Guldasta - 18 in Hindi Poems by Madhavi Marathe books and stories PDF | गुलदस्ता - 18

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गुलदस्ता - 18

                                                                                                     गुलदस्ता १८  

 

            ११३

इतना सुंदर नीला आसमान

जैसे छाता पृथ्वी का 

बीच में लहराए सफेद बादल

है खिलोना पृथ्वी का

उडते फिरते पंछी देखकर

जी ललचाए पृथ्वी का

हवाँओं से छुना चाहे

मन भर आये पृथ्वी का

पालना घुमाए सुरज चंदा

हिंदोला दे पृथ्वी का

पेड वृक्ष हाथ पैर उसके

ममता प्रकाश पृथ्वी का

चाँदनी रातों में सपन सलोने

ख्वाब आता है पृथ्वी का

सो रहा है ये जहाँ

चुपकेसे खो गई चाँदनी

पृथ्वी सो गई है अब

शाला ओढे आकाश की

...........................

            ११४

हवा में जब कोहरा मच जाता है,

तब चारों तरफ सफेद धुवाँ ही

नजर आता है

बडी बेचैनी होती है

जब उस पार हम देख नही पाते

जीवन ऐसा ही है

जहाँ है वहां हम टिक नही पाते

हमेशा आस रहती है

दुसरे किनारे की

जहाँ खडे है, वो ही जगह हम भुल जाते है

तलाश रहती है, जो है उससे बेहतर मिलने की

अंदाजा भी मन में नही रखते की,

उस पार खाई भी हो सकती है

आगे जाकर पैरोंतले की जमीन भी 

खिसक सकती है

ऐसा नही की उस पार के तुम

ख्वाब भी मत देखो

पर जहाँ खडे हो उसको

भी तो थोडी इज्जत दे दो

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           ११५

बाहर बारिश हो रही थी

वातावरण अबुज था

पत्तों से बाते करने का

बुदों को खुमार था

हर्षाता पेड मिलकर उन बुंदों को

जमा करता अपने पत्तों पर

सहलाता दुलारता और

छोड देता हलके जमीन पर

वृक्ष और जमीन के बीच

कितना अंतर होता होगा

उसी अंतराल में

उनका मीलन होता होगा

बुंदो में होगी, पेड की पऱछाईयाँ

पेड अपने आप को, उन

बुंदो में देखता होगा

कई बीज समाए होंगे

बुंदों के कण कण में

जमीन पर गिरते ही

कितने वृक्षों का निर्माण

मन में रखा होगा

पता था दोनों को,

इनमें से कुछ ही

वृक्ष निर्माण होंगे

पर उनके लिए ही

बुंदों को आसमान से

बरसना होगा

वृक्षों के पत्तों से बाते करते

अंतराल में मिलना होगा

जीवन की कडी को

एक दुसरे से मिलना होगा

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           ११६

खडा था मैं संकट के सामने

वो सोच रहा था, कैसे उसके पास जाऊँ

मैं देख रहा था उसकी तरफ

कौन दिशा वो आना चाहे

दोनों एक दुसरे को निहारते रहे

एकबार टकराकरही हम अलग हो सकते थे

देखते देखते एक तुफान, दोनों के अंदर उठने लगा

झुंझ गया एक दुसरे से,

मालूम तो था यह तो होने वाला है

शांत होकर हम अलग दिशा में चले गए

इस मोड में एक ही रास्ता था,

तो यह स्थिती अटल थी

जीवन में ऐसे टकराव से

मुँह मत फेरो

संकट को गले लगाओ और

अपनी मंजिल की ओर आगे बढो

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          ११७

ओंस की बुंदों को पुछकर देखो

जीवन कैसा होता है

दुनिया निहारते निहारते

उसी क्षण मिटना होता है

अपनी चमक दमक तो

उसे पताही नही है

लेकिन दुनिया को वो पल

बहुत हसीन लगते है

ओंस की बुंदे दुनिया देखती है

और हम उस बुंदों में जग ढुंढते है

ऐसेही है जीवन में हसीन पल

वो हमारी राह देखते है

और हम उनका इंतजार करते है

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