Sathiya - 21 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 21

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साथिया - 21

"कहा था ना मैने प्रेक्टिस कर लेंगे तो हमारा डांस अच्छा ही जाएगा।" शालू ने इशान के कंधे पर हाथ रख कर कहा।

"यह डांस इसलिए अच्छा नहीं गया कि हमने प्रेक्टिस कर ली थीं बल्कि इसलिए अच्छा हुआ क्योंकि हमने इसे फील किया था।" इशान ने उसकी आँखों में देख कुछ अलग जज्बात के साथ बोला तो शालू ने एक नजर उसे देखा और फिर नजर झुका कर वहां से जाने लगी पर अगले ही पल इशान ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"क्या हुआ कहां चल दी?" ईशान ने उसे अपने करीब करते हुए कहा।

"कुछ नहीं बस शाम हो गई है प्रोग्राम भी खत्म हो गया है तो फिर घर निकलती हूं! " शालू बोली।

"नहीं वो नही तुमने जबाब नही दिया तुम्हें क्या लगता है कि हमारा डांस सिर्फ इसलिए अच्छा गया कि हमने प्रैक्टिस अच्छे से की थी या इसलिए अच्छा हुआ कि हमने इस डांस को फील किया था? " ईशान ने कहा तो शालू ने उसकी आंखों में देखा और पलके झुका ली।

"पता नहीं मुझे जैसा तुम्हें सही लगे वैसा ही होगा..! चलो घर चलते हैं बहुत देर हो गई है। शाम होने होने वाली है।" शालू बोली और फिर से जाने लगी।

"तुम्हें टेंशन लेने की जरूरत नहीं है स्कूटी यही छोड़ दो आज मैं ड्रॉप कर दूंगा। " ईशान बोला।

वह समझ गया था कि शालू अभी इस बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहती तो उसने भी बात को नहीं बढ़ाया।

"पर तुम तो केवल ..?" कहते-कहते शालू रुक गई।

"मतलब उस दिन तो मेरी गाड़ी खराब हो गई थी इसलिए तुमने मुझे लिफ्ट दी बाकी तुम तो केवल..!" शालू ने कहा।

"हां मैं अपनी बाइक पर केवल अपनी मम्मी को बिठाता हूं। उसके बाद अपनी गर्लफ्रेंड को बिठाऊंगा और फिर बाद में अपनी बीवी को ...! पर तुम इन सब से अलग हो..! समझ रही हो ना ?" ईशान बोला।

" क्यों? " शालू बोली।

' इसका जबाब जल्दी दुंगा।" ईशान ने कहा तो शालू फिर कुछ भी कहने की हालत में नहीं रही।

"जब वक्त आएगा तब तुम्हें बता दूंगा कि तुम मेरे लिए क्या हो पर अभी मेरी बाइक पर बैठने का अधिकार तुम्हें मिल चुका है और यह अधिकार हर किसी को नहीं मिलता इसलिए बिना नखरे किए चुपचाप मेरे साथ चलना...! वैसे भी इतनी शाम को तो मैं अकेले नहीं जाने दूंगा। " ईशान ने धीमे से गर्दन झुका कर उसके कान के पास कहा तो शालू के चेहरे पर खूबसूरत सी मुस्कुराहट आ गई और उसके दिल की धड़कन एकदम से तेज हो गई।

शालू ने उसकी तरफ देखा।

"ठीक है 15 मिनट बाद आता हूं जरा अपने दोस्तों से मिलकर...!" ईशान बोला और फिर अपने दोस्तों की तरफ चला गया।

तभी सांझ आकर शालू के पास खड़ी हो गई ।

"क्या बातचीत हो रही थी ? आजकल देख रही हूं मैं कुछ ज्यादा ही बातचीत हो रही है तेरी इस लड़के से ?" सांझ बोली।

"यह लड़का कोई ऐसा वैसा लड़का नहीं है समझी ..! आपके चतुर्वेदी जी का छोटा भाई है। अक्षत चतुर्वेदी का छोटा भाई है मेरे पापा के बिजनेस पार्टनर अरविंद चतुर्वेदी का बेटा।

अक्षत और ईशान अरविंद जी के बेटे है और पापा भी इसे बहुत अच्छे से जानते हैं इसलिए ऐसी कोई टेंशन की बात नहीं है ।" शालू ने कहा।

"सिर्फ पापा जानते हैं या उनकी बेटी भी जानती है या शायद जानने की कोशिश कर रही हैं? " सांझ ने आंखें मटका कर कहा तो शालू के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

"अरे सच कहूँ ना तो तुझसे कुछ भी नहीं छिपाती मैं । कुछ कुछ तो है मेरे दिल में ईशान के लिए...! कुछ अलग सी फीलिंग..! उसका साथ सुकून देता है उसकी कंपनी मुझे पसंद है कुल मिलाकर कहना चाहिए कि लड़का अच्छा है और मुझे पसंद भी है।"

" सिर्फ पसंद है या प्यार करती है उसे?" सांझ ने आंखें गोल करके कहा।

"यही समझ लो...!;मुझे ऐसा लगता है कि मुझे प्यार हो गया है...! उसके बात करने का तरीका , उसकी पर्सनालिटी ,उसका नेचर उसका करेक्टर ..! सब कुछ पसंद आता है मुझे। बस इंतजार कर रही हूं कि कब वह मुझे अपने दिल की बात कहे।" शालू बोली।

" एक बात कहना चाहूंगी शालू क्या तुम्हें लगता है कि वह भी तुम्हें प्यार करता है? मेरा मतलब है कि एक तरफा प्यार कई बार तकलीफ दे देता है। प्यार का एहसास दोनों तरफ से होना चाहिए तभी रिश्ता मुकम्मल होता है।" सांझ बोली।

"दिखता है उसकी आंखों में कि वह मुझे पसंद करता है, शायद मुझे प्यार करता है। और उसकी हरकतों से और उसकी हर एक्टिविटी से ऐसा लगता है उसके लिए मैं खास हूं। बाकी मैं तो उस दिन का इंतजार कर रही हूं जब वह अपने दिल के एहसास मुझे कहेगा और तब मैं भी अपने दिल की बात उसे बताऊंगी और मैं चाहती हूं कि वह दिन जल्दी से जल्दी आए।" शालू बोली।

" मै भी चाहूंगी कि वह दिन जल्दी आए और तुम दोनों का प्यार पूरा हो ....! बाकी अगर तुम्हारे पापा के परिचित हैं तो तुम्हारे घर से रिश्ते के लिए तो कोई प्रॉब्लम होगी ही नहीं।" सांझ बोली।

"अरे बिल्कुल नहीं होगी ..! इन्फैक्ट् पापा की तरफ से तो पूरी परमिशन है। पापा ने खुद ही कहा है कि मैं उससे मिलूं, जानू समझूँ इसका मतलब समझती है क्या है?" शालू बोली तो सांझ ने उसकी तरफ देखा।

"अरे वही जो होता है। वैसे भी बिजनेसमैन के बच्चों के बीच में शादियां कॉमन है। उसमें अगर बच्चे एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो फिर तो मां-बाप की टेंशन खत्म हो जाती है। पापा ईशान और को अच्छे से जानते हैं । ईशान अपने पापा के साथ अक्सर उनसे मिलता रहता है और फिर मुझे भी अच्छा लगता है तो मुझे नहीं लगता कि पापा की तरफ से कोई भी प्रॉब्लम होगी बाकी आगे जो होगा देखा जाएगा पर आई रियली लाइक हिम..!"' शालू बोली।


"आएम वेरी हैप्पी फॉर यू...! बस तुम ऐसे ही हमेशा खुश रहो और तुम्हें जिंदगी में सब कुछ हासिल हो यही मैं चाहती हूं।" सांझ ने मुस्कुरा कर कहा।

"और सिर्फ मुझे नहीं तुझे भी सब कुछ हासिल होगा...! तू देखना एक दिन तेरा अक्षत चतुर्वेदी तुझे प्यार जरूर करने लगेगा ।" शालू बोली।

"क्यों फिर से फालतू की बातें करने लगी? मैंने कहा ना ऐसा कुछ भी नहीं है और मेरे दिल में भी उनके लिए कुछ भी नहीं है...! और फिर वह मेरे बारे में क्या सोचने लगे ? पूरा कॉलेज जानता है उनके और मानसी के बारे में।" सांझ बोली।

"और मैं भी तुम्हें कितनी बार बोल चुकी हूं कि ऐसा कुछ भी नहीं है । मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगता। हर रिश्ते को गलत नजरिए से देखना सही नहीं है। तू देखना एक दिन ऐसा आएगा जब तुझे मेरी बात पर विश्वास होगा और अक्षत भी तुझे टूट कर चाहेगा। तुम दोनों के दिल के एहसास भी एक दिन जरूर जुड़ेंगे।" शालू बोली।

"चल छोड़ यह सब । मैं तुझे इसीलिए तो कह रही हूं कि एक एक तरफा प्यार के चक्कर में कभी मत पड़ना यह सिर्फ और सिर्फ तकलीफ देता है और कुछ भी नहीं।" सांझ बोली।

"अच्छा चल अब मैं निकलती हूं..!" तभी शालू का ध्यान ईशान पर गया जो कि अपनी बाइक पर बैठे उसको आने का इशारा कर रहा था।

"क्या तुम आज उसके साथ जा रही हो? " सांझ ने पूछा।

'हां रात हो गई है तो उसने कहा कि अकेले नहीं जाने देगा वह... वह मुझे घर छोड़ देगा।" शालू बोली।

"ठीक है तो फिर मैं भी हॉस्टल से निकलती हूं, शाम हो रही है..!" सांझ बोली और फिर वह अपने हॉस्टल निकल गई।

शालू ईशान के पास आई और उसकी बाइक पर बैठ गई।

"चलें..!" ईशान ने कहा।

"हां!" शालू बोली तो ईशान ने बाइक घर की तरफ मोड़ दी।

मनु भी अपने दोस्तों के साथ घर निकल गई पर उसका मन आज बिल्कुल ठीक नहीं था।

जब से उसने रिया और नील को इस तरीके से देखा था, ना चाहते हुए भी बार-बार उसकी आंखें भर आ रही थी और उसे तकलीफ हो रही थी। मैं क्यों बार-बार उसके बारे में सोच रही हूँ मुझे उसके बारे में नहीं सोचना है, और अब मैं कभी उसके सामने नहीं जाऊंगी। कोशिश करूंगी कि हमारा आमना सामना न हो। जिस बात का कोई मतलब ही नहीं उसे सोचने से क्या फायदा ? मजाक बन जाएगा मेरा।" मनु ने खुद को मजबूत किया और फिर अपने दोस्तों के साथ बातचीत में लग गई।

नील को उसने अपने दिल से पूरी तरीके से निकालने का सोच लिया था।

सांझ हॉस्टल आई और बिस्तर पर जा गिरी।

थकान हो रही थी उसे और आंखों के आगे अक्षत का चेहरा घूम गया। जिस समय वह डांस कर रही थी तब उसकी नजर एक बार को अक्षत की आंखों से मिली थी। उन आंखों में कुछ अलग सा ही था। अक्षत की आंखें मैं एक अलग ही खुशी की चमक थी।

"पता नहीं यह सब मेरी गलतफहमी है या मेरे मन का भ्रम...! क्यों कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे उनकी नजरें भी मुझे ढूंढती हैं..! पर मैं ऐसा कभी सोच भी नहीं सकतीं। कहाँ वह और कहां मैं। मुझे सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई के बारे में सोचना है और अगर चाचा जी को पता चल गया तो एक तो मेरी जान ले लेंगे। दूसरा जो मैंने सपना देखा है अपने पैरों पर खड़ा होने का वह भी कभी पूरा नहीं हो पाएगा।" सांझ खुद से बोली और उसने अपना सिर झटक लिया तो उसके बाद उठकर कपड़े लेकर वॉशरूम में चली गई।

शॉवर लेने ने थकान कुछ कम हो गई।


अक्षत अपने घर आया और अपने कमरे में आकर बिस्तर पर गिर गया।

कुछ देर आंखें बंद किए लेटा रहा फिर बाथरूम में जाकर खड़ा हो गया।

शर्ट उतारकर पीछे फेंक दी और शॉवर ऑन करके उसके नीचे खड़ा होकर आंखें बंद कर ली।

आंखों के आगे सांझ का डांस आने लगा और अक्षत के चेहरे पर एक खूबसूरत सी मुस्कुराहट।

"कैसा एहसास का रिश्ता तुमसे यह जुड़ गया है...? ना तुमसे कुछ कह पाता हूं ना ही तुम समझ पाती हो मेरी आँखों की भाषा। मैं नही बोलता पर मेरी आँखे तो हरपल बोलती है। कभी तो समझ समझ जाओ मेरी आंखों की खामोशियों को...! कभी तो समझ जाओ मेरे दिल की गहराइयों को...! न जाने कब कैसे तुम इस दिल में इस कदर उतर गई हो कि अब तो किसी और के साथ रिश्ता दिल का नहीं जोड़ पाऊंगा। थोड़ा सा समय चाहता हूं मैं बस थोड़ा सा समय...! एक बार मैं जज बन जाऊंगा उसके बाद बहुत खूबसूरती और बहुत प्यार से तुमसे अपने दिल की बात कहूंगा।" अक्षत खुद से बोला और मुस्करा उठा।

अक्षत की आँखों के आगे सांझ की वो खूबसूरत आँखे आ गई।

"ना जाने क्यों तुम्हारी आंखों को देखकर ऐसा लगता है जैसे तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए एहसास है और इसी भरोसे मैं कुछ दिनों का समय ले रहा हूं, जानता हूं कि तुम मुझे ना नहीं करोगी। एक बार मेरा जज बनने का सपना पूरा हो जाए और मैं खुद के पैरो पर खड़ा हो जाऊँ उसके बाद तुम्हारे सारे सपने पूरे करने की जिम्मेदारी मेरी। तुम्हें इतना खुश रखूंगा जितना तुमने सोचा नहीं होगा । इतना प्यार करुंगा जितना कभी किसी ने किसी को ना किया होगा क्योंकि तुम्हें बहुत चाहता हूं मैं सांझ बहुत ज्यादा चाहने लगा हूं तुम्हें।
कभी नहीं सोचा था कि पहली नजर में ही मुझे प्यार हो जाएगा। तुम्हारी सांवली सलोनी सूरत दिल में इस कदर बस गई है कि बस यह दिल सिर्फ तुम्हारे एहसास महसूस करना चाहता है। तुम्हें महसूस करना चाहता है!" अक्षत ने खुद से ही कहा और फिर थोड़ी देर बाद बाहर आ गया और फिर रेडी होकर नीचे चला गया जहां साधना अरविंद और बाकी सब डिनर के लिए उसका इंतजार कर रहे थे।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव