Kala Jaadu - 7 in Hindi Thriller by roma books and stories PDF | काला जादू - 7

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काला जादू - 7

काला जादू ( 7 )

अगली सुबह आकाश , ज्योति और अश्विन हवन के लिए तैयार हो गए , उन सबने सफेद वस्त्र धारण किए हुए थे , अश्विन और आकाश ने सफेद कुर्ते के साथ सफेद धोती पहनी हुई थी, जबकि ज्योति ने पीले बॉर्डर बाली सफेद सूती की साड़ी पहनी हुई थी।

वह तीनों तैयार होकर हाॅल में आते हैं जहाँ प्रशांत पहले से ही सफेद धोती कुर्ता पहन कर हवन की तैयारियाँ कर रहा था , इसमें विंशती भी उसकी सहायता कर रही थी , विंशती ने आज पीला सलवार सूट पहना हुआ था जिसमें वह बहुत खूबसूरत लग रही थी, वहाँ आकर अश्विन लगातार विंशती को ही देखे जा रहा था।

प्रशांत और विशंती ने सोफे को दीवार की तरफ खिसकाकर हाॅल के बीचों बीच हवन का प्रबंध किया था ,उन दोनों ने स्टील के हवन कुंड के एक तरफ एक कलश में पानी डालकर उसमें आम के पत्ते खड़े करके सजाकर उसपर एक पानी वाला नारियल लाल कपड़े में लपेटकर लाल कलावा बाँधकर रख दिया था , हवन कुंड के दूसरी तरफ एक पूजा की थाली तैयार की हुई थी, जिसपर दिए के अलावा कुछ फूल, सिंदूर, चावल के कुछ दाने , धूपबत्ती तथा हल्दी रखे हुए थे , उस हवन कुंड के आस पास आम की लकड़ियाँ, माचिस, हवन सामग्री, देसी घी और फल इत्यादि रखे हुए थे ।

दोनों भाई बहन को इस तरह से पूजा की तैयारियाँ करते देखकर आकाश ने मुस्कुराते हुए कहा " मानना पड़ेगा तुम दोनों को, बड़े ही ध्यान से काम कर रहे हो दोनों.... "

" कोरना पोड़ता है अंकल जी..... इस काम को करो तो पूरा मोन से करो वोरना मोत करो.... " प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा।

" दादा ये होएगेलो..... " विंशती ने कहा।

" तो जाकर प्रोशाद का तैयारी करो तुमी..... " प्रशांत ने कहा , उसके बाद विंशती वहाँ से चली गई ।

" आओ बैठो आप लोग...." प्रशांत के ऐसा कहते ही वह तीनों स्टील के उस हवन कुंड के पास बिछाए सफेद आसनों पर बैठ जाते हैं ।

प्रशांत पूजा की थाली में रखा दिया प्रज्वलित करने लगता है, दिया जलाने के बाद प्रशांत कुछ मंत्रोच्चारण करने लगता है , कुछ मंत्रों के बाद वह आकाश से पूछता है " आपनो गोत्र? "

" गर्ग.... " आकाश ने कुछ सोचकर कहा।

उसके बाद प्रशांत ने दोबारा मंत्रोच्चारण करना शुरू कर दिया ,कुछ देर मंत्रोच्चारण के बाद प्रशांत हवन कुंड में आम की लकड़ियाँ व्यवस्थित ढंग से रखने लगा।

कुछ देर बाद उसने एक कपूर को आकाश को दिया और कहा " आरोती का दिया में शे इशको जोलाकर हवन कुंड में राखो.... "आकाश ने वैसा ही किया और इसी के साथ ही हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित हुई।

अब प्रशांत ने घी भरा एक पात्र आकाश की ओर बढ़ाते हुए कहा " स्वाहा बोलने पर आप एक एक चोम्मच घी आग्नि में डालना.... " इस पर आकाश ने हाँ में सिर हिला दिया ।

अब प्रशांत ने दोबारा कुछ मंत्र बोलने के बाद स्वाहा कहा, उसके स्वाहा बोलते ही आकाश ने एक चम्मच घी हवन कुंड में अर्पित किया, यही सिलसिला कई बारी तक चलता रहा, यह आगे भी चलता लेकिन उससे पहले ही उस घी भरे पात्र पर अश्विन का हाथ लगा और वह घी वहीं लुढ़क गया।

यह देखकर सारे एकदम सन्न रह गए क्योंकि हवन के समय घी का गिरना कोई अच्छा शगुन नहीं लग रहा था, सभी लोग सवालिया नजरों से अश्विन को ही घूरे जा रहे थे कि तभी प्रशांत ने कहा " अरे कोई बात नहीं हम विंशती को बोलकर और मांगवा लेता है, कहकर उसने पास रखा अपना मोबाइल निकाला और विंशती को फोन लगाया।

" हैलो विंशती..... पूजा का घी लेकर जल्दी यहाँ आ.... हाँ हम वेट कार रहा है तुम्हारा.... " कहकर प्रशांत ने फोन रख दिया।

" बेटा ढंग से बैठ.... " ज्योति ने अश्विन से कहा।

इसपर अश्विन कुछ ना बोला उसने बस हाँ में अपना सिर हिला दिया।

कुछ देर बाद विंशती एक अन्य पात्र में घी लेकर आई और वह पात्र प्रशांत को पकड़ाते हुए कहा " क्या हुआ दादा ? घी कोम पोड़ गेलो? "

" कुछ ना तू जा... " प्रशांत ने कहा, उसके बाद विंशती वहाँ से चली गई।

अब प्रशांत ने दोबारा वह घी भरा पात्र आकाश को दिया और कहा " वैशै ही स्वाहा बोलने पर डालना है.... "

" ठीक है... " आकाश ने कहा, उसके बाद दोबारा प्रशांत ने मंत्रोच्चारण करना शुरू किया, इस दौरान भी प्रशांत के स्वाहा बोलते ही आकाश कुंड में एक चम्मच घी डालता रहा ।

ऐसा ही कई बारी चलता रहा, फिर कुछ देर बाद प्रशांत ने एक एक प्लेट में हवन सामग्री डालकर तीनों को दी और कहा " हमारा स्वाहा बोलते ही तीनों अपना तर्जनी अंगली ( index finger ) को छोड़कर बाकि का अंगुली शे शामोग्री लेकर ओग्नि में डालना। "

उन तीनों ने ही हाँ में अपना सिर हिला दिया, अब दोबारा प्रशांत ने मंत्रोच्चारण करना शुरू किया , मंत्रोच्चारण करते हुए उसने स्वाहा कहा, उसके ऐसा कहते ही उन तीनों ने थोड़ी सी हवन सामग्री को हाथों से अग्नि में डाला , उसके बाद दोबारा प्रशांत ने कुछ मंत्रोच्चारण कर स्वाहा कहा और दोबारा ही उन तीनों ने एक साथ ही अग्नि में हवन सामग्री डाली, लेकिन इसके साथ ही अश्विन के हाथ से उसकी हवन सामग्री की प्लेट छूट कर नीचे गिर गई, वह प्लेट ज्यादा ऊँचाई से नहीं गिरी थी इसलिए जस की तस थी लेकिन उसके अंदर की हवन सामग्री थोड़ी सी नीचे गिर गई थी।

यह देखकर प्रशांत ने कहा " दादा पालेट हाथ में मोत रखो नीचे ही रहने दो.... "

" माफ करना.... " अश्विन ने कहा।

और फिर मंत्रोच्चारण का वह सिलसिला दोबारा शुरू हो गया।

कुछ देर बाद उस हवन कुंड की अग्नि शांत पड़ने लगी , यह देखकर प्रशांत ने मंत्रोच्चारण करना बंद किया और उन तीनों को भी रूकने का इशारा किया।

अब प्रशांत का ध्यान उस अग्नि को पूरी तरह से शाँत होने से रोकना था, उसने एक अन्य लकड़ी की सहायता से हवन कुंड की अग्नि को थोड़ा हिलाया ताकि ऊपर की अधजली हवन सामग्री इधर उधर हो जाए लेकिन वही हुआ जिसका उसे डर था, उस हवन कुंड की अग्नि शांत हो गई ।

यह देखकर ज्योति थोड़ा घबरा गई फिर प्रशांत ने कहा " कुछ नहीं होता.... हम अभी इसे वापश से जोला देता है.... "कहते हुए प्रशांत ने कपूर का लिफाफा निकालकर फाड़ा और उसे पूजा की थाली में जल रहे दिए से जलाकर वापस हवन कुंड में डालकर हवन कुंड की अग्नि प्रज्वलित की।

फिर से वही आहूति देने का सिलसिला चलने लगा , वह सारे ऐसे ही हवन कर रहे थे कि अचानक से पूजा की थाली में प्रज्वलित हो रहा दिया एकाएक शाँत हो गया, उसमें घी भी पड़ा हुआ था लेकिन फिर भी नाजाने कैसे वह दिया शाँत हो गया था, यह देखकर प्रशांत का चेहरा पहले से अधिक गंभीर हो गया था, फिर उसने ज्यादा कुछ ना बोलते हुए माचिस ली और दोबारा वह दिया जलाने लगा।

दिया जलाने के बाद दोबारा से वह मंत्रों का सिलसिला शुरू हुआ, कुछ देर बाद विंशती एक कागज के डोने में सूजी का हलवा लेकर आई, उसने वह हलवा कुंड के पास रखा और एक कोने में जा खड़ी हुई।

अब प्रशांत ने मंत्रोच्चारण का वह सिलसिला बंद किया, अब तक आकाश, ज्योति और अश्विन के पास रखी सारी हवन सामग्री की आहूति हवन कुंड में पड़ चुकी थी।

अब प्रशांत पूजा की थाली लिए उठ खड़ा हुआ और उन तीनों से भी उठने के लिए कहा।

प्रशांत के कहे अनुसार वह तीनों भी उठ खड़े हुए और फिर प्रशांत के वह पूजा की थाली हवन कुंड के ऊपर गोल गोल घुमाते हुए आरती गाना शुरू किया ,
" ओम जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करें........ । "

इस दौरान वह तीनों हाथ जोड़े उस हवन कुंड की ओर देख रहे थे , आरती गाने के बाद प्रशांत ने विंशती द्वारा लाया हुआ हलवा उठाया और उसमें से थोड़ा हलवा लेकर उस हवन कुंड की अग्नि में डाला और फिर वह हलवे का पात्र वापस विंशती को दे दिया।

विंशती वह पात्र लेकर वहाँ से चली गई, उसके जाने के प्रशांत ने अश्विन के पूरे फ्लैट में गंगाजल का छिड़काव किया ,और इसी के साथ ही वह हवन सम्पन्न हुआ ।

हवन कुंड में अग्नि अब भी जल रही है उस अग्नि को देखते हुए प्रशांत ने कहा " अंकल जी, आप हमारा शाथे आओ, मुझे आपशे कुछ बात करना है। " ये कहकर वह प्रशांत को अपने फ्लैट में ले जाने लगा।

अभी जो कुछ भी हवन में हुआ वह ज्योति को कुछ अच्छा नहीं लगा, वह चिंतित भाव से कभी अश्विन तो कभी उस हवन कुंड को देख रही थी।

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वहीं दूसरी ओर प्रशांत के फ्लैट में -

" अंकल जी माफ कोरिएगा किंतु हमको बोलना पोड़ रहा है कि आश्विन का हमें कुछ शोही बात नोही लोग रहा.... " प्रशांत ने चिंतित स्वर में कहा।

" कुछ बात है क्या? "आकाश ने कहा।

" हमको लोगता है कि आश्विन दादा का पूजा भोगवान ने शोवीकार नोही किया....."

" तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है? "

" देखा नही आपने.... कैशा होवन का टाईम पर बार बार कुछ ओपशोगुन हो रोहा था..."

" अब हम क्या करें बेटा? " आकाश ने चिंतित स्वर में कहा।

" ऐशा कोरता है कि हम आपका घोर में कुछ ऐशा है या नहीं पोता लगाता है ।"

" लेकिन ये हम कैसे पता करेंगे? "

" हम आपको 3 उपाय बताएगा, आपको वो उपाय आश्विन दादा को बिना बोताए कोरना होगा..... "

" ठीक है, लेकिन अश्विन को तो पता चल ही जाएगा क्योंकि वह फ्लैट है ही कितना बड़ा....."

प्रशांत ने कुछ सोचकर कहा " एक काम कोरता है, हम आश्विन दादा को लेकर कहीं चोला जाएगा, तब आप ये उपाय कोर लेना... "

आकाश ने कुछ सोचकर कहा " एक काम करते हैं कि आप उपाय के दौरान मेरे साथ रहिए और आप आपकी बहन को बोलिए की वह अश्विन को लेकर कहीं चली जाए.....इस दौरान हम कैसे भी करके मेरी पत्नी को भी उनके साथ भेज देंगे....ऐसा करना कि तुम बोल देना कि आँटी जी आप भी चले जाओ विंशती की सहायता करने के लिए..... मैं उसे सब समझा दूँगा। "

" लेकिन आश्विन बोलेगा नहीं कि तुम तुम्हारा बहिन को क्यों नहीं लेकर जाता है? "

" अरे उससे बोल देना कि तुम्हें कुछ काम है इसलिए तुम विंशती के साथ नहीं जा पाओगे ,और अगर तुम ऐसा बोलोगे तो वह जरूर जाएगा। "

" आपका बात सही है.... यही कर लेगा , ऐशा काम कोरता है फिर कोल ही वो उपाय कोर लेगा आज का लिए आप एक उपाय कोर लो । " प्रशांत ने कुछ सोचकर कहा।

" क्या काम? " आकाश ने पूछा ।

" हम पोता लगाता है कि आपका घोर में नेगाटिव ऐनर्जी है या नहीं.... "

" वो कैसे करेंगे? "

" देखो आप एक काँच का गिलाश में पानी का शाथे थोड़ा शा गोंगाजोल डालकर उसमें 2-4 गुलाब का पोत्ता डाल लेना फिर उशको अपना घोर का किशी कोना में 24 घंटा तक झिपाकर रोख लेना , ध्यान रोखना की इशका बारे में घोर पर किशी को भी मोत बताना ...."

आकाश ने प्रशांत की बात बीच में काटते हुए कहा " ज्योति को भी नहीं? "

" नहीं उनको भी नहीं..... और ओगर 24 घंटा का बाद गिलाश का पानी का रोंग बोदला तो सोमझ लेना कि घोर में बहुत नेगाटिव ऐनर्जी है ।" यह कहते समय प्रशांत के चेहरे के भाव काफी गंभीर हो गए थे।

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अगले दिन प्रशांत हरी कमीज और काली पतलून पहने अश्विन के घर आया और कहा " आश्विन दादा कैशा है तुम? "

अश्विन उस समय पीली टीशर्ट और काला पजामा पहन कर सोफे पर बैठकर कोई किताब पढ़ रहा था, इस दौरान आकाश भी पीली कमीज और काली पतलून पहने वहीं पर बैठे अखबार पढ़ रहा था, और ज्योति भी हरा सूट पहने टेबल साफ कर रही थी, प्रशांत की आवाज़ सुनकर अश्विन उसकी ओर देखते हुए बोला " अरे आओ प्रशांत.... मैं अब काफी बेहतर महसूस कर रहा हूँ... तुम कैसे हो? "

" मैं भी ओच्छा है, वैशे दादा आप बाहर आ जा पाएगा ना ओभी ?"

" कुछ काम है क्या?" अश्विन ने किताब बंद करते हुए कहा ।

" हाँ वो दादा हमको बैंक जाना है और विंशती को अपना लिए कुछ कोपड़ा लेना है , अभिमन्नो भी अपना नानी के घोर गोया है तो इशलिए अमि कि बोलछि दादा तुम हमारा विंशती को शाॅपिंग पर ले जाओ "

" तो यार सीधे से बोलो कि विंशती को शाॅपिंग पर लेकर चला जाऊँ....यार तुम दोस्त हो मेरे, तुमने कितनी सहायता भी की है मेरी, और तुम्हें लगा है कि मैं मना कर दूँगा? "

" नहीं दादा, हमको लोगा कि आपका हैल्थ ठीक ना हुआ तो? ऐशा काम करो आँटी जी ( ज्योति की ओर देखते हुए ) आप भी इन दोनों का शाथ चला जाओ.... "

" अरे हाँ मम्मी आप भी चलो, और वैसे बिल्कुल ठीक हूँ मैं अब तो ..... अभी कपड़े बदल कर आता हूँ फिर चलते हैं ..... "

उसके बाद अश्विन बेडरूम में चला जाता है, थोड़ी देर बाद वह नीली कमीज के साथ काली जींस पहन कर बाहर आता है, विंशती भी वहीं खड़ी थी , विंशती ने आज हल्का गुलाबी रंग का सलवार सूट पहना हुआ था जो कि उसके ऊपर काफी जच रहा था।

क्रमश:......
रोमा........