Sabjiwala in Hindi Fiction Stories by Yogesh Kanava books and stories PDF | सब्जीवाला

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सब्जीवाला

                                                       सब्जीवाला

 


आज भी दफ्तर से आते आते काफी देर हो गई थी । कपड़े चेंज करके वह सोच रही थी आज क्या बनाएगी । फ्रिज में देखा तो कोई सब्जी नहीं थी। अब अकेली जान को सब्जियां भी कितनी चाहिए । ज्यादा ले लो तो खराब हो जाती हैं और सब्जी ना लो तो काम चलता नहीं । इसी उधेड़बुन में थी कि आज खाना बनाऊँ या तो फिर बाहर से आर्डर कर दूँ । अनजाने ही उसने मोबाइल पकड़ा और जोमैटो की ऐप खोलने लगी तभी बाहर से आवाज आई। सब्जी ले लो सब्जी ले लो ----- एकदम नई आवाज़ । अमूमन गली में आने वाले सभी सब्जी वालों की आवाज़ को पहचानती थी। उसने सोचा चलो कोई ढंग की सब्जी है तो देखती हूँ और दरवाजा खोलकर बाहर आई । सब्जी वाले को आवाज़ लगाकर रोका । वो कोई पैंसठ साल का बुजुर्ग फटा सा कुर्ता , गंदा सा पजामा, पैरों में टूटी सी चप्पल और थकी सी आंखें ,दाढ़ी बढ़ी हुई बेतरतीब और उलझे हुए बाल । लगता था कोई जीवन से थका हारा व्यक्ति जबरन अपने हड्डियों का बोझ इस रेहड़ी के साथ ढो रहा है ।
वह धीरे से बोला - क्या दूँ बेटा ---- ।
एक अनजान व्यक्ति के मुंँह से बेटा सुनकर ना जाने क्यों उसे बेचैनी सी हुई ।
क्या क्या है आपके पास ?
बेटा पास आकर खुद ही देख लो वैसे तो सभी सब्जियां थी लेकिन अब बस यही बची हैं ।
अच्छा ठीक है मटर दे दो एक पाव, पत्ता गोभी दे दो ,हरी मिर्च और हरा धनिया भी ।
ठीक है बेटा,
तोलने के बाद वह फिर से बोला ।
कुछ और भी दूं बेटा गाजर है थोड़ी सी चुकंदर है मूली भी है सलाद के लिए ।
अच्छा चलो यह भी दे दो और पैसे बताओ कितना हुआ ।
बेटा वैसे तो कुल पचास रुपए होते हैं लेकिन अब रात होने वाली है कल तक खराब हो जाएंगी तो आप चालीस ही दे दो ।
वह आश्चर्यचकित इतनी सस्ती सब्जी ?
वह बोली ठीक है- मैं आती हूँ ।
वह भी चली गई चालीस रुपए लेकर आई और उसने दस-दस के चार नोट उसके हाथ में थमा दिए।
वह बोला था बहुत शुक्रिया बेटा यदि थोड़ा सा पानी मिल जाता तो ---- गला बहुत सूख रहा है आज ।
आपके पास बोतल है
ना मेरे पास बोतल नहीं है सिर हिलाते से वह बोला
अगर पिला सको तो पिला दो
रुको मैं लेकर आती हूं
आम सब्जी वालों से यह अलग-अलग रहा था बोलने में सलीका हाँ कपड़े जरूर फटे हुए थे लेकिन आदमी ठीक लग रहा था । उसने एक ट्रे में एक गिलास पानी और एक बोतल लेकर दरवाजे को धकेलती सी बाहर आ गई और बोली
लीजिए पानी
बेटा ओक से ही पी लूंगा
नहीं आप ग्लास ले लीजिए और चाहिए तो और मैं डाल दूंगी ।
वो तीन ग्लास पानी पी गया । पानी पी कर वो वहीं सड़क पर बैठ गया । थोड़ा सा राहत महसूस हुई खड़ा हुआ । इधर रेहाना घबरा गई थी पानी पीते ही सड़क पर क्यों बैठ गया था ,खैर वह उठा और पानी पिलाने का शुक्रिया कहकर अपनी रेडी को धक्का मारने लगा।वही आवाज़ सब्जी ले लो सब्जी ले लो वह आगे चला गया था किंतु रेहाना के विचारों की गाड़ी उस सब्जी वाले पर ही रुक गई थी । वो आगे चला गया था किन्तु रेहाना के विचारों की गाडी अभी उसी सब्जीवाले पर ही अटकी थी । वो सोच रही थी - कौन है यह ? कितना कमाता होगा ? बेचारा खाना भी भरपेट नहीं खा पाता होगा । शायद बच्चों को खिलाता होगा । अब भूख लगी है चलो खाना बना लेती हूँ । मटर छीलकर पत्ता गोभी काटी, प्याज हरी मिर्च लहसुन सब तैयार करके उसने सब्जी चढा दी । आटा गूँद लिया, आटा सुबह के लिए भी गूँद लिया था कि सुबह दफ्तर को देर ना हो जाए । खाना खाकर टीवी ऑन किया किंतु आज बार-बार उसी सब्जी वाले पर जाकर अटक रहा था । कहीं बीमार तो नहीं है ,हो सकता है थकान के कारण या फिर बीमारी के कारण ही वो ऐसे बैठ गया होगा । ख्यालों में उसे कब नींद आई पता नहीं उसकी आंँख खुली तो चिड़िया चहचहा रही थी सुबह गुनगुना रही थी और धूप कुनकुना रही थी। वो उठी और चाय बनानी शुरू की। चाय पीकर ऑफिस जाने की तैयारी करने लगी ब्रेकफास्ट किया और दफ्तर के लिए रवाना हो गई ।
शाम को फिर वही सब्जी वाला आवाज़ लगाने लगा सब्जी ले लो सब्जी ले लो मैडम जी सब्जी ले लो सब्जी । रेहाना सोच रही थी चलो सब्जी ले ही लेती हूँ बाहर आई और अपने लिए सब्जी देखने लगी सब्जी का भाव पूछा तो आज उसे एहसास हुआ कि यह सब्जीवाला पहले से आ रहे रेडी वालों से काफी सस्ता देता है । काफी कम दाम है उसकी सब्जी के, ऐसा क्यों है ? कुछ तो बात है उससे रहा नहीं गया और वह बोल पड़ी
सब्जियांँ आपको सस्ती दे रहे हो ?
हाँ मैडम जी
क्यों कहीं ऐसा तो नहीं कि सब्जियां किसी नाले या कहीं ऐसी ही जगह से लाते हों
मैडम जी ऐसा वैसा कुछ नहीं है पूरे दिन भर की कमाई से रेहड़ी का किराया और अपने दोनों टाइम की रोटी लायक पैसा मुझे चाहिए ।
वह बता रहा था कि पड़ोस में रहने वाली अनन्या ने अंग्रेजी में बोलते से कहा
नो नो नो ही इज लायर यूनो दीज पीपल आर नोट ट्रस्ट वर्दी। ही माइट बी सेलिंग वेजिटेबल अनहाइजीनिक और इनफेक्टेड । सच पीपल विद इनोसेंट फेस नेवर ----- आई नेवर बिलीव दीज रास्कल्स ।
पता नहीं कुछ सब्जी वाले को क्या सूझा अनन्या की बात सुनकर वह अपने आप को रोक नहीं पाया वह बोल पड़ा
मैम प्लीज डोंट अब्यूज विदाउट नोइंग द फैक्ट इफ समवन इज सेलिंग चीपर यू पीपल बिलीव दैट ही इज चीटर। एम नोट अ चीटर ओर फ्रॉड। एंड थैंक यू वेरी मच आई डोंट वांट टू सेल हीयर व्हेयर पीपल बिहेव यू इन दिस वे । एंड वन मोर थिंग। थिंक ट्वाइस बिफोर अब्यूजिंग समवन । नो वन नोज अबाउट द टाइम ------- व्हेन इट कैन चेंज ।
इतना कहकर वह चला गया । रेहाना ने आवाज लगाई और कहा आई एम सॉरी मै इसकी तरफ से माफी मांगती हूंँ । लेकिन आप कौन हैं यह तो बताइए । थैंक्यू मैम लेकिन बिना सच्चाई जाने इन मैडम जैसे लाखों लोग हैं जो हम जैसे गरीबों को बिना किसी गलती के भी गालियां देते हैं। तभी अनन्या बोली
- इतने ही पढ़े लिखे हो तो सब्जी क्यों बेचते हो । पढ़े लिखे हो भी या फिर थोड़ी सी अंग्रेजी रोब मारने के लिए सीख ली है । वो कुछ नही बोला बस रेहाना को सब्जियां थैली में डाली उसको थमा दी और बिना पैसे लिए ही चला गया । अगले दिन ही क्या कोई हफ्ते भर वो नहीं आया । एक दिन किसी काम से रेहाना सामने वाली मोहल्ले में गई थी । वैसे भी छुट्टी का दिन था उस मोहल्ले में वही सब्जीवाला रेहाना को दिख गया वो सीधी उसके पास पहुंची और उसने उस दिन के लिए एक बार फिर से माफी मांगी उस दिन के पैसे बताने को कहा और अपनी गली में चलने के लिए कहा।
- मैडम जी जहांँ इंसान और इंसानियत की कदर ना हो वहांँ पर कभी नहीं जाना चाहिए।
- मैं उस दिन उन मैडम की बात के लिए आपसे सॉरी बोलती हूंँ।
- नहीं मैडम आपको सॉरी कहने की जरूरत नहीं है। ग़रीबी के साथ सारे अपराध जुड़े हुए मान लिए गए हैं और अमीरों के सारे ऐब उनके अमीरी में दब जाते हैं । खैर छोड़िए इन बातों को आपको क्या दूं ।
-नहीं मैं सब्जी तभी लूंगी जब आप मेरे घर चलोगे।
वो थोड़ा सोचने लगा फिर बोला , आज उसकी रेडी में काफी सारी सब्जियां थी वैसे भी अभी शाम के 5ः00 ही बजे थे इसलिए रात तक सारी सब्जियां बिक जाएंगे ऐसा विश्वास था
-चलिए मैडम जी गरीबों की क्या इज़्ज़त और क्या बेइज्जती है।
रेहाना के मोहल्ले में उसके घर के सामने अपनी रेहड़ी को धक्का मारता ले आया था ।
लो मैडम जी आ गया आपके घर अब बताइए क्या दूँ?
- आप रेहड़ी को एक तरफ लगा दीजिए और इधर आ जाइए ।
सब्जी वाले को अपने पोर्च में बुला लिया । सामने पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा किया और बोली
- बैठिए
- मैडम आपको सब्जी क्या देंगे
वह बोली
- पहले बैठिए सब्जी भी बता दूंगी ।
वह संकोचवश नहीं बैठा बस खड़ा रहा। न जाने रेहाना को क्या सूझा वह कुर्सी से उठी और उस आदमी का हाथ पकड़कर कुर्सी में बैठा दिया ।
अब बताइए ना आप इतनी सस्ती सब्जियां क्यों भेजते हो।
वह संकोच के कारण कुछ भी नहीं बोला बस शून्य मे घूरने लगा। इतनी देर में रेहाना उसके लिए एक गिलास पानी ले आई थी । उसने एक ग्लास पानी लिया पानी पी कर फिर से शून्य मे घूरने लगा ।
बोलिए ना आप इतनी सस्ती क्यों बेचते हो सब्जियां ? बताइए ना अंकल आप इतनी सस्ती क्यों बेचते हो सब्जियां । वह बोला
-मुझे अंकल बोलती हो तो बेटा सच यह है कि मुझे केवल सुबह और शाम की रोटी के लिए सौ चाहिए और सौ रुपए इस रेहड़ी का किराया देना होता है। बस कुल मिलाकर दो सौ रुपए मुझे काफी हैं ।
- आज इस रेहड़ी में रखी सब्जी कितने में खरीदी थी
- पाँच सौ रुपए की
- और बेचोगे कितने की ।
- सात सौ की आधी बिक गई है चार सौ पचास तो आ गए हैं ।
- ठीक है ये लो दो सौ पचास रुपए और सारी सब्जी यहीं डाल दो पूरे दिन आप चक्कर मत काटो ।
- क्या करोगीे इतनी सब्जी का बेटा ।
- मोहल्ले मे बाँट दूँगी ,कितने दिन हो गए आपको ?
- यही कोई पन्द्रह दिन
- पहले क्या करते थे
- इस शहर में नया हूंँ
- पहले क्या करते थे
- कुछ नहीं बस यायावरी में ही गुजर गया समय
- अंग्रेजी इतनी अच्छी आती है कितने पढ़े लिखे हो
- यह छोड़िए मैडम जी मैं सब्जी लाता हूंँ
- नहीं बैठे रहो बताओ आप कितना पढ़े हैं और कहां के रहने वाले हैं
- भारत के ही हैं हम और वह अंग्रेजी तो हम यूँ ही बोल दिए थे बस जब गुस्सा आता है तो पता नहीं अंग्रेजी कहाँ से आ जाती है ।
- सच बताओ ना आपको मेरी कसम आपने मुझे बेटी कहा था ना ।
- ऐसा गजब मत करो बेटी अपना कसम काहे दिए हैं आप । हमसे अभी झूठ भी तो ना बोला जाएगा ।
- इसीलिए तो पूछ रही हूँ सच बताइए ना
- क्या बताएं बिटिया मैं बलिया जिले का रहने वाला हूंँ और नौकरी बैंक में थी । बैंक में अफसर था मैं रिटायर होने के बाद अच्छा जीवन चल रहा था। बस जीवन में हम एक भूल कर बैठे और उसे भूल का पता नहीं पत्नी को पता चल गया कैसे बताएं ।
- कैसी भूल
- वह क्या बताएं बेटी जी बैंक में हमारे साथ एक मैडम थी वह भी पता नहीं चला कैसे धीरे-धीरे हम दोनों के बीच आकर्षण हुआ और बस बातें होने लगी थी उसने एक दिन अपने घर बुलाया था मन में असमंजस था कि जाएँ कि नहीं जाएँ और फिर हम नहीं गए। वह गुस्सा हो गई और सारी बात मेरी पत्नी को किसी के हाथ का कहलवा दी । एक दिन हमारी पत्नी ने हम दोनों को बहुत करीब बैठे देख लिया था, बस वहीं से हमारा घर बिगड़ गया । पत्नी ने हमसे किनारा कर लिया और कोई चार बरस ऐसे ही चला। एक रात मुझे क्या सूझा सब कुछ छोड़ छाड़ कर चल दिए। छोड़ दिया वह मकान ज़मीन, पैसा , पेसंन सब पत्नी के लिए छोड़ दिया । बस तब से हम यूंँ ही चल रहे हैं यायावरी में ।
- कितना समय हो गया आपको घर छोड़े
हो गया कोई ग्यारह महीना
- पत्नी की याद नहीं आई
- बहुत आती है लेकिन अपनी गलती का तो प्रायश्चित करना ही है सजा तो काटनी पड़ेगी ना । अपनी गलती का प्रायश्चित करना ही है ना । खुद से लड़ाई बहुत मुश्किल होती है बेटा जी अपनी ही छाया को काटने जैसा। इस तरह की गलती करने के बाद आदमी की हालत बिल्कुल उस परिंदे जैसी हो जाती है जो झाड़ियों में फंस गया हो जैसे-जैसे बाहर निकलने की कोशिश करता है लहूलुहान होता जाता है और तड़प तड़प कर उसी झाड़ी में ही अपनी जान दे देता है ।
- लेकिन आप सब्जी क्यों बेच रहे हो
-मैडम जी पेट में भूख लगती है ना , तो अकल काम नहीं आती, केवल रोटी काम आती है
- आप तो शायराना बात कर रहे हैं लगता है आप लिखते भी हैं
- नहीं भूख और गरीबी वो सब करवाती है जो आपने सोचा भी ना होगा ।
- घर नहीं जाना चाहते हो
किस मुँह से जाउँगा, पत्नी और बच्चों से नजरें कैसे मिलाउँगा
- ऐसा कब तक चलेगा
- लेकिन उनको मुँह दिखाने लायक रहा कहांँ हूँ मैं ।
वह इतना ही बोल पाया और कुर्सी सहित नीचे लुढ़क गया रेहाना घबरा गई थी उसने फौरन एंबुलेंस बुलाई और अस्पताल लेकर गई । उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया उसका बीपी बेहद बढा हुआ था डॉक्टर ने कहा था पता नहीं यह शख्स इतने बीपी के साथ जिंदा भी कैसे हैं । अस्पताल में ही रेहाना बैठी डॉक्टर से बात कर रही थी कि अचानक उसकी नजर टेबल पर पड़े अखबार पडी । उसमें एक फोटो छपा था और लिखा था आप जहांँ कहीं भी हैं घर आ जाइए। घर लौट आओ मम्मी बहुत सीरियस है उन्हें दिल का दौरा पड़ा है अस्पताल में भर्ती हैं और केवल आपकी राह देख रही हैं। नीचे एक नंबर लिखा था । उसने फोन नंबर को अखबार से लिया और उसमें फोटो छपी का मिलान करने लगी थी उस आदमी से जिसको वो अस्पताल लेकर आई थी । उसमें छपी फोटो का मिलान उस सब्जी वाले की शक्ल से करने से वह भी हूब हू वही लग रहा था बस छाढी बढ आई थी । बेहोशी में भी उसके चेहरे से सच्चाई साफ नजर आ रही थी यह वही शख्स था जिसकी फोटो छपी थी अखबार में । कोई दो दिन बाद उसे होश आया अब उसे डॉक्टर ने ख़तरे से बाहर बताया तभी रेहाना ने अखबार में छपा नंबर डायल किया और बात करने लगी।