Pyar ki Arziya - 14 in Hindi Women Focused by Mini books and stories PDF | प्यार की अर्जियां - 14

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प्यार की अर्जियां - 14

" एक दिन अप्पा बाहर गए थे , मुझे स्कूल से मां घर लेकर आई ,, घर आए तो दीदी की बहुत रोने की आवाज़ आई , मां ने मुझे अपने कमरे में भेज दिया युनिफोर्म को चेंज करके नीचे खाना खाने आ बोलकर मैं अपने रूम गई .....

"इधर मां दीदी के रूम गई तो दीदी का पति उसे बेल्ट से मार रहा था वो अधमरी सी हो गई और बेहोश हो गई,,,, फिर मां दीदी को देखकर भला-बुरा बोली और पुलिस कम्प्लेंट करने के लिए फोन चलाने लगी ,,तो मां को देखकर गुस्सा करते हुए मां के गला दबा दिया वो उसी समय मर गई वो नशे में ही था , फिर मैं अपने रूम से नीचे आ रही थी तो मैं उसे मां को मारते देखी और डर गई उसकी नज़रें मेरी ओर पड़ वो मेरे तरफ आने लगा मैं दौड़कर घबराते हुए फिर अपने रूम की ओर गई वो मेरे पीछे ही था ,मैं दरवाजा लगा रही थी उसने ज़ोर से धक्का दिया मैं नीचे गिर गई दरवाजा खुल गया वो दरवाजा बंद कर दिया और अपने गन्दी नज़रों के साथ आगे बढ़ा ,"मैं उसे छोड़ देने की इल्तिज़ा कर रही थी, लेकिन वो आदमी आपनी हवस बुझाने अपने कपड़े निकाल रहे थे और मैं उठकर भागने के लिए देख रही थी और अपने बचाव के लिए समान फेंक रही थी उसके ऊपर वो बचते हुए मेरी ओर बढ़ा और मुझे दबोच लिया और मेरे कपड़े फाड़ कर मेरे शरीर को ....उसने रेप किया मेरा, जब तक मन भरा उसका मुझे नहीं छोड़ा ...(कन्या बिलख कर रो पड़ी) ,, फिर थोड़े शांत हुई और आगे बोली ,,,, मैं बेहोश हुई तब मुझे छोड़कर जा रहा था कपड़े पहनते हुए और दरवाजा खोला तो सामने दीदी थी उसने मुझे वहीं से देखा तो गुस्से से वो उस आदमी को मारने के लिए पास में रखी फूलवाश को उठाया और दे मारी फिर वो आदमी दीदी का भी गला दबा दिया उसी समय अंकलजी नीचे से ऊपर आया मां के पास से तभी अंकलजी ने दीदी के गला घोंटते हुए उस आदमी को देखा और बचाने आगे बढ़े तब तक दीदी भी मर चुकी थी ,, फिर अंकलजी और उस आदमी के बीच बहुत हाथा पाई हुई अंकल के पैर सीढ़ी में आ गए तो वो आदमी उसे धक्का दिया अंकल गिरते सीढ़ियों से नीचे आए फिर भी उठा उसे मारने के लिए तो वो आदमी डायनिंग टेबल पर रखे फल के चाकू से ताबड़तोड़ हमला किया अंकल के ऊपर और भाग गया ,अंकल ने हिम्मत करके पुलिस बुलाई और उस आदमी को जेल हुआ ,,,,और मैं तो सदमे में थी मुझे आसपास किसी की कोई बात सुनाई नहीं देती थी एक खामोश बेजान शरीर रह गया था पूरे एक साल तक मैं अंधेरे रूम में रही अपने ही साए और आवाज से डर जाती थी ,,अप्पा ने अंकल के जाने के बाद बुआ और मिहिका की जिम्मेदारी लें लिया और हम हमेशा के लिए बैंगलोर शिफ्ट हो गए..आज इतने साल होने के बावजूद मुझे एक अनजानी डर सताती है, मेरे उस भयानक आदमी और वो दर्द पीछा नहीं छोड़ती ,मैं किसी को खुश ही नहीं रख सकती और ना नये जीवन का शुरुआत कर सकती हुं ,,,,,,!!

संदीप : "मैं तो निशब्द हो चुका था कन्या के बात सुनकर और चुपचाप ही सोफे पर निढाल होकर बैठ गया था ,,कुछ देर तक खामोशी छाई रही उस रूम में ... फिर

कन्या : उठी और जाते हुए बोली मुझे पता था आप बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे,, बहुत दिनों से हिम्मत कर रही थी आपको सच्चाई बताने की आज बता पाई हुं ,, फिर अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा , प्लीज़ आप अब कोई और लड़की पसंद करके अपना घर बसा लीजिएगा और अप्पा से मना कर दीजियेगा आप बहुत अच्छे इंसान हैं और अच्छे इंसान को सब अच्छा ही मिलना चाहिए ..बोलकर चली गई मिहिका दरवाजे की ओट में छुपी थी वो भी चल पड़ी थी कन्या के पीछे ...!!

क्रमशः.........