Last Part 3 कहानी - अनोखा पितृऋण
नोट - अभी तक आपने पढ़ा कि मोहन को एलीना के प्रेग्नेंट होने की जानकारी मिल गयी थी हालांकि एलीना ने स्वयं नहीं बताया था , अब आगे पढ़ें ….
" फिर क्या कहा डॉक्टर ने ? “
एलीना को खामोश देख मोहन ने कहा “ एलीना , डॉक्टर ने मुझे सब कुछ साफ़ शब्दों में बता दिया है .सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता . हाँ , अगर तुम पूरा वाकया सच सच बता दो तो शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ . मुझ पर भरोसा करो , मैं कभी भी तुम्हारा बुरा नहीं सोच सकता हूँ .”
एलीना ने कहा , " इस दुनिया में मुझे सिर्फ आप पर ही भरोसा है ."
फिर कुछ देर तक दोनों खामोश रहे .
मोहन ने फिर पूछा " तुमने कुछ बताया नहीं . तुम्हारे इस हाल का जिम्मेदार कौन है ?"
एलीना नज़रें झुकाये थी और आँखों से आँसूं की बूँदें पत्थर की बेंच पर टपक रहीं थीं .
फिर बोली " मैं तो समझ रही थी कि माँ ने आपको सब कुछ बता दिया होगा . पर लगता है आप पूरी सच्चाई नहीं जानते हैं .आप सच जानने के बाद भी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे ".
" ऐसा नहीं है , तुम बोलो तो सही .मैं इस बच्चे के पिता से मिलकर सब ठीक कर दूंगा "
इस पर एलीना बोली " अगर वो आपको नहीं मिला तो ?"
" तो फिर मैं इसे अपना नाम दूँगा ." मोहन ने बिना सोचे समझे एक झटके में कह डाला
एलीना बोली " ऐसा नहीं हो सकता है . आप उच्च जाति के हिन्दू और मैं ईसाई ठहरी ."
" मुझे जाति , धर्म आदि बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता यह तो कोई समस्या नहीं है मेरे लिए . मैं आधुनिक विचारों का हूँ .मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने दूँगा .मैं जैसा कह रहा हूँ उस पर गंभीरता से सोचो और मुझे सच सच कहो ."
एलीना आगे बोली " दर असल समस्या अत्यंत जटिल है और इसका निदान आपके पास नहीं है .इसे मुझे अकेले ही झेलना होगा . इसे लेकर मैं किसी और को परेशान नहीं करुँगी ?"
" इसमें परेशानी की कोई बात नहीं है .मैं कल ही पिताजी से बात कर कोर्ट मैरेज फिक्स कर लेता हूँ " मोहन ने कहा .
" नहीं नहीं यह तो असम्भव है . कभी भूल से भी यह भूल नहीं करें वरना सत्यानाश हो जाएगा और वो पल शायद मेरे जीवन का अंतिम पल हो . अगर ऐसा हुआ तो मैं जी नहीं सकती , मुझे आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं करें आप . " एलीना बोली .
“ नहीं , नहीं तुम ऐसा नहीं करोगी . मैं कुछ और उपाय सोचता हूँ . “
कुछ देर तक दोनों खामोश बैठे रहे फिर मोहन बोला " एक और आसान तरीका है .अभी तो बहुत अर्ली स्टेज में गर्भ है .मेरे जान पहचान का एक डॉक्टर यहाँ है .उस से सलाह ले सिर्फ दवा से ही गर्भपात हो जायेगा ".
" नहीं नहीं मैं जीव हत्या का पाप नहीं करुँगी . हमलोग कैथोलिक हैं और हमारे समाज में एबॉर्शन एक घोर अपराध है . आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें . अपनी गलती की सजा मुझे ही भुगतने दीजिये " एलीना ने नाराज हो कर कहा
मोहन भी झल्ला कर बोला " यह भी नहीं ,वह भी नहीं ,आखिर तुम चाहती क्या हो ? मैं तुम्हारे आगे की राह आसान करना चाहता हूँ और तुम अपनी जिद्द पर अड़ी हो .मैं भी तुमसे कुछ ज्यादा ही जिद्दी हूँ .अभी अपने वकील मित्र को फोन कर कोर्ट मैरेज की सारी औपचारिकता पूरी करवा लेता हूँ . "
" आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे ,वरना सब कुछ ख़त्म हो जायेगा ."
" मैं कुछ नहीं जानता , तुम्हें फैसला अभी ही लेना ." मोहन ने काफी गुस्से में कहा .
" मैं इसे राज़ ही रखना चाहती थी . " एलीना बोलती रही , " अब जो सच मैं बोलने जा रही हूँ उसे सुन कर शायद आपको विश्वास न हो और सम्भवतः आपके जीवन का सबसे बड़ा सदमा हो . मेरे पेट में जो जीव पल रहा वह कोई और नहीं आपका सगा भाई या सगी बहन होगी ".
मोहन काफी देर तक भौंचक्का सा देखता रहा और अपने कानों को बंद किये रहा .
बहुत देर तक दोनों खामोश रहे .फिर मोहन ने कहा " तुम कहो तो मैं पिताजी से बात करूँ."
एलीना बोली " हरगिज़ नहीं 'सर 'को बीच में नहीं लाएं प्लीज ."
" अगर तुम गर्भपात करा लेती हो तो हमारी शादी में कोई बाधा नहीं होगी , सारी समस्या का यह सबसे आसान हल होगा ".
"नहीं , यह मुझसे नहीं होगा . और आप से शादी कर मेरी ज़िन्दगी तो मज़े में चल पड़ेगी. पर आपने कभी सोचा इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा - आप अपने ही भाई या बहन के पिता होंगे .बेहतर होगा मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें ". एलीना बोली
" अब मैं जो कहने जा रहा हूँ तुम उस पर गौर करो और तुम्हें मानना होगा . दुनिया की नज़रों में हम भले पति पत्नी रहेंगे , बस इतना ही रिश्ता होगा हमारा . और हमें अपने अपने धर्म को मानने की आज़ादी होगी .मेरे लिए यह एक अनोखा पितृऋण है जिसे मुझे चुकाना होगा . मुझे पिता की भूल की सजा भुगतनी चाहिए . पितृऋण उतारने का यही एक तरीका है . "
“ यह ठीक नहीं रहेगा , आप क्यों इतनी बड़ी क़ुर्बानी देंगे . मैं कहीं और चली जाऊँगी . “
“ तब लगता है मुझे ही मजबूर हो सुसाइड करना होगा . क्या तुम्हें यह मंजूर है ? “
“ मोहन बाबू ये क्या कह रह हैं आप ? ये रिश्ता कोई रिश्ता नहीं है . “
“ देखो , यह मेरा अंतिम और अडिग फैसला है . मैं तुम्हें माँ नहीं कह सकता हूँ पर तुम्हें पूरा सम्मान दूंगा . तुम्हें मानना ही होगा वरना मुझे मरना होगा . बोलो क्या चाहती हो , मुझे जीने देना चाहती हो या नहीं ?”
एलीना चुपचाप नजरें झुकाये खामोश रही . इसके बाद मोहन ने कभी भी अपने पिता से संपर्क नहीं किया . दुनिया की नजरों में एलीना और मोहन दोनों पति पत्नी थे . पर एक ही छत के नीचे रहते हुए भी उनका कोई रिश्ता नहीं था . दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे .
इस बीच बारह वर्ष बीत गए .एलीना का पुत्र लगभग ग्यारह वर्ष का हो चुका था .उसका नाम सूरज रखा था .इस दौरान मोहन एक दुर्घटना का शिकार हुआ . इस हादसे में मोहन के दोनों पैरों की हड्डी टूट गयी थी . वह अभी चलने फिरने की स्थिति में नहीं था . तभी उसके घर से एक मित्र का फोन आया और उसे पता चला कि प्रोफेसर साहब को दिल का दौरा पड़ा है और उनकी हालत नाज़ुक है . उनकी हालत नाज़ुक है , डॉक्टर के अनुसार वे शायद ही बच पाएं . प्रोफेसर चाहते हैं कि मरने से पहले मोहन एक बार उन से मिल ले .
मोहन तो जाने की स्थिति में नहीं था और एलीना भी ऐसी हालत में मोहन को छोड़ कर जा नहीं सकती थी .
मोहन ने पिता के नाम एक पत्र लिखा
पूज्य पिताजी ,
सादर प्रणाम
आपके स्वास्थ्य के बारे में जान कर बहुत दुःख हुआ .मेरे तो दोनों पैर टूटे हैं , मैं आने में असमर्थ हूँ . मैं एलीना का पुत्र सूरज को अपने मित्र के साथ भेज रहा हूँ .यह आपके स्वस्थ होने तक यथासंभव आपकी सेवा करेगा .और एक राज जो अबतक आपसे छुपा था वह जान कर आपको आश्चर्य होगा .सूरज और कोई नहीं आपका ही बेटा है और मेरा छोटा भाई . सूरज आपकी एक भूल का परिणाम है .वह आपका और एलीना का ही बेटा है. उम्मीद है आप अपने छोटे बेटे को स्वीकार कर उसे आशीर्वाद देंगे .
आपका
मोहन
इस पत्र को लिफाफे में सील कर सूरज को देकर प्रोफेसर साहब को देने को कहा . फिर सूरज को एक मित्र के साथ उसे अपने पिता के पास भेजा .
इधर प्रोफेसर साहब की हालत नाज़ुक बनी हुई थी . सूरज ने जा कर उन्हें वह पात्र दिया . उस पत्र को पढ़ कर उनकी आँखों से अविरल आँसू बह पड़े . उन्होंने सूरज को गले से लगाया . फिर उसके सर पर देर तक प्यार से हाथ फेरते रहे .तभी उनका हाथ एक ओर लुढक गया और उनकी सांसे रुक गयीं . सूरज अभी नादान था , उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था . यह खबर सुन कर भी मोहन आने की हालत में नहीं था . उसने एलीना को जाने के लिए कहा . एलीना ने आकर बेटे से कहा “ सूरज बेटे ये तुम्हारे पापा हैं . इनकी अंतिम क्रिया तुम्हें ही करनी होगी . “
प्रोफेसर दयानिधि की अंतिम क्रिया सूरज द्वारा सम्पन्न हुई . देखने वाले आपस में कानाफूसी कर रहे थे . माजरा क्या था किसी को समझ में नहीं आ रहा था . अंतिम क्रिया सम्पन्न होने के बाद एक वकील ने आ कर एलिना से कहा “ प्रोफेसर साहब ने एक वसीयत लिखी है , जिसके अनुसार उनकी चल और अचल सभी संपत्ति का वारिस उनका बेटा मोहन होगा . उन्होंने एक सील्ड लिफाफे में एक पत्र भी लिखा है .उन्होंने कहा था कि यह लिफाफा उनकी अंतिम क्रिया सम्पन्न होने के बाद ही खोला जायेगा . पर मोहन तो नहीं आया है . वसीयत तो मैं उसी के हाथ में दूँगा .”
“ आप जैसा उचित समझें . “ एलीना ने कहा
“ लिफाफे को खोलने के बारे में कहा था इसलिए इसे में खोल कर तुम्हें दिखा सकता हूँ .”
एलीना ने सिर्फ सिर हिलाया था . वकील ने लिफाफा खोल कर उसके अंदर से एक पत्र निकाल कर उसे पढ़ा .उसके अनुसार मोहन जब एक साल का था उसी समय प्रोफेसर और उनकी पत्नी ने उसे गोद लिया था . उन्होंने मोहन को अपने सगे बेटे से भी बढ़ कर प्यार दिया है . अपने जीवन काल में वे मोहन को यह बात नहीं बताना चाहते थे .उन्हें डर था कि कहीं सच जानने के बाद मोहन के मन में कुछ अलगाव की भावना न आ जाए . मोहन की सच्चाई जानने के बाद एलीना आश्चर्यचकित रह गयी .वकील को भी पहले से इस बारे में कुछ पता नहीं था .
वकील ने कहा “ कुछ दिनों बाद मैं खुद आ कर मोहन को यह वसीयत दे दूँगा .मैं जानता हूँ अभी कुछ दिनों तक वह चलने फिरने के लायक नहीं है .”
एलीना अपने बेटे सूरज के साथ लौट गयी . उसने जा कर मोहन को सच्चाई बतायी . मोहन को भी यह जानकार आश्चर्य हुआ . एलीना ने उस से पूछा “ एक बात पूछूँ , अगर आप बुरा न मानें तब ? “
“ हाँ , पूछो .”
“ क्या यह सच्चाई आपको पहले पता होती तब भी हमारा रिश्ता ऐसा ही रहता या कुछ और रह सकता था ? सूरज तो आपका सगा भाई नहीं है .”
“ नहीं , फिर भी मेरे फैसला वही रहता .आखिर सूरज के पिता भी मेरे पापा ही थे . उनकी गलती की सजा या पश्चाताप जो भी कहो , मुझे ही करना है . यह एक पितृऋण था जिसे मुझे चुकाना जरूरी था .अगर उनकी संपत्ति का उत्तराधिकारी मैं हूँ तो उनके ऋण का दायित्त्व भी मुझ पर है .इसलिए हमारा रिश्ता वैसा ही रहता और आगे भी वैसा ही रहेगा .”
“ मैं बस आपके मन की बात जानना चाहती थी . मुझे आपके फैसले पर ख़ुशी है . आप मेरे लिए देवता से भी बढ़ कर हैं .आपने जो क़ुर्बानी दी है वह बेमिसाल है .”
मोहन ने क़ुर्बानी दी थी , दुनिया की नजरों में वह एलीना का पति था . मोहन की कुर्बानी और पितृ ऋण चुकाने की एकमात्र गवाह सिर्फ एलीना ही बची थी .
समाप्त