Galatee - The Mistake - 51 in Hindi Detective stories by prashant sharma ashk books and stories PDF | गलती : द मिस्टेक  भाग 51

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गलती : द मिस्टेक  भाग 51

दीवार... अब उस दीवार का भी कोई राज है क्या सर ? परमार ने कहा।

वहीं तो पता करना है परमार। आखिर उस दीवार में ऐसा क्या था कि सुभाष उसे बार-बार इतने गौर से देख रहा था। उस दीवार में कुछ तो है, जो सुभाष को बार-बार देखने को मजबूर कर रहा था। भौमिक ने कहा।

वो भी पता चल ही जाएगा सर। पर फिलहाल इस केस का क्या करना है सर। कातिल का तो कोई सुराग ही नहीं मिल रहा है। परमार ने कहा।

वो भी मिल जाएगा परमार। फिलहाल मेरे दिमाग में सुभाष की वो नजरें और हवेली की वो दीवार चल रही है। आखिर उस दीवार में है क्या। भौमिक ने सोचते हुए कहा।

क्या सर आप तो उस दीवार के पीछे पड़ गया है, क्या आपको लग रहा है कि उस दीवार के पीछे कुछ है। परमार ने कहा।

पुरानी हवेली है परमार। होने को कुछ भी हो सकता है। शाह भी तो लंदन जाकर बस गया है। हो सकता है दीवार के पीछे कोई राज हो। भौमिक ने कहा।

मुझे नहीं लगता कि वहां कुछ होगा। परमार ने कहा।

खैर छोड़ों मैं निकल रहा हूं। अगर तुम्हें कोई काम है तो निपटा लो वरना तुम भी घर जा सकते हो। भौमिक ने कहा और वह अपने केबिन से बाहर निकल गया।

परमार ने भी ओके कहा और कुछ काम निपटाने के बाद वो भी अपने घर के लिए निकल गया।

भौमिक अपने ऑफिस से निकलने के बाद अपने घर नहीं गया था। वो सीधे हवेली पर पहुंच गया था। हवेली में पहुंचने के बाद वो उस दीवार को बड़े गौर से देखने लगा। वो काफी देर तक उस दीवार को देखता रहा, परंतु उसे दीवार में कोई राज नजर नहीं आ रहा था। हालांकि उसे उम्मीद थी कि सुभाष भी दीवार के पास जरूर आएगा। भौमिक के उम्मीद के मुताबिक सुभाष उसे हवेली में अंदर आते नजर आया। भौमिक सुभाष को हवेली मेंआते हवेली में ही छिप गया था।

सुभाष भी जल्द ही दीवार के पास आ गया। उसने बुदबुदाते हुए कहा- ये भी अच्छा हुआ कि शाह साहब ने इस दीवार को तोड़ने का काम हमें ही दिया है। हम तो डर रहे थे कि कही दीवार कोई और ना तोड़ दे या शाह साहब हवेली का काम किसी और को नाम सौंप दे। पर ये काम फिर से हमको ही मिल गया। फिर वो दीवार की ओर चलने लगा। उसने वहां रखी एक सीढ़ी उठाई और उसे दीवार से टिकाया और फिर उस पर चढ़ने लगा। भौमिक यह सब छिपकर देख रहा था।

सुभाष दीवार के एक कोने तक पहुंचा और वहां कुरेदने लगा। करीब 10 मिनट तक वो दीवार के एक कोने को कुरेदता रहा और फिर दीवार से कुछ निकालकर उसने अपनी जेब में डाला और फिर नीचे उतर आया। जैसे ही वो नीचे उतरकर पलटा उसके साथ भौमिक खड़ा। भौमिक को यूं अचानक अपने सामने खड़ा देखकर सुभाष बुरी तरह से डर गया था। भौमिक उसे लगातर घूरे जा रहा और वो सुभाष भौमिक को देखकर डरने के बाद अब संभलने की एक नाकाम सी कोशिश कर रहा था।

भौमिक ने कड़क आवाज में उससे पूछा- तुम इस समय हवेली में क्या कर रहे हो ?

सुभाष ने खुद को संभालते हुए कहा- जी, वो मैं हवेली देखने के लिए आया था कि काम के लिए कितने मजदूर लगेंगे ?

इस समय तुम्हें मजदूर की गिरती करने की जरूरत थी, अभी तो काम भी शुरू नहीं हुआ है और ना ही हमने काम करने के लिए अभी तक इजाजत दी है। भौमिक ने कहा।

जी, वो कभी तो काम शुरू करना ही है। इसलिए एकबार फिर हवेली का मुआयना करने के लिए आ गया था। सुभाष ने कहा।

वैसे तुम वहां उपर क्या कर रहे थे ? भौमिक ने सुभाष की आंखों में आंखे डालते हुए प्रश्न किया।

जी... जी.... वो कुछ नहीं। मैं तो बस दीवार का नाप ले रहा था कि दीवार छोटी करना है तो कितनी छोटी कर सकते हैं। सुभाष ने भौमिक के प्रश्न का सकपकाते हुए जवाब दिया।

क्या वाकई उस दीवार में कोई राज है ? सुभाष दीवार पर चढ़कर क्या कुरेद रहा था ? उसने दीवार से क्या निकालकर अपनी जेब में रख लिया था ? क्या हवेली में हुए कत्लों का सुभाष से कोई लेना-देना है ? इन सभी सवालों के जवाब आगे कहानी में मिलेंगे, तब तक कहानी से जुड़े रहे, सब्सक्राइब करें और अपनी समीक्षा अवश्य दें व फॉलो करना ना भूले।