच्छा पर वो क्यों?"
"तू जानता है, जब भी मैं किसी प्लान पर काम करता हूं तो जब तक वो पूरा नहीं होगा हो जाता उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताता।" हर्ष ने अपनी अजीब सी मुस्कान के साथ कहा।
"प्लान??!? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की तू क्या कहना चाहता है?"
"सब बताता हूं,chill dude पहले यहां बैठ जा।"उसने chair को पास करते हुए कहा।
"oyyy...देख,दिमाग मत घुमा, वैसे ही लाखों सवाल दिमाग में घूम रहे हैं, कि आख़िर तू कब से आंशिका के पीछे पड़ा?कैसे तू उससे प्यार करने लगा? तू आंशिका मैं कब से interested था? इन सब सवालों के चलते मैं यहां पागल हुए जा रहा हूं और तू आराम से बैठकर चिप्स खा रहा है, तू बता रहा है कि नहीं आखिरकार तेरे दिमाग में आंशिका को पटाने का ख्याल कहां से आया या फिर में तेरी टांगें अभी तोड़ दूं?'' अविनाश ने एक ही सांस में गुस्से भरी नजरों से कहा।
"ये खयाल मेरे दिमाग में कहीं और से नहीं बल्की तेरी बहन निधि की वजह से आया। "हर्ष ने अविनाश की आँखों में घूरते हुए एक स्माइल के साथ कहा और उसकी बात सुनते ही अविनाश का सारा गुस्सा हवा में उड़ गया।
"क्या बक रहा है बे?" ये बात सुनते ही अविनाश की आंखें खुल गईं और उसकी शकल ऐसी हो गई मानो कितना बड़ा झटका लगा हो।
"वैसे उसे प्लान से ज्यादा आइडिया कहना ठीक रहेगा, वो आइडिया जिसने मुझे समझाया कि मुझे आंशिका को अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहिए"
"जो भी हो अब सीधा point पे आ।"
“तुझे याद है जब मेरी अभिनव से लड़ाई हुई तब मैं तेरे घर आया था?" हर्ष ने इतना कहा तो अविनाश ने हां में गर्दन हिलाई।
“तो उस दिन निधि ने मुझे कुछ ऐसा बातें कहीं की बस मेरे दिमाग में वो बातें सेट हो गई और मेने उसी दिन सोच लिया कि अग्गे मुझे क्या करना है......अभिनव ने भी इसी एटीट्यूड की वजह से आंशिका को खो दिया, तुम्हें पता है आंशिका जैसी लड़की हर किसी को नहीं मिलती...सोचो ये, आंशिका जैसी लड़की हर किसी को नहीं मिलती।''
“निधि की ये बात उस दिन ना जाने क्यों पर दिमाग में ऐसे घुसी की मेने उसमें दिन सोच लिया की अभिनव से बदला लेने का इससे अच्छा मौका कोई ओर नही हो सकता"
"अब अभिनव से कैसा बदला?" अविनाश ने फिर से अपना सवाल किया।
“यार ख़ुद सोच, पूरे कॉलेज के पॉपुलर लड़के की गर्लफ्रेंड कोई और बना ले तो हम सब जानते हैं कि दोनों का ब्रेकअप किस वजह से हुआ तो सोच अगर ऐसे में अगर कोई उसकी ex को अपनी गर्लफ्रेंड बना ले और वो भी वो इंसान जिसे उससे सबसे ज्यादा नफ़रत हो तो सोच उसका क्या हाल होगा?"हर्ष ने एक शैतानी हंसी के साथ कहा तो अविनाश के दिमाग में कुछ-कुछ बातें साफ होने लगी।
"मतलब की अभिनव को पुर्रे कॉलेज मैं एक बार फिर से हाहाहाहा....."अविनाश बात को समझे हुए हंसने लगा।
"हां....अब तुम सही रास्ते पर हो दोस्त, बस उसी दिन से मैं आंशिका के पीछे लग गया, अगले दिन जब वो कॉलेज आई तब जान बुच के में उससे टकराया और फिर में श्रेयस के पीछे बैठने लगा, वही से हम दोनों के eye contact बढ़े, बास फ़िर क्या हम दोनों में धीरे धीरे बाते होने लगी, बिना किसी की नज़र में आये मैं उससे हर शाम मिलने लगा और इन सब मेहनत से जो result मिला अब वो तुम सबके सामने है" हर्ष ने पानी का गिलास लेते हुए अपनी बात को ख़तम किया।
“इसका मतलब सबके सामने तू श्रेयस से इतनी अच्छी तरह से बात आंशिका की वजह से रहा था।"
"और नहीं तो क्या वरना तो तू जानता ही है मुझे मैं तो कभी उसके पास जाना भी पसंद नहीं करता तो बात करना तो दूर की बात है... पर मुझे बस एक बात का डर था?"
"वो क्या?"
" मेरे लल्लू भाई की उस चोमू वाली बातो से कही आंशिका impress होकर उसकी ओर ना खींची चली जाए और पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है कि श्रेयस को आंशिका के लिए कुछ feelings तो है,उसने मेरे mom-dad को मुझसे बांट लिया इसीलिए जो चीज़ उसे पसंद है मैंने वो चीज ही उसकी जिंदगी मैं आने से पहले छीन ली।"
“क्या बात है यार....तूने तो सच में कमाल कर दिया, पर एक बात बता क्या अभी भी उस अभिनव को सबक सिखाना जरूरी है? श्रेयस ने तो पहले ही उसे अच्छा सबक सिखा दिया है।''
“अबे तू ये बात नही जानता उसने ठीक होने के बाद मुझे कहा था कि जो मेरे भाई ने किया है, उसका बदला तो वो लेकर रहेगा श्रेयस को लगता है वो सबको सुधारकर अपनी तरह बना देगा लेकिन वो ये नहीं जनता की आज के time में कोई ऐसे नहीं सुधरता,बस उसी दिन से मैने मन बना लिया कि उसे असली चोट तो तब लगेगी जब इसकी गर्लफ्रेंड मेरे पास होगी और तब होगा हिसाब बराबर।" कहते हुए हर्ष ने अपनी हाथ मै रखी chip को दबा दिया।
"मान गए तुझे यार, पर एक बात समझ नहीं आई कि तू इतनी अच्छी शायरी लिखना कहा से सिख गया? मैं तो बिलकुल ही चौंक गया था।"
“चिंता मत कर ये सब मेरा लिखा हुआ नहीं था, मैं जानता था की आंशिका को प्रपोज करना होगा तो मुझे कुछ ऐसा चाहिए जो सीधा उसके दिल से जुड़ा हो और तब मुझे मेरे so called भाई की याद आई, कल रात मैं उसके कमरे में ये सोच के गया कि क्या पता उसने कुछ ऐसा लिखा हो जो मेरे काम आ जाए, by chance मेरा luck इतना अच्छा था कि उसकी डायरी मुझे मिल गई और जैसे ही मैंने उसे खोला तो मुझे वो शायरी दिख गई और उसके बाद जो हुआ वो तो तू जनता ही है। "हर्ष के कहते ही अविनाश उसके गले लग गया।
"superrb job yaar...well done चलो श्रेयस तेरे किसी काम तो आया।"अविनाश के कहते ही वो दोनो हंसने लगे।
“अच्छा एक बात पूछूं यार.....जो मुझे खटक रही है। "अविनाश की आवाज़ में थोड़ी seriousness थी।
“पुछ ना।”
"क्या तू सच मैं आंशिका से प्यार करता है?" अविनाश की ये बात सुनते ही हर्ष उसे घुरने लगा, वो कुछ कहना चाहता था लेकिन उसे खुद समझ आया नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे इसलिए वो चुप खड़ा अविनाश को देखने लगा तभी अविनाश का फोन बजा तो वो फ़ोन पे बात करने लगा, वही हर्ष कुछ ख्यालों मैं खोया हुआ था। मैं अंदर की बातें सुन रहा था तभी मुझे किसी के बहार आने का एहसास हुआ तो वहां से हट गया और अपने कमरे में चला गया, कमरे में जाते ही बेड पे सर झुका के बैठ गया और ज़मीन को घूरते हुए बस ये सोचने लगेगा कि आखिरकार मैने किसी का क्या बिगाड़ा है,जो खुशी मुझे ज़िंदगी ने दी थी वो अब एक के बाद एक मुझसे छिनती जा रही है, आखिर भाई अभी तक मुजसे इतनी नफरत क्यों करता है? जितना ज्यादा सोच रहा था उतना ही दिल में दर्द हो था और जब भी दर्द होता आँखों से फिर उस दर्द का कतरा बहार आकर गिर जाता। इन्हीं गर्म सांसों को महसुस करते हुए श्रेयस पीछे बेड पे लेट गया और उसने अपनी आंखें बंद कर ली।
To be Continued.....