जिन्दगी के चौराहे पर खड़े ओंकारनाथ और उनकी धर्मपत्नी पुरानी बीती बातों को याद करते हुए सोचते हैं कैसे 70 साल बीत गए l इसी घर के आँगन में पढ़ते खेलते दोनों बच्चे बड़े हो गए
दोनों अपने काम धंधे में लग गए l भला चंगे परिवार की बेटियाँ देखकर दोनों बेटों की शादी कर दी l
आज पूरे घर मे पोते पोतीयो की हँसने खेलने और धमा चौकड़ी की आवाज सुनाई देती हैं l
पर उनका जीवन तो जैसे एक कमरे में सिमट कर रह गया था l उनके बेटे माधव और अर्जुन जो उनकी एक आवाज पर,जी पिताजी, कहते हुए दौड़े चले आते थे ,आज उनके चिल्लाने पर भी उनकी आवाज उन्हें सुनाई नहीं देती थी, आज वे अपने जिन्दगी में इतने व्यस्त हैं की उन्हें अपने माँ बाबुजी के पास दो घड़ी बैठने का भी वक्त नहीं है l
जिस घर को बनाने के लिए उन्होंने अपना खून पसीना एक कर दिया था ताकि उनके बच्चों को कोई तकलीफ ना हो आज उसी घर उन्हें में ढंग से दो रोटी भी नसीब होना मुश्किल है l
खाने के नाम पर बहुये कहतीं हैं - "काम धंधा तो कुछ हैं नहीं दिन भर घर में पड़े रहते हैं और बैठे बैठे बहु जे लाओ बहु वो लाओ, इस बुढापे में भी 32 इंच की जीभ हुई है " और फिर कहती ,"इतना ही खाने का शौक है तो अपना दूसरा ठिकाना क्यूँ नहीं ढूंढ लेते आप लोग" न जाने कब तक हमारी छाती पर ऐसे ही मूंग दलेंगे l
बहुओं की ऐसी बातें सुनकर ओंकार नाथ और सरस्वती का सीना छली हो जाता पर वे दोनों ज्यादा कुछ न कहते l
दोनों बेटे जो अपनी-अपनी बीवियों की सुनते, रोज रोज की शिकायतों और झगड़ों से तंग आकर एक दिन उन्होंने अपने अम्मा बाबुजी से कह दिया "आप दोनों अगर इस घर मे रहना चाहते हो तो जैसा हम चाहते हैं वैसे रहो अन्यथा अपना दूसरा ठिकाना ढूंढ लो " l
बेटों की बातें सुनकर ओंकार नाथ जी की आंखे नम हो गयी और उन्होंने साफ़ साफ़ लफ्जों में अपने बेटों से कहा मैं इस घर को छोडकर कहीं नहीं जाऊंगा , चाहे तुम कुछ भी कर लो, तुम लोग यह भूल रहे हो कि आज भी यह घर मेरे नाम पर हैं l
घर का रोज़ रोज का झगड़ा एकदिन पंचायत तक पहुंच गया l पंचायत ने दोनों पक्षों की बात सुनी l और ओंकार नाथ जी को समझाते हुए कहा, "ओंकार नाथ जी आपकी तो उम्र हो चुकी हैं ,दोनों बच्चों को उनका हिस्सा बांट दीजिए और अपना ध्यान भगवान में लगाइए कहां घर गृहस्थी के चक्करों में पड़े है " पर ओंकार नाथ जी पंचायत की बात सुनने को तैयार नहीं थे l पंचायत ने माहौल की गहमा गहमी देखकर फैसला अगले अगले दिन सुनाने को कहा l
पंचायत के फैसले के इंतजार में आज पूरी रात दोनों दंपति की आँखों में निकल गयी l
सरस्वतीजी सोच रही थी आज जिन्दगी ने हमें किस चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया है कि आज अपनों ही बच्चों से अपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़नी पड़ रही हैं यह सब सोचते सोचते वह रात भर सो नहीं पाई l सुबह 8 बजे ओंकार नाथ जी से
सुनिए जी ! चाय पी लीजिए और जल्दी से नहा धोकर तैयार हो जाइए पंचायत भी तो जाना हैं l
सरस्वती जी की आवाज़ सुनकर ओंकार नाथ जी अपने ख्यालों से बाहर आते हैं l पत्नी की तरफ देखते हैं,( जिनकी आंखें लाल व नम थी जिससे साफ़ पता चल रहा था कि वे रात भर सोई नहीं हैं )उनसे कहते हैं चिंता मत करो सब ठीक हो जायगा (यह कहते वक़्त ओंकारनाथ जी के चेहरे पर एक अलग ही आभा विधमान थी)
फैसले का समय हो गया था, सभी लोग पंचायत में इकठ्ठा हो गए थे ,दोनों पक्ष भी अपने समय से पहुंच गए थे सभी गांव वाले ओंकार नाथ जी के स्वभाव को बहुत अच्छी तरह से जानते थे इसलिए भी उन्हें पंचायत के फैसले का बेताबी से इंतजार था l
वह पल भी आ जाता है जब पंचायत अपना फैसला सुनाती हैं,
पंचायत के अनुसार जायदाद के दो हिस्से दोनों बेटों के नाम कर दिया जाये और ओंकार नाथ जी और उनकी पत्नी सरस्वतीजी तीन महीने अपने बड़े बेटे के पास और 3 महीने छोटे बेटे के साथ रहेंगे जब तक जिवित रहेंगे यह क्रम चलता रहेगा l
पंचायत का फैसला सुनकर उनके दोनों बेटे और बहुए बहुत खुश होते हैं l
पर ओंकार नाथ जी पंचों के सामने हाथ जोड़कर सम्मान कहते हैं, मुझे आप लोगों का यह फैसला मंजूर नहीं है ,
"यह पूरी जायदाद मेरे नाम पर हैं और उसे मैंने अपनी मेहनत से बनाया हैं, इसलिए मैं इन दोनों को अपनी जायदाद से बेदखल करता हूँ और गुजारिश हैं पंच महोदय से कि,इन्हें अपना रहने का इंतजाम कहीं और करने के लिए कहा जाय l
ओंकार नाथ जी की बात सुनकर पूरे पंचायत में हल चल मच जाती हैं कुछ लोग इसे अच्छा तो कुछ लोग इसे बुरा बताते हैं l
पंचायत ओंकार नाथ जी की बात सुनकर आपस में बातचीत कर अपना फैसला ओंकार नाथ जी के पक्ष में सुनाती हैं और उनके दोनों बेटों को आगाह करते हुए कहतीं हैं कि ओंकार नाथ जी की जायदाद पर एकमात्र केवल उनका अधिकार है इसलिए वे जिसे चाहे अपने साथ रख सकते हैं, जिसे चाहें निकाल सकते हैं
यदि आप प्रेम से उनके साथ रहना चाहते हैं तो रह सकते हैं साथ ही उनका पूरा खर्च भी आपको उठाना पड़ेगा , अन्यथा वह घर खाली कर अपना दूसरा इंतजाम कर लें l
पंचायत का फैसला सुन दोनों भाइयों और उनकी पत्नी की सारी हेकड़ी निकल जाती हैं और फिर वे पूरी पंचायत के सामने अपने माता-पिता से माफी मांगते हैं और उन्हें उनके साथ रखने की प्रार्थना करते हैं l
✍️🌹देवकी सिंह🌹