Kala Jaadu - 8 in Hindi Thriller by roma books and stories PDF | काला जादू - 8

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काला जादू - 8

काला जादू ( 8 )

" अरे विंशती तुम भी यहीं आ गई? "अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।

" हाँ , वो दादा बोलेछि कि आप हमारा शाथे चलेगा। " विंशती ने कहा।

" हाँ, प्रशांत ने मुझसे कहा था इस बारे में.... "

" शुनो दादा, तुम हमारा गाड़ी ले जाओ, शुविधा के लिए, हम आॅटो से चोला जाएगा। " प्रशांत ने अपनी गाड़ी की चाबी अश्विन की ओर बढ़ाते हुए कहा।

" आर यू श्योर ना? "अश्विन ने चाबी लेते हुए कहा।

" अरे बिल्कुल दादा.... "

" ठीक है शुक्रिया....आओ मम्मी विंशती... " कहकर अश्विन वहाँ से जाने लगा, विंशती भी जैसे ही जाने को हुई प्रशांत ने उसका हाथ पकड़ कर धीरे से कहा " देखो बिल्कुल आराम शे कीना काटा ( खरीददारी ) कोरना जैशा होमारे शाथे कोरता है.... "

" ठीक आछे दादा..... वन मिनट , हम बहुत आराम शे कीना काटा कोरता है? " विंशती भड़कते हुए बोली।

" आश्विन बुला रहा है जोल्दी जा..... "

" हम तुम्हें आज खिचुड़ी खिलाएगा रात को... " बोलते हुए विंशती अश्विन की माँ के साथ वहाँ से तमतमाते हुए चली गई।

" बहुत भड़क गई तुम्हारी बहन तो.... " आकाश ने मुस्कुराते हुए कहा।

" अरे उशका ता रोज का है.... वैशे अंकल जी आप वो गिलाश ले आओ जिशमें गुलाब का पोत्ता डाला था। "

" अरे हाँ, अभी लाता हूँ.... " कहकर आकाश बेडरूम में चला गया।

कुछ देर बाद आकाश एक काँच का गिलास लेकर वहाँ आया जिसमें कुछ मटीले रंग का पानी था और उस पानी में कुछ पत्ते तैर रहे थे तो कुछ गिलास में नीचे तल पर बैठ गए थे , उस गिलास को देखकर प्रशांत के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी।

उसे यूँ चिंतित देखकर आकाश ने गंभीर स्वर में कहा " क्या बात है सब ठीक तो है? "

" सोब शोही ही तो नोही लोग रहा.... ये जोल का रोंग देखो..... अजीब शा नहीं हो गया? " प्रशांत ने कहा।

" इसका क्या मतलब हुआ? " आकाश ने आश्चर्य से पूछा ।

"इशका मोतलब ये कि इस घोर में बहुत ज्यादा नेगाटिव ऐनर्जी है जबकि कोल ही होवन किया था तो एक दिन मैं कैशे आ गोया इतना? "

" अब हम क्या करेंगे बेटा? "आकाश ने चिंतित स्वर में कहा।

" अब बाकि का टेस्ट ले लेता है, अगर वो भी पूरा हो गोया तो हमें कुछ कोरना होगा क्योंकि आश्विन दादा खोतरे में हो सोकता है..... "

"ठीक है बेटा फिर शूरू करते हैं..... "

उसके बाद प्रशांत सिंदूर से घर के बीचों बीच एक बड़ा सा गोल बनाता है , उस गोल के अंदर वह सिंदूर से एक तारे की शेप बनाता है , उसके बाद उस तारे के बीचों बीच वह एक कच्चा नारियल रख देता है, उसके बाद वह कुछ मंत्र बुदबुदाने लगता है।

उसके मंत्र बोलने के कुछ देर बाद ही वह नारियल उस गोल घेरे से बाईं तरफ लुढ़क जाता है, यह देखकर प्रशांत चिंतित स्वर में कहता है " जिशका डोर था वही हुआ.... "

" क्या मतलब बेटा? " आकाश ने हैरानी से कहा।

" आश्विन के ऊपर कुछ है....वो ओच्छा है या बुरा उश्का पोता कोरना पोड़ेगा.... "

" वो कैसे? "

" वो नींबू मँगवाया था ना आपशे? वो दीजिए.... "

" हाँ एक मिनट.... "

उसके बाद आकाश ने किचन से 4-5 नींबू लाकर प्रशांत को दिए, प्रशांत ने कुछ मंत्रोच्चारण करते हुए उन नींबूओं के ऊपर चार चार लौंग गाड़ी और फिर कहा " इशको घोर का चार कोना में छिपा कर रोख दो, इशको अब कोल शुबह निकालना ...."

" अगर कोई ऐसी वैसी बात निकली तो हमें क्या करना होगा? "

" हम ओपना कम्यूनिटी में इशका बात करेगा , फिर होम शोभी मिलकर इशका शोमाधान निकालेगा, लेकिन आप चिंता मोत कोरना हाँ अश्विन दादा को किछू नहीं होने देगा.... "

____________________

वहीं दूसरी ओर माॅल में -

वह एक चार पाँच मंजिला माॅल था, उस माॅल के अंदर सामने ही दो दरवाजे थे, जिनमें से दाईं तरफ वाले दरवाजे पर अंग्रेजी में " एनट्रेंस " और बाईं तरफ वाले पर " एगजिट " लिखा हुआ था।

उस माॅल के अंदर कतार से दाईं और बाईं तरफ बहुत सी दुकानें थी, उस माॅल में दाईं तरफ ही चार पाँच दुकानों के बाद दो लिफ्ट बनी हुई थी, जिसके आगे कुछ लोग खड़े हुए थे, उस माॅल में बाईं तरफ सबसे अंत में सीढ़ियाँ बनी हुई थी, माॅल के बीचों बीच ही काले रंग के दो एस्कलेटर ( चलने वाली ऐसी सीढ़ियाँ जिसके द्वारा लोग खड़े खड़े ही उसकी चलने की दिशा में एक तल से दूसरे तल पर पहुँच सकते हैं। ) लगे हुए थे , उनमें से बाईं तरफ वाला एस्कलेटर ऊपर की ओर जा रहा था वहीं दाईं तरफ वाला नीचे की तरफ आ रहा था।

उस समय उस माॅल में काफी लोग थे, जिस कारण वहाँ काफी चहल पहल थी, अश्विन ज्योति और विंशती उन माॅल में आकर बाईं तरफ वाले एस्कलेटर से ऊपर की ओर जाने लगते हैं।

वह तीनों तीसरे फ्लाॅर पर आकर वहाँ की एक साड़ी की दुकान में बढ़ जाते हैं ,वहाँ आकर विंशती और ज्योति कपड़े देखने में व्यस्त हो जाते हैं , इस दौरान अश्विन एक कुर्सी पर बैठकर विंशती को निहार रहा था।

अचानक से उसके चेहरे के भाव बदले और वह इधर उधर देखने लगा, फिर वह तेज़ी से उठा और उठकर विंशती के पास जाकर बोला " और कितना टाईम लगेगा? "

" बोश थोड़ा देर और...... " विंशती ने मुस्कुराते हुए कहा, विंशती की मुस्कान के आगे अश्विन उससे और कुछ बोल ना सका फिर वह अपनी माँ की तरफ मुड़ा और कहा " मम्मी मैं बाहर खड़ा हूँ..... "

" ठीक है बेटा..... "ज्योति ने कहा ,उसके बाद अश्विन उस दुकान से बाहर आ गया।

उसके बाद अश्विन बाहर आ , बाहर आकर वह इधर उधर टहलने ही लगा था कि तभी पीछे से विंशती आई और कहा " आश्विन होए गेलो अब चलें? "

" हाँ, लेकिन मेरी माँ कहाँ है? " अश्विन ने इधर उधर देखते हुए कहा।

" वो नीचे कैफ़ेटेरिया में होमारा वेट कोर रहा है.... " विंशती ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसके बाद वह दोनों एस्कलेटर की तरफ बढ़ गए,वहाँ आकर इससे पहले कि वह दोनों नीचे जा पाते विंशती का एस्कलेटर से पैर फिसला और वह नीचे की ओर गिरने लगी , यह देखकर अश्विन जोर से चीखा " विंशती...... " अश्विन के इतना कहते ही आसपास के सारे लोग आश्चर्य से उसे ही घूरने लगे , और इसके साथ ही वह भी उसे बचाने के लिए नीचे की ओर जाने लगा कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया।

" आखिर किसने उसे रोका था " यह जानने के लिए अश्विन पीछे की तरफ मुड़ा , पीछे देखकर वह दंग रह गया क्योंकि पीछे विंशती अश्विन की माँ के साथ खड़ी थी।

" क्या हुआ बेटा ? तू विंशती का नाम लेकर क्यों चिल्लाया? "ज्योति ने कहा।

उसके ऐसा कहते ही अश्विन ने उस एस्कलेटर के नीचे झाँका, जहाँ थोड़ी देर पहले उसने विंशती को वहाँ से गिरते हुए देखा था अब वहाँ कोई नहीं था, लोग अब भी उस जगह से आवाजाही कर रहे थे ।

अश्विन नीचे झाँक ही रहा था कि ज्योति ने दोबारा कहा " क्या हुआ अश्विन? नीचे क्या देख रहा है? "

" कुछ नहीं मम्मी..... वो..... मुझे लगा कि आप लोग नीचे चले गए, इसलिए में चिल्लाते हुए आप लोगों को ढूँढ रहा था , वैसे शाॅपिंग हो गई आप दोनों की? "

" हाँ बेटा हमने शाॅपिंग कर ली.....अब ऐसा करते हैं कि नीचे कैफ़ेटेरिया से कुछ खा लेते हैं.... " ज्योति ने कहा।

" मम्मी सीधा घर चले? मुझे थोड़ा आराम करना है.... "

" आप ठीक तो है ना? " विंशती ने चिंतित स्वर में कहा।

" हाँ , वो बस थोड़ा सर में दर्द है, रेस्ट करूँगा तो ठीक हो जाऊँगा.... "

" ठीक है तो फिर घर ही चलते हैं.... " ज्योति ने कहा और उसके बाद वह तीनों उस एस्कलेटर से नीचे की ओर जाने लगते हैं लेकिन इसी दौरान अश्विन पीछे मुड़कर देखता है तो पाता है कि उस एस्कलेटर पर विंशती खड़ी हुई थी, लोग उसके आर पार होकर निकल रहे थे और वह अश्विन को देखते हुए अजीब तरह से मुस्कुरा रही थी, जैसे जैसे वह एस्कलेटर नीचे जा रहा था एस्कलेटर के ऊपरी हिस्से पर खड़ी विंशती की आकृति ओझल होती जा रही थी, आस पास के लोगों को शायद वह दिखाई नहीं दे रही, उसे केवल अश्विन ही देख पा रहा था।

_____________________

घर आकर अश्विन ज्योति के साथ अपने फ्लैट में आ जाता है, वहाँ आकर वह पाता है कि आकाश सोफे पर बैठकर कुछ सोच रहा था, इस दौरान वह काफी चिंतित लग रहा था।

" क्या बात है पापा? आप कुछ परेशान लग रहे हो? " अश्विन ने आकाश के पास सोफे पर बैठते हुए कहा ।

" कुछ नहीं बस तेरी थोड़ी फिक्र हो रही थी ।" आकाश ने कहा।

अब तक ज्योति भी आकर उन दोनों के साथ बैठ गई थी , अब ज्योति ने कहा " अश्विन बेटा तू थक गया होगा ना? जा जाकर अब थोड़ा आराम कर ....."

" हाँ मुझे भी यही लगता है, मैं जाकर थोड़ा सो ही लेता हूँ फिर..... " ये कहकर अश्विन उठकर बेडरूम में चला गया।

अश्विन के जाने के बाद ज्योति ने आकाश से कहा " क्या हुआ था आकाश? सब सही तो है ना? "

" सब सही ही तो नहीं है ज्योति...." आकाश ने चिंतित स्वर में कहा।

" क्या कहना चाहते हैं आप? साफ साफ बताईए ना.... " ज्योति ने कहा।

" प्रशांत ने घर में नकारात्मक ऊर्जा के लिए एक टेस्ट लिया था, वह सफल हो गया जबकि कल ही तो यहाँ हवन हुआ था और फिर उसने इस घर में कोई ऊपरी शक्ति है या नहीं उसका टेस्ट लिया वह भी सफल हो गया, अब एक आखिरी टेस्ट है अगर वह सफल हुआ तो परेशानी हो सकती है..... " ये कहते समय आकाश के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई।

" वो आखिरी टेस्ट कब करोगे तुम लोग? " ज्योति ने आकाश को घूरते हुए कहा।

" टेस्ट तो हमने कर दिया है लेकिन अब उसका परिणाम कल तक ही आएगा..... " यह कहते हुए आकाश ज्योति की तरफ देखने लगा तो वह पाता है कि ज्योति कुछ सोच रही थी, " क्या हुआ? क्या सोच रही हो? " आकाश ने ज्योति से पूछा।

" कुछ नहीं, बस आज माॅल में कुछ अजीब हुआ, उसी बारे में सोच रही थी..... "

" ऐसा क्या हुआ वहाँ? " आकाश ने आश्चर्य से पूछा।

" असल में मैं और विंशती जब कपड़े ले रहे थे, तब अश्विन वहाँ से बाहर आ गया, कुछ देर बाद हम भी बाहर आ गए, बाहर आकर हमने देखा कि अश्विन विंशती का नाम लेकर चीखा और फिर एस्कलेटर से नीचे की ओर जाने लगा, लेकिन इससे पहले कि वह नीचे जाता विंशती ने उसे रोक लिया। "

" क्या? लेकिन उसने ऐसा किया क्यों? पूछा नहीं तुमने? "आकाश ने आश्चर्य से पूछा।

"पूछा मैंने आकाश..... "

" फिर क्या कहा उसने? "

" उसने कहा कि उसे लगा कि हम नीचे चले गए हैं इसलिए वह नीचे जाने लगा था.... लेकिन मुझे लग रहा है कि वो झूठ कह रहा है। "

" तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है? "

" क्योंकि उसके हाव भाव मैंने देखे थे, वह काफी चौंक गया था विंशती को देखकर ना जाने क्यों? और तुम्हें याद है परसों रात को उसने क्या कहा था कि वह विंशती से बात कर रहा था जबकि वहाँ तो कोई भी नहीं था। "

" प्रशांत से मेरी बात हुई है अगर कल का वह टेस्ट सफल हुआ तो इसका समाधान निकालना अनिवार्य हो जाएगा। "

" मुझे यह सब पता नहीं क्यों किसी का कोई काला जादू लग रहा है, किसी की बुरी नज़र लग गई है हमारे बच्चे को। " ज्योति ने रूआँसे स्वर में कहा।

" फिक्र ना करो ज्योति..... सब अच्छा होगा, बस एक बार पता लग जाए कि वह है क्या चीज़..... " आकाश ने ज्योति के कंधों पर हाथ रखकर कहा।

_______________________

अगले दिन सुबह 9 बजे के आसपास आकाश घर के चारों कोनों पर से नींबू उठाकर प्रशांत के पास ले जाता है, इस दौरान वह इस बात का ख्याल रखता है कि आश्विन को इस बात का पता ना चले।

प्रशांत के फ्लैट के दरवाजे पर आकर वह घंटी बजाता है, प्रशांत तो मानो जैसे आकाश का ही इंतजार कर रहा था इसलिए वह दौड़कर फ्लैट का दरवाजा खोलता है।

" वो लाया आप? "प्रशांत ने दरवाजा खोलकर सामने आकाश को देखते ही पूछा।

" हाँ ले आया, मेरी जेब में है.... " आकाश ने अपनी पतलून की जेब पर इशारा करते हुए कहा।

" जोल्दी ओंदर आओ फिर..... " प्रशांत ने कहा और उसके ऐसा कहते आकाश तेजी से अंदर आ गया।

आकाश के अंदर आते ही प्रशांत ने तेजी से दरवाजा लगा दिया और फिर उसके साथ हाॅल में स्थित सोफे पर बैठ गया ।

सोफे पर बैठते ही आकाश ने वह चारों लौंग लगे नींबू प्रशांत को देते हुए कहा " ये लो बेटा.... लेकिन अब इसका क्या करना है? "

" वो आपको ओभी पोता चोल जाएगा.... " प्रशांत ने कहा, और इसके बाद उसने विंशती को आवाज दी जो कि उस समय रसोई में सबके लिए नाश्ता बना रही थी।

" विंशती.... ओ विंशती.....चाकू ले आओ..... " प्रशांत ने विंशती को आवाज लगाते हुए कहा।

कुछ देर बाद हरा सलवार सूट पहने विंशती वहाँ हाथ में चाकू लिए आती है इस दौरान उसके हाथों में आटा लगा हुआ था, वहाँ आकर वह प्रशांत से कहती है " दादा राशोई इतना कितोना दूर है जो तुम आकर एक चाकू भी नोही ले सोकता..... "

"ओगली बार खुद शे ले लेगा, अभी तो दे..... " प्रशांत ने कहा, उसके बाद विंशती उसे चाकू देकर वापस रसोई में चली गई।

विंशती के जाने के बाद प्रशांत ने उनमें से एक नींबू लेकर उसे काटा , नींबू काटने के बाद प्रशांत ने जो देखा उसे देखकर वह दंग रह गया.......

क्रमश:.......
रोमा..........