Wo Maya he - 97 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 97

Featured Books
  • चाळीतले दिवस - भाग 6

    चाळीतले दिवस भाग 6   पुण्यात शिकायला येण्यापूर्वी गावाकडून म...

  • रहस्य - 2

    सकाळ होताच हरी त्याच्या सासू च्या घरी निघून गेला सोनू कडे, न...

  • नियती - भाग 27

    भाग 27️मोहित म्हणाला..."पण मालक....."त्याला बोलण्याच्या अगोद...

  • बॅडकमांड

    बॅड कमाण्ड

    कमांड-डॉसमध्ये काम करताना गोपूची नजर फिरून फिरून...

  • मुक्त व्हायचंय मला - भाग ११

    मुक्त व्हायचंय मला भाग ११वामागील भागावरून पुढे…मालतीचं बोलणं...

Categories
Share

वो माया है.... - 97



(97)

ललित के पहुँचने पर पुनीत ने उसकी तरफ देखा। ललित ने शिकायत भरी नज़रें उस पर डालीं। उसकी शिकायत को समझ कर पुनीत ने अपनी आँखें फिर से झुका लीं। कांस्टेबल ललित को पुनीत के बगल में बैठाकर चला गया। ललित ने देखा कि साइमन और उसके दोनों साथियों की निगाहें उसके ऊपर ही जमी हुई हैं। उसे डर लगा पर उसने अपनी हिम्मत को बचाए रखने की कोशिश की। साइमन ने कहा,
"जो मूर्ति तुम लोगों के पास मिली थी वह तुम्हारे समाज के देवता मुराबंध की है।"
ललित ने पुनीत की तरफ देखा। वह उसी तरह नज़रें झुकाए बैठा था। ललित ने साइमन की तरफ देखकर कहा,
"हाँ....."
साइमन ने कहा,
"अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग मुराबंध की आराधना करते हैं।"
"देवताओं की आराधना अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही की जाती है।"
ललित ने साइमन की तरफ देखते हुए जवाब दिया। साइमन ने कहा,
"तुम अपनी किस्मत में लिखे राजयोग को तलाश रहे थे और तुम्हारा साथी ताकतवर इंसान बनना चाहता था।"
यह सुनकर ललित समझ गया कि साइमन ने बहुत सी बातें पता की हैं। उसने कहा,
"हाँ.... किसी चीज़ की इच्छा करना और उसकी पूर्ति के लिए देवता की आराधना करना गलत तो नहीं है।"
साइमन की नज़र उस पर थी। वह समझ रहा था कि डरा हुआ होने के बावजूद वह अंत तक हार ना मानने की कोशिश कर रहा है। उसने कहा,
"ना इच्छा रखना गलत है और ना ही उसकी पूर्ति के लिए किसी देवता की आराधना करना। लेकिन अगर आरधना में लोगों की हत्या करना शामिल हो तो यह गलत ही नहीं अपराध बन जाता है।"
हत्या वाली बात सुनकर ललित ने अपनी नज़रें झुका लीं। साइमन ने आगे कहा,
"मैं राजीगंज गया था। वहाँ रामजी और कोमाराजू से मिला। उन दोनों ने तुम्हारे और पुनीत के बारे में सबकुछ बताया है। अच्छा यह होगा कि अब तुम भी सब सच सच बता दो।"
साइमन की बात सुनकर पुनीत रोने लगा। ललित की हिम्मत अब जवाब दे गई थी। उन्हें कमज़ोर देखकर इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"अपना अपराध कुबूल कर लो। मुराबंध की आराधना के लिए तुम लोगों ने कुल छह हत्याएं की हैं। पुलिस सब साबित कर देगी। इसलिए सही सही बता दो।"
ललित चुप था पर पुनीत से रहा नहीं गया। उसने कहा,
"शाहखुर्द में हुई दो हत्याएं और उससे पहले चार हत्याएं हम दोनों ने मिलकर की हैं। हम बस अपने देवता मुराबंध को खुश करने वाले थे। लेकिन यह गड़बड़ हो गई।"
पुनीत रो रहा था। ललित उसकी तरफ निराशा से देख रहा था। उसके चेहरे से स्पष्ट था कि अब कुछ भी नहीं रह गया है। उसने पुलिस को सारी कहानी सुनाई।

मुराबंध की आराधना का प्रथम चरण पूरा होने के बाद कोमाराजू ने ‌ललित और पुनीत को बुलाकर आगे की साधना कैसे करनी है इस विषय में बताया। कोमाराजू ने उनसे कहा कि अब मुराबंध की आराधना के मुश्किल चार चरण शुरू होंगे। उसने उन दोनों को उन चरणों के बारे में बताते हुए कहा,
"मुराबंध को इन चार चरणों में तुमसे नर की भेंट चाहिए। तुम दोनों को हर चरण में दो लोगों को मुराबंध को भेंट करना पड़ेगा।"
कोमाराजू की बात सुनकर कुछ पलों के लिए ललित और पुनीत सकते में आ गए। नर की भेंट से स्पष्ट था कि उन दोनों को नरबलि देनी थी। वह भी हर चरण में दो के हिसाब से पूरी आठ। उन दोनों को परेशान देखकर कोमाराजू ने कहा,
"मैंने पहले ही समझाया था कि मुराबंध की आराधना बहुत कठिन है। देवता तुम्हारी हर तरह की मनोकामना पूरी करने के लिए तैयार हैं। पर उसके लिए उन्हें भेंट देनी पड़ेगी।‌ उनकी भेंट यही है। अगर उन्हें भेंट ना दे सको तो पीछे हट सकते हो। लेकिन सारे चरण पूरे किए बिना वरदान नहीं मिलेगा।"
ललित और पुनीत आपस में विचार करने लगे। कोमाराजू ने कहा,
"मैं तुम दोनों को चारों चरणों की आराधना के बारे में विस्तार से बता देता हूँ। उसके बाद तुम दोनों जैसा चाहना वैसा करना। उसके बाद मेरा काम खत्म हो जाएगा।"
ललित और पुनीत तैयार हो गए। कोमाराजू ने उन दोनों को चारों चरणों के बारे में बताया। कोमाराजू ने जो बताया उसके अनुसार हर चरण में उन्हें दो नरों की हत्या करनी होगी। हत्या किसी बंद जगह पर नहीं करनी है। दूसरी बात हर चरण के बाद मुराबंध की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा की कम से कम दो माह तक पूजा करनी होगी। प्रथम चरण के बाद सर और गर्दन बनाया जाएगा। दूसरे चरण के बाद वाली प्रतिमा में सर और गर्दन के साथ धड़ भी जोड़ा जाएगा। तीसरे चरण में दो भुजाएं जुड़ेंगी। अंतिम चरण में कमर और पैर जोड़कर प्रतिमा को पूरा किया जाएगा। उसके बाद इस पूर्ण मूर्ति की आराधना करके वरदान प्राप्त होगा। किन नरों का चुनाव करना है यह ललित और पुनीत को चुनना है। चारों चरणों में हत्या दोनों मिलकर करें या चरणों का आपस में बंटवारा कर लें। पर वरदान प्राप्त करने के लिए दोनों को ही मुराबंध को भेंट देनी होगी।
कोमाराजू ने जो बताया था वह काम सचमुच बहुत कठिन था। ललित और पुनीत दोनों के लिए ही लोगों की हत्या करना आसान नहीं था। दोनों ललित के गांव वाले घर में रहकर विचार करने लगे कि क्या करें। दोनों के बीच इस बात पर चर्चा होती थी। पुनीत का कहना था कि उसे ताकतवर बनने का वरदान तो चाहिए पर लोगों की हत्या करने की उसमें हिम्मत नहीं है। ललित का कहना था कि इतना बड़ा वरदान ऐसे ही नहीं मिल सकता है। उसके लिए कुछ बड़ा करना पड़ेगा। ललित चारों चरणों को पूरा करने की हिम्मत तो कर रहा था पर उसे लगता था कि पुनीत का साथ होना ज़रूरी है। उसने पुनीत को समझाया कि कुछ हिम्मत जुटा लो तो हम अपना इच्छित वरदान प्राप्त कर लेंगे। उसके बाद किसी की तरफ देखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
पुनीत के मन में वरदान प्राप्त करने का लालच था। उसे लगता था कि वरदान प्राप्त करके वह उस घुटन से बाहर निकल सकता है जो बारह साल की उम्र से वह झेल रहा था। ललित ने उसका पूरा सहयोग करने की बात कही थी। करीब दस दिनों तक सोचने के बाद पुनीत ने हिम्मत बटोर कर हाँ कर दिया। पुनीत से हाँ हो जाने के बाद भी ललित ने कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखाई। उसने पहले चरण के लिए एक रूपरेखा तैयार की। उसके अनुसार उन लोगों ने राजीगंज से तीस किलोमीटर दूर उत्तर में एक जगह का चुनाव किया। पहले चरण की ज़िम्मेदारी ललित ने ली। उसने वहाँ दो ऐसे लोगों को मारा जो आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर थे। जैसा कहा गया था दोनों हत्याएं खुले स्थान में की गई थीं। दोनों हत्याओं की जगह में और हत्या के समय में बहुत अंतर नहीं था। पहले चरण को पूरा करने के बाद ललित और पुनीत राजीगंज चले गए। वहाँ उन्होंने दो माह तक मुराबंध की सर और गर्दन वाली मूर्ति बनाकर साधना की। पहले चरण की सफलता से पुनीत का हौसला बढ़ गया था। उसने दूसरे चरण की ज़िम्मेदारी ले ली। ललित ने उसका पूरा साथ दिया। उसके सहयोग से पुनीत ने दूसरा चरण पूरा कर दिया। दोनों फिर मुराबंध की आराधना के लिए राजीगंज चले गए।

साइमन ललित की कहानी ध्यान से सुन रहा था। पहले दो चरणों की हत्या हो गई थी। पहला चरण ललित ने पूरा किया था और दूसरा पुनीत ने। इसलिए दोनों चरणों में हत्या का तरीका अलग अलग था। पर साइमन के मन में कुछ सवाल घूम रहे थे। उसने ललित से कहा,
"एक बात समझ नहीं आ रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सभी मृतकों की गर्दन पर वार करके उन्हें बेहोश किया गया था। तुम दोनों में से कौन है जिसे इतने सटीक तरीके से गर्दन पर वार करना आता है।"
ललित ने जवाब दिया,
"मैंने राजीगंज में रहते हुए रामजी से यह वार करने की तकनीक सीखी थी। पहले चरण के समय जब मैं पहली बार हत्या करने जा रहा था तो मेरा शिकार सतर्क हो गया। वह भागने की कोशिश करने लगा तो मैंने उसे बेहोश कर दिया। उसके बाद पत्थर से कुचल कर उसे मार दिया। मुझे लगा कि यह तो अच्छा तरीका है। अगली बार मैंने पहले अपने शिकार को बेहोश किया उसके बाद उसे मार डाला। जब पुनीत की बारी आई तो दोनों शिकारों को मैंने पहले बेहोश किया उसके बाद पुनीत ने तार से उनका गला घोंट दिया।"
साइमन के सवाल का जवाब देकर ललित चुपचाप बैठ गया। सब इंस्पेक्टर कमाल बहुत देर से उसके चेहरे को देख रहा था। उसके मन के भावों को समझने की कोशिश कर रहा था। उसने महसूस किया कि सब बताते हुए ललित के चेहरे पर ज़रा सा भी पछतावा नहीं था। वह सब ऐसे बता रहा था जैसे कि अपनी बहादुरी का किस्सा सुना रहा हो। सब इंस्पेक्टर कमाल को अच्छा नहीं लगा। वह उठकर कमरे से बाहर चला गया। उसके इस तरह चले जाने से इंस्पेक्टर हरीश परेशान हो गया। वह भी उसके पीछे बाहर आया। उसने सब इंस्पेक्टर कमाल से पूछा तो उसने अपने मन की बात बताते हुए कहा,
"कैसे लोग हैं सर ? इन्हें लगता है कि अपनी कमज़ोरी किसी वरदान से दूर कर लेंगे। अंधविश्वास में पड़कर इस हद तक चले जाते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश के मन में भी इसी तरह की बातें चल रही थीं। उसने कहा,
"मुझे भी इन दोनों पर गुस्सा आ रहा है। पर अब इन्हें इनके गुनाहों की सज़ा मिलेगी।"
"सर केवल इन दोनों को ही नहीं। सज़ा उन लोगों को भी मिलनी चाहिए जिन्होंने इन्हें अंधविश्वास का रास्ता दिखाया।"
इंस्पेक्टर हरीश समझ गया था कि उसका इशारा कोमाराजू और रामजी की तरफ है। उसने बताया कि साइमन ने पहले ही उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। उन दोनों के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल होगी।