Prem Nibandh - 17 in Hindi Love Stories by Anand Tripathi books and stories PDF | प्रेम निबंध - भाग 17

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प्रेम निबंध - भाग 17

कहानी उससे आगे बढ़ती लेकिन उन्होंने कहानी में नया कथानक जोड़ दिया था इसलिए अब महता और मालवी को एक प्रकार से न चाहकर अलग होना ही था।
कही न कही दोनो की गलती थी भी और नहीं भी।
परंतु नियति को प्राथमिकता देते हुए मेहता मर्यादित पेश आना चाहते थे। जो की हुआ।
उन्होंने अब मालवी को मिलने से मना कर दिया।
और बहुत सारी बाते जो की मर्यादा में आती है। उनका पालन करने को कहा।
बताया की अब मालवी का विवाह होना है। और वह किसी और से प्रेम में बंधेगी। इसलिए उसको अब मेहता से दूरी बना लेनी चाहिए।
ताकि वो एक स्वच्छंद जीवन जी सके।
मेहता ने कहा कि मानता हूं प्रेमी है।
परंतु प्रेम में धैर्य और साहस भी होते है।
हौसले भी होते है।, मित्रता का सबसे बड़ा सूचक है उसका जीवंत बने रहना
लेकिन मालवी की एक धुन थी नही ये सब बेकार की बाते हैं।
जो की आपको मानसिक तौर पर श्रेष्ठ दिखाती है या दावा करती हैं।
इसलिए मेहता तुम इसमें न पड़ो।
लेकिन जैसे ऊपर की कथा में कहा की नियति को कुछ ओर मंजूर था।
तो फिर कैस कुछ हो सकता था।
क्युकी मेहता सिर्फ मालवी से प्रेम नहीं करता था। वो चाहता था। की मालवी कुछ अच्छा करे जीवन में बड़ा करे
और उसके लिए उसे समाज से लड़ना पड़ेगा।
लेकिन मालवी बस मेहता को ही चाहती थी।
यह भी एक दुराव है कई लोगो की प्रेम विफलता का।
क्युकी एक दूसरे को बढ़ाने के तरीके से ही प्रेम बढ़ता है।
एक दूसरे का साथ देना , साथ निभाना , विश्वशु होना , जीवन की किसी भी परिस्थिति में साथ होना।
ये सब प्रेम की परिभाषा होना माना जाता है।
परंतु सिर्फ शारीरिक संतुष्टि तक ही अगर किसी का प्रेम सीमित है तो वो तो एक मात्र काम भावना है इसका विपरीत कोई प्रेम नहीं।
हा काम एक आंगिक चेष्टा जरूर है।
जिसका आधार प्रेम होता है।
खैर
मेहता और मालवी
दोनो एक दूसरे से अलग हो गए।
एक आखिरी और पहली मुलाकात जिसके बाद
उनका मिलना नहीं हुआ।
ये पूरी कथा वार्ता एक प्रेम आधारित वार्ता या संवाद की प्रक्रिया थी।
जिसमे मेहता और मालवी का नाम उकेरे बिना ही उनको दर्शाया गया।
हालाकि बाद में उनका नाम आ ही गया।
अब मालवी का विवाह हो चुका है।
जो की एक अच्छी शख्सियत हैं।
अब मेहता दो राहें पर खड़ा है।
क्युकी अब उसके लिए एक अकेलापन सा हो गया था।
फिर भी वो हिम्मत नही हारता है।
वो जानता था की उसके लाख सोचने से कुछ नही होने वाला।
विधि के विधान में लिखी गई बाते अमिट होती हैं।
अब अगले दिन से वो फिर अपने मंजिल को पानी की ओर एक कदम और बढ़ाता है
ऑफिस जाना घर आना। और पढ़ाई पूरी करना
अब से न कोई फोन न कोई कॉल और न कोई फालतू बाते।
सब कुछ जैसे उसको शुरू से शुरू करना था।
एक लंबी चली लड़ाई का हार जाना और उस पर पछतावा होना एक आम बात थी।
जो की एक सहज स्वीकार करने की बात है।
प्रेम उनमें से एक है।

धन्यवाद।
The end 🔚