तब डाक्टर सिंह ने अपनी पत्नी चित्रा से इस विषय में बात की तो वो बोलीं.....
"मुझे तो ये ठीक ही लग रहा है,क्योंकि हमारी शादी को इतना समय बीत गया और इतने इलाज के बावजूद भी हम लोंग सन्तान के सुख से वंचित हैं,हो सकता है वो बच्चा हमारे सूने जीवन में उजियारा कर दे"
"लेकिन चित्रा वो बच्चा मुस्लिम होगा",डाक्टर सिंह बोले...
"इससे क्या फर्क पड़ता है,वो हिन्दू या मुस्लिम,वो बच्चा तो होगा ना!",चित्रा बोली...
"तुम्हारी बात भी ठीक है लेकिन हम उसे मजहब कौन सा सिखाऐगें",डाक्टर सिंह बोले...
"अब जब हम उसके धर्म माता पिता होगें तो वो हमारा मजहब ही सीखेगा",चित्रा बोली...
"एक बार फिर सोच लो कहीं तुम्हें बाद में पछताना ना पड़े और अगर तुम ये सब धन के लोभ में कह रही हो तो ठण्डे दिमाग से सोचकर ही कोई फैसला करना",डाक्टर सिंह बोले....
"लोभ तो है जी! लेकिन धन का नहीं बच्चे का,आप ये उस औरत से पूछिए जिसे समाज बाँझ कहकर पुकारता हो,उसके दिल पर क्या बीतती होगी उस वक्त जब औरते उसे देखकर अपना बच्चा छुपाकर ये कहने लगतीं हैं कि बाँझ की छाया ना पड़ने पाएँ बच्चे पर,लोग अभागन कहते हैं उसे,शुभ कार्यों में ना बुलाते हो उसे और तो और जब घर की सास ननदें बात बात पर बाँझ का ताना देती हैं ना तो उस औरत का जीना दूर्भर हो जाता है"
और ये कहते कहते चित्रा की आँखों से आँसुओं की धाराएँ बहने लगी और उसे रोता देखकर डाक्टर सिंह का दिल पसीज गया,उन्होंने चित्रा को अपने सीने से लगाते हुए कहा.....
"बस....करो चित्रा! अब मैं तुम्हें और दुख झेलने नहीं दूँगा,अब तुम माँ बनोगी और एक हँसता खिलखिलाता बच्चा तुम्हारी गोद में होगा,मैं शाम को ही उनकी हवेली जाकर इस विषय में बात करता हूँ",
और फिर शाम के समय डाक्टर धीरज सिंह हवेली आएँ, वे हवेली आए तो मुलाजिम ने आकर बड़े अब्बू तक खबर पहुँचाई कि कोई डाक्टर धीरज सिंह आपसे मिलना चाहते हैं ये सुनकर बड़े अब्बू खुशी से झूम उठे और मुलाजिम से बोलें.....
"उन्हें मेहमानख़ाने में तशरीफ़ रखने को कहो और देखना कि उनकी मेहमाननवाजी में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए"
"जी! हुजूर",
और ऐसा कहकर वो मुलाजिम वहाँ से चला आया और उसने डाक्टर साहब को मेहमानख़ाने में तशरीफ़ रखने को कहा और उनकी खातिरदारी में लग गया,कुछ देर बाद बड़े अब्बू मेहमानख़ाने में पहुँचे और डाक्टर साहब से बोले...
"तो क्या फैसला किया आपने"?
"जी! मैं और मेरी पत्नी उस बच्चे के धर्म के माता पिता बनने को तैयार हैं",डाक्टर धीरज सिंह बोले...
"आपकी पत्नी से आपने कोई जबरदस्ती तो नहीं की हाँ कहलवाने में",बड़े अब्बू ने पूछा...
"जी! नहीं! वो तो बहुत खुश हुई ये सुनकर,वो अब बाँझ कहलाने का दर्द और नहीं झेलना चाहती",डाक्टर धीरज सिंह बोले....
"तब तो ये बहुत अच्छी बात है",बड़े अब्बू बोले....
"तो अब मेरे लिए क्या आदेश है",डाक्टर सिंह ने पूछा...
तब बड़े अब्बू बोले....
"तो अब हमें जल्द ही दार्जिलिंग के लिए रवाना होना होगा,वहाँ मैं,मेरी पोती मर्सिया,आप और आपकी पत्नी रहेगें,मेरा दार्जलिंग में भी एक बंगला है, हम सब बच्चा पैदा होने तक वहीं रहेगें और हाँ जब तक बच्चा तीन महीने का नहीं हो जाता तो तब तक आपको वहाँ रहना होगा,इस दौरान आपके काम का जितना भी हर्ज होगा उसकी भरपाई मैं करूँगा और महीने के हिसाब से आपको इसका रुपया भी दिया जाएगा और इसके अलावा जो भी आप दोनों के रहने खाने का खर्च होगा वो भी मैं ही उठाऊँगा,फिर आप बच्चे को लेकर वापस आ जाइएगा,किसी को कानोंकान खबर भी ना होगी कि ये बच्चा आपका नहीं है,यहाँ आकर आप अपने जान पहचान वालों को अच्छी सी पार्टी दे दीजिएगा और उसका खर्च भी मैं ही उठाऊँगा",
"जी! मुझे मंजूर है",डाक्टर धीरज सिंह बोले....
"तो अब आपको इस बारें में मर्सिया से भी बात कर लेनी चाहिए"
और ऐसा कहकर बड़े अब्बू बाहर आ गए और मुझे भीतर जाने को कहा,मैं भीतर पहुँची तो देखा कि डाक्टर धीरज सिंह सोफे पर बैठें हैं,मैं बुर्के में थी,इसलिए कुछ ना बोली,मैंने सोचा वें ही शुरुआत करें और उन्होंने सोचा कि मैं ही पहले उनसे बात करूँ,इसलिए कमरे में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छाया रहा,इसके बाद मैंने सोचा कि इनसे परदा करना फुजूल है,ये ही तो मेरे बच्चे के धर्मपिता बनने वाले हैं,इसलिए मैंने उनसे बात करने के इरादे से अपने चेहरे से पर्दा हटाते हुए कहा...
"जी! मैं मर्सियाबानो"
"जी! मैं जानता हूँ"
और ऐसा कहकर डाक्टर साहब मुझे एक टक देखते ही रह गए और जब उनकी चेतना जागी तो बोले...
"आपको तकलीफ़ ना हो तो मैं जरा कमरें के किवाड़ बंद कर दूँ,कहीं किसी नौकर ने सुन लिया तो बेवजह तमाशा खड़ा हो जाएगा,जिससे मेरी और आपकी इज्जत पर धब्बा लगने का डर है"
और वें कमरें के किवाड़ बंद करने के इरादे से उठे और इतनी देर में मैंने अपना बुर्का उतार दिया,उन्होंने मुझे जब बेपरदा देखा तो कुछ देर के लिए उनकी आँखें चौंधिया गईं,मैंने उस दिन सफेद चिकनकारी का गरारा पहना था,मेरे लम्बे काले बाल खुले थे और आँखें रो रोकर सूज गईं थीं,मैं इतने सादे लिबास में थी तब भी डाक्टर साहब की निगाहें मुझ पर से नहीं हट रहीं थीं,इसलिए मैंने उन पर क्रुद्ध सिंहनी जैसी तीखी दृष्टि डाली तो उन्होंने अपनी निगाहें नीचीं कर लीं....
उन्होंने निगाहें नीचीं की तो तब मैंने उन्हें ध्यान से देखा कि डाक्टर धीरज सिंह उज्जवल गौरवर्ण और सुडौल शरीर वाले व्यक्ति थे,उनके मुँख पर तेज था,जैसा कि किसी दयालु व्यक्ति के मुँख पर होता है,उनके चेहरे को देखकर ऐसा लगता था कि कपट क्या होता है वें ये जानते ही नहीं हैं,
तब मैंने बात शुरू करते हुए उनसे कहा...
"तो आप मेरे बच्चे को अपनाने के लिए राज़ी हैं",
"जी! मैं राजी हूँ",वे बोले....
"क्या मैं जान सकती हूँ कि आपने ये सौदा बच्चे के लिए किया है या दौलत के लिए",मैंने पूछा....
"आप क्या जानना चाहतीं हैं सच या झूठ",उन्होंने कहा....
"जी! सच ही जानना चाहूँगी",मैंने कहा...
"जी! बच्चे के लिए,बच्चा ही मेरी पहली प्राथमिकता है",डाक्टर सिंह बोले...
"आपकी नजरों में मैं तो एक आवारा और बदचलन लड़की साबित हो चुकी हूँगी",मैंने कहा....
"जी! नहीं! आप जिस जिल्लत में ही फँसी हैं,हो सकता है कि आपके साथ धोखा हुआ हो,",डाक्टर सिंह बोले....
"नहीं! कोई धोखा नहीं हुआ,वो मेरी और अब्बू दोनों की ही पसंद थे,इसलिए मैंने खुद को उन्हें सौंप दिया था,लेकिन फिर उनका इन्तकाल हो गया",मैंने कहा....
"मुझे बड़ा अफसोस हुआ ये सुनकर",डाक्टर सिंह बोले....
"जी! अफसोस मत कीजिए मेरी जिन्दगी पर,क्योंकि बड़े अब्बू मेरी किस्मत का फैसला पहले ही कर चुके हैं, अब वे मेरा निकाह नवाब अकबर अली बहादुर खान से करवाने का सोच रहे हैं"मैंने कहा....
"तो फिर दिक्कत क्या है?",डाक्टर साहब ने पूछा....
"उनकी पहले से तीन बीवियाँ हैं और उनकी उम्र भी बहुत ज्यादा है,उनकी बीवियों के कोई औलाद नहीं है,वे औलाद की चाहत रखते हैं इसलिए वे मेरे बारें में सब जानते हुए भी मुझसे निकाह करना चाहते हैं",मैंने कहा....
"ये तो गलत है,आप तो बालिग़ हैं ,समझदार हैं,माशाल्लाह खूबसूरत भी हैं तो फिर आप इस निकाह से इनकार क्यों नहीं कर देतीं",डाक्टर साहब बोले...
तब मैंने कहा..
"वही तो बात है,मेरे अब्बू के इन्तकाल के बाद ,बड़े अब्बू की दुनिया बिखर सी गई थी,बड़े अब्बू बड़े शानदार इन्सान हैं,वे बड़े हौसलेमन्द और दरियादिल हैं,वे अपनी नवाबी शान को नहीं छोड़ सकते,उन्हें अपने खानदान की इज्ज़त का बहुत ख्याल है,इसलिए उन्होंने मेरा निकाह नवाब अकबर अली बहादुर खान से करवाने का सोचा है और मेरा फर्ज है कि मैं उनकी बात पर हर्फ ना लगाऊँ,मेरी जिन्दगी तबाह हो रही है मुझे इसका मलाल नहीं है लेकिन मैं कभी भी उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं जाना चाहूँगी ",
"लेकिन इस तरह से शादी करना तो सरासर एकदूसरे को धोखा देना है,"डाक्टर सिंह बोले...
"मैं कुछ नहीं जानती,अब बड़े अब्बू ही मेरे खुदा है,उन्होंने मेरे लिए जो भी सोचा होगा वो ठीक ही सोचा होगा"मैंने कहा....
" क्या उम्रदराज इन्सान से आपका निकाह करना सही होगा"?,डाक्टर सिंह ने पूछा....
"अब जो भी हो,ये बातें तो तय हो चुकीं हैं,घर में ना मेरे सिवाय कोई दूसरी औरत और ना ही बड़े अब्बू के सिवाय कोई दूसरा मर्द,बड़े अब्बू अपनी खानदानी इज्जत के बाद मुझे ही प्यार करते हैं और मैं अपने से ज्यादा उन्हें प्यार करती हूँ,इसलिए वे जैसा चाहते हैं,वैसा ही होगा",मैंने कहा....
"आप बेवजह अपनी कुर्बानी दे रहीं हैं",डाक्टर सिंह बोले...
"यही मेरी भी मर्जी है",
"आप नवाब साहब की वजह से अपनी जिन्दगी बर्बाद करने जा रहीं हैं,",डाक्टर साहब बोले....
"ये मेरा मसला है और आपको इसमें दखल देने का हक़ नहीं है",मैंने कहा....
"लेकिन आपके मसले में मेरा दखल तो पहले से ही हो चुका है",
"जी! मैंने अपनी खुशी के लिए नहीं ,उनकी खुशी के लिए आपका दखल मेरे मसले में मंजूर किया है",मैंने कहा...
तब वे बोले....
"जब नवाब अकबर अली बहादुर खान बेऔलाद हैं तो इस बच्चे को वें भी तो रख सकते हैं",डाक्टर साहब बोले....
"बड़े अब्बू ऐसा नहीं करना चाहते ,मैं इस बारें में उनसे बात कर चुकी हूँ और सबकी भलाई इसी में है कि इस बच्चे से मेरा और उनका कोई ताल्लुक ना रहे",मैंने कहा....
"आपके विचार पाक हैं,आदर्श ऊँचे हैं ,मैं उन्हें पसंद भले ही ना करूँ,लेकिन आपकी इज्ज़त के लिए मैं आपके बच्चे को अपना बनाने के लिए तैयार हूँ",डाक्टर सिंह बोले....
"बहुत बहुत शुक्रिया! लेकिन एक और आरजू भी है मेरी",मैंने कहा....
"जी ! फरमाएँ",डाक्टर साहब बोले...
"वो ये कि वो चाहे लड़का हो या लड़की,उससे कभी ये मत कहिएगा कि मैं ही उसकी माँ हूँ,बस कभी कभी उससे मिलने और उसे प्यार करने की इजाज़त माँगती हूँ आपसे,आप मेरी गुजारिश पूरी करेगें तो अल्लाह आपका भला करेगा",मैंने कहा....
"ऐसा ही होगा,आप घबराएँ नहीं,मैं आपकी ममता का मोल भलीभाँति जानता हूँ",डाक्टर सिंह बोले....
"तो अब बात खत्म हो चुकी है,सौदा पक्का हो चुका है,दरवाजे खोलकर बड़े अब्बू को भीतर बुला लीजिए",
और ऐसा कहकर मैं अपना बुरका पहनकर बाहर आ गई,
क्रमशः....
सरोज वर्मा....