Towards the Light – Memoir in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल मित्रों

सस्नेह नमस्कार

 

जीवन में कई बार ऐसी घटनाएँ अचानक समक्ष आ जाती हैं कि उन्हें साझा किए बिना मन नहीं मानता | इस जीवन-यात्रा में आवश्यक नहीं होता कि कोई यथा कथित शिक्षित अथवा उच्च वर्ग से संबंधित व्यक्ति ही बहुत समझदार, संवेदनशील लगे | यह समझदारी किसी के भी भीतर हो सकती है क्योंकि विधाता ने हम सभी को मस्तिष्क नामक उपहार से नवाज़ा हुआ है |वे अवश्य अपेक्षा भी करते ही होंगे कि हम उनके द्वारा प्रदत्त इस उपहार की पूरी सार-संभाल करें व इसकी उपयोगिता करें |

इसीके मद्दे -नज़र मुझे एक घटना की स्मृति हो आई जिसको मेरे एक स्नेही, संवेधशील मित्र ने मुझे भेजा था | आप मित्रों के साथ साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही हूँ | घटना कुछ इस प्रकार है;

श्री टी.एन. शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे। अपनी पत्नी के साथ यू. पी की यात्रा पर जाते समय उनकी पत्नी ने सड़क के किनारे एक पेड़ पर बया (एक प्रकार की चिड़िया)का घोंसला देखा और कहा,

”यह घोंसला मुझे ला दो, मैं घर में सजाकर रखना चाहती हूँ।”

श्री टी एन शेषन ने साथ चल रहे सुरक्षा गार्ड से इस घोंसले को नीचे उतारने को कहा। सुरक्षा गार्ड ने पास ही भेड़-बकरियाँ चराने वाले एक अनपढ़ लड़के से कहा कि अगर तुम यह घोंसला निकाल दोगे तो मैं तुम्हें बदले में दस रुपये दूंगा। लेकिन लड़के ने मना कर दिया। श्री शेषन स्वयं गये और लड़के को पचास रुपये देने की पेशकश की, लेकिन लड़के ने घोंसला लाने से इनकार कर दिया और कहा ;

"सर,इस घोंसले में चिडिया के बच्चे हैं। शाम को जब उस बच्चे की 'माँ' खाना लेकर आएगी तो वह बहुत उदास होगी, इसलिए तुम कितना भी पैसा दे दो, मैं घोंसला नहीं उतारूंगा"

इस घटना के बारे में श्री टी.एन. शेषन लिखते हैं ....

"मुझे जीवन भर इस बात का अफ़सोस रहा कि एक पढ़े-लिखे आई.ए.एस में वो विचार और भावनाएँ क्यों नहीं आईं जो एक अनपढ़ लड़का सोचता था?"

उन्होंने आगे लिखा कि-

"मेरी तमाम डिग्री, आई.ए.एस का पद, प्रतिष्ठा, पैसा सब उस अनपढ़ बच्चे के सामने मिट्टी में मिल गया।"

हमारे जीवन में इस प्रकार की घटनाएँ बहुत बार आती हैं लेकिन ये ऐसे निकल जाती हैं जैसे कोई ढोल पीटता हुआ, अपनी सूचना लोगों तक पहुँचाकर सड़क पर से गुज़र जाता है | हम उस पर ध्यान दें या न दें, वह ढोल पीटने वाला अपना काम करके, कोई सूचना देना अथवा जो कुछ संदेश उसे पहुंचाना हो, उसे पहुँचाकर आगे बढ़ जाता है | उसका कर्तव्य पूरा हो गया अब सुनने वालों की बारी आती है कि वे उस बात को, सूचना को सुनकर कितना अमल करते हैं |

उस प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है, सब सूचनाएं दी हैं, अनेक प्रकार के उपकरणों से सुसज्जित किया है और स्वीकार किया है कि हम उसके द्वारा दिए हुए उपकरणों का दूसरों व स्वयं अपने लिए उपयोग करेंगे लेकिन हम उस प्रकार सोचते भी नहीं और आगे अपने अनुसार कार्य में जुड़े रहते हैं| जीवन में उपस्थित प्रत्येक प्राणी के पास सब कुछ है बशर्ते वह उन वस्तुओं का सही प्रकार से उपयोग करे |

जीवन तभी आनंददायक बनता है जब बुद्धि और धन के साथ संवेदनशीलता का भी उतना ही उपयोग किया जा सके । इसका प्रेम से भी उतना ही संबंध है जितना हमारे जीवन से अन्य संवेदनाओं का संबंध होता है | इन संवेदनाओं के सहारे ही मनुष्य जीवन जीता है और जीवन जीने योग्य बनता है |

आइए,सोचकर देखें इस उपरोक्त घटना की सच्चाई हमारे मनों में कितनी गहरी उतरकर हमें जीवन जीने के हमारे लक्ष्य की ओर ले जाने में कितनी सफ़ल होती है ?!!

 

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती