Becoming someone's guest without his wish in Hindi Moral Stories by Sudhir Srivastava books and stories PDF | मान न मान मैं तेरा मेहमान

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मान न मान मैं तेरा मेहमान

आलेख
मान न मान मैं तेरा मेहमान
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यूँ तो हम सभी जानते ही नहीं मानते भी हैं कि एक प्रसिद्ध मुहावरे "मान न मान‌ मै तेरा मेहमान" मुहावरे का अर्थ ही होता है.. "जबरदस्ती गले पड़ जाना"।ँबल्कि अधिसंख्य लोग कभी न कभी कहीं न कहीं इस मुहावरे का अनुभव भी कर चुके होंगे।
अक्सर ऐसा होता भी है कि हमें मुफ्त के सलाहकारों की सलाह सुनना ही पड़ता है,भले ही हमें उसके सलाह की जरूरत न हो। कुछ लोगों की मुफ्त सलाह या दूसरों के फटे में टांग अड़ाने की बड़ी बीमारी होती है। जो मौके से मौके इस बीमारी की चपेट में हमें, आपको ले लेते हैं। भले ही उनकी सलाह की हमें जरुरत ही न हो या उनकी सलाह के अनुकूल तत्समय परिस्थिति ही न हो। फिर सबसे बड़ा शुभचिंतक और स्वयं को बड़ा बुद्धिमान दिखाने का अहम उन्हें इसके लिए मजबूर कर देता है। ऐसे लोगों का हस्तक्षेप/ उपस्थिति कोढ़ में खाज जैसा होता है। जो हमारी समस्या को हल करने की दिशा में हमारे कदमों को लड़खड़ाने के लिए बाध्य करने की कोशिश कर हमारी शान्ति और सुकून की राह में नया रोड़ा बन हमें ही मुँह चिढ़ाते हैं। जबकि वही व्यक्ति जब हमें उसकी वास्तव में जरुरत होती है, तो या तो वो अनेकानेक बहाने बनाएगा और या फिर हाथ खड़े कर देगा।
आज के सोशल मीडिया युग में भी ऐसे लोगों का विस्तार ही हो रहा है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर हम सभी जुड़े हैं, जहां न चाहकर भी हमारी पहचान हमारे संपर्क सूत्र/ मोबाइल नंबर आसानी से मिल ही जाते हैं। बस फिर क्या है? बेमतलब बात, सलाह, सुझाव मार्गदर्शन देने वाले कथित अपनों/ शुभचिंतकों की कमी नहीं है। जो बहुत बार, विशेष रूप से महिलाओं को असहज कर देती है और कई बार अनहोनी भी हो जाती है या उसकी नींव पड़ जाती है। पारिवारिक रिश्तों, आपसी संबंधों में दूरियां पैदा हो जाती हैं। चरित्र पर भी उंगलियां उठने के साथ ही सामाजिक आर्थिक पारिवारिक क्लेश का जन्म भी हो जाता है और बहुत बार अप्रत्याशित घटनाक्रम भी तेजी से घट जाता है और जब तक हम समझते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
सोशल मीडिया के माध्यम से सीधे संवाद और आप या आपके परिवार के किसी सदस्य से मधुर संबंधों की कसम या आपात स्थिति क बहाने आपको जाने कितनों को आर्थिक नुकसान भी पहुंचा दिया जाता है।
मैं यथार्थ उदाहरण देकर आपको बताता हूं कि उम्र में वरिष्ठ होने के कारण एक कोरोना काल में अंकुरित हुए एक साहित्यकार महोदय रक्षाबंधन के अवसर पर एक नव विवाहिता/नवोदित कवयित्री की ससुराल पहुंच गए राखी बंधवाने। जबकि आनलाइन मंचों पर काव्य गोष्ठियों के दौरान ही उनका हुआ परिचय भर था। ताज्जुब तो यह कि इसकी सूचना भी उसको पहले नहीं दिया। वो तो भला हो उसके सास ससुर का , जिन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए उनका यथोचित आवभगत तो किया और बहू को शर्मिन्दा होने से बचाया। लेकिन उस नवोदित कवयित्री ने उन्हें रक्षाबंधन बांधने से साफ मना कर दिया।
इन महोदय की आदत है कि अधिसंख्य महिलाओं से ही बात करना चाहते हैं, उसके लिए वे समय परिस्थिति का भी ख्याल नहीं रखते, बदले में सैंकड़ों संबंधित इन्हें हमेशा के लिए ब्लाक कर चुके/चुकी हैं।
इनकी एक और आदत है कि यदि ये कहीं जाते हैं और यदि शहर, क्षेत्र की कोई महिला इन्हें किसी मंच पर काव्य गोष्ठी में मिली हो और इन्हें याद है तो ये ग्रुपों से उसका नंबर निकालकर उसे फोन, मैसेज द्वारा उसके घर पर ठहरने की बात बड़े अधिकार से कहते हैं। जैसे ये उसके भाई, बाप या करीबी रिश्तेदार हों।
उदाहरणों की कमी नहीं है। बस जरूरत है कि हमें ऐसे लोगों से सावधान रहने के साथ फासले भी बना कर रखने की। क्योंकि ऐसे लोग समय, हालात नहीं देखते यहां तक कि गंभीर बीमारी, घटना, दुर्घटना और मृत्यु तक में भी ये जबरन अपने को शामिल कर हमें आपको असहज ही नहीं करते, बल्कि मानसिक तनाव भी बढ़ा देते हैं और हम संकोच और सभ्यता की आड़ में सबकुछ चुपचाप देखते, सुनते और सहमत होने की शालीनता/ औपचारिकता निभाने के लिए मजबूर होकर सख्ती से मना या विरोध भी नहीं कर पाते।

इस तरह हमारे, आपके जीवन में अनेकों लोगों का घुसपैठ होता ही रहता है जो "मान या न मान मैं तेरा मेहमान" की कहावत को चरितार्थ करते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश