Sathiya - 26 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 26

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साथिया - 26

साँझ को जब एहसास हुआ कि अक्षत उसके साथ चल रहा है तो यह एहसास उसे एक अलग ही खुशी दे गया। उसने अक्षत की तरफ देखा। बस एक नजर देख कर फिर सामने देखने लगी पर उसके चेहरे पर आई हल्की सी मुस्कान ने उसके दिल का हाल बखूबी बयां कर दिया।

" डर था मन में कि कहीं तुम मुझे गलत ना समझने लगो और नाराज ना हो जाओ। पर तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि शायद तुम्हें मेरा आना अच्छा लगा और लगेगा भी क्यों नहीं ईशान और शालू तो एक दूजे के साथ इंगेज हो गए। ऐसे में तुम अकेलापन महसूस कर रही होगी। अब मैं साथ हूं तो शायद त तुम्हे बैटर लगे।' अक्षत ने मन ही मन कहा और धीमे-धीमे सांझ के साथ चलने लगा। दोनों ही के लब खामोश थे पर दोनों की धड़कनों का शोर जोरों पर था।

थोड़ी देर में वो लोग एक बड़े से रेस्टोरेंट में बैठ गए।

सांझ के लिए यह सब एकदम नया अनुभव था। हालांकि दिल्ली आएं उसे काफी समय हो गया था पर फिर भी वह इस तरीके से घूमने नहीं आई थी। उसका एक ही काम था पढ़ाई पढ़ाई और सिर्फ पढाई।
हॉस्टल से कॉलेज का रास्ता और कॉलेज से वापस हॉस्टल का रास्ता यही बस उसका उसकी दुनिया थी। वो बस एक दो बार शालू के घर गई थी उसके साथ और उसके मम्मी पापा से भी मिली थी। इसके अलावा वो कहीं नहीं गई थी। इस तरीके से इतने बड़े रेस्टोरेंट में लंच तो उसने आज पहली बार ही किया था।

उसे खुशी के साथ-साथ डर भी लग रहा था कि कहीं अगर यह बात उसके गांव और खासकर उसके चाचा चाची तक पहुंच गई तो कहीं प्रॉब्लम क्रिएट जाए क्योंकि जिस तरीके की मानसिकता उसके गांव वाले खासकर उसका परिवार और अवतार सिंह रखते हैं। सांझ को पूरा विश्वास था कि वह जरूर इस बात के लिए उसे गलत ही कहेंगे। इसीलिए बार-बार उसके चेहरे पर बेचैनी और घबराहट आ रही थी।

"इतना टेंशन में क्यों है? रिलैक्स कर न!" शालू बोली तो सांझ ने खुद को नार्मल किया पर डर घबराहट और बैचेनी उसके चेहरे पर साफ थी।

अक्षत इस बात को बखूबी समझ गया।

" सॉरी सांझ आज मेरे कारण तुम इतना परेशान हो। डर रही हा और शायद कम्फर्टेबल नहीं हो ।। अब दौबारा तुम्हे इस तरह की सिचुएशन में नही डालूँगा। वादा करता हूँ।" अक्षत ने मन ही मन खुद से वादा लिया और फिर चारों ने लांच किया।

इस दौरान अक्षत की नजर बार-बार सांझ के भोले और मासूम चेहरे पर जाती और वापस से वो अपनी नजर झुका लेता पर न चाहते हुए भी नजर उसके उस प्यारे से चेहरे पर रुक जाती थी। ।

सांझ भी इस बात को महसूस कर रही थी कि अक्षत शायद उसे देख रहा है पर जब भी वह नजर उठाकर देखती अक्षत को दूसरी तरफ या फिर टेबल की तरफ देखते पाती तो उसने इसे अपने मन को भ्रम समझ लिया।

लंच के बाद चारों लोग वहीं पर कुछ देर तक घूमते रहे।

'अच्छा शालू अब चलते हैं ना। मैंने कहा ना मेरी दीदी आने वाली हैं फिर मुझे कल गांव भी जाना है।" सांझ ने कहा।

'अच्छा ठीक है चलो।" शालू बोली और उसने ईशान और अक्षत को बाय बोला और सांझ के साथ स्कूटी लेकर निकलने लगी।

जाते-जाते सांझ ने पलटकर अक्षत और ईशान की तरफ देखा तो पाया कि अक्षत की नजर उसी की तरह थी।

सांझ के दिल की धड़कन फिर से बढ़ गई और उसने अपनी नजरें झुका ली।
सांझ और शालू हॉस्टल निकल गई।

शालू ने सांझ को हॉस्टल छोड़ा और फिर अपने घर निकल गई सांझ भी अपनी पैकिंग में लग गई क्योंकि थोड़ी देर में नेहा वहां पहुंचने वाली थी।

इक्षर और ईशान भी घर पहुंचे।

" तो कैसा रही आपकी डेट?" ईशान ने कहा।

"मेरी डेट? " अक्षत ने आंखें छोटी करके कहा।

" अब आप जब तक प्यार का इजहार नहीं करोगे तब तक आपको ऐसे ही डेट इंजॉय करनी पड़ेगी। सिर्फ आंखों को ठंडक देनी पड़ेगी उनके चेहरे को देखकर ..! बाकी आप ना ही तो बात कर सकते हो ना ही कुछ और।" ईशान ने कहा।

" मुझे अभी बात करनी भी नहीं है और ना ही कुछ और..!समझा...!! मेरे लिए अभी इतना ही काफी है कि वह मेरी आंखों के सामने रहे खुश रहे और मैं बस उसे देखकर वापस आ जाऊं। मेरे अपने खुद के कुछ सिद्धांत है, कुछ नियम है और अब जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता मैं उसे अपने दिल की बात नहीं कहूंगा।" अक्षत बोला।

"पर भाई मैं सोच रहा हूं कहीं ऐसा ना हो कि इतना सब होते होते देर हो जाए।" ईशान ने कहा।

"और देर भला क्यों होगी? वह भी तो अभी पढ़ाई कर रही है अभी फर्स्ट ईयर है उसकी। पढ़ाई करेगी उसके बाद ही तो यहां से जाएगी और इन सालों में मुझे विश्वास है कि मैं जज बन जाऊंगा। मैं एग्जाम क्लियर कर लूंगा उसके बाद उससे अपने दिल की बात करूंगा। सोच रखा है मैंने ट्रेनिंग पर जाने से पहले उससे अपने प्यार का इजहार करके जाऊंगा और वहां से लौटने के बाद शादी।" अक्षत ने कहा।

" भगवान करे जैसा तुमने सोचा है वैसा ही हो।" ईशान ने कहा का और फिर अपने कमरे में चला गया।

अक्षत ने भी कपड़े चेंज किए और बिस्तर पर गिर गया।
सांझ के साथ बिताया एक एक लम्हा उसकी आंखों के आगे घूम रहा था।

"जानता हूं तुम इस तरीके के माहौल की आदी नहीं हो और शायद आज अचानक से मेरे साथ कंफर्टेबल भी नहीं थी पर जो भी हो मुझे बहुत अच्छा लगा। पर मैं तुम्हें किसी भी प्रॉब्लम में नहीं डालूंगा , और अगर तुम कंफर्टेबल नहीं हो तो आगे से ऐसी परिस्थिति भी तुम्हारे सामने नहीं आएगी। कोई बात नहीं कुछ सालों का इंतजार सही। एक बार मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं और तुम्हारी स्टडी पूरी हो जाए फिर हक से तुम्हें अपने दिल की बात बताऊंगा और हक से तुम्हारा हाथ थाम कर इसी सीपी मे घुमाउंगा और तुम्हें तो तब कोई प्रॉब्लम नहीं होगी और न तुम अनकंफरटेबल होगी।

सांझ भी अपने हॉस्टल के रूम में सामान पैक कर रही थी पर ध्यान बार-बार अक्षत के साथ बीते लम्हों पर जा रहा था। अक्षत का मनमोहक चेहरा और उसकी गहरी मुस्कुराहट सांझ के चेहरे पर मुस्कुराहट ला रही थी।

"आप अलग हो सबसे अलग...! एकदम हटकर और आपकी यही सब अच्छाइयां मेरा आपके लिए और भी ज्यादा आकर्षण बढ़ा जाती हैं। अब ये अभी आकर्षण है या प्यार मुझे नहीं पता पर जो भी हो आपका साथ सुकून देता है। कुछ तो बात है कि आपके साथ में एकदम निडर हो जाती हूं। किसी बात का भय नहीं रहता मुझे।" सांझ खुद से बोली और बैग जमाती गई।

"और आप हर बात का कितना ख्याल रखते हो...! जब ईशान और शालू आगे निकल गए और मैं पीछे अकेली रह गई तो आपने खुद ब खुद अपने कदम धीमे कर लिए। अब यह महज इत्तेफाक था या आपने जानकर ऐसा किया ताकि मैं अकेली ना रहूँ मुझे नहीं पता पर जो भी हो मुझे बहुत अच्छा लगा।

हालांकि मैं ऐसे माहौल की और इस तरीके से घूमने फिरने की आदी नहीं हूँ और कोशिश करूंगी कि यह दोबारा ना हो। पर फिर भी आज का आपके साथ बिताया एक एक लम्हा मेरे लिए खास है बेहद खास।" सांझ ने खुद से ही कहा और फिर अपना बैग पैक कर के एक तरफ लगा दिया।

घड़ी की तरफ देखा जो कि छः बजा रही थी।

"बस दीदी थोड़ी देर में आती ही होंगी। " सांझ ने मन ही मन कहा और बिस्तर पर जा गिरी।

उधर नेहा और आनंद दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे।

"अच्छा बताओ तुम को हॉस्टल तक छोड़ दूं या निकल जाओगी यहां से? " आनंद ने पूछा।

"डोंट वरी तुमने यहां तक साथ दिया इतना काफी है ...! मैं यहां से मैनेज कर लुंगी। " नेहा ने कहा।

"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है..! तुम अगर चाहो तो मैं आगे भी साथ दे सकता हूं।" आनंद ने कहा तो नेहा ने गहरी आंखों से उसे देखा और अगले ही पल मुस्कुरा उठी।

"बिल्कुल तुम्हारा साथ मुझे पसंद आया और अब देखते हैं यह सब कितना आगे तक जाता है!" नेहा ने कहा और आगे बढ़कर ऑटो लेकर वहां से निकल गई।

उसकी बात का मतलब समझते हुए आनंद के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने भी ऑटो लिया और अपने घर की तरफ चल दिया।

*****

उधर नियति कॉलेज से निकली और बस स्टॉप पर आकर बस का इंतजार करने लगी कि तभी देखा सार्थक पहले से ही वहां खड़ा है।

सार्थक को देख नियति के चेहरे पर बेचैनी आ गई। जैसे ही बस आई नियति बस में चढ़ गई और उसी के ठीक पीछे पीछे सार्थक और नियति की सीट पर ही आकर बैठ गया।

नियति ने उसे पूरी तरीके से इग्नोर किया और विंडो की तरफ देखने लगी।

कुछ ही देर में बस एक जगह रुकी और इससे पहले कि नियति कुछ समझ पाती सार्थक ने उसकी हथेली पर एक कागज रखा और मुट्ठी बंद करके तुरंत बस से उतर गया ।

नियति हैरान-परेशान सी कभी कभी अपने हाथ में बंद उस कागज को देखती तो कभी जाते हुए सार्थक को जो कि बिना उसकी तरफ देखे हुए अपने रास्ते आगे बढ़ गया था और उसी के साथ नियति की बस भी आगे बढ़ गई।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव