like father like son in Hindi Short Stories by Ramesh Desai books and stories PDF | जैसा बाप वैसा बेटा

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जैसा बाप वैसा बेटा


आतुरता का अंत करते हुए मैंने कवर फोड़ दिया.

' साहस ' फ़िल्म के प्रीमियर शो देखने के लिये न्योता
आया था.

' गणेश फिल्म्स ' आप सभी को आमंत्रित करता हैं.'
उस के साथ जूनियर गणेश का फोटो भी छपा था.
कई साल पहले मेरा बड़ा बेटा नागेश घर छोड़कर भाग गया था. उसी ने यह न्योता भेजा था.

यह जानकर मेरी सारी थकान मिट गई थी.
अभी कुछ ही दिनों पहले मैंने अपनी बेटी को ससुराल बिदा किया था. उस की बिदाई का दुःख बेटे के इस न्योते से दूर हो गया. दिल में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गई.
मेरी आंखो के सामने छोटा नागेश खड़ा रह गया.
उस ने मेरी इज्जत पर हमला करने पर आमादा विजय की पीठ पर रामपुरी चाकू का वार कर के मौत के घाट उतार दिया था.

एक फ़िल्म के शूटिंग के दौरान मेरे पति की मौत हुई थी.

नागेश हत्या कर के रफ्फुचक्कर हो गया था.इस हालत में मैं बिल्कुल टूट सी गई थी.

उस वक़्त विजय ने मगर के आंसू बहाकर मुझे सांत्वना दी थी. सारी जिम्मेदारी अपने सिर उठाने का वादा किया था.
उस वक़्त निर्जन रण में जल प्राप्ति का अनुभव हुआ था. मैं ख़ुशी से फूली नहीं समाई थी.

लेकिन दूसरे ही पल मेरी ख़ुशी मातम में बदल गई थी.
यह वोही विजय था जिसने पुष्पा नायर नामक मशहूर फ़िल्म तारीका पर बलात्कार कर के मौत के घाट उतार दिया था.

उस की याद आते ही मेरा गुस्सा आग का गोला बन गया था. मैं उस पर बरस पड़ी थी. वह देखकर विजय बर्फ की तरह पिघल गया था.

फिर भी उसने बड़े स्वस्थ अंदाज में कुछ कहने का प्रयास किया था. लेकिन उस की जुबान ने साथ नहीं दिया.
उस की आंखो में शैतान घूरक रहा था.

फिर भी उस ने मुझे सांत्वना देने की कोशिश में मेरे कंधे पकडकर कुछ कहना चाहा.

उस के इस स्पर्श में हवस की बू आ रही थी.

मैंने उस के हाथो को झटका मारकर हटा दिया. और गुस्से में बाहर का रास्ता दिखाकर कह दिया :

" गेट आउट! "

लेकिन वासना अंध लोगों का शर्म से कोई लेना देना नहीं होता हैं.

उसकी नियत पकड़ जाने के डरसे वह क्रोधित हो गया.
और मेरा हाथ पकडकर पलंग की और खींचने लगा.
उस के दिलो दिमाग़ पर वासना का भूत सवार हो गया.
उस ने मेरा ब्लाउज फाड़ने की कोशिश की.

उस वक़्त मैं अपने बचाव के लिये चीखना शुरू किया.

वह सुनकर मेरा दस वर्षीय बेटा मेरी मदद के लिये आ पहुंचा.

उस ने विजय के बाल खींचकर अलग करने का प्रयास किया. उस के पेट के निचले हिस्से पर जोरदार लात का प्रहार किया.

विजय ने उस को धक्का दिया. उस का सिर दीवार से टकराया.

अपनी गंदी इच्छा पूर्ण न होने पर वह राक्षस बनने पर उतारू हो गया. उस का झनून देखकर लड़का रसोई गृह से रामपुरी चाकू उठा लाया.

विजय उस वक़्त मेरी इज्जत लूटने आगे बढ़ रहा था.
यह देखकर नागेश ने पीछे से विजय की पीठ में रामपुरी भोंक दिया और वह अल्लाह को प्यारा हो गया.

नागेश ने अपने बाप को खतरोसे लड़ते हुए देखा था.
उन्होंने केवल फिल्मों में ही नहीं बल्कि वास्तविक जगत में भी कई अबला नारी की सुरक्षा की थी, उन की इज्जत की रखवाली की थी.

उनकी बहादुरी बेटे को विरासत में मिली थी.

नागेश ने मेरी रक्षा करते हुए विजय का खात्मा कर दिया था. लेकिन बादमे वह बहुत ही भयभीत हो गया था और घर छोड़कर भाग गया था.

क़ानून के हाथ बहुत ही लंबे होते हैं.

हर परेशानी से पीछा छुड़ाने के लिये मैंने कत्ल का इल्जाम अपने सिर ले लिया था.

मुझ पर मुकदमा दायर किया गया था. . कोर्ट में केस जारी हुआ था उस वक़्त काबिल वकील की बदौलत में बच गई थी. कोर्ट ने मुझे निर्दोष होने का करार दिया था.

और कुछ ही दिनों में मैंने उस वकील से विवाह कर लिया था.

भोजन और दांतो के बीच काफ़ी अंतर था. देह भूखे भेड़ियों के बीच अपने आप को सलामत रखना मुश्किल प्रतीत हो रहा था.

नागेश के अलावा मेरे दो ओर बच्चे थे उन के लिये भी मुझे किसी तगड़े सहारे की आवश्यकता थी.

इस स्थिति में मैंने यह फैसला लिया था.

उन्होंने कभी अपने बच्चे की इच्छा नहीं की थी. सारी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई थी. नागेश को ढूंढने के अथाग प्रयास किये थे.लेकिन उस का कोई पता नहीं लगा था.

और आज जूनियर गणेश बनकर मेरी जिंदगी में वापस लौट आया था. उसे मिलने की इच्छा तीव्र बन गई थी.
पूरी रात अतीत की यादों में गुजारी थी.

पूरा रिकैप जारी था.

युवानी में मुझे भी फ़िल्मो में काम करने का चस्का लगाथा.उस लिये मैं एक पल मातृत्व की भावना को दाव पर लगाने को तैयार हो गई थी. मैं चार दीवारों के बीच रहने को पैदा नहीं हुई थी.

गणेश खुद भी नहीं चाहता था की मैं फिल्मों में काम करू.
लेकिन मैं जिद पर आ गई थी.

मुझे रोकने के सारे प्रयास नाकाम साबित हुए थे.
उसी वक़्त पुष्पा नायर का किस्सा याद आया था.
और मैंने फिल्मो में काम करने का सपना तोड़ दिया.
मेरा बचपन से ही फिल्मों में काम करने का सपना रहा था. सोनल देवी नामक अभिनेत्री मेरी रोल मोडल थी. उस ने तीनसों से अधिक फिल्मो में छोटी बड़ी भूमिका निभाई थी.

लाखो लोगों की चहरीती अभिनेत्री अपने देह के बलभूते वह यह मकाम तक पहुंची थी.

उस के बारे में मैंने भी काफ़ी कुछ सुना था.

एक मनहूस घड़ी में पुष्पा नायर को सोनल देवी जैसी अभिनेत्री बनाने का वादा किया था.

उसी ने ही सोनल देवी को सामने रखकर फ़िल्म की कहानी लिखी थी.

देह के बलभूते अभिनेत्री बनी हुई नारी के संघर्ष की बात पुष्पा के दिल को छू गई थी.

फ़िल्म के कुछ सीन्स यूरोप में शूट करने थे.

इस बात पर पुष्पा खुशी से पागल हो गई थी. उस के पैर जमीन पर टीक नहीं पाते थे.

शूटिंग के दौरान फ़िल्म की कहानी बदलती गई. पुष्पा से रोमांस करने के सीन्स की मात्रा बढ़ती गई.

शोट्स ओ के हो जाने के बाद वह चुंबन के शोट्स का रिटेक करता था.

यूरोप से लौटने के बाद विजय ने पुष्पा से सगाई की घोषणा कर दी थी. और पार्टी के बाद उसने संपूर्ण रूप से उसका यौन शोषण करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी..
और चौथे ही दिन अखबार और फ़िल्मी सामायिक में हेड लाइन्स बन गई.

पुष्पा की पूर्ण रूप से बदनामी की गई थी.

और उस के पीछे विजय का ही हाथ था.

शूटिंग के दौरान उस ने कई हस्तीयों के साथ शारीरिक संबंध जोड़े थे.

इतना ही विदेशी कलाकारों और ब्योपारी के साथ भी संबंध बनाये थे. और लाखो रूपये कमाये थे.

गणेश उस की आदतों से वाकिफ था.

विजय खन्ना ने उस की दूसरी फ़िल्म मुझे ओफर की थी.
उस वक़्त पुष्पा नायर के साथ वाकई में क्या हुआ था?
उस के बारे में हम लोग अनजान थे. इसलिए गणेश ने मुझे फ़िल्म में काम करने की अनुमति दी थी. लेकिन उस ने मेरे साथ रहने का प्रस्ताव दिया था.

और वह मेरे साथ विजय के स्टूडियो में आया था.

उस को देखकर विजय नाराज हुआ था.

उस ने दूसरे दिन फोन कर के कॉन्ट्रैक्ट साइन के लिये बुलाने का वादा किया था.

और दूसरी अभिनेत्री को अपनी फ़िल्म के लिये कास्ट कर लिया था.

तब जाकर पुष्पा की मौत का राज खुला था.

जिस ने मेरी आंखे खोल दी थी.

मैंने कभी भी फिल्मों में काम नहीं करने का फैसला कर लिया था..

उस के बाद पांच साल में मेरी कोख से तीन संतानो ने जन्म लिया था.

दो लड़के - नागेश और राधेश

और एक लड़की - पारुल

गणेश की जिंदगी खतरों से भरी हुई थी. उस के साथ कई हादसे हुए थे. कई बार गहरी चोटे पहुंची थी. कई दिनों बेकार हालत में बिताने पड़े थे.

घर कैसे चलाये? यह समस्या थी.

फ़िल्मी दुनिया माने मतलबी, खुदगर्जो की दुनिया.

यह सच्चाई मैं जान चुकी थी..

फिल्मों में क्लोज अप में मशहूर चेहरे दिखाते थे उस से ऐसा लगता था मानो हीरो लोग खतरे वाले स्टंट करते थे जो हकीकत में एक छलावा था.

गणेश ख़तरनाक खेल खेलता था और मुख्य अभिनेता को लोगों की वाह वाह मिलती थी.

मैं बार बार पति को ऐसे ख़तरनाक खेल ने से रोकती थी.
लेकिन यह काम उसे रास आ गया था. उस के अलावा उसे कोई महारत हांसिल नहीं था.

एक फ़िल्म में नायिका को लेकर गुंडे जीप में खंडाला मार्ग से पूना जा रहे थे.

गणेश विजय का डुप्लीकेट बनकर स्कूटर पर उन का पीछा कर रहा था.

स्क्रिप्ट के मुताबिक गणेश को स्कूटर की गति धीमी कर के कूद जाना था. कुछ शर्त चूक हुई और गणेश स्कूटर के साथ ब्रिज की दीवार फांदकर स्कूटर सहित पानी में डूब गया.

यह विजय का ही कोई षड़यंत्र का ही हिस्सा था.

उस ने ही मेरे पति को मौत के घाट उतार दिया था.

और इस हादसे को अकस्मात में तब्दील कर दिया गया था.

अंतिम श्वास लेते हुए विजय ने अपना गुनाह कबूल किये थे.

नागेश ज़ब छोटा था तो कई बार अपने पिता के स्टंट देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ था. उस के दिलो दिमाग़ में पिता के नक्शे कदम पर चलने की इच्छा पल रही थी.

वह घड़ी खतरों से लड़ने की बातें करता रहता था.
उस के इस रवइये से मैं काफ़ी नाराज थी. मुझे डर भी लग रहा था.पति को खोने के बाद मुझ में बेटे को खोने का साहस नही बचा था.

गणेश को फ़िल्मी दुनिया का कोई रंग नहीं चढ़ा था.
मैंने अपने संतानो को खतरों से दूर रखने के प्रयास किये थे. लेकिन नागेश अपने बाप के कदम पर चल ही पड़ा था.

दूसरे दिन शो के समय मैं अपने दूसरे बेटे राधेश को लेकर थिएटर पहुंच गई थी.

थिएटर के आसपास फ़िल्मी कलाकारों को देखने के लिये लोगों की भीड़ जमा हो गई थी.

भीड़ में किसी को कहते हुए सुना था.

" इस फ़िल्म के नायक ने खुद खतरों के दृश्य में काम किया हैं. उस ने कोई डुप्लीकेट का सहारा नहीं लिया हैं. "
बेटा बाप से कई गुना आगे निकल गया था. यह सुनकर मेरा सीना गर्व से फूल गया था.

फ़िल्मी दुनिया में रहकर भी वह मुझे भूला नहीं था.
मैं उसे मिलने के लिये, उसे गले लगाने बेताब हो रही थी.

मेरे दिलो दिमाग़ में तरह तरह के ख्याल उठ रहे थे.

" प्रीमियर शो बहूधा देरी से शुरू होते हैं. हिरो हीरोइन साथ बैठकर फ़िल्म देखते हैं. "

गणेश ने एक बार मुझे यह जानकारी दी थी.

शो शुरू होने में कुछ समय बाकी था.

उसी समय घंटी बज उठी.

और मैं राधेश कई उंगली पकडकर हॉल की तरफ आगे बढ़ी.

डोर कीपर हमें अपनी सीट तक ले गया.

उसी वक़्त एक आवाज मेरे कानो से टकराई.

" मा मेरे पास बैठो. "

सुनकर मैं ख़ुशी से अधमुई हो गई.

इतने साल बीत जाने के बाद, सभी प्रलोभन, सभी व्यवहार को पीछे रखकर उस ने मुझे उस के पास बैठने का सौजन्य दिखाया था.

मैं नि :संकोच उस के बाजु में बैठ गई.

और उस ने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया.

उस की यह आदत थी. जब भी उसे कोई दुःख होता था वह ऐसा ही करता था.

लेकिन आज ख़ुशी के मौके पर उस का ऐसा करना मुझे समज नहीं आया.

थिएटर के बाहर लोग उसे देखने के लिये इंतज़ार कर रहे थे.

और वह चुपचाप थिएटर के भीतर आकर बैठ गया था.

वह कब और कैसे भीतर आ गया था?

कुछ समज नहीं आ रहा था.

उस का यह व्यवहार कुछ संदेह जगा रहा था.

हो सकता था फ़िल्मी चाहकों से बचने के लिये उस ने ऐसा किया हो.

फ़िल्म शुरू हो रही थी.

टाइटल में कहानी लेखक के तौर पर नागेश का ही नाम दिखाया जा रहा था.

वह एक लेखक की बिरादरी में शामिल था. यह जानकर मेरी ख़ुशी की मात्रा में बढ़ोतरी हो गई.

देश के खिलाफ काम करने वालों को खतम करने का साहस नागेश ने अपनी फ़िल्म में प्रदर्शित किया था.
ज्यादातर दृश्य उस की निजी जिंदगी का ही प्रतिबिंब था.
मद्यांतर के समय एक सच्चाई सामने आई.

नागेश के दोनो पैर घूंटन से नीचे से काट दिये गये थे.
मेरी रक्षा करते हुए उस ने विजय को मौत के घाट उतार दिया था और वह भाग गया था. अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो नागेश का यह हाल नहीं होता.

यह सब नसीब की बलिहारी थी फिर भी मैं अपने आप को कसूर वार मानती थी.

घर से भागकर उसे श्रीकांत फड़के मिल गया था.

वह फिल्मों के लिये डुप्लीकेट कलाकार की हैसियत से काम करना चाहता था. लेकिन वह बहुत ही छोटा था. उस ने पहले नागेश को लिखा पढ़ाकर जीने के काबिल बनाया था. और उसे डुप्लीकेट कलाकार बनाने में सहायता भी की थी.

उस का यह साहस नाकाम साबित हुआ था.

शूटिंग के दौरान ही वह अपने पैरो को खो बैठा था.!

फ़िल्म के अंत में उस के सन्मान के लिये एक समारोह आयोजित किया जाता हैं. फ़िल्म की मूल स्क्रिप्ट के मुताबिक वह अच्छा खासा मेडल लेने को जाना था. लेकिन वह अपंग हो गया था. इस हालत में वह जा नहीं सकता था.

सारा फ़िल्म जगत नागेश की सच्चाई जानता था. लेकिन न तो उस ने मुझे कुछ बताया था न मेरे पास आया था.
अपनी पंगुता को छिपाने के लिये उसे ऐसा करना पड़ा था.
फ़िल्म सफल हुई थी लेकिन जिंदगी ने उसे पराजित कर दिया था.

वह स्टंट की दुनिया का हिरो था लेकिन जिंदगी जीरो बन गई थी.

पारु की शादी की खबर सुनकर वह हमें गाड़ी में उस के घर ले गया था.

भाई बहन एक दूजो को लिपटकर बहुत ही रोये थे.
आज नागेश चल नहीं सकता फिर भी नई पीढ़ी को डुप्लीकेट कलाकार बनाने के लिये व्यस्त हैं.
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