Guldasta - 17 in Hindi Poems by Madhavi Marathe books and stories PDF | गुलदस्ता - 17

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गुलदस्ता - 17

गुलदस्ता : १७

 

        १०७

हवाँ के झोंके से हिलनेवाले

पत्तोंने, एक बात बताई है

दुर से कही पहाडपर

वर्षा बरसी है

मुझे छु रही है उसकी ठंडक

हवाँओ के साथ जो बह रही है

अटक गई है कई बुंदे डालपर

उन्हे छुडाओ कह रही है

मैंने तो सुनली उनकी मन की बात

उन्हे तो गिरना है धरतीपर

क्या करेगी डाल पर बैठे

उनका जहाँ जमीनपर

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             १०८

बहोत दिनों बाद आज मैं गाव गया

बचपन की पुरानी यादों के साथ

खुषी से झुमता गया

मन में रची थी बहोतसी कल्पनाएँ

मिलूंगा बचपन को बाहे फैलाएँ

जिऊंगा वही पल फिर से

जो वही छोड आया था

बाबूजी की उंगली पकडकर

शायद वही खडा था

कभी गोरी के चुनरी से

मन में, जी भर बातें कर ली थी

पता है गोरी तो अब ना रही होगी

पर उन यादों की खुशबू अभी भी वही बिखरी होगी

ये तो मेरे मनकी बाते है

उनको ही मन में समेटकर रखूंगा

जानता हूँ वह गाँव अब

मेरे याद सा नही होगा

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           १०९

जीवनभर कठपुतली की तरह

नाचता रहा हूँ मैं

कभी किसे के इशारे पर

कभी किसी के अधिकार पर

कभी किसी के ममता में

खुदको निछावर करता रहा हूँ मैं

ना कभी परवाह की अपने मन की

दुसरों के लिए जीता रहा

क्या उसमें खुषी नही थी मुझे

जो अब खुदको कठपुतली समझता रहा

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           ११०

में खडी ऐसे राह पर

जहाँ ना कोई आता जाता

कर रही हूँ हवा से बाते

वहाँ ना कोई सन्नाटा छाता

ना है दुषित भावानाओंका प्रवाह

ना तो प्रेम के दरियाँ सागर

छोड चली हू पिछे सब कुछ

आसमान ही मुझे है भाता

रिश्तों की रेशमी जंजीरे

कडवाहटपन जख्मों के

सब है अब एकसमान

दुनियाँ से ना अब कोई नाता

सब जीए अपना खुशहाल जीवन

ना तो कोई किसी से रुठे

चार दिन की जिंदगी भाई

फिर कही ना रहेगा अपना पता

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           १११

अब ना रुठ ए जिंदगी मुझसे

बडी मुश्किल से यहाँ तक आया हूँ

तुफानों से लड झगडकर

अपना होश संभाला हूँ

तू ही रुठ गई मुझसे

तो कहाँ जाऊंगा मै

पता है, गिरते पत्तों में भी

ऐ जिंदगी तू ही बसती है

डालपर खिले फुलों में भी

तू ही तो मुसकाती है

उडते आसमान के

पंछीयों के साथ तू ही लहराती है 

दुःखों में बसती है

सुख में मुस्काती है

सबके दिल की धडकनों का  

गीत, तू गुनगूनाती है

इसीलिए ऐ जिंदगी

तू रुठ ना मुझसे

तेरी धडकन का गीत

अब में समझ चुका हूं

जीवन चेतना का राज

महसुस कर पा रहा हूं

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          ११२

आईना क्या दिखाता है

वो देखकर तू तो खुष होता है

पर वह मन में सच बोल भी दे

क्या वह तू सुन पाता है ?

जो अच्छाइयाँ है वह सुनकर

लोग बडे खुष तो हो लेते है

पर, कमियाँ देखकर भी उसे

अनदेखा कर देते है

उन्हे नाझ होता है अपने आप पर

मुझमें कभी कोई कमी हो ही नही सकती

तुम ही हो जो मुझसे जलते रहते हो

वरना, मेरे आईने ने ऐसी तसबीर दिखाई नही होती

लोग कहे अरे बावरे,

आईने में अपने मन को ना देख पायेगा तू

जिंदगी निकल जाएगी, प्रेम का प्यासा रह जाएगा तू

प्रेम नही मिलता केवल आईने में देखकर

समाज में झांककर पता चलता है

तू खडा है कौनसी जगह पर

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