woh aasman se aati thi - 4 in Hindi Horror Stories by Adil Uddin books and stories PDF | वो आसमान से आती थी - 4

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वो आसमान से आती थी - 4


पिछले भाग में हमने पढ़ा की कैसे कबीर एक अनजान गुफानुमा महल में पहुंच गया, जहां उसे एक चुड़ैल दिखाई दी और एक बंद कमरा जिसमें एक राजा और एक शेर की एक पुरानी तस्वीर मिली और वो राजा और कोई नहीं मार्कोस था, आगे जानेंगे इस अनसुलझे सवालों के जवाब ।
वो तस्वीर देख कर कबीर के होश उड़ गए वो इस बारे में सोंच ही रहा था तभी उस कमरें में किसी की आहट महसूस हुई और उसी क्षण एक आवाज़ सुनाई दी ।
"कब से इंतज़ार था की कोई यहां आए और इस तस्वीर को उतारे"
कबीर ने पलट कर देखा "मार्कोस तुम? इस तस्वीर में तुम क्या कर रहे हो? और ये हम कहां पर हैं?"
तभी मार्कोस ने मुस्कुराते हुए कहा
"मार्कोस नहीं... माधव सिंह राठौर ! राजा माधव सिंह राठौर
और ये कोई जगह नहीं मेरा महल है जो 532 सालों से एक गुमनाम कहानी की कब्र बन गया है।
और बाहर जो सिंहासन, शेर और इंसानों के कंकाल है ना वो मैं, मेरा पालतू शेर और
मेरी प्रजा है।


सदियों से दफ़न हैं हम इस महल जैसे कब्रिस्तान में और ये सब हुआ एक खूबसूरत पहेली की वजह से
जिसके जाल में मोहित हो कर बर्बाद हो गया
मेरा राज्य गया, प्रजा गई, मेरे अपने गए और रह गया मैं आधा जिंदा आधा मुर्दा,तड़पता हुआ आत्मा के रूप में।"
कबीर तो अब जैसे डर और असमंजस में जान ही को बैठेगा, उसे महसूस होने लगा
था
"अगर ये मज़ाक है तो मार्कोस में तुम्हे छोडूंगा नहीं !
मैं यहां सिर्फ अपनी छुट्टियां मनाने आया था, मुझे नहीं पता ये सब क्या हो रहा है" ।
मार्कोस ने भी दो कदम आगे बढ़ कर कहा
"राजा माधव सिंह राठौर अब दोबारा मुझे मार्कोस कहा तो तुम्हारा ही दिल निकाल कर तुम्हें ही खिला दूंगा"
फिर उसने एक गहरी सांस ली और गुस्से के भाव को हल्की मुस्कुराहट में बदल कर
कहा
"हां जनता हूं तुम छुट्टियां मनाने आए थे,
सदियों से यहां 18461 लोग छुट्टियां मनाने ही आएं हैं, मैंने बहुत दौर देखे पुर्तगालियों का दौर, तुर्कों का दौर, मंगलों का दौर
लेकिन उनकी छुट्टियां कभी पूरी नहीं हो पाईं।
सबको मार दिया मैंने, क्योंकि किसी ने इस कमरे और तस्वीर तक पहुंचने की हिम्मत ही नहीं उन 18461 में से तुम पहले हो और आखरी भी"

"चलो शुरू से सुनाता हूं यह बात है आज से 532 साल पहले की
ये खंडहर एक आलीशान महल था जो हुकूमत करता था शक्तिगढ़ राज्य पर इस महल के फैसले शक्तिगढ़ की तकदीर लिखते थे और तकदीर लिखने वाले हाथ थे मेरे राजा माधव सिंह राठौड़ के जो इस महल में अपनी 2 बीवियों और 7 बच्चों के साथ रहता था एक खुशहाल महल रौनकों से चमचमाता हुआ
आस पास सिर्फ हुकुम बजाते लोग, खूबसूरत नाचने वाली लड़कियां और संगीत और शान ओ शौकत से भरपूर मैं और मेरी ज़िंदगी" ।
"एक दिन सवेरे ही मुझे शिकार पर जाना था वो भी अकेले
भेस बदल कर सबकी नजरों से बचता हुआ अपनी तलवार और बंदूक लिए मैने घोड़े की लगाम पकड़ी और सीधा जंगलों की तरफ भागता हुआ मेरा घोड़ा बादल मुझे ले पहुंचा एक ऊंची पहाड़ी पर जिसकी नोक पर खड़ा हो कर मैं अपने शिकार को ढूंढ रहा था तभी मुझे एक खूबसूरत हिरनी नज़र आई और बिना देरी किए मैंने अपनी बंदूक और निशाना साधा बस मैं बंदूक चलाने ही वाला था...तभी कुछ घोड़ों
के हिनहिनाने की आवाज़ें सुनाई दी और मेरा ध्यान पहाड़ी से नीचे की तरफ गया जहां मैंने देखा एक काफिला जिस पर लुटेरों ने हमला कर दिया था काफिले के कुछ सैनिक लुटेरों के हाथों मारे जा रहे थे, मैंने तुरंत बादल की लगाम फटकारी और चल पड़ा उस काफिले को बचाने"।
"मैंने दौड़ते हुए घोड़े पर ही तलवार निकाली और वार पे वार करता चला गया काफी लोग मारे गए कुछ लुटेरों को मैंने मौत के घाट उतार दिया कुछ भाग गए लेकिन काफिला खत्म हो चुका था"।
बस बची थी तो सिर्फ एक डोली मैं घोड़े से उतर
कर उस डोली के पास पहुंचा और उसका पर्दा उठाया और देखा.....
लाल जोड़े में एक खूबसूरत अप्सरा जिसके हाथों की मेंहदी महक रही थी, चूड़ियां खनक रही थी,झुमके चमक रहे थे, नाथ हिल रही थी तो लग रहा था कोई तारा टिमटिमाया हो,लंब देखे तो लगा दो लाल फूलों की पंखुड़ियां आपस में चिपक गईं हों" ।
इतना जीता जागता सुनहरा बदन देखते हुए जब मैंने आँखों तक नज़र उठाई तो लगा मैं दो गहरी झीलों में डूबे जा रहा हूं और जब मैंने उसे पूरा देखा तो इतना मासूम चेहरा की,लगा जैसे कायनात ने तमाम खूबसूरत चीज़ों से रंग लेकर उस चेहरे में भर दिए हों
तभी उसकी आवाज़ ने मेरी मदहोशी तोड़ी और कहा "मुझे मत मारिएगा" ।
"मैं अचानक होश में आया और हड़बड़ाते हुए कहा "नहीं डरिए नहीं मैं लुटेरा नहीं हूं वो सब चले गए आप बाहर आइए"
बहुत देर बाद मुझ पर भरोसा करके उसने अपना हाथ मुझे दिया और मैंने उसे डोली से उतारा वो चारों तरफ का मंज़र देख कर घबरा उठी और अपनी आंखो से किसी को ढूंढने लगी अचानक उसकी आंखों की तलाश खत्म हुई और कदमों ने हरकत की वो भागते हुए एक लाश के सीने पर जा गिरी और कहने लगी
"कुंवर साहब! ये क्या हो गया आप ऐसे नहीं जा सकते अभी कुछ पल पहले ही अपने मंडप में मेरे साथ फेरे लिए हैं अपने वचन दिया था की आप मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगे जीवन में! कुवर साहब।
इतना सुनकर मैं दंग रह गया।


कहानी जारी है....

अगले भाग का इंतज़ार करें और फॉलो करें अगले भाग के नोटिफिकेशन के लिए,धन्यवाद।