Bandhan Pyar ka - 1 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | बंधन प्यार का - 1

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बंधन प्यार का - 1

नरेश से आकर एक युवती टकरायी तो उसके हाथ से बेग गिर गया।नरेश बेग उठाने को झुका तो वह युवती भी झुकते हुए बोली,"सॉरी।"
"नो मेंशन।आल राइट
वह युवती चली गयी लेकिन उसकी मोहिनी छवि नरेश के दिल मे अंकित हो गयी।क्या गजब की सुंदर थी।वह इतनी जल्दी में थी कि नरेश उससे उसका नाम भी नही पूछ पाया।
नरेश उस दिन के बाद रोज उस युवती को प्लेटफॉर्म पर खोजता पर वह उसे नही मिली।लेकिन एक दिन वह ट्रेन में चढ़ा और ज्यो ही अंदर गया।वह युवती उसे मिल गयी।उसके पास वाली सीट खाली देखकर नरेश बोला,"क्या मैं यहां बैठ सकता हूँ
वह युवती नरेश को देखकर मुस्करायी औऱ आंखों के इशारे से उसे बैठने के लिए कहा था।
कुछ देर तक नरेश चुप बैठा रहा।फिर बोला,"मेरा नाम नरेश है।क्या तुम्हारा नाम जान सकता हूँ।"
"क्या नाम बताना जरूरी है?
"नही।"उस युवती की बात सुनकर नरेश बोला और फिर चुप हो गया।कुछ देर तक उनके बीच खामोशी छाई रही।उस खामोशी को तोड़ते हुए वह बोली,"बुरा मान गए।"
"नही तो।बुरा क्यो मानूंगा?"
"मैने नाम नही बताया इसलिए,"वह बोली,"मेरा नामः हिना है"
""बहुत झुबसूरत और प्यारा,"नरेश बोला,"यहाँ की तो नही लगती हो।"
"नही",
"कहाँ से हो?"
"पाकिस्तान,"हिना बोली,"और तुम?"
"तुम्हारे पड़ोसी देश हिंदुस्तान से।"
"यहाँ क्या घूमने के लिए आई थी या फिर कोई और कारण?"
"मै यहाँ एम सी ए करने के लिए आई थी।मुझे कॉलेज केम्पस में प्लेसमेंट मिल गया।मेरी अम्मी तो चाहती थी।मैं पढ़ाई पूरी होने के बाद पाकिस्तान लौट जाऊं।पर मुझे यहाँ का मन चेन रास आया और मैं वापस नही गई,"हिना बोली,"और तुम्हारा यहाँ पर कैसे आना हुआ?"
"मैने तो दिल्ली से ही एम बी ए किया था।एम बी ए करने के बाद मेरी मैकडोनल्ड कम्पनी में नौकरी लग गयी और मुझे यहां आना पड़ा,"अपने बारे में बताते हुए नरेश बोला,"तुम यहाँ किस कम्पनी में काम करती हो?"
"इन्फो।"
"मुझसे दोस्ती करोगी?"नरेश ने दोस्ती का प्रस्ताव रखा तो हिना ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया था।नरेश ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया था।
और उस दिन के बाद उनकी मुलाकात होने लगी।एक दिन नरेश उससे बोला,"लंदन तो तुमने देख लिया होगा?"
"तुम्हे आश्चर्य होगा।तीन साल से हू लेकिन लंदन ज्यादा नही देखा।अकेले कही जाने का मन ही नही करता।सन्डे छुट्टी का दिन होता है।बस जरूरी हो तो मार्किट चली जाती हूँ।"
"अब तो कई दोस्त बन गए होंगे।उनके साथ नही गयी।"
"नही।"
"अगर मेरा साथ मंजूर हो तो।"
"तुम तो पड़ोसी हो।पड़ोसी का साथ और विश्वास जरूरी है।"
"दोनो देशों के बीच विश्वास की तो कमी है।"
"देशों के बीच विश्वास न हो लेकिन मैं तुम पर विश्वास करूंगी।"हिना ने मुस्कराहट से उसे देखा था
"तुम्हारी मुस्कराहट बहुत मोहक और प्यारी है।बिल्कुल मोनीलिसा सी।'
"उतनी सुंदर भी नही है।"
"यह तो मुझसे पूछो।"
"इरादा तो नेक है।"
"अभी तो नेक ही है,आगे की कह नही सकता।"नरेश बोला,"सुना है लंदन बहुत खूबसूरत शहर है।यहाँ पर देखने के लिए बहुत सी प्राचीन और हिस्टोरिकल चीजे है।अगर तुम्हारा साथ मिल जाये तो एक एक करके देखते है।"
"कब?"
"मेरी सन्डे की छुट्टी रहती है,"नरेश बोला,"और तुम्हारी?"
"मेरा भी सन्डे को ही ऑफ रहता है।"
"इस सन्डे को चलते है।"
"क्या देखने चलोगे?"
"मेडम तुषाद म्यूजियम का बड़ा नाम है।पहले वहां चले।"
"चलो।"हिना बोली,"कहाँ मिलोगे?"
"मेरा नम्बर फीड कर लो,"नरेश बोला,"मैं फोन कर दूंगा