आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको,घर घर तुलसी ठाकुर सेवा, दर्शन गोविंद दीजो।आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको...निर्मल नीर बहत यमुना को, भोजन दूध दही को,आली री मोहे लागे वृन्दावन नीको...
जी हाँ, हमारी यात्रा का पहला पड़ाव है वृन्दावन।कान्हा की नगरी।लेकिन यह जगह नीब करोली बाबा के महा समाधि के रूप में चर्चित है। आइये पहले यहीं मत्था टेक लें।
ये है नीब करौली बाबा का आश्रम।इस आश्रम का इतिहास पहले आपको बता दूँ। यह सभी जानते हैँ कि हनुमान जी के अनन्य भक्त नीब करोली बाबा ने इसी वृन्दावन मे 1973 में अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया था। यह उनका समाधि स्थल है।
इस मंदिर का उद्घाटन 1967 में हुआ था। यह आश्रम मथुरा रोड से कुछ ही दूरी पर परिक्रमा मार्ग पर है। इस पवित्रऔर शांत आश्रम के भीतर ही नीब करोरी बाबा का महासमाधि मंदिर है। यह प्रत्येक वर्ष सितंबर में महाराज जी के महासमाधि भंडारे का स्थान है। इस आश्रम में इसके अलावा हनुमान जी मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, सीता राम मंदिर, शिवाजी युगशाला मंदिर भी हैं।आश्रम में गौशाला और सुन्दर बगीचा भी हैं।हाँ, इस परिसर में बंदरों की बहुतायत है।
इस आश्रम में रहने की भी व्यवस्था है। यदि आप आश्रम में रहना चाहते हैं तो एक परिचय पत्र और आश्रम से पूर्व व्यवस्था होना आवश्यक है।
इस आश्रम की कुछ तस्वीरें भी हमने लीं।नीब करौली बाबा के साधना कक्ष में हमनें कुछ क्षण ध्यान भी लगाया।
यहां के लोगों का कहना है कि बाबाजी महाराज ने पहले ही इस नश्वर शरीर को छोड़ने की तारीख तय कर दी थी । उन्हें अपने शरीर के दाह संस्कार के लिए एक जगह चुननी थी और अपने भक्तों के लिए एक स्मारक मंदिर बनाने के लिए पृष्ठभूमि तैयार करनी थी। बाबाजी ने मार्च-अप्रैल, 1973 में चैत्र नवरात्र के अवसर पर अपने भक्त अलीगढ़ के विशंभर से मंदिर परिसर में नौ दिनों का यज्ञ करवाया था।
वह स्थान जो प्रांगण के उत्तरी भाग में धर्मशाला और दक्षिण में मंदिर की चारदीवारी के बीच में स्थित है और दोनों ओर प्रांगण का एक तिहाई क्षेत्र छोड़ता है। इस प्रकार यह स्थान देवी दुर्गा की आराधना से पवित्र हो गया। बाबाजी ने आदेश दिया कि इस छोटे से क्षेत्र की नाकेबंदी कर दी जाये और इसकी पवित्रता बनाये रखी जाये। बाबाजी ने 10 सितंबर 1973 की रात को रामकृष्ण मिशन अस्पताल में अपना नश्वर शरीर छोड़ दिया। बाबाजी की रहस्यमय शक्ति से प्रेरित होकर, पागल बाबा ने अपने भक्तों को सलाह दी कि उनके भौतिक शरीर को आश्रम के अंदर तत्वों के साथ मिला दिया जाए। तदनुसार, भक्तों ने चंदन की लकड़ी का एक मंच बनाया और 11 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के पवित्र त्योहार पर बाबा के भौतिक शरीर का अंतिम संस्कार किया।
बाबा के नश्वर अवशेषों को संरक्षित करने के लिए उनके भक्तों द्वारा उसी स्थान पर एक स्मारक मंदिर बनाया गया था। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा और पगोडा सभी की वास्तुकला का मिश्रण है। आख़िर बाबाजी तो सबके हैं !
हमलोगो ने इस जगह पर अद्भुत शांति पाई है और असीमित आध्यात्मिक ऊर्जा भी जो आगे की यात्रा में काम आएगा।