फिर ऐसे ही कुछ रोज बीते लेकिन वें मेरा मुजरा देखने नहीं आए और ना ही उनके दोस्त मोहन लाल पन्त मेरा मुजरा देखने आएँ,उनके दोस्त ही आ जाते तो मैं उनसे उनकी खैरियत पूछ लेती और जब वे नहीं आए तो मैं एक शाम उनके कमरे फिर से पहुँची और अपने कमरें में मुझे देखकर वो बिफर पड़े फिर मुझसे बोले...
"आप यहाँ फिर से आ गईं,भगवान के लिए यहाँ से चली जाइए",
"लेकिन क्यों"?,मैंने पूछा...
तो वे मुझसे बोले....
"लोग आपके और मेरे बारें में कहीं गलत ना सोचने लगे,इसलिए मैं नहीं चाहता कि आप मुझसे मिलें"
"लेकिन मैं आपसे कुछ कहना चाहती थी",मैंने कहा...
"ठीक है तो आप मुझे कल शाम पुरानी हवेली के तालाब किनारे मिलिएगा,लेकिन कृपा करके अभी आप यहाँ से जाइए", उन्होंने कहा....
और फिर उनके कहने पर मैं उस शाम वहाँ से चली आई,लेकिन दूसरे दिन शाम को जब मैं उनसे तालाब के किनारे मिली तो वे मुझसे बोले.....
"आप मुझसे इतनी नजदीकियांँ क्यों बढ़ा रहीं हैं"?
तब मैंने उनसे कहा.....
"क्योंकि मैं आपको चाहने लगी हूँ,ये एक तवायफ़ के मुँह से कहना अच्छा तो नहीं लगता क्योंकि मेरे चाहने वालों की कोई कमी नहीं है,लेकिन मुझे आप अच्छे लगने लगे हैं,आपने कभी मुझे उस नज़र से नहीं देखा जैसा कि और मर्द देखते हैं और एक औरत यही चाहती है कि कोई मर्द उसे बेशक ना चाहे लेकिन उसे इज्जत की नज़र से देखें,मैं आपसे अपने प्यार के बदले में आपका प्यार नहीं माँगती,लेकिन आप खुद को चाहने के लिए मुझे नहीं रोक सकते,क्योंकि ये मेरे काबू में नहीं है,मैं आपसे बेइन्तहा मौहब्बत करने लगी हूँ"
तब वे बोले....
"आपको क्या लगता है कि आप ही मुझे चाहतीं हैं,सच तो ये है कि मैं भी आपको चाहने लगा हूँ,लेकिन मैं आपको अपना नहीं सकता",
"हाँ! मुझे मालूम है कि आप मुझे नहीं अपना सकते,क्योंकि इस जमाने को ये मंजूर नहीं होगा कि आप एक तवायफ़ को अपनाएँ",मैंने कहा....
"नहीं! ऐसी बात नहीं है,मैं आपको इसलिए नहीं अपना सकता क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ,मेरी शादी तो बचपन में ही हो गई थी,लेकिन गौना अभी दो साल पहले ही हुआ है",वे बोले....
"इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप शादीशुदा हैं,मैं तो बस इस बात से ही खुश हो गई हूँ कि आपके दिल में मेरे लिए मौहब्बत है,मैं आपकी गृहस्थी को कभी तोड़ना नहीं चाहूँगीं",मैंने कहा....
"इसलिए तो मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे कमरें में मुझसे मिलने आओ",वे बोले....
"जी! अब से कभी भी वहाँ नहीं आऊँगी,लेकिन फिर हम मिलेगें कहाँ",मैंने कहा....
"जब भी मेरा जी चाहेगा तो मैं तुम्हारे पास आ जाया करूँगा",वे बोले.....
और इसी तरह हमारे बीच बातें मुलाकातें बढ़ने लगी और इस बात की भनक जमाने को लगते देर ना लगी और ये बात उनके गाँव तक भी पहुँच गई,उस समय उनकी पत्नी एक बच्चे की माँ बन चुकी थीं,फिर एक दिन दोपहर के समय एक शरीफ़ महिला घूँघट ओढ़कर मेरे कोठे पर आई और उन्होंने मुझसे मिलने की गुजारिश की,तब मैंने उन्हें मिलने के लिए अपने कमरे में ही बुलवा लिया,वे मेरे कमरे में आईं तो मैंने उनसे उनका घूँघट हटाने को कहा,घूँघट हटाते ही मैं उनका रुप देखकर भौचक्की रह गई क्योंकि वे बेहद ही खूबसूरत थी,माँग भरकर सिन्दूर,माथे पर सिन्दूर की बड़ी सी टिकुली,कानों में सोने के झुमके,गले में मंगलसूत्र और कलाइयों में भर भरके लाल चूड़ियाँ,मैंने पहली बार किसी सुहागन स्त्री को इतने करीब से देखा था, उन्होंने घूँघट उठाया तो मैंने उनसे पूछा....
"जी! कहिए! क्या बात है"?
तब वे बोलीं....
"जी! मैँ आपसे विनती करने आई हूँ,कृपा करके आप मेरा जीवन बर्बाद मत कीजिए,मेरा छोटा सा बच्चा है,मैं उसे लेकर कहाँ जाऊँगी,मेरा उनके सिवाय और कोई सहारा नहीं है,मैं इतने दिनों से सब सुन रही थी,लेकिन अब मुझसे रहा ना गया और मैं यहाँ आपसे मिलने चली आई,भगवान के लिए मेरा सुहाग मुझसे मत छीनिए,"
उनकी बात सुनकर मैं एक बार को सन्न रह गई और मैंने उनसे पूछा....
"कहीं आप त्रिपाठी जी की पत्नी तो नहीं"
"जी! मैं वही अभागन हूँ"वें बोलीं....
"तो आप मुझसे क्या चाहतीं हैं?",मैंने पूछा....
"मैं ये चाहती हूँ कि मेरे पति मेरे पास ही रहें,आपके पास ना आएँ",वे बोलीं...
"आप जाइए! आज के बाद वें मेरे पास नहीं आऐगें",मैंने कहा....
"मैं आपका ये एहसान कभी नहीं भूलूँगी",वें बोलीं...
"लेकिन मैं भी आपसे कुछ कहना चाहती हूँ",मैंने कहा....
"जी! कहिए!"वे बोलीं....
"मैं उनके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ,तो अब मेरे बच्चे का क्या होगा"?मैंने कहा....
"एक बात कहूँ,आप बुरा तो नहीं मानेगीं",वे बोलीं....
"जी!कहिए!",मैंने कहा....
"आप भले ही मेरे पति से प्रेम करतीं हैं लेकिन आपकी शादी नहीं हुई है उनसे,इसलिए दुनियावाले आपके बच्चे को कभी स्वीकार नहीं करेगें और आप ये कभी नहीं चाहेगीं कि आपके बच्चे को कोई नाजायज़ कहकर पुकारे", वे बोलीं....
"तो इसका क्या उपाय है क्योंकि मैं इस बच्चे को रखना चाहती हूँ,ये मेरे प्रेम की निशानी है",मैंने कहा...
तब वे बोली....
"इसका बस एक ही उपाय है,आप इसे जन्म देकर मुझे दे दीजिए,मैं इसे पाल लूँगी,इस दौरान आप और मैं मेरे मायके चलेगें,यहाँ मैं भी सबसे कह दूगीं कि मैं दोबारा माँ बनने वाली हूँ और जब बच्चा पैदा हो जाएगा तो मैं इसे अपने साथ लेकर मायके से ससुराल आ जाऊँगी,इस तरह से किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा और उस मासूम सी जान की जिन्दगी सँवर जाएगी",
"और मेरे वापस आने पर त्रिपाठी जी ने मुझसे फिर से मिलने की कोशिश की तो",मैंने पूछा...
"तो आप कह दीजिएगा कि आप उन्हें पसंद नहीं करतीं,आपको कोई और मिल गया है",वे बोलीं....
"तो क्या मैं उनको इस बच्चे के बारें में भी कुछ ना बताऊँ,क्योंकि तीन महीने होने को आएँ हैं वें यहाँ आएँ ही नहीं,इसलिए इस बच्चे के बारें में उन्हें कुछ नहीं मालूम",मैंने कहा....
"हाँ! उनके पिता ने उनको गाँव में ही रोककर रखा है क्योंकि उनके पिता जी बहुत बीमार हैं"वें बोलीं....
"तो मुझे आपके साथ आपके मायके कब चलना होगा",मैंने पूछा....
"मैं दो चार दिन में आपको लेने आऊँगीं",
और ये कहकर वो जाने लगी तो मैंने उनसे कहा....
"अरे!आपने अपना नाम तो बताया ही नहीं",
" जी! मेरा नाम स्नेहलता है",वे बोलीं....
और फिर वें चलीं गईं,वे दो चार दिन बाद तो मुझे लेने नहीं आई लेकिन करीब पन्द्रह दिन बाद वें मुझे लेने आईं,उन्होंने बताया कि उनके ससुर जी नहीं रहे इसलिए उन्हें आने में देर हो गई और फिर मैं अपना दिमाग लगाए बिना बच्चे को जन्म देने के लिए उनके साथ उनके मायके चली गई.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....