Naam Jap Sadhna - 7 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 7

Featured Books
Categories
Share

नाम जप साधना - भाग 7

नाम रूपी धन की संभाल

कबिरा सब जग निर्धना, धनवन्ता नहीं कोय।
धनवन्ता सोइ जानिये, जापे रामनाम धन होय ॥

नाम ही सच्चा धन है, ये धन लोक-परलोक दोनों में हमारा साथ देता है। मीरा मा ने भी नाम को धन बताया–
पायो री मैंने राम रतन धन पायो।’
वास्तव में नाम ही सच्चा धन है। जैसे धन कमाना कठिन है। परन्तु धन को संभाल कर रखना इससे भी अधिक कठिन है। बहुत से लोगों को कहते सुना कि कमाई तो बहुत है लेकिन पैसा नहीं ठहरता। धन कमाने वाले लोग तो बहुत मिल जायेंगे पर धन को संभलने वाले बिरले ही होते हैं। ठीक इसी प्रकार भजन करना कठिन है परंतु भजन की पूंजी को संभाल पाना इससे भी कठिन है।

भजन की सम्पत्ति दो जगह खर्च हो जाती है– एक पापों व अपराधों को काटने में और दूसरा कामनाओं की पूर्ति में। भजन में इतना रस है जितना भगवान् में क्योंकि नाम और नामी अभिन्न हैं। कहीं-कहीं तो भगवान् से भी बड़ा उनका नाम बताया जाता है। प्रश्न यह उठता है कि फिर भजन में रस क्यों नहीं आता ? बस इसका कारण यही है कि जितना हम जप करते हैं, उसकी सारी शक्ति पापों के काटने व कामनाओं की पूर्ति में ही खर्च हो जाती है हमारे पास कुछ बचता नहीं, हम भीतर से ज्यों के त्यों खाली ही रहते हैं। रस आए तो कहाँ से ? एक व्यक्ति बहुत धन कमाता है फिर भी धन से अपने लिए कुछ कर नहीं पाता। वही टूटी झोपड़ी, वही निर्धनता का दुःख। पूछने पर पता चला कि सारा धन तो कर्जा उतारने में लग जाता है। जब तक कर्जा नहीं उतरेगा तब तक वह धन अपने पास नहीं रख सकेगा। कर्जा उतरते ही धन ठहरेगा, सुख देगा और दरिद्रता का नाश करेगा। इसी प्रकार अधिकांश साधकों का भजन अपराधों के नाश करने में ही व्यय हो जाता है। वो पाप कर्म भले ही पूर्वजन्म कृत हो अथवा इसी जन्म के जो सुख हमारे प्रारब्ध में नहीं हैं उसकी कामना और जो दुःख हमारे प्रारब्ध में हैं उसके नाश की कामना । ये दोनों प्रकार की कामना भजन में रस लेने नहीं देती। अब तक पाप, अपराध बन चुके हैं उनके लिए तो क्या कहना परन्तु आगे के लिए सावधान रहना चाहिए। प्रभु कृपा का आश्रय लेकर अपराध व कामनाओं रूपी लुटेरों से भजन की सम्पत्ति को लुटने से बचाना चाहिए।

यद्यपि अपने बल पर पाप व कामना से पूर्ण रूपेण बच पाना कठिन ही नहीं, असम्भव सा है । ये तो कृपा से ही सम्भव होता है । फिर भी साधक को चाहिए कि इन सब बातों से बचने की कोशिश करता रहे। भले ही कामयाबी मिले या न मिले लेकिन प्रयत्न में कमी न रहे। अगर प्रयत्न जारी रहा तो एक दिन कृपा का भी अवतरण हो जायेगा और ये कृपा देवी भजन व प्रयत्न को सफल करके साधक के रोम-रोम में समा जायेगी। इसलिए पूरी लगन से भजन करें और साथ ही अपराधों से बचने की कोशिश भी करें।
रसना रस ले नाम का, मन मनमोहन ध्यान ।
कर्म करिय निष्काम है, वेगि मिले भगवान् ।।