Peshwa Bajirao Ballal Bhatt in Hindi Biography by Mohan Dhama books and stories PDF | पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट

Featured Books
Categories
Share

पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट

बाजीराव बल्लाल का जन्म 18 अगस्त, 1700 ई. में पेशवा बालाजी विश्वनाथ के यहाँ हुआ था। वे उनके ज्येष्ठ पुत्र थे। 1720 ई. में बालाजी विश्वनाथ के निधन के पश्चात 19 वर्ष की आयु में उन्हें पेशवा नियुक्त किया गया था। अल्प वयस्क होते हुए भी बाजीराव बल्लाल ने असाधारण कीर्तिमान स्थापित किया। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था तथा नेतृत्व-शक्ति उनमें कूट-कूटकर भरी थी। अपने अद्भुत रणकौशल और अदम्य साहस से उन्होंने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान बना दिया।

1724 ई. में श्रीमंत बाजीराव ने मुबारक खान को परास्त किया। 1724 से 1726 ई. के बीच मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया। 1728 ई. में पालघाट में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। इसके बाद 1728 ई. में मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेना नायक गिरधर बहादुर तथा दया बहादुर पर विजय प्राप्त किया। 1729 ई. में मुहम्मद खाँ बंगस को परास्त किया और 1731 में दभोई में त्रिबंकराव को नतमस्तक कर आंतरिक विद्रोह का दमन किया। सिद्दी, आंग्रेज तथा पुर्तगालियों को भी विजित किया। 1737 ई. में दिल्ली का अभियान उनकी सैन्य शक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में उन्होंने निजाम को पुनः पराजित किया तथा 1739 ई. में नासिर जंग पर विजय प्राप्त की। इस प्रकार उन्होंने मराठा साम्राज्य को अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत कर दिया। भारतीय मानचित्र पर स्थान-स्थान पर मराठा शक्ति के केंद्र स्थापित हो गए। जिससे भारतीय शक्ति का केंद्रबिंदु दिल्ली के स्थान पर पूना बन गया और हिंदू पद पादशाही की धमक पूरे देश में सुनाई पड़ने लगी। बाजीराव बल्लाल ने अपने 39 वर्ष के जीवन में लगभग आठ बड़े और 32 छोटे युद्ध लड़े और सभी में अविजित रहे, वे संपूर्ण युद्ध की अवधारणा में विश्वास करते थे। युद्ध में रणनीतिक गतिशीलता इतनी तेज कि दुश्मन को पलक झपकाने का भी मौका न मिले। वे शत्रु के संचार, परिवहन, आपूर्ति, उद्योग तथा जनजीवन सबको अपने प्रचंड आक्रमण से इस प्रकार बाधित कर देते थे कि शत्रु घुटने टेकने को विवश हो जाता था।

अपने समय में पचास से अधिक युद्धाभियानों में भाग लेनेवाले प्रसिद्ध ब्रिटिश फील्ड मार्शल बर्नार्ड मोंटगोमरी ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ वारफेयर’ में लिखा है कि बाजीराव संभवतः भारत में अब तक के सबसे बेहतरीन घुड़सवार सेनापति थे। उनकी शैली का प्रयोग अमेरिका में गृहयुद्ध का अंत करने के लिए भी किया गया और आज भी अनेक सैन्य कमांडर उनकी नकल करने की कोशिश करते हैं। रिचर्ड टेम्पल के अनुसार घुड़सवारी में बाजीराव से बाजी मारना कठिन था और जब कभी युद्ध क्षेत्र में कठिनाई आती थी, वह स्वयं को गोलियों की बौछार में झोंक देते थे। थकान तो वे जानते ही नहीं थे और अपने सैनिकों के साथ ही सब दुःख झेलते थे, उन्हीं के साथ मिलनेवाला रुखा-सूखा भोजन भी करते थे। राष्ट्रीय उपक्रमों में वह हिंदुत्व के लिए और मुसलमानों तथा अपने नए प्रतिरोधी यूरोपीय लोगों के विरोध में एक अद्भुत प्रेरणा का प्रदर्शन करते थे, वे सेना के खेमों में ही जिये और खेमों में ही मरे। अपने साथियों के बीच आज भी लोग उन्हें ‘शक्ति के अवतार’ के रूप में याद करते हैं।

एक रोचक कथा आती है कि एक बार बादशाह मुहम्मद शाह ने उस व्यक्ति का, जो उसके साम्राज्य को रौंद रहा था, चित्र बनाने के लिए अपने एक चित्रकार को भेजा। कलाकार ने घुड़सवार बाजीराव का सैनिक वेषभूषा में चित्र बनाकर उसके सामने लाकर रख दिया। इस चित्र में घोड़े की लगाम घोड़े की पीठ पर ढीली पड़ी थी और बाजी के कंधे पर खड्ग थी, जैसे वह घोड़े की पीठ पर यात्रा कर रहा था, वह अपने हाथ से गेहूँ की बालें मल-मलकर खा रहा था। बादशाह भयभीत हो गया और उसने व्याकुलता से निजाम से कहा कि यह तो प्रेत है, इससे संधि कर लो। बाजी की यह नीति थी कि यदि युद्ध के लिए निकले हो तो किसी पर विश्वास न करो। किसी भी तरह से विपरीत स्थित पैदा होने पर वे प्रहार के लिए इतने चौकस और तैयार रहते थे कि उनके विरोधी और दुश्मन उनसे मिलने से भी डरते थे। वे ऐसी युद्धनीतियाँ रचने लगे, जिसमें धोखा खाने या हारने की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं होती थी। जब बाजीराव ने दक्खन के नवाब निजाम को घेरकर झुकने को मजबूर कर दिया, तब शपथ दिलाने की बारी आई। बाजीराव ने कुरान मँगवाई और कहा, “ईमान वाले हो तो पाक कुरान पर हाथ रखकर कायदे से कमस खाओ कि मुगलों और मराठों की लड़ाई में कभी नहीं पड़ोगे।” तब निजाम ने बाजीराव की बहादुरी और चतुराई के आगे सिर झुका दिया था और दुनिया तो आज भी झुकाती है। पुणे को बसाने का श्रेय बाजीराव बल्लाल को ही दिया जाता है। उनके जीवन में मस्तानी के प्रवेश ने उन्हें विवादों में ला दिया था।