गुड़गांव के शीतला माता मंदिर में जो भी श्रद्धालु आते थे, वह शीतला माता चौराहे वाली छोटी माता के दर्शन करने के बाद आसपास रहने वाले लोगों और दुकानदारों पुजारियों से एक बार नहीं के कई बार पूछते थे कि "यह कालू कुत्ता इंसानों जैसे शीतला माता के मंदिर पर आने वाले श्रद्धालुओं की ऐसी सेवा करता है, जैसे यह कोई इंसान हो भक्तजनों के जूते चप्पलों का ध्यान रखता है जो श्रद्धालु वहां वाहन से आते हैं, उनके वाहनों का ध्यान रखता है, शीतला माता मंदिर से चौराहे वाली माता के मंदिर तक श्रद्धालुओं को छोड़ने जाता है, इंसानों जैसे समय से नाश्ता लंच डिनर करता है, चौबीसौ घंटे जानवरों जैसे खाता नहीं रहता है अपनी पूरी ड्यूटी ईमानदारी से निभाता है।"
ऐसे ही एक दिन शीतला मां मासानी मां के दर्शन करने के बाद एक परिवार कालू कुत्ते के विषय में जानकारी ले रहा था, उस समय कालू कुता भी वहीं बैठकर सब कुछ सुन रहा था, उस दिन कालू कुत्ते को इस बात पर बहुत क्रोध आता है कि मुझे जानने वाले सब लोग मुझे जानवर समझ कर मेरे विषय में पूरी जानकारी मंदिर पर आने वाले श्रद्धालुओं को नहीं देते हैं कि मैं इंसानों ज्यादा शीतला माता का बड़ा भक्त हूं, इंसान समझते हैं कि हम पशु पक्षियों से वह श्रेष्ठ हैं, इसलिए भगवान हमारे हैं।
इसलिए वह सोचता है मुझे कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे इंसान समझ जाए कि हम भी उनकी तरह ही ईश्वर की साधना कर सकते हैं, और कालू कुत्ता माता के गर्मियों के मेले में शीतला माता मंदिर और चौराहे वाली माता कि तरफ जाने वाले चौहरहे पर बैठ जाता है, ताकि कोई भी जब शीतला मां के दर्शन करके चौराहा वाली माता के दर्शन करके जाए या आए तो उसकी नजर जरूर उस पर पड़े।
शुरू के दिनों में तो श्रद्धालुओं आसपास रहने वाले लोग मंदिर के पास वाले दुकानदार कालू कुत्ते पर ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन जब मेले में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगती है और गाड़ी मोटर वाले श्रद्धालुओं को आने-जाने में दिक्कत होने लगती है तो तब सबका ध्यान रास्ते की बांध कालू कुत्ते पर जाता है, क्योंकि कालू ने खाना पीना छोड़ दिया था और उसे श्रद्धालु खाने के लिए जो सामान देते थे, वह खाता नहीं था, इसलिए उसके पास खाने पीने के समान का ढेर लग गया था।
सबसे पहले आसपास रहने वाले लोग मंदिर के पास वाले दुकानदार कालू कुत्ते को हटाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कालू कुत्ता कुछ देर चौहरहे से हटाने के बाद दोबारा वही बैठ जाता था, इसलिए उसकी इस हरकत से तंग आकर वह सब लोग उसे हमेशा के लिए शीतला माता मंदिर से हटाने के लिए प्रशासन को लिखित शिकायत दे देते हैं।
और जब कालू कुत्ते को पता चलता है कि कल सुबह इंसान मुझे हमेशा के लिए शीतला माता के मंदिर से दूर करने वाले हैं, तो कालू कुत्ता उसी रात माता के मंदिर की चौखट पर अपना सर पटक पटक कर अपनी जान दे देता है और माता से मरने से पहले विनती करके कहता है "अगर माता मेरा दोबारा जन्म हो तो इसी पवित्र भूमि पर होना चाहिए वरना मैं दोबारा जितनी बार भी जन्म लूंगा उतनी बार ही अपनी जान स्वयं ले लूंगा।
आत्महत्या करने के बाद कालू कुत्ता सीधे नर्क में पहुंच जाता है, नर्क में पहुंचने के बाद वह पूछता है? "मैंने जीवन भर शीतला माता चौराहे वाली माता की भक्ति की शीतला माता के मंदिर पर आने वाले श्रद्धालुओं की सच्चे मन से सेवा की दूसरे कुत्तों जैसे खाना सोना खेलना बच्चे पैदा करने जैसे फालतू काम नहीं किए इसके बावजूद मुझे नरक मिला सिर्फ आप मुझे नरक मिलने का कारण बता दें।"
कालू कुत्ते की पूरी बात होने के बाद आकाशवाणी होती है "तुझे नरक इसलिए मिला क्योंकि तूने सच्चे मन से शीतला मां की भक्ति छोड़कर अपने को माता के दूसरे भक्तों से श्रेष्ठ भक्त दिखाने के लिए उनको परेशान किया और माता की भक्ति छोड़ कर दिखावे के लिए भूख प्यास मारा जितने भी श्रद्धालु शीतला माता मंदिर आए हैं, वह देखें की तू उनसे ज्यादा श्रेष्ठ भक्त है, और तूने ब्रह्मा जी की सृष्टि का आत्महत्या करके प्रजनन ना करके अपमान किया सृष्टि का संतुलन बिगड़ा इसलिए तुझे नरक मिला लेकिन तूने सच्चे दिल से शीतला मां चौराहे वाली माता की भक्ति भी की थी, इसलिए कुछ महीनो का नरक भौगने के बाद तुझे हमेशा के लिए स्वर्ग मिलेगा।"