great donation in Hindi Fiction Stories by Dr. Pradeep Kumar Sharma books and stories PDF | महादान

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डॉ. धर्मेंद्र कुमार जी की आकस्मिक मौत की खबर जंगल के आग की तरह नगर तो क्या, पूरे देश में फैल गई। सब तरफ शोक की लहर छा गई। आसपास के लोग श्रद्धांजलि देने उनके आश्रम की ओर उमड़ पड़े। सोसल और प्रिंट मीडिया के साथ-साथ प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय न्यूज चैनलों में लोग भावभीनी श्रद्धांजलि देने लगे।
आश्रम में रहने वाले लोग स्तब्ध थे। रात के दस बजे तक सबके साथ सामान्य रूप से हँस-बतिया कर सोने गए आश्रम के संचालक धर्मेंद्र जी सुबह चार बजे अचानक से कराहने लगे। आवाज सुनकर साथ में सो रहे उनके दोनों रूम पार्टनर समझ गए कि धर्मेंद्र कुमार जी को दिल का दौरा पड़ा है। वे लोग कुछ समझ पाते, इससे पूर्व उनकी गर्दन एक ओर लुढ़क गई। आश्रम में कोहराम मच गया। उनके दुःख का पारावार न रहा।
पिछले लगभग 15 साल से धर्मेंद्र कुमार जी ने अपनी पत्नी की देहांत के बाद अपने फार्महाउस को ही एक वृद्धाश्रम का रूप दे दिया था, जहाँ 20-21 वयोवृद्ध हँसी-खुशी अपने जीवन-संध्या बिता रहे थे। धर्मेंद्र कुमार जी उन्हीं के साथ हँसी-खुशी रहा करते थे। शासकीय सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद वे आश्रम परिसर स्थित अपनी क्लीनिक में दिनभर मरीजों को देखते और सुबह-शाम आश्रम के लोगों के साथ हँसते-बतियाते, टी. व्ही. देखते। कभी-कभी वे सभी मिलकर टी.व्ही. पर पर ही फिल्में देखते। धर्मेंद्र जी अपनी पूरी कमाई और पेंशन की राशि आश्रम पर खर्च कर देते। डॉ. धर्मेंद्र की अच्छे व्यवहार की वजह से सभी आश्रमवासी उन्हें परिजन की तरह मानते थे। उनका एकमात्र बेटा राजेश राजधानी के एक सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में डॉक्टर था। उन्हें धर्मेंद्र कुमार जी की आकस्मिक निधन की खबर पहुँचाई गई।
आश्रम के मैनेजर संदीप जी, जो डॉ. धर्मेंद्र के रूम पार्टनर भी थे, से खबर सुनते ही डॉ. राजेश ने कहा, "अंकल जी, बहुत ही मुश्किल घड़ी है मेरे लिए। एकमात्र पुत्र होकर भी अपने पिताजी को मुखाग्नि नहीं दे पाऊँगा। पापाजी की अंतिम इच्छा और मानवता की सेवा मेरी इच्छा से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए प्लीज आप पिताजी की अंतिम इच्छा का पालन करने में हमारी मदद करिए। आपको तो पता ही है कि मेरे पिताजी ने मरणोपरांत नेत्रदान के साथ-सथ अंगदान करने का भी फॉर्म शासकीय जिला चिकित्सालय सब्मिट किया था। मैं जिला चिकित्सालय को इंफार्म कर रहा हूँ। जब हॉस्पिटल के स्टाफ पहुँचे, आप उन्हें सपोर्ट कीजिएगा और पापा की बॉडी हैंड ओवर कर दीजिएगा। मै भी यहाँ से सपरिवार तत्काल निकल रहा हूँ। मुझे वहाँ पहुँचने में 6-7 घंटे लग जाएँगे। तब तक आप वहाँ का सिचुएशन आप ही संभालिए।"
"पर बेटा, यहाँ सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो चुकी है। लोग डॉ. धर्मेंद्र कुमार जी को अंतिम श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े हैं। उनका क्या करें ?" संदीप जी ने कहा।
"आप उन्हें समझाइए। पापा जी की अंतिम इच्छा लोगों को बताइए। पापा जी की एक फोटो आश्रम के सामने लगा दीजिए। मैं अभी फोन रखता हूँ। तुरंत डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल को खबर करता हूँ। पापा जी की अंतिम इच्छा थी कि उनकी देहांत के बाद उनके शरीर के अधिकाधिक पार्ट्स डोनेट कर दिए जाएँ और उनकी डैड बॉडी को जलाने की बजाय स्थानीय मेडिकल कॉलेज को दे दी जाए, ताकि कॉलेज के स्टूडेंट्स के काम आएँ।" डॉक्टर राजेश ने कहा और फोन काट दिया।
लगभग सात घंटे बाद डॉ. राजेश अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ आश्रम पहुँचे। तब तक स्थानीय जिला अस्पताल की टीम डॉ. धर्मेंद्र कुमार जी की बॉडी ले जा चुकी थी। डॉ. राजेश कुमार को देखकर आश्रम के लोग फुटफुट कर रोने लगे।
डॉ. राजेश ने दुःखी मन से कहा, "पापा जी का यूँ अचानक जाना हम सबके लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी भरपाई करना संभव तो नहीं है, फिर भी मेरी कोशिश रहेगी कि आप लोगों को अपने बेटे की कमी कभी न खले। आज से आप सभी मेरे पिताजी की तरह ही रहेंगे और मैं आप सबका बेटा बनकर रहने की कोशिश करूँगा। पापाजी ने आश्रम के संचालन के लिए एक ट्रस्ट तो बना ही दिया है। ट्रस्टी भी आप लोगों में से हैं। उसे आगे भी विधिवत जारी रखेंगे। मैं और मेरी पत्नी डॉ. रजनी हर महीने अंतिम रविवार को यहाँ आया करेंगे और नॉमिनल शुल्क पर मेडिकल जाँच शिविर का आयोजन करेंगे। इससे जो भी आमदनी होगी, वह आश्रम के काम आएगा। हमने यह निर्णय लिया है कि हमारी आधी सेलरी इस आश्रम को डोनेट करेंगे। और हाँ, हम दोनों ने बहुत ही सोच समझ कर पापाजी की भाँति ही मरणोपरांत नेत्रदान के साथ-साथ अपना शरीर स्थानीय मेडिकल कॉलेज को डोनेट करने का निर्णय लिया है। इसके लिए हम अभी डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल जा रहे हैं। वहाँ हम पहले फॉर्म जमा करेंगे, फिर पापाजी के अंतिम दर्शन करेंगे। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।"
कहते-कहते डॉ. राजेश कुमार का गला भर आया था। उनकी बातें सुनकर मैनेजर संदीप ने कहा, "बेटा, आप लोगों के साथ-साथ मैं भी चलूँगा। मुझे भी मरणोपरांत नेत्रदान और अपना शरीर मेडिकल कॉलेज को डोनेट करना है।"
"मैं भी चलूँगा आपके साथ। मुझे भी मरने के बाद नेत्रदान अपना शरीर मेडिकल कॉलेज को डोनेट करने का फॉर्म सब्मिट करना है।"
"मैं भी.... मैं भी.... मैं भी...."
आश्रम के लोग ही नहीं, बल्कि डॉ. धर्मेंद्र कुमार जी को श्रद्धांजलि देने आए दर्जनों लोगों की बात सुनकर डॉ. राजेश ने कहा, "अच्छी बात है कि आप सभी मरणोपरांत नेत्रदान और अपनी डेडबॉडी मेडिकल कॉलेज को डोनेट करना चाहते हैं। वैसे भी डेडबॉडी को जला या दफना देने से बेहतर है कि उसका मानवता के हित में कुछ उपयोग हो जाए। मैं डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की टीम को यहीं बुला लेता हूँ। हम सभी अपना फॉर्म यहीं भरकर उन्हें सुपुर्द कर देंगे।"
और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की टीम को वहीं बुला लिया। उस दिन रिकॉर्ड संख्या में लोगों ने मरणोपरांत नेत्रदान और देहदान करने का फॉर्म जमा किया।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़