Dharti Per Indradhnush -Europe Ki Yaatra Diary in Hindi Travel stories by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | धरती पर इंद्रधनुष -यूरोप यात्रा डायरी

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धरती पर इंद्रधनुष -यूरोप यात्रा डायरी


अपने बारह दिवसीय यूरोपीय देशों की यात्रा ने मेरे घूमंतू मन के रोमांच को उन देशों में प्रकृत्ति के बिखरे अद्भुत रंग और उमंग से सराबोर कर दिया ! स्वर्ग की परिकल्पनाएं कितनी और कैसी भी की गई हों किन्तु सच मानिए कि अगर आप धरती पर स्वर्ग देखना और महसूस करना चाहते है तो यूरोपीय देशों की एक बार यात्रा अवश्य कीजिए ! दुनिया के मानचित्र पर अंकित इन देशों की प्राकृतिक सुन्दरता , उनका वैभवशाली अतीत और वहां के लोगों की जीवन शैली जब तक अपनी आँखों से नहीं देखी जाय उसकी परिकल्पना तक नहीं की जा सकती है !
इस यात्रा में मेरे साथ मेरी पत्नी मीना त्रिपाठी और एक पारिवारिक मित्र अविनाश जी तथा उनकी पत्नी किरन हमसफर थीं ! वीजा सम्बन्धी शुरुआती झंझटों ने एक बार तो ऐसा एहसास कराया था कि हमारी यह यात्रा शुरू ही नहीं हो पायेगी !किन्तु मेरे अंतर्मन में यह बात बैठ चुकी है कि जब भी कोई बड़ा काम होने वाला होता है तब ढेरों बाधाएं मेरा रास्ता रोकती हैं और अंतत वह काम हो ही जाता है ! वैसा ही इस प्रकरण में भी हुआ ! 12 दिन और 11 रात की यात्रा योजना वाले इस पर्यटन में यूनाईटेड किंगडम, फ़्रांस, स्विट्जरलैंड ,Liechtenstein, आस्ट्रिया और इटली देश सम्मिलित थे !अपने प्राकृतिक वैभव की विपुलता और सांस्कृतिक विरासत की धरोहर को सुरक्षित रखने के कारण इन देशों को यूरोप का हृदय स्थल भी कहा जाता है !इन देशों की एक और खूबी यह है कि इन्होंने आपस में अपनी सीमाओं को खुला रखा है और इतना ही नहीं कुछ देशों में तो सेना है ही नहीं ! जनसंख्या कम होने और साक्षरता शत- प्रतिशत होने के कारण भी यहाँ सुख समृधि मानो इतराती फिरती है |इस यात्रा की तैयारियां यूं तो महीनों से चल रही थी किन्तु 23 जून 2015 को हमारे हाथ में एयर इंडिया का टिकट जब आया तभी हमें पक्का विश्वास हो सका कि अब ट्रेवेल एजेंसी ने हमारे साथ ‘खेल’ खेलना बंद कर दिया है ! हालांकि इसके पहले ही उसने अपने ‘खतरनाक खेल’ से हम सब से निर्धारित यात्रा व्यय और वीजा बनवाने के शुल्क के अलावे लगभग 50-50 हजार रूपये समय पर वीजा ना मिल पाने से प्रस्तावित टूर कैंसिलेशन के नाम पर झटक लिए थे ! वीजा दिलानें की जिम्मेदारी उन्हीं की थी,विलम्ब होने में हमारा कोई दोष नहीं था किन्तु उसका अर्थ दंड हमसे वसूला जा रहा था !चूंकि लाखों रूपये हम पहले ही दे चुके थे इसलिए हमारे पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था !
तो इस तरह हमने अपनी यात्रा की शुरुआत कर ही दी ! अपने गंतव्य तक हमेशा समय से पहुँचाने वाली लखनऊ मेल ने 26 की रात में लखनऊ की धरती छोड़ कर इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली) की धरती को अगली सुबह लगभग 2 घंटे की विलम्ब से छुआ ! हमें 9 बजे सुबह इंदिरा गांधी इंटर नेशनल एयरपोर्ट पर अपने एजेंट से मिलकर कुछ ज़रूरी कागजात भी लेने थे , वैसे हमारी फ्लाईट स० AI 111 दिन में 2 बज कर 05 मिनट पर उड़ान भरने वाली थी ! इसलिए ट्रेन में ही हम सब फ्रेश हो लिए और उतरते ही हल्का फुल्का नाश्ता करके टैक्सी पकड़ कर एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गये !हमारी फ्लाईट टर्मिनल 3 से जानी थी किन्तु उसके पहले बोर्डिंग पास लेने और इमीग्रेशन और कस्टम क्लियरेंस भी लेनी थी ! निर्धारित स्थान पर एजेंसी के एक मुलाजिम से मुलाक़ात हो गई और उसने हम सबको आगे की सभी औपचारिकताओं को पूरी करा कर विमान की सवारी करने के सुपात्रों में शामिल करा दिया !अब हम एयर इंडिया के बोईंग 777 – 300 में सवार हो चुके थे !इतनी बड़ी जहाज में और इतनी लम्बी दूरी की यात्रा करने के रोमांच से हम अभिभूत थे !
हमारे सहयात्री ख़ास तौर से किरन जी बेहद डरी और सहमी सहमी थीं !चूंकि उन्होंने अपने चिकित्सक से इस बारे में पहले ही चर्चा कर ली थी इसलिए उनकी बताई दवा एक खुराक लेते ही उनका डर गायब हो गया था ! अब विमान आसमान में था और विमान के क्रू मेम्बर अपनी अपनी तीमारदारी में जुट गये थे !पहले ड्रिंक सर्व हुई , फिर हल्का फुल्का नाश्ता और अंत में भोजन !हर सीट के आगे एक रिमोट सहित छोटा टी०वी० लगा हुआ था जिसमें वीडियो - खेल,मनोरंजन और फिल्में अपने मन मुताबिक़ देखी जा सकती थीं !यात्री उसमें पिल पड़े थे ! विमान इतना शांत चल रहा था मानो हम अपने घर में ही बैठे हों !रास्ते में हमें बताया गया कि लंदन की घड़ियाँ भारतीय समय से लगभग 4 घंटे पीछे हुआ करती हैं इसलिए हमें अपनी घड़ियाँ ठीक कर लेनी चाहिए ! घड़ियाँ ठीक हो गई थीं और मोबाइल स्विच ऑफ़ !वैसे भी भारतीय सिम कार्ड विदेश में काम नहीं करता इसलिए हमने मैट्रिक्स की सेवायें ले कर यूरोप से संचार व्यवस्था बनाये रखने का इंतजाम कर लिया था !अब हम हजारों फिट की ऊँचाई पर थे !कब रात हुई और कब सुबह , इसका हमें कोई अनुमान नहीं लगा !हाँ , लगभग 9 घंटे 25 मिनट की उड़ान के बाद पायलट की इस उद्घोषणा से हम जान सके कि अब हम इंग्लैण्ड की धरती पर कुछ ही देर में लैंड करने वाले हैं ! लन्दन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर हम लोग वहां के समयानुसार शाम 7 बजे उतरे ! औपचारिकताओं को निभाते हुए हमें एकाध घंटा और लग गया !एयरपोर्ट के बाहर दो बड़ी गाड़ियों के साथ ट्रेवेल एजेंसी का एक मुलाजिम हम लोगों के नाम की तख्ती लिए खड़ा मिला तो जान में जान आई !अनजाने देश में वही तो अपने सगे सम्बन्धी थे !
एयरपोर्ट से हम लोग उसी एरिया में लन्दन सेंट्रल के रास्ते पर स्थित एक फाइव स्टार होटल “हालीडे इन एक्सप्रेस “ में ठहराए गये ! कमरे में फ्रेश होने तक रात के 9 बज चुके थे और होटल के हाल में हम अब भारतीय शाकाहारी भोजन की टेबुल पर पेट पूजा करने में जुट गये थे ! उधर स्थानीय भद्रजन लोग अभी डिनर के पूर्व के पेय की चुस्कियां विभिन्न प्रकार की गिलासों में ले रहे थे ! रात के 9 – 9-30 हो रहे थे और बाहर अभी भी उजाला फैला था ! किसी ने बताया कि अंग्रेजों की धरती का सूरज कभी भी डूबता नहीं है ! यह बात अब हम अपनी ‘आँखिन देखी’ पा रहे थे !एक बात जरूर बताना चाहूँगा कि इस अत्यंत सुविधा सम्पन्न होटल में पीने के पानी के लिए अलग से आर०ओ० वाला यंत्र या टोंटी नहीं थी ! हमें बताया गया था कि जो भी पानी आता है वह सब शुद्ध किया हुआ है इसलिए बाथरूम से ही आप पीने के लिए भी पानी ले सकते हैं !उधर शौचालय में पेपर से काम चलाना था ! पानी से धुलने का वहां रिवाज ही नहीं होता ! हम सब पहली बार इन विस्मित कर देने वाली मुसीबतों से रू -ब -रू थे इसलिए अपने जुगाडू इंतजाम भी कर ही लिए ! मेरी पत्नी ने कोल्ड ड्रिंक के खाली बोतल को शौचालय में रखा और भारतीय परम्परानुसार शौच सुगम हुआ !हाँ, पीने के पानी के लिए अवश्य बाथरूम के शावर से पानी लेना पड़ा !
रात्रि – भोजन पर मेरे ग्रुप के लगभग 30 सदस्य जुट चुके थे ,बाकी 12 सदस्य पेरिस में मिलने थे ! भोजनोपरांत हमारे टूर मैनेजर कम गाईड ब्रायन अज़ावेदो (जो मूलत: गोवा से थे ) ने अगले दिन यानी 28 की सुबह 6 बजे तक उठ जाने , 7 बजे तक नाश्ता की टेबुल पर इकठ्ठा हो जाने और 8 बजे लंदन शहर की यात्रा पर निकल जाने का प्रोग्राम तय किया ! उन्होंने यह भी साफ़ साफ़ बता दिया कि समय का विशेष ध्यान रखना होगा वरना बस निकल जायेगी !
लंदन की पहली धुली धुली सी सुबह में हम लोग आज्ञाकारी बालकों की तरह नाश्ता पानी निपटाते हुए लगभग 8 बजे तक बाहर खड़ी आलीशान बस में सवार हो गये !बस में माइक्रोफोन पर गाइड की आवाज़ गूंजी –“ हम लोग आज की शुरुआत विश्व के सबसे ऊंचे और बड़े झूले ( World’s tallest Ferris wheel ) “लन्दन आई” से करेंगे !” थोड़ी ही देर में हम 440 फिट ऊंचे “कोकोकोला लन्दन आई” पर खड़े थे !इतने बड़े झूले को देखना और उस पर सवारी करना आश्चर्यजनक तो था ही रोमांचक भी था !उसपर चढने के लिए टिकट की लम्बी लाइन लगी थी ! गाइड ने काम आसान किया और लगभग एक घंटे में हम काफी ऊंचाई से लन्दन की खूबसूरती का दीदार कर रहे थे ! इसके बाद गाइड के बताये हुए स्थल पर हम सभी लगभग 10-30 तक जुट गये !अगला पडाव इंग्लैण्ड की महारानी का आवास बकिंघम पैलेस था जहां हम सबको उनके सुरक्षा गार्डों की अदला बदली का चश्मदीद होना था ! सचमुच वह भव्य महल, उसके घुड़सवार और पैदल चल रहे गार्डों की लाल पोशाक और उनकी अस्त्र शस्त्र सज्जा ,उनके बूटों की धमक ब्रितानी हुकूमत की ठसक का आज भी एहसास करा रही थी और यह दृश्य देखने के लिए जाने कहां से भीड़ टूट पड़ी थी ! इसके बाद लंच का समय हो चला था !गाईड हमें लन्दन के एक भारतीय रेस्तरां में ले गये और हमने छक कर भारतीय भोजन खाया ! टूर की शुरूआत में ही हमने शाकाहारी जैन खाना की डिमांड कर डाली थी इसलिए सीमित ही सही शुद्ध भोजन हमें मिल जा रहा था !भोजन के बाद हम लोग “टावर आफ लन्दन” गये ! बताया गया कि यह शहीद योद्धाओं की स्मृति का
ऐतिहासिक प्रतीक स्थल है जिसे पूर्व में “ब्लडी टावर “और “ट्रेटर्स गेट” के नाम से जाना जाता था !यहीं पर स्थित ज्वेल हाउस का मुख्य आकर्षण भारत का कोहिनूर हीरा था जिसे देखने के लिए टिकट और प्रवेश हेतु लम्बी लाइन से गुजरना पड़ा !मन में खिन्नता के भाव आये कि अपनी ही थाती देखने के लिए भी इतनी मशक्कत झेलनी पड रही है ! वहीं एक और आश्चर्यजनक बात यह देखने को मिली कि एक स्थान पर अत्यंत सुसज्जित पार्क युद्ध में शहीद जानवरों की स्मृति में भी बनाया गया था और बाकायदा उनकी मूर्तियों पर उनका विवरण दर्ज था ! अस्त्र शस्त्र ले जाते खच्चर , सूंघने वाले खोजी कुत्ते ,घोड़े आदि ! सैलानियों के मोबाइल कैमरे और वीडियो कैमरे इन एतिहासिक स्थलों को क़ैद करने में तत्पर थे , सेल्फी के लिए युवा उतावले थे ! अब बस आगे बढ चुकी थी !बस से ही शहर में चल रही अनेकों छोटी कारें जैसे फिएट , लैंडमार्क ,स्मार्ट आदि दिखीं !टावर ब्रिज ,बिग बेन,वेस्टमिन्स्टर पैलेस ,वेस्टमिन्स्टर एबी ,सेंट पॉल कैथेड्रिंल सहित कई एक फुल ग्लास बिल्डिंग ,जी०ई० कम्पनी के स्वामित्व वाली बोट बिल्डिंग (नाव के आकार वाली बहुमंजिली बिल्डिंग) ,हैमर स्मिथ एरिया की ग्राउंड वन या टू स्टोरी म्यूज बिल्डिंग की सिलसिलेवार श्रृंखलाएं दिखीं जिसमें बड़े बड़े आर पार दिखाई देने वाले शीशे लगे थे और जो पेंटिंग के कलाकारों के लिए ख़ास तौर पर बनी थीं दिखाई दी ! बस से ही गाइड ने ‘हाइड पार्क’ का चर्चित “स्पीकर कार्नर” भी दिखाया जहां कोई भी निवासी अपना स्टूल लगा कर अपने मन की बात बोल सकता है !लन्दन की सिंदूरी शाम होते होते हम विक्टोरिया इलाके में पहुंच चुके थे जहां थेम्स नदी मानो इठलाती सी अपनी सौन्दर्य आभा बिखेर रही थी !देर तक हम इन मनोहारी दृश्यों को अपने मन मष्तिष्क में बैठाते रहे ! उसके बाद बस हमें एक शापिंग एरिया में ले गई जहां कुछ लोगों ने जम कर खरीदारी की !रात के 8 बजते बजते हम अपने होटल में आ गये ! इसके बाद फ्रेश होकर डाइनिंग हाल में हम सब जुट गये जहाँ भोजन हमारा इंतज़ार कर रहा था !भोजनोपरांत गाइड ने एक बार फिर अगले दिन के प्रोग्राम को बताया और हम सोने चले गये !लन्दन की यह आखिरी रात थी !
अब लन्दन को “गुड बाई” कहने का समय आ गया था !सुबह के ८ बजे हम अपने सामान सहित पेरिस (फ़्रांस) की अगली यात्रा के लिए तैयार थे !फ्रांस की राजधानी पेरिस को” प्रेम के शहर” की पदवी से भी नवाजा गया है !हम सब ने भी बचपन से ढलती उम्र तक “एन इवनिंग इन पेरिस...”जैसे हिन्दी फिल्मी गीत को गुनगुनाते हुए पेरिस के बारे में तरह तरह की कल्पनाएँ अपने अपने मन में कर रखी थीं !आज उन्हीं के साकार होने का दिन था !लंदन से बस द्वारा हम फोकस्टोन(Folkston) पहुंचे और उससे आगे मानो भरपूर रहस्य और रोमांच की दुनिया हमारी प्रतीक्षा कर रही थी !जी हाँ , आखिर हमें अपनी लम्बी चौड़ी बस समेत इंग्लिश चैनेल को यूरोट्यूनल (Eurotunnel) से पार करके Calais जो पहुंचना था !यह एक विशेष प्रकार की ट्रेन थी जो बस समेत अपने सीलबंद डिब्बों में सवार कर लेती थी और अथाह समुन्दर से होकर गुजरती थी !अन्दर भरपूर प्रकाश और हर बसों के अलग अलग कम्पार्टमेंट थे !कमजोर दिलवालों के लिए भी यह एक परीक्षा की घड़ी थी ! अन्तत सब कुछ सकुशल सम्पन्न हो गया और हम अज्ञात और अथाह समुन्दर से निकल कर एक बार फिर से धरती और उन्मुक्त गगन में थे ! दिन के लगभग 2-30हो चले थे और हम अब एक स्पाट पर रूक के पैक्ड लंच ले रहे थे !उस स्थान पर हरियाली चारो ओर फैली हुई थी, पवन चक्कियां चल रही थीं और सब कुछ, यहाँ तक कि खेत- खलिहान भी करीने से व्यवस्थित लग रहा था ! लंच समाप्त होते ही यात्रा आगे शुरू हुई और शाम होते होते हमलोग मैग्नी(Magny) नामक स्थान के “एपार्ट सिटी होटल” में चेक इन कर चुके थे !आसपास कोई आबादी नहीं थी और ऐसा लग रहा था कि यह कोई रिसार्ट था !हाँ,आसपास की पहाड़ियों से कुछ जानवरों के गले में पड़ी घंटियों की मधुर आवाजे अलबत्ता रह रह कर नीरवता को विराम दे रही थी ! गाईड ने बताया कि रात 8 बजे भोजनोपरांत ऐन इवनिंग इन पेरिस का आनन्द उठाने के लिए हम तैय्यार रहें !उसी ने बताया कि अब यहाँ पौंड मुद्रा नहीं चलेगी और आप या तो यूरो प्रयोग करें अथवा फ्रैंक मुद्रा !दुकानदार यूरो तो ले लेते हैं लेकिन वापसी में फ्रैंक मुद्रा पकड़ा देते है ! सभी लोगों ने आनन फानन में भोजन किया और बस में सवार होकर सीन ( Seine) नदी के किनारे के पुराने और सुंदर पुलों और उसके दोनों छोर पर बनी इमारतों को मंत्रमुग्ध होकर देखने लगे !थोड़ी ही देर में क्रूज़ के टिकट लेकर गाईड आ चुके थे और हम सब उसमें सवार होकर इस अनोखी रात की बाहों में पेरिस की जगमगाती खूबसूरती निहार रहे थे ! होठों पर फिर वही गीत ‘ अरे ऐसा मौक़ा फिर कहाँ मिलेगा, हमारे जैसा दिल कहा मिलेगा ,आओ तुमको दिखलाता हूँ पेरिस की यह रंगीन शाम , देखो देखो देखो देखो देखो ..एन इवनिंग इन पेरिस ..’! हम अभी उतरने को ही थे कि दूर से एफिल टावर यकायक रौशन होकर जगमगाता नजर आने लगा ! ऐसा लगा कि एफिल टावर सोने में तब्दील हो गया हो ! बताया गया कि सूर्यास्त के बाद हर घंटे ऐसा 10 मिनट के लिए होता है !एफिल टावर
को रौशनी में नहाते देखना यात्रा के बेहतरीन लम्हों में से एक था ! पानी की तरंगों पर तैर रहे क्रूज और क्रूज पर बज रहे क्लासिक फ्रेंच गीत इतने मादक थे कि उससे उतरने का मन ही नहीं कर रहा था! लेकिन मजबूरियां थीं और एक दबी हुई जिज्ञासा , अकुलाहट भरा कौतूहल भी कि अब गाइड हमें पेरिस के बहुचर्चित विश्वप्रसिद्ध “लीडो “शो में ले जाने वाले थे !रात के लगभग 10 बज चुके थे और शो स्थल पर आयोजक हमारी ही मानो प्रतीक्षा कर रहे थे !हमारे इंट्री लेते ही ‘शो’ शुरू हो गया ! शुरुआती दौर में ही हम सब के लिए टेबुल पर चमकती हुई गिलास में शैम्पेन या फ्रूट ड्रिंक सर्व किया गया ! और लगभग 3 घंटे हम सब अपलक शो देखते रहे- आश्चर्य , मादकता और जिज्ञासा सहित !ऐसे नृत्य और एरोबिक्स मैंने कदाचित पहले कभी भी नहीं देखे थे ! स्टेज पर उतरी इन परियों के शरीर के ऊपरी भाग खुले हुए थे और नीचे के प्राइवेट पार्ट ढके थे किन्तु उनकी नृत्य मुद्राओं में इतना दम-खम रचा बसा था कि दर्शक के मन में ‘काम वासना’ का प्रवेश वर्जित हो चला था ! अगर भारतीय मंच होता और ऐसे नृत्य होते तो मार काट मच जाया करती है क्योंकि प्राय: नृत्य करने वाली बालाएं नृत्य कला कौशल कम और कामुक अदाओं का भरपूर प्रदर्शन करती हैं ! सचमुच लीडो शो ने हम सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया ! देर रात हम होटल लौटे !यात्रा की यह तीसरी रात हमसे अब विदा होने को थी !
अगले दिन हम फिर उसी दिनचर्या का पालन करते हुए अपनी बस में सवार होकर पेरिस शहर की खूबसूरती निहारने को तत्पर थे ! आज हमारे गाइड ने शुरुआत “ग्रेविन वैक्स म्यूजियम” से की ! 19वीं शताब्दी के अंतिम दिनों में एक विख्यात समाचार पत्र के संस्थापक आर्थर मेयर ने समाचार की सुर्ख़ियों में रहने वालों के चित्र दिखाने के लिए इस भवन का चयन किया था और एक कार्टूनिस्ट अल्फ्रेड ग्रेविन को साथ लेकर 5जून सन 1882 से इसे म्यूजियम का रूप दिया गया जहां विश्व प्रसिद्ध सेलेब्रेटीज की आदमकद मोम की मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया !लगभग 300 मूर्तियों वाले इस म्यूजियम में भारत की आजादी के नायक महात्मा गांधी,फिल्म कलाकार शाहरूख खान और कैटरीना कैफ भी शोभा बढा रहे हैं !
दोपहर हो चुकी थी और अब हमें गाइड एक इंडियन रेस्तरां में भोजन कराने ले गया !भोजन के बाद एक बार फिर पेरिस की सडकों पर हम थे और बस से ही शहर को निहार रहे थे ! लगभग 3 बजे हम एफिल टावर का दीदार करने के लिए पहुंचे !गाइड ने सभी को सतर्क कर रखा था कि आस पास ढेर सारे नीग्रो सामान बेचने की आड़ में पर्यटकों से छीना झपटी करके रफूचक्कर हो जाते हैं!सावधानी काम आई और हम उनसे बचते हुए गाइड द्वारा टिकट लेकर एफिल टावर से शहर का दीदार करने के लिए लिफ्ट पर सवार थे ! लिफ्ट हमें टावर की दूसरी मंजिल तक ले गई ! उस ऊँचाई से हमें ऐसा लगा मानो हम किसी स्वप्न लोक में आ गये हों !चारो ओर दैदीप्यमान शहर दिखाई दे रहा था ! हममें कुछ नौजवान तो इतने उत्साहित हुए कि वे तीसरी और आखिरी मंजिल भी नाप आये हालांकि इससे हुई देर के लिए उन्हें गाइड की डांट भी झेलनी पड़ी !बस फिर से फर्राटे भरने लगी थी !हम पेरिस की शानदार मार्गों से होते हुए ओपेरा गार्नियर ,प्लेस डी ला कानकोर्ड ,विशाल लौवर म्यूजियम,फ्रेंच नेशनल एसेम्बली और बेशक इन्वलिड के स्वर्ण गुम्बद के अलावे अनेक मशहूर स्मारकों के सामने से होकर गुजर रहे थे ! सच मानिए ‘सिटी ऑफ़ लव’ से वाकई अब हमें भी प्यार हो गया था ! अब रात के 8 बज चुके थे और हमें खाना खाते हुए शहर से लगभग ४० किलोमीटर दूर अपने होटल में भी पहुंचना था ! इसलिए गाइड ने रात का खाना एक बार फिर एक भारतीय रेस्तरां में हमे खिलाते हुए होटल पहुंचाया – इस हिदायत के साथ कि हम सबको अगली सुबह जल्दी ब्रेकफास्ट लेकर होटल छोड़ देना है और यह भी कि हमारा अगला पडाव जेनेवा है !
पेरिस छोड़ते समय हमें एक बात का मलाल रहा कि समयाभाव के कारण हम लोग कई और दर्शनीय चीजें देखने से रह गये ! जैसे पेरिस के नवीनतम डाइनिंग कांसेप्ट बस टरोनोम का अनुभव लेने से वंचित रह गये !यह आलीशान चमचमाती ,ग्लास टॉप वाली डबल डेकर बस के ऊपरी तल पर बना फाइन डाइनिंग रेस्तरां होता है जिसमें आप बुकिंग कराकर निर्धारित जगह से सवार होकर पूरी रात “पेरिस बाई नाईट” टूर का अनोखा आनन्द लेते हैं और लजीज मल्टीकोर्स मील का स्वाद चखते हैं ! बस का निचला तल बार और किचेन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ! बहरहाल Second highest quality of living in the world कहलाने वाले जेनेवा( स्विट्जरलैंड) की ड्राइव पर हम निकल चुके थे ! हमारा पहला पडाव यूरोपीय देशों के लिए स्थापित यूनाईटेड नेशन्स का हेड क्वार्टर( Palais des Nations) था ! यू०एन० हेड क्वार्टर की इमारत भव्य थी और उसके ठीक सामने दूसरी ओर सडक से लगे एक बड़ी लगभग 15-20 फुट ऊंची लकड़ी की कुर्सी रखी हुई थी जिसका एक पैर टूटा हुआ था ! यह एक प्रतीकात्मक निशाँ था उस विश्व महायुद्ध के विनाश का जिसमें जाने कितने लोग पंगु हो गये थे ! यह युद्ध की भयावहता को दर्शाने के लिए रखा हुआ था ! ठीक उसके पीछे साइलेंट झरनों की अनगिनत कतारें थीं जो रह रह कर पर्यटकों का बौछारों से स्वागत कर रहीं थीं ! थोड़ी देर रूक कर हमारा काफिला Musee Ariana पहुंचा जहां विश्व का दूधिया रंग वाला यूरोप का सबसे लम्बा फाउन्टेन है !थोड़ी देर रूक कर हमने इन अद्भुत नजारों को अपने अपने लिए नैनस्थ और कैमरे में क़ैद किया ! रहस्य और रोमांच का चढ़ता ग्राफ रुकने वाला नहीं था क्योंकि अब हम पहले जेनेवा की साफ़ सुथरी झील देखने गये और फिर उसी के पास स्थित Jardin Anglias के एक अति सुंदर उद्यान में मनमोहक रंग बिरंगे फूलों की बनाई हुई बेहद सुंदर घड़ी के सामने खड़े थे ! शाम ढल चुकी थी और अब हम सब होटल के लिए रवाना हो चुके थे !हमें Leysin नामक होटल में ठहराया गया जो हाईवे पर था ! फ्रेश होकर हमने भोजन ग्रहण किया और तान कर सो गये !एक बात बताना जरूरी है कि यूरोप के इन देशों में भी पर्यावरण असंतुलन का प्रभाव पड़ा है और अब यहाँ सर्दी के दिन कमतर होते जा रहे हैं और गर्मी अपना तेवर दिखाने लगी है !इसलिए अप्रैल तक ही जाना उचित है क्योंकि उसके बाद गर्मी असर दिखाने लगती है !हमारी यात्रा का यह छठा दिन था ! उसी दिनचर्या के अनुसार हम आज भी सुबह 8 बजे अपनी बस पर सवार होकर स्विट्जरलैंड के विख्यात बर्फ में डूबे समुद्र तल से 3000 फिट की ऊँचाई वाले ( Les Diablerets) ग्लेशियर की ओर जा रहे थे ! साथ में पर्याप्त स्वेटर और जर्सी आदि ले लिए थे ! वहां जाने के लिए केबिल कार थी !हम सब लगभग दो पालियों में ग्लेशियर पर पहुंच चुके थे !वहां चारो ओर बर्फ ही बर्फ जमी हुई थी !तापमान 8 डिग्री सेल्सियस था ! लोग बता रहे थे कि फरवरी मार्च में यहाँ का तापमान -4 या 5 तक हो जाता है और फिर भी पर्यटक इस रोमांचक यात्रा पर आते हैं !वहां Alpine Coaster नामक दुनिया का सबसे ऊंचा ट्रैक है जिसके आइस एक्सप्रेस से लोग 520 डिग्री लूप ,10 मोड़ ,6 waves,3 jumps और दो पुलों से होकर वापस आते हैं ! वहीं स्नो बस भी खड़ी थी जो ग्लेशियर की सैर करा रही थी ! कई एक व्यू प्वाइंट बनाये गये थे जहां से ढेर सारी और बर्फीली पहाड़ियों के दर्शन हो रहे थे ! लेवल न० 3 पर एक रेस्टोरेंट भी था ! लगभग 2 बज चुके थे और सबका भूख से बुरा हाल था ! नीचे उतर कर थोड़ी दूर आगे बस से चल कर हम सबने एक स्थान पर बुफे लंच लिया ! अब हम एक नये होटल (Hotel Arcade) में आ चुके थे ! आज की यादगार शाम में एक और लम्हा जुड़ने जा रहा था ! हमारे मल्टी नेशनल ट्रेवेल एजेंसी का स्विट्जरलैंड में लगभग 2148फिट की ऊँचाई की एक पहाड़ी पर बहुत बड़ा रिसार्ट था जहाँ केबिल कार ले जाती थी !आज की रात तीन “डी” का एक साथ इंतजाम उन लोगों ने कर रखा था -- ड्रिंक, डिनर और डांस ! हम सब शाम लगभग 6-30 बजे तक वहां पहुंच चुके थे ! वहां दो खुले परिसर में विचित्र विचित्र दो जानवर उन लोगों ने पाल रखा था जिसे Stan और Lama नाम दिया गया था !ऐसा लग रहा था कि यह बकरे,टटटू और ऊंट का मिला जुला क्लोन था ! जो देखा हतप्रभ रह गया ! हम आगे बढ़े और सबसे पहले पहली मंजिल पर पहुंचे जहां नाश्ता मिला ! अब हमें दूसरी मंजिल पर जाना था जहां ड्रिंक और डांस का आयोजन था ! 42 भारतीयों के हमारे इस ग्रुप में कई छुपे रूस्तम ऐसे भी थे जो एकाध पेग लेकर संतोष करने वाले नहीं थे ! यहाँ तो फ्री में एक महिला मदिरा(बीयर,वोदका,रेड और व्हाईट वाइन और शेम्पेन ) बाँट रही थी !हम पुरुष सदस्यों ने भी लोगों के आग्रह पर वहां की ख़ास व्हाईट और रेड वाइन का स्वाद चखा !उसमें नशा नाम की चीज एकदम नहीं थी ! लेकिन कुछ नियमित शौक लेने वालों ने जम कर पी लेने के बाद हिन्दी फिल्मो के हिट गीतों पर नाचना जो शुरू किया वह बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था !उधर डिनर तैयार था !हम सबने अपना जैन फूड ग्रहण किया और फिर केबिल कार से वापस होटल आ गये जो पास में ही था !रात हो चुकी थी और गाइड का सख्त निर्देश था कि अगले दिन बहुत सुबह 2-30 घंटे की यात्रा करके हमें यूरोप के समुद्द्री तल से सबसे ऊंचाई वाले रेलवे स्टेशन पहुंचना था और वहां से एक विशेष पटरी पर चलने वाली लाल रंग की काग व्हील ट्रेन ( Cogwheel train ) से टॉप ऑफ़ यूरोप कहलाने वाले ग्लेशियर “ जुन्गफ्रू “ पहुचना है ! सचमुच 3571 मीटर ऊंचाई वाला यह ग्लेशियर बर्फ के अथाह सागर से भरा पड़ा है ! आज हमारी यात्रा का सातवाँ दिन था ! सुबह 7 बजे हमलोग बस में बैठ चुके थे क्योंकि लगभग दो से ढाई घंटे की बस यात्रा के बाद हमें लाल रंग की एक विशेष प्रकार पटरी पर चलने वाली काग- व्हील ट्रेन से ग्लेशियर पर पहुंचना था ! नीचे का तापमान 20डिग्री सेल्सियस था लेकिन ऊपर ज्यादा ठंढक होने की भरपूर संभावना थी इसलिए हम लोग स्वेटर आदि लेकर गये थे !जुन्ग्फ्रू रेलवे के डिब्बे छोटे छोटे थे और दोनों तरफ बड़े बड़े शीशे लगे थे जिन्हें आप उठा भी सकते थे !ट्रेन निर्धारित समय पर चली और दो स्टेशनों के पड़ने के बाद हमें उसी तरह की दूसरी ट्रेन पकडनी थी !हमने अपने गाइड को फालो करते हुए झट से ट्रेन बदल ली ! असल में अब असली चढाई होनी थी ! ट्रेन थोड़ी ही देर में खुल गई और ढेर सारे घुमाव और कन्दराओं से होती हुई ऊपर और ऊपर की ओर चढने लगी !ज्यों ज्यों ट्रेन ऊपर जा रही थी हम अपने अपने डिब्बों के शीशे गिराने लगे थे क्योंकि तापमान में बेहद गिरावट आने लगा था ! दिन के लगभग 11 बज कर 8 मिनट पर हम यूरोप की सबसे ज्यादा ऊंचाई वाले ग्लेशियर के रेलवे स्टेशन जुन्ग्फ्रू पर पहुंच चुके थे !वहां यात्रियों को रेलवे ने यादगार के तौर पर एक पासपोर्ट दिया जिसमें लिखा था –“ The station master at the Jungfraujoch hereby confirms that the holder of this passport has visited Europ’s highest – altitude railway station , the Jungfraujoch ----Top of Europe...3454 m...11,333ft........
हमें बताया गया कि रेल टेक्नालाजी के मानक पर पूरे विश्व में इस रेलवे की कार्यप्रणाली का लोहा माना जाता है क्योकि यह साल के बारहों महीने प्रतिदिन सैलानियों की सेवा में लगी रहती है ! पहली अगस्त 1912 को इस पर पहली बार ट्रेन चली थी और 9,3 कि०मी० की यात्रा सकुशल पूरी हो सके इसके लिए इसके पास अपना फायर ब्रिगेड ,जेनरेटेड इलेक्ट्रिसिटी ,हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर स्टेशन उपलब्ध है ! अब हम प्राप्त दिशा निर्देशों के अनुसार अलेत्च ( Aletsch ) ग्लेशियर का रोमांच ले रहे थे !सबसे पहले जुन्ग्फ्रू पैनोरमा स्क्रीन पर इस रेलवे के निर्माण की जानकारी और फिर ग्लेशियर के अलग अलग दृश्य देखने को मिले !इसके बाद एक बड़ी लिफ्ट से हम 3571 मीटर की ऊँचाई के स्फिनेक्स टेरेस (Sphinx Terrace) पहुंचे जहाँ 1931 में पहले रिसर्च स्टेशन फिर 1950 में खगोल विज्ञान केंद्र और 1996 में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया ! यहाँ से दूर दूर तक की पर्वत श्रृंखलाएं यहाँ तक की अगर मौसम साफ़ रहे तो फ्रांस और जर्मनी के ब्लैक फारेस्ट भी दिखाई देते हैं !उस समय लगभग 8 डिग्री तापमान था और स्वेटर टोपी से आराम मिल रहा था !खिली हुई धूप थी फिर भी तेज़ हवाओं के चलने से मौसम में नरमी थी ! ग्लेशियर के तीसर चरण में स्लेज पार्क नामक ढलान की पहाड़ी छोटी थी जहां आप स्कीइंग और स्नोबोर्डिंग कर सकते थे और केबिल कार से और नीचे जा सकते थे ! आती जाती केबिल कार से लोग लगभग चीख कर और अपने हाथ हिला कर इस अद्भुत रोमांच की अभिव्यक्ति कर रहे थे !हमारे साथ गई एक सदस्या तो इतनी डरी- सहमी थीं कि गाइड को एक पल छोड़ नहीं रही थीं !नीचे और भी कई तरह के यंत्र मिल रहे थे जिसके सहारे अनेक पर्यटक बर्फ की चादरों पर फिसल रहे थे,कुछेक पहाड़ी कुत्तों के रथ की सवारी कर रहे थे !एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को जोड़ने वाले पुल को पैदल पार कर उस पार आ - जा रहे थे ! लेकिन इसके बाद जब हम आइस पैलेस में घुसे तो लगा कि हम सब हिम युग में आ गये हैं !सन 1934 में दो गाइडों ने लगभग 1000 मीटर के एक ऐसे हिम खंड को तराशा जहाँ 12 महीने और 24 घंटे बर्फ पिघलती ही नहीं है !अगर पिघलती भी है तो मात्र 15 से०मी० प्रति वर्ष के हिसाब से !जब हम अन्दर घुसे तो अन्दर का तापमान माइनस तीन डिग्री था ! भरपूर लाइटों से कन्दरा जगमगा रही थी लेकिन हम सब लगभग ठिठुर रहे थे !हम बर्फ की ऎसी कन्दराओं में घिरे थे जहां बर्फ को करीने से काट कर सुंदर आकृतियों का रूप दे दिया गया था !ठिठुरते हुए भी फोटोग्राफी का आनन्द हम उठाने में लग गये !इसके बाद हम फिर लिफ्ट से नीचे आये और उसी ग्लेशियर में पूर्व निर्धारित रेस्तरां में भोजन किये !इसके बाद वहीं के एक बड़े स्टोर से लोगों ने चाकलेट,कपड़े और घड़ियाँ खरीदीं जो अत्यधिक महंगी प्रतीत हुई ! बताते हैं कि स्विट्जरलैंड में दुग्ध और दुग्ध उत्पाद, ख़ास तौर से चाकलेट्स, का उत्पादन पूरे विश्व में सबसे ज्यादा होता है और यहाँ के लोग एक साल में दस किलो तक के चाकलेट खा जाया करते हैं ! लगभग 4 बजे हम लोग अपने बस पर सवार होकर ब्रेंज और थुन्न नामक दो खूबसूरत झीलों के बीच बसे इंटरलाकेन के सिटी टूर पर निकल पड़े ! पार्किंग में बस खड़ी हो गई और हम लोग बाजार में निकल पड़े ! बड़ी बड़ी दुकानें ,सडक पर दौडती आलीशान बसें, ट्राम और बघ्घागाड़ियां ! सायकिल भी अपनी लेन में धड़ल्ले से लोग चला रहे थे !गाइड ने बताया कि इस जगह पर जब से शाहरूख खान की” दिलवाले दुल्हनिया....” की शूटिंग हुई है हिन्दी फिल्मों की ढेर सारी शूटिंग आज भी हुआ करती है ! सचमुच वह इलाका आधुनिक और पुरातन का मिलन बिंदु था ! चारो ओर खूबसूरती लिए हरी भरी पहाड़ियां , एक जैसे मकान और करीने से सजी दुकानें ,सामने बहुत बड़ा खुला मैदान जहां पैराग्लाइडिंग हो रही थी और सडकें दोनों ओर मौसमी फूलों से घिरी हुई ! खुले मैदान के चारो ओर बैठने के लिए बेंच , जगह जगह कूड़ेदान और हां पानी पीने के लिए टोंटी !वैसे तो पूरा का पूरा स्विट्जरलैंड खूबसूरती की मिसाल है लेकिन इस शहर का भी जबाब नहीं ! शाम ढलने को थी और हम अब रात्रिकालीन विश्राम के लिए लोविन होटल की ओर बढ़ चुके थे जो शहर से 30-35 कि०मी० दूर था ! लन्दन छोड़ने के बाद हमें जितनी जगहें ठहरने को मिलीं वे शहर से एकदम दूर वीरान खेत खलिहान वाले इलाके के रिजार्ट थे या होटल ! गाइड का कहना था कि इससे अगले दिन निकलने में आसानी हुआ करती है क्योंकि शहर में बड़ी बसों का निकलना कठिन होता है !बहरहाल यह तो उसका पक्ष था लेकिन हमारा यह अनुमान था कि ट्रेवेल एजेंसी अपना ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए ऎसी जगहों को चुनते है जहां शहर से दूर होने के कारण आम तौर पर सैलानी नहीं पहुंच पाते हैं ! देर रात में सोना और सुबह सुबह जाग कर सैर के लिए निकल लेने की हम सबकी दिनचर्या बन चुकी थी !जब भारत में घरवालों को फोन मिलाने की फुर्सत हमें मिलती तो पता चलता कि वहां तो आधी रात बीत चुकी है !एकाधिक बार यही हुआ जब हम अपने यात्रा रोमांच को अपने बेटे को बताना चाहे तो उसने सुन तो लिया लेकिन अनमने ढंग से और जब मैंने पूछ ही लिया कि क्या बात है ,कुछ परेशानी तो नहीं तो उसने बताया कि डैडी जी रात के एक बजे हैं और हम गहरी नींद से आपका फोन अटेंड कर रहे हैं !
आज आठवें दिन की यात्रा में इन्सब्रक (आस्ट्रिया) , लूक्रेंन (स्विट्जरलैंड) और वाडूज़ (Liechtenstein) की सैर सम्मिलित था ! सुबह 8 बजे हम लोगों ने यात्रा प्रारम्भ की और हरे भरे खेतों ,पर्वतों, साफ़ सुंदर झीलों और गाय के गले में बंधी घंटियों के मधुर स्वरों का आनन्द लेते हुए सबसे पहले मर्मस्पर्शी “लायन मानुमेंट” को देखने गये ! जैसा कि नाम से ही जाहिर है यह एक शेर की स्मृति में बनाया गया स्थान था जिसने अपने पालक राजा की रक्षा करने और नाकामयाब होने पर लगभग रोने की मुद्रा बना कर घायल पड़ा था ! देश ने इंसान और जानवर के बीच ऐसे मर्मस्पर्शी सम्बन्धों को यादगार रखने के लिए इसे बनाया और संरक्षित किया ! इसके बाद हम झील के बीचो बीच लकड़ी के बने और आज भी उपयोग में आ रहे अनोखे सुसज्जित चैपल ब्रिज का दीदार करने पहुंचे जो कल्पना से परे था ! लगभग 5-6 किलोमीटर लम्बा यह विश्व का अकेला लकड़ी का पुल था जो आज भी अपनी निर्माण शैली से सबको दीवाना बनाये हुए है !बाकायदा लोग उस पर लोग आ- जा रहे थे ! इसके बाद वहीं के एक अत्यंत सुसज्जित जेसुइट चर्च हम लोगों ने देखा और चूंकी गाइड ईसाई थे इसलिए इस चर्च में हमने भी प्रेयर किये !एक बात बताना चाहूँगा कि मैंने बार बार यह महसूस किया है कि जब हम कई भाषा और धर्म के लोग एक साथ किसी एक मिशन पर होते हैं तो जाने वह कौन सी ताकत है जो हमें एक ऎसी गाँठ में बाँध लेती है कि सबका मजहब सबका धर्म एक हो जाता है और सब संकीर्णताओं से ऊपर उठ जाते हैं !चर्च में एकदम नीरवता , शायद ऊपर वाले से सम्वाद करने के लिए सर्वाधिक अनुकूल जगह !चर्च से निकल कर हमलोग विश्व के पांचवे सबसे छोटे शहर वाडूज़ की ओर बढ़ गये जो Liechtenstein देश की राजधानी है ! वाडूज़ डाक टिकटों के लिए भी प्रसिद्ध है !यहाँ भी प्राकृतिक सौन्दर्य भरा पड़ा है ! शहर को बस से ही देखते हुए अब हम आस्ट्रिया की ओर बढ़ रहे थे ! आस्ट्रिया में सबसे पहले वाटेंस नामक जगह पर विश्व प्रसिद्ध “स्वरोस्की क्रिस्टल वर्ल्ड “ नामक एक स्थान पड़ा जहाँ हम सबने रुक कर विश्व के सबसे बड़े और सबसे छोटे क्रिस्टल को देखा ! इस स्थान की बाहरी और आंतरिक साज सज्जा अतंत ही उत्कृष्ट थी ! अन्दर एक रहस्यमय दुनिया में नीली रौशनी के बीच क्रिस्टल से बनी वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया था ! इसे देखने के बाद हम सीधे ओलम्पिया होटल पहुंचे जहां हमें रात्रि विश्राम करना था !
अगली सुबह हम आस्ट्रिया से इटली के शहर टस्कनी की ओर बढ़ रहे थे !उस सुबह 17 डिग्री का तापमान था और हम 1560 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर थे !रास्ते में पहाड़ों का अंतहीन सिलसिला , अंगूर के बागीचे ,खेतों मे लहलहाती फसलें और ब्रेंटा नदी का मनोरम दृश्य दिखा ! दोपहर बाद हम विश्व प्रसिद्ध कलात्मक “फ्लोरेंस “ शहर में दाखिल हो चुके थे ! यह पुनजागरण का केंद्र भी रहा है ! यहीं दुनिया के चौथे सबसे बड़े कैथेड्रिल ड्युमो है जो संयोगवश उस समय खुला था और हम सबको देखने को मिल गया ! इसके बाद एक बेहद पुराना अभी भी उपयोग में आ रहे पुल “पोंटे विच्चो” देखने गये !इस शहर की एक ख़ास बात यह थी कि सभी बिल्डिंग एक ऊंचाई की थी ,कोई भी बिल्डिंग अलग से नहीं दिखती थी !इसके बाद हम टस्कनी की ओर बढ़ रहे थे जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना था !
यात्रा अब धीरे धीरे अपनी आखिरी मंजिल की ओर बढ़ रही थी !हमारी यात्रा का यह दसवां दिन था ! सुबह 8-30 पर हम बस मे सवार हो चुके थे और गाइड बता रहा था की अब हम इटली की राजधानी रोम और दुनिया के सबसे छोटे देश वैटिकन सिटी की यात्रा के लिए निकल रहे है !अन्य देशों की अपेक्षा इटली गर्म देश है !जब हम प्रवेश किये तो दिन का तापमान 25 डिग्री था !गाइड ने बताया कि दो जुडवा भाइयों रोमुलस और रेमस ने 753 बी०सी० में रोम की स्थापना की थी !आज इटली को फैशन कैपिटल कहा जाता है !उसने Itli शब्द को परिभाषित किया – I trust and love you.उसी ने यह भी बताया कि इटली के लोग भारतीयों से बहुत समानता रखते हैं !हालांकि वे थोड़ा सुस्त है !एक और रोचक बात उसने यह बताई की इटली के लोगों का हाथ अगर बाँध दिया जाय तो वे बोल नहीं पायेंगे ( If you tied their hands they will be dumb.)हाँ , सीमा में घुसते ही सूरजमुखी फूलों की खेती का अंतहीन सिलसिला देखने को मिला !सबके सब खिले हुए , मानो हमारा स्वागत कर रहे थे !
रोमन कैथोलिक ईसाई धर्म के सबसे पवित्र स्थान को देखने की हम सब में अत्यंत आकुलता थी !वैटिकन सिटी में घुसते ही लगा मानो हम मध्यकालीन युग में आ गये हों !सारी बिल्डिंगे एक कलात्मक रूप लिए हुई आज के वास्तु कला को आइना दिखा रही थीं !बस में एक इटैलियन महिला गाइड आ गईं और उन्होंने इटली और वैटिकन सिटी के बारे में बताया ! हमें बस एक पार्किंग में छोडकर आगे पैदल चलना पड़ा ! कई संकरे रास्तों से होकर गाइड हमें सेंट पीटर्स स्क्वेयर ले आईं !काफी बड़ा गोलाकार अहाता , कहीं फव्वारा तो कहीं आदमकद मूर्तियाँ और सब कुछ सुसज्जित और नयनाभिराम !उससे होकर हम आगे बढ़े और गाइड ने हमें लाइन में लगने को कहा ! अब हम विश्व के सबसे बड़े सेंट पीटर्स बेसिलिका चर्च में प्रवेश कर रहे थे ! सचमुच इतना बड़ा हाल तो मैंने अभी तक कहीं भी देखा ही नहीं था ! चारो दिशाओं में मूर्तियाँ ही मूर्तियाँ ! ऊपर संग्रहालय !और इसी चर्च के पीछे हिज हाईनेस पोप का महलनुमा आवास था जिसके द्वार पर बहुरंगी पोशाक पहने दो संतरी ड्यूटी दे रहे थे ! बताया गया कि रविवार के दिन यहाँ अवकाश होता है और उस दिन सारे रास्ते लगभग बंद कर दिए जाते है और सारे नागरिक इस चर्च की प्रेयर में इकठ्ठे होने का प्रयास करते हैं , यहाँ तक कि सडकें भी इस जमावड़े से भर जाती हैं !उस दिन पोप जन सामान्य को दर्शन भी देते है !लगभग एक घंटे चर्च में बिता कर हमने वहां से विदा लिया ! अब लगभग 3 बज रहे थे और गाइड हमें एक भारतीय रेस्तरा में भोजन कराने ले गया ! भोजन के उपरान्त रोम के जाबांज योध्धाओं की स्मृति में बने एम्पी थियेटर कोलोजियम को देखा जो अपने इतिहास के लोमहर्षक लम्हों की याद में अब भी खड़ा है ! बताया जाता है कि यह वही जगह है जहां राजा की उपस्थिति में रोमवासी इकठ्ठे होकर क्रूर से क्रूर जानवरों से बहादुरों की लड़ाई का रोमांच उठाते थे और जानवरों की दहाड़ और जन समुदाय के कोलाहल से धरती कांप उठती थी ! उससे थोड़ी दूर आगे और भी कई स्मारक अवशेष हैं जो अपने वैभवशाली अतीत का किस्सा बयान करते हैं !अंत में हमने एक बहुत बड़ा और भव्य ट्रेवी फाउन्टेन को बाहर से देखा जो मरम्मत के चलते बंद था !शाम ढलने को थी और हम अपने रात्रिकालीन विश्राम के लिए शहर से दूर के “होटल पार्क “ के लिए अरीजू नामक स्थान जा रहे थे जो टस्कनी के हाइवे पर था जहां हमें कल जाना था !
सुबह 8-05 बजे हमलोग 25 डिग्री तापमान में एक बार फिर बस में सवार होकर टस्कनी जा रहे थे जहां से आगे जाकर हमें पीसा की झुकी हुई मीनार (Field of Miracles ) का दीदार करना था !अब तक सिर्फ किताबों में पीसा की झुकी हुई मीनार को पढ़ा करते थे , आज हम उसके सामने खड़े थे !बताया जाता है कि यहाँ की मिट्टी में कुछ ऐसा गुण था कि जब यह मीनार खड़ी की जा रही थी तभी इसके एक ओर झुकने का क्रम शुरू हो गया था ! यह भी बताया जाता है कि पोप का विरोध करने पर भौतिक वैज्ञानिक गैलीलियो को मरवा दिया गया था और उसकी याद में ये मीनारें बनाई गई !किन्तु पिछले वर्षों इस मीनार को मरम्मत के लिए लगभग एक साल बंद कर दिया गया था क्योंकि अनपेक्षित रूप से यह एक ओर ज्यादा ही झुकने लगी थी जिसे ठीक किया गया ! इसी के साथ ड्यूमो (कैथे- ड्रिल ), बेल टावर ,आदि भी देखे !लगभग 12-45 पर हमने पीसा छोड़ा और वेनिस के रास्ते में “ राजस्थान होटल “ में भोजन किया गया !आज का ख़ास मीनू था पिज्जा !इटली की धरती पर जन्म लिए इस खाद्य पदार्थ की दुनिया आज दीवानी हो चुकी है , ख़ास तौर से युवाओं में यह सर्वाधिक प्रिय बन चुका है !हमारी पर्यटन टीम में भी पिज्जा के दीवाने थे सो मानो उनकी मुराद पूरी हो गयी !हम लोग अपने सीमित जैनी शाकाहार भोजन से संतुष्ट हुए !
इस ट्रिप की एक और मजेदार बात शेयर करना चाहूँगा कि हमारे गाइड ने यह तो बताया ही था कि आपको लघु या दीर्घ शंकाओं के लिए कदाचित कई जगहों पर पैसा भी देना पड़ेगा और हो सकता है कि इसके लिए लाइन भी लगानी पड़े ! हाँ , सिक्कों के लिए मशीने भी लगी हुई थीं ! उसने यह भी बताया कि सार्वजनिक रूप से इस कार्य के सम्बोधन के लिए उसने एक शब्द “ लूजियाना “ की खोज की है और वह चाहेगा कि हम सभी इसी शब्द का प्रयोग करें !सो बस चलते चलते अगर देर हो जाती थी तो यात्रियों की पुकार शुरू हो जाया करती थी – लूजियाना , लुजियाना !मैंने इस शब्द पर अपना ध्यान केन्द्रित किया तो सचमुच ही इसे अर्थ संगत भी पाया , आखिर हम सब कुछ न कुछ लूज ही तो कर रहे थे – चाहे वह शरीर से तरल पदार्थ हो या पाकेट से पैसा ! एक बात और कि इस काम के लिए पैसा देना बहुत अखरता था क्योंकि भारत में यह सुविधा (ख़ास तौर से लघु शंका) निःशुल्क और सर्वत्र सहज ही उपलब्ध है !
दोपहर चढ़ रही थी और दिन का तापमान 34 डिग्री तक पहुंच चुका था ! मै आपको बार बार इन देशों के मौसम और ख़ास तौर से तापमान के बारे में इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि ये देश साधारणतः अपनी ठंढक के लिए जाने जाते है जब कि अब यह धारणा बदल रही है और लाख जतन और उपाय करने के बावजूद ये देश भी पर्यावरण असंतुलन से ये अछूते नहीं रह गये हैं ! लगभग 1-30 बजे हम अपना लंच समाप्त कर के पीसा से पडोवा के लिए निकल गये ! पडोवा होते हुए हम लैगून सिटी ऑफ़ वेनिस ( समुद्र के निचले किनारों से घिरी हुई उथले पानी की झीलों वाला शहर जो समुद्र से अलग भी हो ) लगभग 5 बजे शाम को पहुंचे !
गाइड ने बताया कि वेनिस को यहाँ Venezia नाम से उच्चारित करते हैं और यह 117 छोटे आइलैंड पर बसा हुआ अत्यंत पुराना पोर्ट वाला शहर है जहां से सारी दुनिया में व्यापार की शुरुआत हुई थी !यहाँ नागरिक या तो पैदल चलते है अथवा नहरों के अन्दर बसे अपने मकान और दुकानों में जाने के लिए गंडोला (एक विशेष प्रकार की नाव )का उपयोग करते हैं !गाइड ने हमें जैसा निर्देश दिया हम लोग लाइन लगा कर त्र्रान्चेत्तो पाएर ( Tronchetto Pier) पर खड़े क्रूज पर सवार हुए और अनेक कैनाल से होकर वेनिस के स्वर्णिम अतीत के मौन किन्तु मुखर ऐतिहासिक स्थलों को देख रहे थे और अपने अपने कैमरों में कैद करने लगे !इस क्रूज ने हमें सेंट मार्क्स स्क्वायर ( Piazza San Marco ) नामक एक खुले और सुसज्जित तट पर पहुंचाया जिसे नेपोलियन ने “Finest Drawing room in Europe “ की पदवी से नवाजा था ! समुद्र के बीचोबीच कांस्य रंग की लगभग 500 साल से पड़ी बंजर धरती का एक मनोहर टुकडा दिखाई दे रहा था ! यहीं पर राजा का आलीशान महल (Doge’s Palace)और उसी के बगल में एक नहर से विभाजित जेल (Bridge of Sighs)की बिल्डिंग भी पानी में ही खड़ी थी !गाइड ने बताया कि जेल में बंद कैदियों को पेशी के दौरान राजमहल में इसी पुल से होकर ले जाया जाता था !मृत्युदंड पाए कैदी आखिरी बार इसी पुल से जल,थल और नभ का दीदार करते थे ! गंडोला की सवारी हमने भी की !गाइड ने एक और कहानी बताई कि परम्परा से प्रचलित कथा के अनुसार कैसानोवा नामक एक प्रेमी इस जेल से भाग निकले में सफल हो गया था जो आज एक इतिहास पुरुष बन गया है ! उस जगह पर ढेर सारे नीग्रो सामान बेंच रहे थे !कुछ जगहों पर कैसीनो और कुछ जगहों पर सेक्स शॉप भी देखने को मिले ! समुद्र के किनारे कई दुकानों पर पेंटिंग्स बिक रही थीं !लगभग २ घंटे बिता कर हम वापस उसी क्रूज से पहले वाली जगह पर आये !वेनिस की यह मनोहारी शाम अब सिंदूरी हो चली थी और दिल यहाँ से जाने को ही नहीं कर रहा था ! फिर भी बस में सवार होकर हम वेनिस के ही एक भारतीय होटल “राज दरबार “ के रेस्तरा में भोजन के लिए पहुंच गये थे ! भोजन के बाद फिर से बस पर सवार होकर मिलानो जाने वाले हाइवे पर स्थित एक जगह( Praia) प्राया हम सब रात 10 बजे पहुंचे जहाँ पोस्ता -77 नामक होटल में हमें ठहरना था !मैंने होटल के मैनेजर से होटल में ठहरने और खाने के शुल्क के बारे में जब पूछा तो उसने बताया कि 22 यूरो में लंच ,28 यूरो में डिनर और 180 यूरो में ( 40 यूरो टैक्स) 24 घंटे के लिए एक डबल बेड रूम उपलब्ध है !मुझे तो चक्कर आ गया !गनीमत थी कि हमें कुछ नहीं देना था क्योंकि यह सब हमारे ट्रेवेल एजेंसी के खर्च में शामिल था !होटल बढिया था और पूरी यात्रा में हमें पहली बार यहाँ कमरों में पंखे टंगे मिले जिससे रात में हम चैन से सो सके क्योंकि बहुत गर्मी थी ! रात का तापमान 32 डिग्री था !यात्रा की यह आखिरी रात थी और अगले दिन हमें 9 बजे ब्रेक फास्ट लेकर चेक आउट होना था ! जहां हम ठहरे थे वहां से मिलान शहर 18 कि० मी० की दूरी पर था और हमें रास्ते में लंच के लिए रुकना था ! मिलान के रास्ते में जाते हुए गाइड ने फीड बैक फ़ार्म बांटे जिसे सभी ने भर कर दे दिया ! अब बस के सभी यात्रियों के बिछड़ने का दिन आ गया था और सभी एक अनजाने डोर से बिछुड़ने के डर से भावुक हो रहे थे ! लंच लेकर थोड़ी ही दूर चल कर हम अब मिलान शहर में दाखिल हो चुके थे !
इटली के मिलान शहर से ही हमें अपनी वापसी फ्लाईट भी पकडनी थी इसलिए यह तय हुआ कि इस शहर को बस से ही घुमा दिया जाएगा !हालांकि यह बहुत अच्छा प्रस्ताव नहीं था किन्तु चूंकि कुछ लोगों को अपनी फ्लाईट की लिए शाम 5 बजे ही चेक इन होना था इस लिए विवशता थी ! मिलान की पहचान यहाँ का सबसे बड़ा कैथेड्रिल ड्युमो ( Duomo) है जिसकी ऊंची छत पर इसके ऊंचे आवर्त के बीच घूमा जा सकता है ! यहीं से गोल्डन मेडोना भी देखा जा सकता है और सनडायल से अपनी घड़ियाँ भी मिलाई जा सकती हैं जो हमेशा सही समय बतात्ती रहती हैं !यहाँ 16वीं शताब्दी में स्थापित एक म्यूजियम है जिसमें साइंस और टेक्नालोजी के लगभग 10,000 प्रदर्श रखे गये हैं !पार्को सेम्पियोंन और जियार्दिनी पब्लिकी दो ऐसे बड़े हरित स्थल हैं जहां बहुतेरे पर्यटक आते हैं !कई एक लग्जरी फैशन स्थल हैं और 2,800 सीटों वाला थियेटर भी है जहाँ ओपेरा,बैले या कसर्ट होते रहते हैं !जिस तरह से पेरिस में आप दुमंजिले बस में बैठे बैठे शहर का दीदार रात में खाते पीते कर सकते हैं ठीक उसी तरह बल्कि उससे और भी आगे आप मिलान में एतीमोस्फेरा ट्राम में रेट्रो स्टाइल में इतालवी व्यंजनों का स्वाद चखते हुए शहर देख सकते है , हाँ , इसके लिए आपको पहले से बुकिंग करानी पडती है ! मिलान में इसके अलावे विसकोंटी किला (जिसे कैसेली स्फोजैस्को के नाम से जाना जाता है ) में सात विशेष संग्रहालय ,चर्च आफ सांता मारिया डेले ग्रेजी (जिसमें लियोनारडो दा विंसी की लोकप्रिय पेंटिंग ‘ द लास्ट सपर ‘ देखी जा सकती है ),ब्रेरा डिस्ट्रिक्ट प्रमुख कला केंद्र ,और नाविगली की नीली नहर ( जो अपनी नाईट लाइफ के कारण दुनिया में मशहूर हैं ) अवश्य ही दर्शनीय केंद्र हैं !और हाँ , मिलान लोम्बारदी वाइन के लिए भी बेहद मशहूर है ! याद रहे कि यहाँ आप बुताफियुको ,सेंगुई डी ग्युदा ,बारबरा पिन्टो एवं बोनार्दा जैसे वाइन का भी स्वाद चख सकते हैं ! इन जगहों को देखते हुए और यूरोपीय देशों की इस यात्रा का आखिरी पड़ाव नजदीक आते देख सभी भावाकुल हो रहे थे ! ईरा और गीताली नामक दो छोटी बहनों ने चलती बस में ही ढेर सारे फेयरवेल गीत गाये..’.कभी अलविदा ना कहना ‘...,’अच्छा तो हम चलते हैं ...’,’ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना ...’ ‘हम तो जाते अपने गाँव सबको राम राम राम ..’ और हाँ , मूड ठीक करने के लिए गाइड ने भी भरसक प्रयास किया !उसने सहयात्रियों की दो टीम बनाई और दोनों टीमों को “पिंग, पैन्ग ,पांग “ शब्दों का बारी बारी से उच्चारण करने को कहा ! जो टीम गलत बोलती या बोलना भूल जाती उसे आउट माना जाता था !लोगों को यह खेल खूब भाया ! शाम लगभग 4-50 तक हम सब मिलान के एयरपोर्ट पर पहुंच गये ! गाइड ने हम सबको अपनी- अपनी फ्लाईट का बोर्डिंग पास लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी कराने में यथा संभव सहयोग किया ! उसे वापस लंदन जाना था, हम जैसे ही भारत से आये पर्यटकों की किसी और टीम का दिशा निर्देशन करने के लिए और हमें वापस अपने -अपने घर !
उन सभी से बिछड़ते हुए ऐसा लगा मानो किन्हीं रक्त सम्बन्धियों से हम बिछड़ रहे हों !यूरोपीय देशों की अपनी यह यात्रा आज भले ही अतीत की बात हो चुकी है लेकिन जाने क्यों दिल की गहराइयों में उन सभी जगहों की यादें आज भी उसी तरह तरोताज़ा जगह बनाये बैठी हुई हैं !
अगर कोई मुझसे इस यात्रा की स्मृतियों को एक वाक्य में समेटने को कहे ( हालांकि यह बेहद मुश्किल काम है, फिर भी ) तो निःसंदेह मै यही कहूँगा कि यूरोप यानि कि ..... “ धरती पर इंद्रधनुष!"