Dunki - Movie Review in Hindi Film Reviews by Jitin Tyagi books and stories PDF | डंकी - फ़िल्म समीक्षा

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डंकी - फ़िल्म समीक्षा

डंकी- फ़िल्म समीक्षा


बहुत छोटे बजट में एक अच्छी फिल्म कैसे बनाई जाती हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, डंकी। राजकुमार हिरानी ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि, एक अच्छा डायरेक्टर खराब फ़िल्म बना ही नहीं सकता। और वहीँ शाहरुख खान दो एक्शन फिल्म देने के बाद इस तरह से एक आम आदमी के किरदार में नज़र आएंगे। ये एन्जॉयमेंट को काफ़ी बढ़ा देता हैं।

कहानी; पंजाब के एक कस्बे में चार दोस्त हैं। जो इंग्लैंड जाना चाहते हैं। सबकी अपनी-अपनी वजह हैं। किसी को घर बनाना हैं।, किसी को प्रेमिका के लिए, किसी को माँ की इच्छा के लिए। लेकिन ये जा नहीं पाते, क्योंकि एक तो अनपढ़ हैं। दूसरा थोड़े से बेफकूफ। अब इसी बीच शाहरूख खान यहाँ पर आता हैं। और इस सबकी कहानी सुनकर इन्हें इंग्लैंड भेजने का फैसला करता हैं। पहले लीगल तरीका अपनाता हैं। फिर इललीगल और इनमें से तीन को विदेश भेज देता हैं। क्योंकि एक आत्महत्या कर लेता हैं। और कहानी के अंत में अब इन तीनो को वापस आना हैं। इंडिया अपने वतन मरने के लिए, शाहरुख खान अबकी बार पहले इललीगल तरीका अपनाता हैं। फिर लीगल।

कहानी थोड़ी अटपटी हैं। पर जो प्रस्तुतिकरन हैं। वो इसे खास बना देता हैं। इसलिए जो भी फ़िल्म में चल रहा होता हैं। वो बेकार नहीं लगता, बल्कि अगले सीन का इंतज़ार रहता हैं।


एक्टिंग- अपने रोल को सबने ही बड़े अच्छे से निभाया हैं। शाहरुख़ खान का तो कहना ही क्या, वो हर सीन में बिल्कुल फिट दिखे हैं। चाहे कॉमेडी हो, इमोशनल हो, इश्क़ फरमाना हो, एक्शन हो, दर्द में मुस्कुराना हो, ऊपर से इस उम्र में भी एक लड़के की तरह लगना जबरदस्त लगता हैं। उन्होंने अपने दोनों ही किरदार जवानी और बुढ़ापा बड़े अच्छे से जीए हैं।

विकी कौशल का छोटा सा रोल हैं। पर क्या निभाया हैं। और जब वो मरते हैं। किसी को भी रुलाने के लिए काफी हैं।

तापसी पन्नू पहली बार एक्टिंग करती दिखती हैं। और कहीं पर भी ओवर एक्टिंग नहीं करती हैं।

बाकी एक्टर्स ने भी अपना काम ठीक ठाक किया हैं।


डायरेक्शन; ये पूरी फिल्म ही डायरेक्टर की हैं। फ़िल्म देखते वक़्त लगता ही नहीं, कि हम शाहरुख खान की फ़िल्म देख रहे हैं। लगता हैं। हम एक कहानी देख रहे हैं। जिसे बस डायरेक्टर कहना चाहता हैं। अपने तरीके से, छोटे से छोटे सीन को हिरानी जी ने उम्दा तरीके से दिखाया हैं। हँसतें-हँसतें अचानक इमोशनल करना उनका ये स्टाइल पूरी फिल्म में अपना काम बखूबी करता हैं। दर्शक को पता भी नहीं चलता की कब वह रोने लगा और कब हँसने लगा। फ़िल्म में उन्होंने बहुत बड़ी बातें बहुत कम समय में कहीं हैं। जिससे दर्शक को पूरी फिल्म में कहीं भी ऊब महसूस नहीं होती हैं।

अंतिम बात ये हैं। कि कुछ लोग इस फ़िल्म को CAA कानून का मजाक उड़ाने के लिए बनाई गई फ़िल्म बता रहे हैं। पर ऐसा कुछ नहीं हैं।, सभी जानते हैं। किस तरह से पंजाब में लोग पागल थे और पागल हैं। विदेश जाने के लिए, इस फ़िल्म में उसी दौर की एक कथा को आधार बनाकर, विदेश जाने वालों की पीड़ा, विदेश में तकलीफ और अपने देश लौट आने की तड़प दिखाई गई हैं। इसलिए सभी को ये फ़िल्म देखनी चाहिए। और वैसे भी साल के अंत में इससे अच्छी फ़िल्म शायद ही मिलें देखने को, आने वाले कुछ सालों में, तो बिना देर किए फ़िल्म देखनी चाहिए। और जो भी अटपटा लगें फ़िल्म में, उसे सिनेमेटिक लिबर्टी के नाम पर दरकिनार कर दें, क्योंकि अच्छी चीज़ के लिए कुछ बुराइयों से तो मुँह मोड़ ही सकते हैं।