Andhayug aur Naari - 36 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | अन्धायुग और नारी - भाग(३६)

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अन्धायुग और नारी - भाग(३६)

कुछ दिनों बाद मैंने उनके मायके में एक दाईमाँ की निगरानी में अपने बेटे को जन्म दिया,उनका मायका अत्यधिक सम्पन्न था,मुझे वहाँ केवल पन्द्रह दिन ही रहने दिया गया और उन्होंने मेरे बच्चे को ले लिया फिर मुझे वापस भेज दिया,मैं अपने बच्चे के संग वहाँ और कुछ दिन रहना चाहती थी लेकिन स्नेहलता इस बात के लिए हर्गिज़ राज़ी नहीं थीं,वे नहीं चाहतीं थीं कि बच्चे पर मेरी ममता हावी हो जाए और फिर मैं उसे छोड़ ना पाऊँ,मैं उनके सामने रोती रही बिलखती रही लेकिन उन्हें मुझ पर एक भी दया ना आई....
मैं फिर से गुलबदन खालाज़ान के कोठे पर आ गई,लेकिन अब मेरा नाचने गाने में बिलकुल भी मन ना लगता था,मैं अपने बच्चे की याद में दिन भर बिस्तर पर पड़े पड़े रोते रहती थी और तभी कोठे पर एक नई लड़की लाई गई,वो अपने गाँव से अपने प्रेमी के संग भाग आई थी और उसके प्रेमी ने उसे अपने संग दो महीने रखकर बेंच दिया और वो कोठे पर आ गई,वो बहुत ही सुन्दर और कम उम्र की थी और बाद में पता चला कि वो माँ बनने वाली है,इसलिए गुलबदन ख़ालाजान को उस पर रहम आ गया फिर उन्होंने उसे नाच गाने के लिए नहीं कहा,वें बोली जब ये बच्चे को जन्म दे देगी तब इसे काम पर लगाने का सोचेगें.....
उस लड़की का नाम नर्मदा था,वो अपने प्रेमी के संग अपने गाँव से भाग तो आई थी लेकिन उसे इस बात का बहुत दुःख था,उसे अपने माँ बाप की बहुत याद आती थी,उसके दो बड़े भाई थे और वो उनकी इकलौती छोटी बहन थी,अपने प्रेमी से धोखा खाने के बाद उसे लग रहा था कि उसने अपने परिवार को धोखा दिया तभी उसके साथ ऐसा हुआ,उसके घर से भाग जाने के बाद समाज में उसके परिवार की बहुत बदनामी हुई होगी,अब मैं कौन सा मुँह लेकर वो अपने घर जाएगी,उससे बहुत बड़ी गलती हो गई,यही सब सोच सोचकर वो दिनभर रोती रहती थी,इसलिए उसकी तबियत बिगड़ती चली जा रही थी,मैं उसे बहुत समझाती थी कि इतनी चिन्ता मत करो नहीं तो तेरे बच्चे पर असर पड़ेगा,तब वो कहती....
"ये बच्चा नहीं है पाप है,ये उस धोखेबाज की निशानी है,मैं तो इस बच्चे को रखना ही नहीं चाहती थी लेकिन तुम लोगों ने मेरी एक नहीं सुनी"
"दिन ज्यादा चढ़ गए थे नर्मदा! और मोहल्ले वाली दाई माँ ने भी तो कहा था कि अगर बच्चे को गिराया गया तो तेरी जान को खतरा हो सकता था",मैंने उससे कहा...
"तो मर जाने देते मुझे,अभी मैं कौन सी जिन्दा हूँ,इतने कुकर्म के बाद और माँ बाप के मुँह पर कालिख पोतकर जिन्दा लाश ही तो बनकर रह गई हूँ",नर्मदा बोली....
"ऐसा मत बोल नर्मदा! गलतियाँ सबसे हो जातीं हैं तो तुझसे भी गलती हो गई",मैंने उससे कहा.....
"ये गलती नहीं है तारा दीदी! ये तो गुनाह है जो मैने किया है और उसकी कोई माँफी नहीं है",नर्मदा बोली....
"ज्यादा फालतू की बातें मत कर और अपनी सेहत पर ध्यान देना शुरु कर",मैंने उससे कहा.....
लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी और दिनबदिन उसकी सेहत गिरती चली जा रही थी,मैंने उसके घर का पता ठिकाना पूछकर उसके घर खत भेजा और उस घरवालों को बताया कि वो हमारे यहाँ रह रही है और मैंने उन्हें अपना पता ठिकाना भी भेजा,ताकि वे लोंग हमें खत भेज सकें और उन्होंने खत भेजा भी लेकिन उस खत में ये लिखा था कि अब नर्मदा हमारे लिए मर चुकी है,उसके साथ हमारा कोई रिश्ता नहीं,वो मरे या जिएँ हमें उससे कोई लेना देना नहीं है,अब हमें कोई खत मत भेजना,उस कुलच्छनी की हमें कोई जरुरत नहीं है,जब उसे ये बात पता चला कि उसके घरवाले उसके बारें में क्या सोचते हैं तो वो और भी दुखी हो गई,
जिससे उसकी तबियत और भी ज्यादा बिगड़ने लगी,उसका शरीर देखकर ऐसा लगता था कि चिन्ताओं ने उसके शरीर का सारा खून चूस लिया है और फिर कुछ महीनों बाद किसी तरह से उसने एक बच्ची को जन्म दिया,बच्ची को जन्म देते समय उसकी हालत इतनी गम्भीर हो चुकी थी कि दो चार घण्टे बेहोश रहने के बाद उसने अपना शरीर छोड़ दिया,वो अपने पापों से मुक्त होना चाहती थी और मुक्त हो भी गई ,उसे अब जीने की इच्छा नहीं थी इसलिए ऊपरवाले ने भी उसे अपने पास बुला लिया और फिर उस बच्ची को मैंने पाल लिया,मैं वैसें भी अपने बच्चे से दूर हो जाने पर दुखी थी,जल्द ही वो बच्ची मुझसे घुल मिल गई....
मैं अपने सारे दुख भूलकर उस बच्ची को पालने में लग गई और फिर एक दिन कोई साहब मुझसे मिलने आएँ,उन्हें नौकरानी ने बैठक में बैठाया ,वो नौकरानी नई थी इसलिए वो उन्हें नहीं पहचानती थी और वो मेरे पास आकर बोली....
"बाई जी! कोई साहब आएँ हैं और आपको पूछ रहे हैं",
"अपना नाम क्या बताया उन्होंने",मैंने नौकरानी से पूछा....
"जी! उनका नाम तो मैंने पूछा ही नहीं",नौकरानी बोली....
"ठीक है ,कोई बात नहीं,उनसे कहो कि मैं कुछ देर में आती हूँ",मैंने नौकरानी से कहा....
उस समय गुलबदन खालाज़ान भी बाहर गईं थीं,फिर मैं बच्ची को गोद में लेकर बैठक में पहुँची,देखा तो मधुसुदन त्रिपाठी आएँ थे और उन्होंने जैसे ही बच्ची को मेरी गोद में देखा तो पूछा....
"किसका बच्चा है ये?"
"जी ! मेरी बच्ची है ये",मैंने कहा....
"अब किससे दिल लगा बैठीं आप? किसकी मौहब्बत का नतीजा है ये"वे गुस्से से बोले.....
पहले तो मैं उनकी बात सुनकर मुस्कुराई क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि उनकी गलतफहमी दूर हो,अगर मैं उनकी गलतफहमी दूर कर देती तो जो मैंने उनकी पत्नी स्नेहलता से वादा किया था वो टूट जाता,इसलिए मैंने भी उनका जी जलाने के लिए कह दिया....
"हाँ! मिल गया था कोई और आपसे भी अच्छा,आप तो जानते हैं ना हम तवायफ़ो का मिज़ाज,कभी ये तो कभी वो,हम किसी एक के होकर ही थोड़े रहते हैं,हैं कोई लखनऊ के नवाब,आजकल मैं उनसे दिल लगा बैठी हूँ और ये बच्ची भी उन्हीं की है" मैंने उनसे कहा....
"ओह....तो तभी इतने महीनों से गायब थीं आप",त्रिपाठी जी बोले....
"आप यहाँ आएँ थे क्या इससे पहले?",मैंने पूछा....
"हाँ! आया था,लेकिन आप नदारद थीं,गुलबदन बाई ने कहा कि आप किसी के साथ कहीं गईं हैं" त्रिपाठी जी बोले....
"सही फरमाया था उन्होंने",मैंने कहा....
"बेवफा औरत! और जो मेरे साथ किया था,वो क्या था"त्रिपाठी जी गुस्से से चीखे....
"वो भी मौहब्बत थी लेकिन झूठी",मैंने कहा....
"जरा भी शर्म नहीं आई आपको ऐसा करते हुए"त्रिपाठी जी बोले....
"नहीं! यही तो मेरा काम है",मैंने मुस्कुराते हुए कहा....
"आज के बाद कभी भी मेरे सामने मत आना"
और इतना कहकर वो वहाँ से चले गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....