Sem Bahadur - Movie Review in Hindi Film Reviews by SURENDRA ARORA books and stories PDF | सेम बहादुर - फिल्म समीक्षा

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सेम बहादुर - फिल्म समीक्षा

सेम बहादुर की समीक्षा

भारतीय सेना का इतिहास स्वतंत्रता के बाद से ही नहीं स्वतंत्रता के पहले से ही सेना के वीरों की शौर्य गाथाओं के आलोक से भरा पड़ा है। इनमे से किसी एक को चुनना और उसकी जीवन गाथा का फिल्मांकन करना सूर्य को दीपक दिखाने से कम नहीं है। असंख्य भारतीय रणबांकुरों ने भारत माँ के विरुद्ध आवाज उठाने वालों का मान मर्दन अपने अद्वितीय शौर्य और संकल्प  से किया है । फिल्म सेम बहादुर के रूप उन शौर्य गाथाओं में से एक भारतीय यौद्धा जनरल सेम मानिकशॉ की बायोपिक में यही कोशिश पूरी सफलता से की गयी है । फिल्म के हर दृश्य में जनरल मानिकशॉ के कृतित्व और व्यक्तित्व को पूरी प्रखरता से दिग्दर्शित किया गया है। पूरी फिल्म वर्ष 1971 में भारत द्वारा बांग्लादेश नामक नए देश को अस्तित्व में लाने की लगभग भुला दी गयी उस कहानी और कहानी के नायकों का चित्रण सफलता से करती है जिसमें जनरल मानेकशा ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। फिल्म की निर्मात्री और निर्देशिका मेघना गुलजार ने पर्याप्त शोध के बाद भारतीय सेना के प्रथम फील्ड मार्शल जनरल मानेकशा की बायोपिक को अपनी फिल्म का आधार बनाया और अपने कुशल निर्देशन से नायक विक्की कौशल के रूप में उनके प्रेरक व्यक्तित्व का परिचय देश की नयी पीढ़ी को करवाने में सफल रहीं हैं।

यह जनरल मानेकशॉ ही थे द्वितीय विश्व युद्ध के समय जिनके पेट में सात गोलियां लगीं थीं, वे मरणासन्न हो चुके थे और जब उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली, तब उन्होंने कहा था कि किसी गधे ने पेट पर लात मार दी होगी । ये सेम ही थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को स्पष्ट कहा था कि भारतीय सैनिक युद्ध में मरने के लिए नहीं, युद्ध जीतने के लिए लड़ता है ।वे एक ऐसे जनरल थे जो युद्ध का समय और स्थान स्वयं तय करते थे । इसी लिए उनके नाम के साथ 'बहादुर' का विशेषण जुड़ पाया ।

उन पर बायोपिक का निर्माण चुनौती पूर्ण कार्य तो था ही, महत्वपूर्ण भी था और इस कार्य को मेघना गुलजार ने किया है । फिल्म में विक्की कौशल की संवाद अदायगी, चलने और बोलने का अंदाज ऐसा बन पड़ा है कि वह जनरल मानेकशॉ के जीवंत स्वरूप को दर्शकों के सामने ला देता है ।

फिल्म के अन्य कलाकार हैं बेबी सना, सान्या मल्होत्रा, एडवर्ड सोनेक्लिच्क, सैमी जोनास हीनी, मोहम्मद जीशान अयूब, बॉबी अरोड़ा, डी. ए.डी. आइकीन, जेफर गोल्डवर्ग, कृष्णकांत बुंदेला, कीता अराई आदि हैं । इन सभी कलाकारों ने फिल्म में महत्वपूर्ण पात्रों की भूमिकाओं का निर्वहन किया है । इनमें प्रमुख हैं जनरल मानेकशॉ की पत्नी सिल्लू के रूप में सान्या मल्होत्रा, इंदिरा गांधी की भूमिका का निर्वहन फातिमा सना शेख द्वारा, सरदार पटेल की भूमिका में गोबिंद नामदेव तथा पाकिस्तानी जनरल अयूब खान की भूमिका में मोहम्मद जिशान का अभिनय महत्वपूर्ण है ।

निर्देशिका की मेहनत ने सभी कलाकारों से उनकी भूमिका के अनुरूप बहुत अच्छा काम लिया है।

फिल्म लगभग एक वर्ष में तयार हुई है और इसकी शूटिंग को मुंबई, पुणे, जोधपुर, पटौदी, चंडीगढ़, कुन्नूर, देहरादून, पटियाला, कोलकाता, श्री नगर, पहलगाम एवम दिल्ली आदि ऐसे स्थानों पर फिल्माया गया है जो हकीकत में जनरल मानेकशॉ की कर्म स्थली रहे थे । फिल्म निर्माण को वास्तविकता के करीब ले जाने के लिए भारतीय सेना का भी भरपूर सहयोग लिया गया है । इसलिए फिल्म के दृश्य अत्यधिक जीवंत और वास्तविक बन पड़े हैं ।

फिल्म में चार गीत हैं जो सुप्रसिद्ध गीतकार गुलजार की कलम से निकले है । गीत ' बंदा ' के बोल  " सब का बंदा है, न रुकता है, न मुड़ता है, न सुनता है, बस कहता रहता है  " अपने संगीत सहित सभी दर्शकों को, गुनगुनाने के लिए बाध्य कर देते हैं । युद्ध स्थल या रणभूमि में भारतीय सेना के शौर्य और अनुशासन के दृश्य यदि रोंगटे खड़े कर देते हैं तो सेना के सैनिकों और अधिकारियों के निजी जीवन और उत्सवों के प्रसंगों का फिल्मांकन भी दर्शकों के अंदर रोमांच उत्पन्न करता है । विक्की कौशल का अभिनय फिल्म का सबसे सबल पक्ष है । उनके अभिनय की स्वाभाविकता ने जनरल को पर्दे पर उतार दिया है । इस फिल्म में दर्शकों की आंखें, मस्तिष्क और भावनाएं एक मंच पर एकत्रित होकर आनंद और गर्व की अनुभूति देती हैं । ऐसी फिल्में देश के प्रति, उसके सपूतों के प्रति आदर और समर्पण के भाव जागृत करती हैं । फिल्म का हर दृश्य रोचक है, प्रेरणा प्रद है । मात्र दो घंटे में एक महान भारतीय सैनिक की जीवन गाथा जिसके हर पन्ने पर लिखा है," शौर्य, अनुशासन, देश के प्रति समर्पण और पराक्रम " ।

यह फिल्म हर भारतीय, विशेष रूप से नई पीढ़ी के लिए बनाई गई है, जो बांग्लादेश के निर्माण और पकिस्तान के दो टुकड़े करने मैं भारतीय सेना के उस शौर्य को पर्दे पर उतरती है जिसकी कमान जनरल सेम मानेकशा के हाथ में थी। फिल्म हर भारतीय को गर्व की अनुभूति देती है, इसलिए देखने योग्य है।

 

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा ( मो : 9911127277  )

डी - 184 , श्याम पार्क एक्स्टेनशन साहिबाबाद - 201005 ( ऊ . प्र . )