मंजू अलमारी में वह कागज़ रख रही थी कि तभी उसके कानों में एक आवाज आई मंजू जल्दी से खाना खा ले उसके बाद हम दोनों खेलने चलेंगे गांव वाले सभी सर्कस देखने गए हैं मेरे पास पैसे नहीं है कि मैं तुझे सर्कस दिखा कर लाऊं लेकिन मैं तेरे साथ खेल खेलूंगी क्या यह काफी होगा कि आज हम 1 घंटे से ज्यादा 2 घंटे खेलेंगे । मंजू खुशी से चिल्ला उठी और " बोली मेरे लिए तो मेरा सर्कस मेरा खेल ही है लीला मैं तुम्हारे साथ खेलेगी लेकिन बहुत देर तक क्योंकि गांव वाले सर्कस देखने गए हैं जब सब गांव वाले सर्कस देख कर लौटेंगे तभी हम खेल कर अपने घर को लौटेंगे । "
मंजू मुस्कुराती हुई लीला कोई जवाब का इंतजार कर रही थी लीला ने भी मुस्कुरा कर मंजू की बात पर सिर हिला दिया और फिर उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली " मेरी मंजू बहुत सबर की बच्ची है कभी बच्चों वाली जिद नहीं करती " मंजू के आंखों में एक अलग सा एहसास था उसे लीला में अपनी मां नजर आ रही थी लीला थी इतनी मासूम वह भी तो अकेली थी हर रिश्ते से ना उसकी मां थी ना उसके बाप । खानदान का तो कोई अता पता ही नहीं था रोज की तरह चाहते हुए मंजू ने दाल रोटी खाई और अपने छोटे से बैग में समान रखते हुए लीला को आवाज देते हुए बोली लीला जल्दी चलो देर हो जाएगी जितनी देर होगी उतना ही कम समय मिलेगा हमें खेलने के लिए ।
लीला और मंजू जल्द ही अपने घर से निकल पड़ी खेलने के लिए उन्हें ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ता था बल्कि उनके घर से कुछ मीटर की ही दूरी पर एक छोटा सा खेत था दोनों बैठकर उसमें खिलौनों से खेला करती थी लीला जहां 25 साल की लड़की थी वही मंजू 11 साल की एक लड़की थी दोनों की उम्र में फर्क था मगर एहसास दोनों के एक जैसे थे दोनों ही एक ही दर्द से गुजर रही थी लीला और मंजू रोज की तरह उस खेत की डाल पर बैठकर खेलने लगी इस बात से अनजान की यह जिंदगी का आखिरी दिन भी हो सकता है दोनों खुशी से चह चाह रही थी खिलखिला रही थी उनकी हंसी की आवाज पूरे खेत में एक गाने की तरह गूंज रही थी ।
गांव में वक्त रात का हो या दिन का एक जैसे थे लेकिन आज तो दिन में भी सुनसान थी और रात में भी सुनसान इसीलिए ना मंजू और ना ही लीला को किसी खतरे का एहसास था दोनों ही आराम से बैठी खेल रही थी ।
गांव के दूसरे कोने पर सर्कस चल रहा था सर्कस में तरह-तरह के चीज थी झूले थे मिठाइयां बन रही थी और लोगों ने खरीद रहे थे सर्कस बिगो में को फैला हुआ था गांव के लगभग हर घर के लोग यहां पर भरे हुए थे सर्कस में बेपनाह भीड़ थी यहां तक की एक इंच तक निकलने के लिए जगह नहीं थी सर्कस में झूले चल रहे थे और बच्चों की खिलखिलाना की आवाज पूरे सर्कस को जगमग हुए थे सर्कस के चारों तरफ जो मिठाइयां बन रही थी वह भी खुशियों का ही आभासी ना हिंदू होने का किसी को घमंड था ना मुसलमान होने का नासिक का भेद न इसी का भेद सभी एक साथ एक जगह इकट्ठा हुए सर्कस को बड़े आराम से देख रहे थे गांव वालों के लिए तो यह सर्कस बहुत बड़ा था और बहुत ही लक्जरियस था । शहर जाना उनके लिए पॉसिबल नहीं था शहर जाने के लिए एक घना जंगल गुजरना पड़ता था जो एक तिलस्मीय जंगल था जिसमें जो आज तक गया है वह कभी वापस नहीं आया उस जंगल का राज ना किसी ने जानने की आज तक कोशिश की और ना ही कोई जान पाया कोई अगर गलती से उस जंगल में पहुंच जाता तो फिर ना तो वह मिलता ना उसकी लाश कौन जाने वह कहां जाता था या कोई उसे ले जाता था ।
रात ढल चली थी मलायका अपनी दादी को दूध दे रही थी सर्कस से वापस आए हुए गांव वाले सभी थके हुए थे गांव के प्रधान ने अपनी बीवी से कहा मुझे तो तुम मेरी धोती ला दो मैं बदल कर लेट जाऊंगा मैं तो बहुत थक चुका हूं प्रधानी ने कपड़े को बेड पर रखते हुए कहा सर्कस में कितना मजा आया सब लोग कितने खुश थे अब हम हर साल इस सर्कस को अपने गांव में लगवाया करेंगे जिससे कम से कम हम लोग खुश तो हो जाएंगे बड़ा रास्ता पार करके शहर जाना हमारे बस की नहीं और जंगल वाले रास्ते से तो ना बाबा ना हम नहीं जा सकते इसीलिए अब हमें अपने गांव में ही सभी सुख सुविधा करनी होगी वरना कब तक यूं हम इतवार का इंतजार करके चीजों के लिए बैठे रहेंगे कब तक हम सर्कस का एक साल तक इंतजार करेंगे कब तक हम अपनी जरूरत की चीजों को ऐसे ही नजर अंदाज करते रहेंगे हजारों चीज तो शहर ना जाने की वजह से ही बंद हो जाती है प्रधान ने उनकी बात पर सहमति जताते हुए कहा " हां सही कहा मुझे भी यही लगता है अब हमें यही सब सोचना चाहिए । "
प्रधान ने सिगरेट जलाई और अपने बिस्तर पर सर रख लिया मलाइका ने दादी को दूध दे दिया और बेड पर जाकर बैठ गई अभिनव अभी मलायका के ख्वाबों में व्यस्त था ।