Kala Jaadu - 2 in Hindi Thriller by roma books and stories PDF | काला जादू - 2

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काला जादू - 2

काला जादू ( 2 )

उस लड़की के जाने के बाद अश्विन अब भी अपनी पहले वाली जगह पर खड़ा उसकी बाल्कनी में निहारे जा रहा था मानो वह किसी के वहाँ आने का इंतजार कर रहा हो, लेकिन जब काफी देर तक भी वहाँ कोई नहीं आया तब वह वापस अपनी किताब पढ़ने लगता है , लेकिन अब उसका ध्यान उसकी किताब में लग ही नहीं रहा था, वह बीच बीच में किताब से नजरें हटा कर उस बाल्कनी की तरफ देखने लगता है।

लेकिन वहाँ कोई भी नहीं था , वह बार बार किताब में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करता लेकिन उसका ध्यान बार बार उसी बाल्कनी की तरफ ही जा रहा था।

अब उसने किताब उठाई और वापस अपने कमरे में चला आया, वहाँ आकर उसने समय देखा , उस समय 8:17 हो रहा था ।

अश्विन का अब मन किताब में नहीं लग रहा था इसीलिए उसने सोचा कि चलकर कुछ खा ही लिया जाए, यह सोचकर वह अपने फ्लैट में से बाहर निकला ।

बाहर निकलकर वह कुछ सेकंड के लिए रूका और अपने साथ वाले फ्लैट की ओर घूरने लगा , उस फ्लैट का दरवाजा बंद था ,कुछ देर बाद अश्विन आगे लिफ्ट की ओर बढ़ गया।

अश्विन खाना खाने के लिए मुख्य सड़क पर स्थित एक होटल गया, वहाँ से खाना खाकर वह वापस अपने फ्लैट में आ गया।

फ्लैट में आकर वह कुछ देर मोबाइल पर यूटुब पर कुछ विडियोज़ देखने लगा । कुछ देर बाद अश्विन अपने बिस्तर पर से उठकर बाथरूम चला गया, बाथरूम से आकर उसका ध्यान अकस्मात ही बाल्कनी में जाने वाले दरवाजे की तरफ गया।

उसने वह दरवाजा खोला और बाल्कनी में आ गया, वहाँ आकर उसने देखा कि वही 19-20 वर्षीय युवती दूसरी तरफ की बाल्कनी में कुर्सी पर बैठकर कोई किताब पढ़ रही थी।

उस युवती को देखकर अब तक शाँत और गंभीर अश्विन के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई , वह उसे लगातार देखे जा रहा था जैसे मानो वह उससे बात करना चाहता हो लेकिन उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए थे।

वह युवती अपनी किताब पढ़ने में इतना मग्न थी कि उसने ध्यान ही नहीं दिया की दूसरी बाल्कनी से अश्विन उसे ही देख रहा था।

अश्विन कुछ मिनटों तक ऐसे ही उस लड़की को देखता रहा फिर कुछ देर बाद उस लड़की के फ्लैट के अंदर से एक महिला की आवाज आई " विंशती...... " यह आवाज सुनकर अश्विन का ध्यान आवाज की दिशा में गया , लेकिन वह युवती अब भी अपनी किताब पढ़ने में मग्न थी ।

कुछ देर बाद वही आवाज दोबारा आई " विंशती..... लेकिन इस बार भी उस युवती ने देखा तक नहीं कि कौन किसे आवाज दे रहा था।

कुछ देर बाद वही 24-25 वर्षीय शख्स आया और उस लड़की से बोला " विंशती..... आपने एखाने कि कोरची? ( विंशती..... तुम यहाँ क्या कर रही हो? "

लेकिन उस लड़की ने उसका कोई जबाव नहीं दिया , लेकिन उस शख्स के आने से वह लड़की उस कुर्सी पर से उठी और एक यंत्र अपने कान में डाल लिया और बोली " दादा...... आपनी कि बालालिना? (भईया .....आपने क्या कहा?) "

" माँ तुमाके दाकाची... ( माँ तुम्हें बुला रही है.....) " उस शख्स ने कहा।

" अरे बाबा रे...... " कहकर वह युवती अंदर की तरफ भागी ,अब वह शख्स और अश्विन वहाँ पर अकेले थे, अश्विन को देखकर वह शख्स दोबारा बोला " दादा.... तुमी कि बाँग्ला बालातो पारो ना ?"

इसपर अश्विन ने कहा " मुझे समझ में आ जाता है, लेकिन बोल नहीं पाता..... "

" अच्छा..... आप यहाँ क्या आज ही आया है? " उस शख्स ने कहा ।

" जी , मैं यहाँ एक कंपनी में प्रोडेक्ट मैनेजर के तौर पर नियुक्त हुआ हूँ, कल से ड्यूटी ज्वाइन करूँगा। "

" खूब भालो..... आपका नाम क्या है? "

" जी मैं अश्विन और आप? "

" आमि प्रोशांतों..... (मैं प्रशांत.....) "

" आप क्या करते हो? "अश्विन ने कहा।

" हम बैंक में कैशियार है..... " प्रशांत ने कहा।

" अभी जो लड़की अंदर गई, वो आपकी बहन थी? " अश्विन ने कहा।

" हाँ जी, हमारा छोटा बहिन है वो विंशती......"

" उसको सुनने में दिक्कत है क्या? अभी मैंने सुना कि कोई औरत विंशती, विशंती चिल्ला रही थी, मुझे यहाँ तक सुनाई दिया लेकिन उन्होंने तो सुना ही नहीं। "अश्विन ने कहा ।

" हाँ जी, उसको ठीक से शुनाई नहीं देता है ,इसलिए माशीन लगाता है वो..... " प्रशांत ने कहा।

" अभी तो बहुत छोटी है वो.... ऐसा कैसे हो गया उसके साथ? "

" वो जब छोटा था तब उसके....... " प्रशांत बोल ही रहा था कि तभी वहाँ विंशती आइस्क्रीम खाते हुए आ जाती है और कहती है " तुमी कि कोरचो दादा? "

" आमि ए दादा सोंगे कोथा बोलिची.....एता कि..... एकला एकला..... ( मैं इन भाई के साथ बात कर रहा था..... ये क्या.....अकेले अकेले? )"

" नियाश्चि दादा.... (लाती हूँ भईया ....)" कहकर विंशती वहाँ से चली गई कुछ देर बाद वह 3 कप आइस्क्रीम लेकर आई ,उसने प्रशांत और अश्विन को एक एक दी।

अश्विन का हाथ अपने आप ही वह आइस्क्रीम लेने के लिए बढ़ गया ,उन दोनों के बाल्कनी के बीच में 4-5 फीट की दूरी थी, इसलिए अश्विन ने बड़ी ही आसानी से वह आइस्क्रीम विंशती से ले ली।

इस दौरान अश्विन का हाथ विंशती के हाथों से हल्का सा लगा, जिससे अश्विन के शरीर में एक कंपकंपी सी दौड़ गई लेकिन जैसे ही विंशती ने वह आइस्क्रीम देकर अपना हाथ वापस खींचा अश्विन सामान्य हो गया।

अश्विन को समझ नहीं आ रहा था कि अभी उसके साथ ये क्या हुआ , वह एक असमंजस में पड़ गया था ,वह आइस्क्रीम लेकर खाने लगा कि तभी प्रशांत बोला " आपका आॅफिस किधर पड़ता है? "

" जी....जी यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है 15-20 मिनट का ही रास्ता है.... "अश्विन ने आइस्क्रीम खाते हुए कहा।

" आप कहो तो हम आपको कल छोड़ देगा...... " प्रशांत ने कहा।

" अरे नहीं.... आपको तकलीफ होगी.... "

" इसमें तकलीफ कैसा ? तुम हमारा पड़ोसी है .... हम अपना गाड़ी से तुम्हें कल छोड़ देगा.... तुम आॅफिस कितने बजे जाएगा? "

" 9:30 तक पहुँचना है.... "

" ठीक है तो 8:30 बजे तुम हमारे फ्लैट में आ जाना, नाश्ता करके साथ में निकल जाएगा.... चलेगा ना? "प्रशांत ने कहा।

" जी जरूर मैं याद से पहुँच जाऊँगा....वैसे आइस्क्रीम के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...... " अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा ।

" कोई बात नहीं..... कल दादा बटर स्कोच लाने वाला है.... " विंशती ने कहा।

यह सुनकर अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा " कल मैं ले आऊँगा..... "

" फिर परसों हम ले आएगा.... "प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा।

अब इससे पहले कि अश्विन कुछ और कहता कमरे में रखा उसका मोबाइल बजने लगा " मैं आता हूँ.... "कहकर अश्विन अंदर चला जाता है।

अंदर आकर वह मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है उस पर " मम्मी कालिंग "लिखा हुआ था।

अश्विन वह काॅल उठाता है " हैलो.... " अश्विन ने कहा।

" हैलो बेटा.... खाना वाना खा लिया ना? "दूसरी तरफ से आवाज आई।

" हाँ मम्मी थोड़ी देर पहले ही खाया था और अभी आइस्क्रीम खाई..... "

" क्या? लेकिन तुझे तो आइस्क्रीम पसंद नहीं थी..... " अश्विन की माँ ने हैरानी से कहा।

" मन किया आज तो खा लिया मम्मी..... इसमें कोई बुराई तो नहीं है ना? "

" नहीं बेटा बुराई तो नहीं है लेकिन तू तो हमेशा.... अच्छा चल छोड़ तू मुझे अपनी अभी की एक तस्वीर भेज ....."

" ठीक है माँ..... " उसके बाद अश्विन ने फोन काटा और फिर अपनी एक फोटो लेकर अपनी मम्मी को भेज दी।

उस फोटो को देखकर अश्विन की माँ ने उसे दोबारा काॅल लगाया और कहा " तूने ताबीज़ क्यों नहीं डाला? "

" नहाने गया था इसीलिए निकाल कर रख दिया, गीला हो जाता ना वो ......"

" मेरे सामने बहाने बनाने की जरुरत नहीं है, अभी के अभी वो ताबीज़ डाल..... " अश्विन की माँ ने सख्त लहजे में कहा जिसे सुनकर वह कुछ बोल ना सका और " जी " कहकर अलमारी में से ताबीज़ निकालने लगा।

ताबीज़ पहनने के बाद उसने अपनी माँ को विडियो काॅल लगाया और कहा " ये देखो मम्मी, मैंने पहन लिया..... "

" खबरदार जो दोबारा उतारा तो ..... " उसकी माँ ने सख्त लहजे में कहा।

" ठीक है मम्मी नहीं उतारूँगा..... लेकिन कहीं लोग ये ना कहें कि इतना पढ़ा लिखा होकर ये ऐसी बातों में मानता है..... "

" लोगों से क्या करना है बेटा तूने? लोगों का तो काम है जलना दूसरों से...... इसलिए तू वो कर जो तेरे लिए ठीक हो......हम तेरे माँ बाप हैं तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है हमने इसलिए हमें पता है कि भले ही लोगों के घर में खाने को दाना तक ना हो लेकिन फिर भी उनका ध्यान सिर्फ़ दूसरों से जलने में ज्यादा रहता है.... हम किसी का नजरिया तो नहीं बदल सकते लेकिन बेटा अपनी तरफ से थोड़ी सावधानी बरतने में क्या बुराई है? और अगर बेटा मान लो कि ताबीज़ पहनने से कुछ नहीं भी होता है ये सिर्फ मेरे मन का वहम है फिर भी हमारी संतुष्टि के लिए अगर तू वह ताबीज़ पहन लेगा तो इसमें क्या खराबी है? "

" माफ करना मम्मी.... मैं अब से ये ताबीज़ कभी नहीं उतारूँगा.... "

" ये हुई ना बात बेटा.... अच्छा अब मैं रखती हूँ, तू अपना ख्याल रखना.... "

" ठीक है मम्मी.... गुड नाइट.... "

" गुड नाइट बेटा.... "उसके बाद अश्विन फोन रख देता है और एकाएक ही उसकी नजर उस आइस्क्रीम के खाली कप पर जाती है जिसे अभी उसने प्रशांत और विशंती के साथ खाया था।

उस कप को देखकर वह सोच में पड़ गया क्योंकि उसने आखिर क्या सोचकर विंशती से वह आइस्क्रीम ली थी ?

कुछ देर बाद उसने वह कप कूड़ेदान में डाला और फिर वापस बाल्कनी में आ गया , वहाँ आकर वह विंशती और प्रशांत की बाल्कनी की ओर निहारने लगा, जब काफी देर तक भी वहाँ कोई नहीं आया तो अश्विन वापस कमरे में आकर मोबाइल में " संवर्त हर्षित " की कहानियाँ पढ़ने लगता है। कुछ देर बाद वह सो जाता है।

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अगली सुबह अश्विन नहा धोकर आॅफिस के लिए तैयार हो जाता है, उसने सफेद कमीज के साथ काली पतलून पहनी हुई थी, जो कि उसके कसरती शरीर पर काफी फब भी रही थी।

तैयार होकर वह प्रशांत के फ्लैट के पास जाकर बेल बजाता है, कुछ देर बाद एक हरी सूती की साड़ी पहनी गोरी महिला , जिन्होंने अपने माथे पर गोल बड़ी सी लाल बिंदी लगाई हुई थी , माँग में सिंदूर लगाया हुआ था, गले में एक सोने की चैन और हाथों में शाका पोला ( एक तरह के सफेद और लाल कंगन का जोड़ा जिसे बंगाली महिलाएँ हाथों में धारण करती हैं , मंगलसूत्र और सिंदूर की तरह ही शाका पोला को बंगाल में सुहागिन स्त्रियों का प्रतीक माना जाता है। )पहना हुआ था, उनका शरीर काफी भारी भरकम था, उनकी उम्र 50 वर्ष के आसपास लग रही थी , उन्होंने दरवाज़ा खोला और सामने अश्विन को देखकर वह बोली " तुमी के? "

" जी...... प्रशांत??? " अश्विन ने कहा, उसके इतना कहते ही वह महिला चिल्लाते हुए बोली " प्रोशांतों..... तोमारो बोंधु आइश्चे..... ( प्रशांत..... तुम्हारा दोस्त आया है.....) कहकर वह महिला अंदर चली गई और अश्विन अब भी वहीं खड़ा उस फ्लैट को निहार रहा था ।

वह एक 4bhk का बड़ा सा फ्लैट था, उस फ्लैट के बीचों बीच हाॅल था जिसमें "U"शेप में तीन बादामी रंग के सोफे रखे हुए थे , उस सोफे के बीच में एक काँच की टेबल रखी हुई थी जिसपर एक पारदर्शी काँच के बाउल में एक काँच का कछुआ रखा हुआ था, उस पूरे हाॅल की दीवारे सफेद रंग में रंगी हुई थी , दाईं तरफ दो कमरे बने हुए थे, और बाईं तरफ दो ,सामने के तरफ भी एक कमरा बना हुआ था, उस फ्लैट में सारी दिवारों पर तरह तरह की पेंटिंगस् लगी हुई थी, सामने की दीवार पर एक लकड़ी का कपबोर्ड लगा हुआ था, जिसमें कुछ किताबें और सजावटी वस्तुएँ रखी हुई थी।

अश्विन उस फ्लैट को निहार ही रहा था कि तभी बाईं तरफ के एक कमरे से प्रशांत आया, उसने काली रंग की कमीज के साथ नीली जींस पहनी हुई थी जो कि उसपर काफी फब रही थी ।

अश्विन को देखकर वह बोला " आओ दादा आओ, नाश्ता कार लिया? "

अश्विन ने कहा " जी अभी नहीं..... बाहर तक जान....." कि तभी प्रशांत ने मुस्कुराते हुए उसकी बात बीच में काटते हुए कहा " अरे कोई नहीं दादा तुम हमारा शाथे कर लो..... हमारा बहिन खूब भालो खाना बनाता है..... "

" जी आपको इससे कोई तकलीफ़..... " अश्विन कह ही रहा था कि तभी प्रशांत ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा "अरे कैसी बात करता है दादा तुम ? किसी को खाना खिलाना से कोई तकलीफ़ होता है क्या..... आओ शाथ में नाश्ता करके निकलता है दोनों.... "


उसके बाद प्रशांत अश्विन को दाईं तरफ मौजूद सबसे पहले वाले कमरे में लेकर जाता है, वह रसोई थी , उसमें सामने ही एक बड़ी सी मेज थी जिसके चारों ओर कुर्सियाँ लगाई हुई थी , उस मेज के पीछे की तरफ एक स्लैब थी जिसपर गैस वग़ैरह रखा हुआ था ,उस स्लैब के पीछे कुछ लकड़ी के कपबोर्ड बने हुए थे, वह कपबोर्ड बंद होने के कारण उसके अंदर क्या था वह दिखाई नहीं दे रहा था ,उस कपबोर्ड के बाईं तरफ डबल डोर का एक फ्रिज था।

उस गैस पर नीला सलवार सूट पहने विंशती पराठें बना रही थी....

क्रमश:........
रोमा..........