Bodyguard - 3 in Hindi Adventure Stories by MR. JAYANT books and stories PDF | बॉडीगार्ड - 3

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बॉडीगार्ड - 3

आप यह क्या कह रहे हैं पापा? वहां पर एक लड़की की लाश थी, उसका खून हुआ था तो आसपास खड़ी लोग फोटो तस्वीर रिपोर्टिंग कर रहे थे, जबकि उन लोगों को उस दुखी पिता को सांत्वना देनी चाहिए।
(अर्जुन ने कहा।)

[अर्जुन इतना बता ही रहा था कि तभी बीच में रोहित जी बोल पड़े।]

" अर्जुन बेटा यह आज तुम्हें क्या हो गया है? ऐसी बातें क्यों कर रहे हो? देखो बेटा, उस लड़की की किस्मत में मरना लिखा था, इसलिए वह मर गई। अब इसमें हम क्या कर सकते हैं? उसके पिता भी क्या कर सकते हैं हम सिर्फ शोक मना सकते हैं बेटा! लेकिन मदद तो नहीं कर सकते।
(रोहित जी ने कहा।)

" पापा आप एक शिक्षक हो, एक गुरु हो आप। और आप ऐसी बातें कर रहे हैं! यह तो गलत बात है ना पापा। अगर आप ऐसा सोचेंगे तो आप अपने विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा कैसे देंगे? क्या सभी छात्र अपने जीवन मे सकरात्मक सोच रख पाएंगे?
(अर्जुन ने रोहित जी से कहा।)

" पापा मैं आपको गलत नहीं समझ रहा! ना ही आपके खिलाफ जा रहा हूँ। मैं सिर्फ आपकी सोच की बात कर रहा हूँ। मैं यह कहना चाहता हूँ कि, मुझसे दूसरों का दर्द देखा नहीं जाता। अभी मैंने वहां पर उस लड़की की लाश को देखा। सिर्फ उसके पिताजी की आंखों में आँसू थे। बाकी लोगों की आँखों में आँसू क्यों नहीं थे? क्या उनको एक लड़की के मरने का दुख नहीं है?
(अर्जुन ने पिताजी से कहां।)

" देखो बेटा तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। हमें दुख मनाना चाहिए उस लड़की के जाने का। और देखो बेटा हम लोगों को सुधार नहीं सकते। हम सिर्फ उनको समझा सकते हैं। बाकी उनके हाथ में होता है। हमारे हाथ में कुछ नहीं है। अगर उस लड़की के मरने से उन लोगों कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, तो हम क्या कर सकते हैं बताओ!
(रोहित जी ने अर्जुन को बताया।)

[इतना बोलकर रोहित जी, वहां से अपने कमरे में चले जाते हैं। अर्जुन खड़े-खड़े सोच रहा था। थोड़ी देर बाद अर्जुन भी अपने कमरे में लौटा।]

°°°°°°°°°°°°°°°°°

[थोड़ी देर बाद अर्जुन, अपने दोस्त वीर से मिलने उसके घर गया। जब वह वीर के घर पहूँचा, तो घर पर वीर की माँ कुसुम जी थी।]

" आंटी जी वीर कहाँ है?
( अर्जुन ने कुसुम जी से पूछा।)

" बेटा वह घर पर नहीं है, बाहर गया है?
(कुसुम जी ने अर्जुन को बताया।)

" बाहर गया, ठीक है।
( अर्जुन ने कुसुम जी से कहा।)

[अर्जुन वापस जाने के लिए मूड नहीं वाला था, तभी उसने देखा की,कुसुम जी कुछ परेशान नजर आ रही थी। अर्जुन ने कुसुम जी से पूछा।]

"आंटी क्या हुआ? आप कुछ परेशान सी लग रही है!
(अर्जुन ने कम जी से पूछा।)

"कुछ नहीं बेटा! घर के काम होते हैं न, तो इसलिए थोड़ी परेशान हूँ!
(कुसुम जी ने बताया।)

[अर्जुन ने जब कसम की बात अच्छे से समझी, तब भी अर्जुन सोच में पड़ा था। उसे लग रहा था कि, कुसुम जी कुछ छुपा रही है। शायद ऐसी कोई बात है , जो उन्हें अभी परेशान कर रही है। उन्हें सता रही है। अर्जुन ने थोड़ा सोचा कि, घर के काम तो हर औरत करती है, लेकिन घर के काम करने में औरत को कोई परेशानी नहीं हो सकती। थोड़ी सी परेशानी हो सकती है, लेकिन इतनी भी नहीं की उनके चेहरे पर चिंताजनक भाव आ जाए।]

[अर्जुन, कुसुम जी की परेशानी को जानना चाहता था। इसलिए उसने कुछ सोचा और फिर घर से बाहर आ गया। बाहर आकर वह घर की खिड़की से झाकने लगा। अर्जुन को कुसुम जी नजर आई, कुसुम जी अभी सोफे पर बैठे रोने लगी थी। अब अर्जुन को साफ-साफ समझ में आ रहा है कि, जरूर कोई परेशानी है, जो उन्हें सता रही है। अर्जुन घर के अंदर चला गया। अर्जुन को देखकर कुसुम जी अपना चेहरा छुपा कर आँसू पोछने लगी। अर्जुन कुसुम जी के पैरों के पास आकर बैठ गया।]

"आंटी जी आपने मुझसे क्यों छुपाया? जरूर कोई बात है , जो आप मुझसे छुपा रही है! "प्लीज, आप मुझे बता सकती हैं। मैं आपके बेटे जैसा हूँ न!
(अर्जुन ने कुसुम जी को परेशान देख कर कहां।)

[अर्जुन की बात सुनकर को समझी ने प्यार से अर्जुन के गाल को सहलाया।]

" हाँ बेटा! तुम मेरे बेटे जैसे ही हो।
(कुसुम जी ने अर्जुन से कहां।)

" तो फिर आंटी, बताइए न मुझे क्या बात है?
(अर्जुन ने कुसुम जी का हाथ पकड़ कर कहां।)

[ उसके बाद कुसुम जी ने अपनी आँखों से आँसू पोछे और वीर के बारे में बात करने लगी। वीर ने जो दिल पर आघात करने वाली बात कही थी, वह भी अर्जुन को बता दी। कुसुम जी यह बात बताते हुए दोबारा रोने लगी। अर्जुन ने जब कुसुम जी की बात अच्छे से सुनी। तो अर्जुन को बहुत गुस्सा आया। वह यह सोचने लगा कि, एक बेटा अपनी माँ से इस तरह से बात कैसे कर सकता है?]

" आंटी आप पहले शांत हो जाइए। संभालिए अपने आप को। वीर ने जो आपसे दिल पर आघात करने वाली बात कही है। उसके लिए उसे आपसे माफी मांगनी पड़ेगी!
(अर्जुन ने कुसुम जी को संभालते हुए कहा।)

" वह नहीं समझेगा बेटा। बहुत जिद्दी लडका है वह। मैंने उसकी परवरिश अच्छे से की है। 'लेकिन समाज में रहकर वह थोड़ा सा बिगड़ गया है। हमेशा घर से बाहर रहना, घर के कामों में ध्यान ना देना, पढ़ाई पर ध्यान ना देना। रोज का चल रहा है उसका। मैं उसको समझाते समझाते थक गयी बेटा।
(कुसुम जी ने अर्जुन को बताया।)

" आंटी मैं आपकी बात अच्छे से समझ रहा हूँ। और मैं यह जानता हूँ कि, आपने वीर की परवरिश बहुत ही अच्छे से की है। आपने अपने बेटे की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक माँ अपने बेटे का हित ही चाहती है, उसका भला चाहती है। इसके लिए उसे थोड़ा डाँट दिया तो क्या हुआ।
(अर्जुन ने कुसुम जी से कहां।)

" पर अर्जुन बेटा, यह बात वह वीर नहीं समझ सकता। उसे तो बस अपनी पड़ी रहती है। मैंने उसे समझा है, "क्योंकि मैं उसकी माँ हूँ। लेकिन वह मुझे नहीं समझ रहा। अब क्या करूं? तुम ही बताओ बेटा!
(कुसुम जी ने अर्जुन से कहा।)

" समझेगा...वह आपको समझेगा! मैं उससे बात करूंगा और उसकी गलती के लिए आपसे माफी भी मंगवाऊंगा। मैं आपसे वादा करता हूँ।
(अर्जुन ने कुसुम जी से विश्वास दिलाते हुए कहा।)


[थोड़ी देर बातें करने के बाद अर्जुन वहां से खड़ा हुआ और घर से बाहर चला गया। बाहर जाने के बाद अर्जुन को रास्ते पर वीर नजर आया, जो फोन पर किसी से बातें कर रहा था। अर्जुन गुस्से से उसे घुरने लगा। और अपने कदम तेजी से करते हुए वीर के पास गया।]

"वीर"

[अर्जुन ने वीर का नाम लिया। वीर इस वक्त अर्जुन की तरफ पीठ करके खड़ा था। जैसे ही अर्जुन ने वीर का नाम लिया और वीर ने जब अपना नाम सुना। तो पीछे पलट कर देखा, तो अर्जुन खड़ा था। जैसे ही वीर पीछे पलटा, उसी वक्त अर्जुन ने एक तमाचा अर्जुन के गाल पर जड़ दिया। वीर शॉक्ड रह गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि, अर्जुन ने उसे क्यों मारा है।]

" मैंने तुझे अच्छा दोस्त समझा, अपने भाई की तरह समझा तुझे। और मुझे नहीं पता था कि, तू पीठ पीछे अपनी माँ के साथ ऐसा बर्ताव करता है!
(अर्जुन ने गुस्से से घूरते हुए वीर से कहां।)

[वीर को अर्जुन का ऐसा बताओ अच्छा नहीं लगा वीर को अर्जुन पर बहुत गुस्सा आने लगा वीर ने आगे बोलना शुरू किया।]

" ओह, अच्छा! तो इसका मतलब मेरी माँ ने तुझे सब कुछ बता दिया!
(वीर ने अपना गाल सहलाते हुए कहा।)

" हाँ! आंटी ने मुझे सब कुछ बता दिया है, तेरे बारे में। अब बता , क्यों किया तूने अपनी माँ के साथ ऐसा गलत बर्ताव? क्यों किया बता मुझे?
( अर्जुन ने वीर से पूछा।)

" देख अर्जुन भाई! वह मेरी माँ है। तेरी माँ नहीं है। और वैसे भी , यह मेरा फैमिली मैटर है। मैं जैसे चाहूं वैसा पेश आ सकता हूँ।
(वीर ने अर्जुन को बताया।)

" अरे वाह! बहुत अच्छा बोल लेते हो भाई, बहुत अच्छी सोच रखते हो तुम तो। वैसे कहां सीखा तूने ऐसी बाते?
(अर्जुन ने ताली बजाते हुए कहां। यह बात अर्जुन ने कटाक्ष में बोली थी, जबकि इसका मतलब कुछ और ही था।)

" मैंने खुद सोची है। समझि है। तभी बोल रहा हूँ। इसलिए मैं अपनी माँ से किसी भी तरह से बात कर सकता हूँ। और इस मालमे मे तु ना पड़े तो ही बेहतर होगा।
(वीर ने अर्जुन से कहा।)

" तेरी हिम्मत भी कैसे हुई अपनी माँ के साथ ऐसी बातें करने की? अपनी ही माँ को पराया कर दिया तूने एक ही पल में!
(अर्जुन ने वीर से कहां।)

" क्या आप बकवास कर रहा है तू। मैंने कब पराया किया अपनी माँ को? तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है न!
( वीर ने अर्जुन से कहा।)

" दिमाग तो तेरा ठिकाने पर नहीं है वीर जो तू ऐसी बातें कर रहा है। अब मुझे याद दिलाना पड़ेगा क्या? याद कर, तूने क्या कहा था अपनी माँ से!
(अर्जुन ने वीर को देखते हुए कहा।)

"आप होती कौन है, मुझे घर से बाहर जाने से रोकने वाली?

[वीर अपनी माँ कुसुम जी के साथ की हुई बात याद करते हुए सोचने लगा।]

" अब याद आ गया न, अब चल तू मेरे साथ!
(अर्जुन ने वीर का हाथ पकड़ते हुए कहा।)

"कहाँ चलना है? और मैं क्यों आउ तेरे साथ?
(वीर से अर्जुन से पूछा।)

" तेरे घर, आँटी से माफी मांगने के लिए।
(अर्जुन ने वीर से कहा।)

[वीर को और गुस्सा आ गया उसने अर्जुन का हाथ झटक दिया।]

" मैं क्यों माफी मांगू? गलती उन्होंने की है! हमेशा मुझे टोकती रहती है। यहां मत जाओ,वहां मत जाओ। मेरी जिंदगी पर ब्रेक लगा दिये है उन्होंने।
(वीर ने अकड़ते हुए अर्जुन से कहा।)

"हाँ तो क्या हुआ? है तो तेरी माँ ही न! वह तेरे साथ कुछ भी कर सकती है , कुछ भी का मतलब कुछ भी समझ गया। देख वीर वह तेरी माँ है। और एक माँ अपने बच्चों को कुछ भी बोल सकती हैं। डाँट सकती हैं। चाहे गुस्से में हो या फिर प्यार से। माँ को भगवान ने वह अधिकार दिया है जो अधिकार बेटे को भी नहीं।
(अर्जुन ने वीर को समझाते हुए कहा।)

" जो भी हो! लेकिन मैं उनसे माफी मांगने वाला नहीं हूँ। उनको जो करना है, करने दो। बहुत सहन कर लिया अब और नहीं!
(वीर ने अर्जुन से कहा।)

[इतना बोलकर वीर वहां से चला जाता है।वीर की बातों से अर्जुन को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह चाहता तो , दो चार थप्पड़ वीर के गालों पर जड़ देता। लेकिन इस वक्त वह ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता था। अर्जुन सिर्फ उसको समझाना चाहता था कि, वह अपनी माँ के लिए जो गलत बातें सोचता है वैसा नहीं है। अर्जुन, वीर को सही रास्ता दिखाना चाहता था। लेकिन वीर को अर्जुन की एक नहीं सुननी थी।]

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क्या होगा आगे?

"क्या, अर्जुन की बातों से वीर की सोच में बदलाव आएगा?

"क्या,वीर अपनी माँ से माफी मांगेगा या फिर अपनी जिद पर अड़ा रहेगा?

( जानने के लिए पढ़ते रहिए यह रोमांचक कहानी "बॉडीगार्ड")