काला जादू ( 12 )
प्रशांत के एक्सीडेंट की बात सुनकर अश्विन बिल्कुल सन्न रह जाता है , वह कुछ देर तो कुछ नहीं बोलता लेकिन फिर अगले ही पल खुद को संभालते हुए उसने कहा " कैसे हुआ ये सब? "
" ये सब बातें छोड़ और फौरन यहाँ आ जा..... " फोन के दूसरी तरफ से आवाज आई।
" जी पापा... " कहते हुए अश्विन उठ कर उस होटल से बाहर की ओर जाने लगा।
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वह हावड़ा का एक सरकारी अस्पताल था , अश्विन तेजी से बढ़ते हुए उस अस्पताल की मुख्य इमारत के इमरजेंसी रिसेप्शन डेस्क से होते हुए बाईं तरफ के गलियारे से सामने की तरफ बढ़ गया ।
सामने ही उस अस्पताल की एक अन्य इमारत थी, उस इमारत में ही सामने की तरफ ही उस अस्पताल का आॅपरेशन थिएटर था, अश्विन सबसे पूछते हुए वहाँ तक पहुँचा , वहाँ पहुँचकर उसने पाया कि एक दरवाजे के बाहर लाल रंग के पेंट से एक लकीर खींची गई थी,उसके बाईं तरफ ही कुछ लोहे की काली कुर्सियाँ लगी हुई थी, आकाश ज्योति और प्रशांत की माँ उन्हीं कुर्सियों पर बैठे हुए थे।
इस दौरान प्रशांत की मां का रो रोकर बुरा हाल था और ज्योति उसे सांत्वना देते हुए गले से लगाकर कुर्सी पर बैठी हुई थी।
अश्विन को सामने से आता देखकर आकाश उठकर दौड़ते हुए उसके पास गया, आकाश के पास आते ही अश्विन ने कहा " पापा प्रशांत? वो ठीक तो है ना? "
" कुछ कह नहीं सकते बेटा.... अंदर उसका आॅपरेशन चल रहा है, भगवान करे कि सब अच्छा हो.... " आकाश ने गंभीर स्वर में कहा।
" ये सब हुआ कैसे? " अश्विन ने प्रशांत की माँ को एक नजर देखते हुए कहा।
" पता नहीं बेटा, हम प्रशांत के घर आए थे यूँ ही बातें करने कि कुछ देर बाद उसके घर पर रखा फोन बजा उसकी माँ ने जब फोन उठाया तो वह प्रशांत के एक्सीडेंट की बात सुनकर बेहोश हो गई ,जैसे तैसे हम इन्हें होश में लेकर आए तब इन्होंने ये बात हमें बताई और हम इन्हें लेकर यहाँ आ गए । "
" क्या कहा डाॅक्टर ने? "
" उन्होंने कहा कि कुछ कह नहीं सकते खून ज्यादा बह गया है.... "
यह सुनकर अश्विन प्रशांत की माँ के पास गया जो उस समय ज्योति के सीने से लगकर रोए जा रही थी और वह घुटनों के बल बैठ कर बोला " आप चिंता मत कीजिए, प्रशांत बिल्कुल ठीक हो जाएगा। "
अब अश्विन इससे आगे कुछ ओर कहता आॅपरेशन थिएटर का दरवाजा खुलता है और उसमें से एक हरा सर्जिकल गाउन पहना शख्स बाहर आता है ,उस शख्स को देखकर अश्विन उठ खड़ा होता है अब इससे पहले कि अश्विन कुछ कहता वह सर्जिकल गाउन पहना शख्स कहता है " प्रोशांतों के साथे कौन है? "
इस पर अश्विन आगे आकर कहता है " जी मैं हूँ... "
" आप फौरन जाकोर ये शामान ले आओ ..." उस शख्स ने एक लिस्ट अश्विन की ओर बढ़ाते हुए कहा।
अश्विन ने फौरन वह लिस्ट ली और वापस तेजी से बाहर की तरफ जाने लगा, इसी के साथ ही वह सर्जिकल गाउन पहना शख्स भी वापस आॅपरेशन थिएटर के अंदर चला गया।
कुछ देर बाद अश्विन एक बड़ा सा सफेद लिफाफा लेकर दौड़ते हुए वहाँ आया और आॅपरेशन थिएटर के दरवाजे के बाईं तरफ लगा एक सफेद बटन दबाया, उस बटन पर एक घंटी का चित्र अंकित किया हुआ था ।
अश्विन के वह बटन दबाने के कुछ क्षण बाद अंदर से वही शख्स सर्जिकल गाउन पहने बाहर आता है बाहर आते ही वह अश्विन की तरफ वह सामान लेने के लिए हाथ बढ़ाता है , उसके ऐसा करते ही अश्विन वह सफेद लिफाफा उसे पकड़ा देता है और सामान लेते ही वह शख्स वापस अंदर चला जाता है।
अश्विन और बाकि लोग वापस से बाहर खड़े होकर प्रशांत का आॅपरेशन होने का इंतजार करने लगते हैं, अब तक प्रशांत की माँ एकदम चुपचाप पीठ के बल कुर्सी पर बैठ गई थी ,शायद रो रोकर उसके आँसू भी सूख चुके थे ।
कुछ देर बाद वह हरा गाउन पहना शख्स वापस बाहर आया और एक इंजेक्शन में एक लाल तरल पदार्थ ( जो कि शायद खून था ) के साथ एक स्लिप पकड़ाते हुए कहा " 4 नोंबर खिड़की पोर ये शैंपोल दे आओ और हाल का हाल रिपोर्ट ले आना ।" ये कहकर वह शख्स वापस आॅपरेशन थिएटर के अंदर चला गया।
अश्विन ने वह सेंपल लिया और वापस पीछे की तरफ मुड़ गया।
कुछ देर बाद अश्विन एक टेस्ट रिपोर्ट लेकर वहाँ आया और वापस से वही बटन दबाया , बटन दबाने के कुछ देर बाद ही वही सर्जिकल गाउन पहना शख्स आॅपरेशन थिएटर के अंदर से आता है और अश्विन के हाथ से वह रिपोर्ट लेकर वापस चला जाता है।
उसके जाने के बाद अश्विन बिना कुछ कहे दोबारा प्रशांत की माँ की ओर देखने लगा जो कि बिल्कुल चुपचाप उस कुर्सी पर बैठी थी उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो जैसे उन्हें प्रशांत की इस हालत से काफी सदमा लगा हो।
अब वह सर्जिकल गाउन पहना शख्स दोबारा आॅपरेशन थिएटर से बाहर आता है और अश्विन को एक छोटा सा कागज का टुकड़ा देते हुए कहता है " ब्लोड बैंक शे 4 पैकेट ब्लोड ले आओ... " ये कहकर वह शख्स दोबारा आॅपरेशन थिएटर के अंदर चला गया ,उस शख्स के इतना कहते ही अश्विन तेजी से वापस पीछे की तरफ चला गया।
लगभग पाँच से सात मिनट बाद अश्विन तीन लाल और एक पीले खून का पैकेज लेकर वहाँ आया और वहाँ आकर दोबारा से वही बटन दबाया, हर बार की तरह इस बार भी बटन दबाने के कुछ क्षण बाद ही वही सर्जिकल गाउन पहना शख्स वहाँ आया और अश्विन के हाथ से वह खून के पैकेट लेकर वापस आॅपरेशन थिएटर के अंदर चला गया।
" बेटा थोड़ा बैठ जा थक गया होगा.... " ज्योति ने कुर्सी से उठते हुए कहा।
" नहीं मम्मी मैं ठीक हूँ आप बैठो और उन्हें ( प्रशांत की माँ की तरफ इशारा करते हुए ) संभालो। " अश्विन ने चिंतित स्वर में कहा।
इसके आगे ज्योति कुछ ना बोल सकी वह बस कभी आॅपरेशन थिएटर की ओर देखती तो कभी अश्विन की ओर।
कुछ देर बाद वह सर्जिकल गाउन पहना शख्स वापस बाहर आया और अश्विन को दोबारा एक इंजेक्शन में सेंपल भरकर एक स्लिप के साथ देते हुए कहा ' चार नोंबर का खिड़की में दे आओ.... "
उसके इतना कहते ही अश्विन ने वह सेंपल और स्लिप ली और वापस पीछे की तरफ तेजी से जाने लगा।
कुछ देर बाद अश्विन दोबारा से एक टेस्ट रिपोर्ट लेकर वापस आया और आकर वही बटन दोबारा दबाया, वह बटन दबाते ही वह शख्स दोबारा आया और अश्विन के हाथों से रिपोर्ट लेकर पढ़ते हुए कहा " ठीक आछे.... आॅपरेशन होए गेलो और वो ओब खोतरा से भी बाहर है.... थोड़ी देर में उशको होश आ जाएगा तो उशको वार्ड में शिफ्ट कोरवा देगा ।" ये कहकर वह शख्स वापस आॅपरेशन थिएटर के अंदर चला गया।
उस शख्स की यह बात सुनकर सबने चैन की साँस ली।
कुछ देर बाद प्रशांत को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया, इस समय प्रशांत अर्धबेहोशी की अवस्था में था ।
इस दौरान अश्विन ने एक दोस्त का फर्ज ना निभाते हुए एक भाई का फर्ज निभाया जो कि किसी से भी छिपा नहीं था।
करीब दो दिन बाद प्रशांत को अस्पताल से डिस्चार्ज मिल गया और वह घर आ गया, लेकिन घाव गहरे होने के कारण प्रशांत को डाॅक्टर ने कुछ दिन घर पर ही आराम करने की सलाह दी थी।
घर आकर प्रशांत को उसकी माँ से पता चला कि उसके आॅपरेशन में काफी खर्चा आया था, जिसके पैसे अश्विन ने भरे थे , लेकिन अश्विन ने वह पैसे माँगे नहीं थे , इसलिए उसने अश्विन को फोन करके घर बुलाया ।
कुछ देर बाद नीली टीशर्ट और काले पायजामे में अश्विन उसके घर आता है , प्रशांत उस समय सफेद टीशर्ट और काले लोअर में सोफे पर बैठ कर कुछ सोच ही रहा था , उसके सिर पर एक सफेद पट्टी बंधी हुई थी, जो कि कुछ जगह से हल्की लाल हो गई थी ।
प्रशांत को यूँ चिंतित देखकर अश्विन ने उसके पास बैठते हुए कहा " क्या बात है प्रशांत कुछ परेशान लग रहे हो? "
अश्विन की आवाज़ सुनकर प्रशांत अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया और अश्विन की ओर देखते हुए कहा " हाँ वो हमारा शाथे ये शोब होए गेलो और इतना पैशा लोग गेलो वैशा तुमने कितना पैशा दिया हमारा ट्रीटमेंट में? "
" ये बात हम तुम्हारे ठीक होने के बाद भी कर सकते हैं ना.... " अश्विन ने कहा।
इस पर प्रशांत ने कुछ सोचकर कहा " दादा आपका भी कुछ दिन पहले एक्सीडेंट हुआ था तो आपको भी तो पैशा का जरूरत होगा..... "
" पैसों की जरुरत किसे नहीं होती प्रशांत ? अगर कोई इमरजेंसी हुई भी तो मेरे पास उसके लिए काफी पैसे हैं , आखिर हावड़ा की इतनी बड़ी कंपनी का प्रोडक्ट मैनेजर जो ठहरा...... इसलिए तुम्हें अभी पैसे लौटाने की जरूरत नहीं है, आराम से जब भी तुम्हारे पास हों थोड़ा थोड़ा करके देते रहना। " अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।
यह सुनकर प्रशांत ने कहा "लेकिन दादा होम ऐशा कैसे..... " तभी उसकी बात बीच में काटते हुए अश्विन ने कहा " देखो प्रशांत तुम्हारी हालत अभी ऐसी नहीं है.... ऊपर से तुम तुम्हारे घर के अकेले कमाने वाले हो , अब तुम्हारे साथ ये हादसा हुआ है तो इतने दिन काम पर ना आने की वजह से तुम्हारी तनख्वाह भी कट सकती है और ऐसे में तुम्हारा घर अच्छे से चल जाए वही बड़ी बात है, और मैं तुम्हारा दोस्त भी तो हूँ इसलिए मेरे पैसे तुम आराम से लौटा देना मैं कहीं भाग थोड़ी रहा हूँ। "
यह सुनकर प्रशांत ने कुछ सोचकर कहा " तुम ठीक कहता है दादा....."
" ये हुई ना बात दोस्त अच्छा मैं अब चलता हूँ तुम आराम करो और किसी चीज की जरूरत हो तो हिचकिचाना मत.... " अश्विन ने उठते हुए कहा।
" ठीक आछे दादा.... " प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा।
उसके बाद अश्विन वहाँ से जाने ही वाला था कि तभी प्रशांत ने उसे आवाज देते हुए कहा " शुनो दादा.... "
" हाँ कहो.... "
" आप होमारा एक काज कोरेगा? "प्रशांत ने हिचकिचाते हुए कहा।
" बोलो क्या काम है? "
" आप होमारा बहिन विंशती को होमारा मौशी का घोर से ले आएगा? "
" अरे लेकिन वो अभी ही तो वहाँ गई है कुछ दिन रहने दो उसे वहाँ.... "
" ना दादा वो विंशती को होमारा एक्सीडेंट का बारा में पोता चोला तो वो यहाँ आने के लिए रो रहा था। "
" प्रशांत फिर इसके लिए तो अभिमन्यु को बोलना चाहिए ना..... "
" दादा वो ओपना दोस्तों का शाथे मोनाली गोया है घूमने का लिए.... "
" अच्छा ठीक है मैं ले आऊँगा उसे लेकिन मैं तुम्हारी माँ को अपने साथ लेकर जाऊँगा ताकि कोई बाद में विंशती के बारे कुछ गलत ना कह सके। " अश्विन ने कहा।
यह सुनकर प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा " दादा.... तुमी खूब भालो मानुष है.... "
यह सुनकर अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा " ऐसा कुछ नहीं है....अच्छा अब मैं चलता हूँ, कल उसे जाकर ले आऊँगा। " कहकर अश्विन वहाँ से चला गया और प्रशांत उसे जाते हुए देखता रहा।
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अगले दिन सुबह 9 बजे के आसपास -
अश्विन हरी टीशर्ट और नीली जींस पहन कर प्रशांत के घर पहुँचता है, वहाँ पहुँचकर वह दरवाजे पर लगी घंटी बजाता है , कुछ देर बाद हल्की पीली सूती की साड़ी पहने प्रशांत की माँ खुले बालों और बाएं हाथ में कंघी लिए दरवाजा खोलती हैं ।
सामने अश्विन को देखकर वह मुस्कुराते हुए बोली " भीतोर आशो..... "
यह सुनकर अश्विन मुस्कुराते हुए अंदर आता है और कहता है " आप तैयार हैं फिर? "
" बोस होए गेलो.... " वह अपने बाल संवारते हुए कहती हैं ।
" ठीक है आप आराम से हो लीजिए ...." अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।
अश्विन ने इतना कहा ही था कि तभी बाईं तरफ के कमरे से प्रशांत आते हुए कहता है " अरे आश्विन दादा.... ओच्छा हुआ आप आ गया... माँ जोल्दी करो...."
" बोस होए गेलो प्रोशांतों .... "
यह कहते हुए वह अंदर दाएं तरफ के कमरे में चली गई, उन्हें जाता देखकर प्रशांत ने कहा " होए गेलो बोश.... अब कोम शे कोम आधा घोन्टा शा पहले तो नहीं होता.....आप चलो दादा हम आपको कोड़क चाय पिलाता है। " कहकर प्रशांत अश्विन को रसोई में ले गया।
वहाँ जाकर प्रशांत ने गैस जलाकर चाय का पतीला चढ़ाया और मुस्कुराते हुए कहा " होम बहुत ओच्छा चाय बनाता है दादा...."
" चलो अच्छा है कि मुझे तुम्हारी बनाई चाय पीने का सौभाग्य मिला ...." अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।
" अरे दादा क्या तुम भी..... "
" अरे वैसे मैंने अपनी मम्मी को बोल दिया है कि आँटी की गैरहाजरी में वो और पापा तुम्हारे साथ ही रहें... " अश्विन ने कहा।
" अरे दादा इशका क्या दोरकार है? "
" देखो प्रशांत तुम अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हो और तुम्हें कभी भी किसी भी चीज की जरूरत पड़ सकती है और हमें पता नहीं कितना समय लगे इसलिए किसी ना किसी का तुम्हारे साथ रहना भी जरूरी है..... "
क्रमश:.......
रोमा..........