Wo Maya he - 96 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 96

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वो माया है.... - 96



(96)

सेल में अकेले बैठे हुए ललित बीते हुए दिनों को याद कर रहा था। अपने पिता की मौत होने के बाद उसने उनकी जमा पूंजी भी लुटा दी थी। पर अपनी किस्मत में लिखे राजयोग की राह अभी तक उसे नहीं मिली थी। अब वह बहुत हताश था। जो वह चाहता था हो नहीं पाया था। पर वह अभी भी अपनी किस्मत में लिखे राजयोग को सच मानता था। उसका सोचना था कि कोई ना कोई ऐसा रास्ता ज़रूर होगा जो उसे वह सब दिला देगा जिसकी उसे चाह है। लेकिन वह रास्ता उसे मिल नहीं रहा था। वह इस बात से बहुत हताश था।
ललित अब बहुत अधिक हताश हो गया था। उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। नौकरी छोड़कर वह कुछ समय के लिए अपने पुश्तैनी गांव राजीगंज चला गया। वह अपने पिता के साथ सिर्फ दो बार अपने गांव राजीगंज आया था वह भी बहुत कम समय के लिए। इसलिए गांव और अपने समाज के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता था। वह अपने गांव सिर्फ इसलिए गया था कि शायद जगह बदलने से मन बदल जाए। वह कुछ अच्छा महसूस करे। राजीगंज में उसका एक पुराना मकान था। उसका एक हिस्सा गिर गया था। दूसरा हिस्सा भी बहुत अच्छी हालत में नहीं था। फिर भी ललित उस हिस्से में रह रहा था। अपने समाज के कुछ लोगों की मदद से उसके खाने पीने का इंतज़ाम हो गया था।
अपने पिता से उसे केवल इतना पता चला था कि वह राजीखारू समाज से संबंध रखता है। गांव में रहते हुए ललित ने अपने समाज के बारे में जानना शुरू किया। वह उसके रीति रिवाजों में दिलचस्पी लेने लगा। अपने समाज के देवी देवताओं के बारे में जानकारी बटोरने लगा। अपने समाज से जुड़ने के बाद उसे सचमुच अच्छा लगने लगा था। उसके गांव में रहते हुए उसके समाज के प्रमुख देवता बूढ़लदेव की पूजा का पर्व मनाया गया। उसने उस पर्व में पूरे उत्साह से भाग लिया। बूढ़लदेव उसके समाज के कुल देवता थे। जो उसके समाज की रक्षा करने और पालन करने का काम करते थे। पाँच दिन तक मिट्टी से बनाई गई उनकी मूर्ति की पूजा हुई। पाँचवें दिन सूर्यास्त के समय मूर्ति का विसर्जन नदी में बड़ी धूमधाम से कर दिया गया।
बूढ़लदेव के उत्सव में राजीगंज और उसके आसपास के राजीखारू समाज के लोग आए थे। उसी उत्सव के दौरान ललित की मुलाकात पुनीत से हुई थी। दोनों की दोस्ती हो गई। पुनीत ने बताया कि वह किसी काम से अपने गांव गया था। उसे अपने समाज के इस प्रमुख उत्सव के बारे में पता चला। इसलिए वह राजीगंज आ गया था। ललित की तरह वह भी अपने समाज से दूर रहा था। उसे भी अपने समाज के रीति रिवाजों का अधिक पता नहीं था। पर अब उसकी दिलचस्पी भी बहुत कुछ जानने की थी।
पाँच दिन के उत्सव के दौरान ललित और पुनीत में सिर्फ दोस्ती ही नहीं हुई थी। बिना कुछ कहे उन्हें समझ आ गया था कि उन दोनों के जीवन में एक खालीपन है। दोनों को ही किसी चीज़ की चाह है। उत्सव के दौरान पुनीत ललित के साथ ही रहा था। उत्सव समाप्त होने के बाद वह कुछ और दिनों के लिए रुक गया। उस दौरान दोनों एक दूसरे से इतना खुल गए कि उन्होंने अपने जीवन के बारे में एक दूसरे को बता दिया। एक शाम दोनों बैठे बातें कर रहे थे तब ललित ने कहा,
"पुनीत तुम चाहते हो कि ऐसा वरदान मिल जाए जो तुम्हें सबसे ताकतवर बना दे। मैं चाहता हूँ एक ऐसा वरदान जो मेरी किस्मत में लिखे राजयोग को सच कर दे।‌ हम दोनों को ही वरदान चाहिए। पर यह वरदान हमें मिलेगा कैसे ? ऐसा कौन सा देवता है जो हमारी इच्छा पूरी कर दे।"
पुनीत भी इसी तरह की बातें सोच रहा था। उसने कहा,
"तुमने जो सवाल किया वही मेरा भी सवाल है। काश कोई ऐसा देवता होता जो हम दोनों की इच्छाएं पूरी कर देता।"
ललित ने कुछ सोचकर कहा,
"उत्सव के दौरान पुजारी जी के भतीजे रामजी ने कहा था कि हमारे समाज के देवता कोई भी इच्छा पूरी कर सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें रामजी से मिलना चाहिए।"
दोनों बिना वक्त गंवाए रामजी से मिले। उन्हें अपने भीतर की इच्छाओं के बारे में बताया। उससे पूछा कि क्या समाज का ऐसा कोई देवता है जो उन दोनों की इच्छा को पूरा कर सके। उनकी बात सुनने के बाद रामजी ने कुछ पलों तक उन्हें देखने के बाद कहा,
"तुम लोगों को लगता है कि देवता सिर्फ वरदान देने के लिए बैठे हैं।"
यह सुनकर ललित ने कहा,
"बूढ़लदेव की पूजा के दौरान तो तुमने यही कहा था कि हमारे देवता किसी भी इच्छा को पूरा कर देते हैं।"
"बिल्कुल करते हैं। पर बैठे बिठाए वरदान नहीं मिल जाते हैं। किसी भी देवता से वरदान पाना हो तो पहले उसकी आराधना करनी पड़ती है।"
उसकी बात सुनकर पुनीत ने कहा,
"हम भी देवता की आराधना करके वरदान प्राप्त करेंगे। तुम देवता का नाम तो बताओ।"
रामजी ने हंसकर कहा,
"आराधना का मतलब सिर्फ फूल चढ़ाकर मस्तक नवाना नहीं होता है। आराधना मतलब है कठिन साधना। देवता का नाम तो बाद में बताऊँगा। पहले यह तो तय कर लूँ कि तुम देवता की आराधना के लायक हो कि नहीं।"
ललित ने कहा,
"अब यह कैसे तय होगा कि हम आराधना के लायक हैं कि नहीं।"
रामजी ने कुछ सोचकर कहा,
"इस बात का पता तो परीक्षा के बाद होगा।"
ललित ने कहा,
"तुम हमारी परीक्षा लोगे ?"
"मैं नहीं मेरे गुरु कोमाराजू तुम्हारी परीक्षा लेंगे। अगर तैयार हो तो कल सुबह पाँच बजे गांव के पश्चिमी छोर पर तालाब के पास मिलना। अभी जाओ।"
ललित और पुनीत वापस लौट गए। रातभर वह विचार करते रहे कि उनसे किस तरह की परीक्षा ली जाएगी। अंत में उन लोगों ने तय किया कि जो परीक्षा होगी देंगे। दोनों सुबह तय समय पर तालाब के पास रामजी से मिले। रामजी उन दोनों को कोमाराजू के पास ले गया। कोमाराजू ने उन दोनों की सारी बात सुनी। उसके बाद कोमाराजू ने कहा,
"तुम दोनों को पहले मेरी दी हुई परीक्षा से गुज़रना होगा। अगर सफल रहे तो ही मैं आगे बात करूँगा। यह परीक्षा सात दिन चलेगी। तब तक तुम दोनों को यहीं पास बने हमारे झोपड़े में रहना होगा। इन सात चरणों में मैं जो कुछ करने को कहूँगा तुम दोनों को करना होगा। अगर एक भी चरण में चूके तो चुपचाप वापस चले जाना।"
ललित और पुनीत ने एक दूसरे की तरफ देखा। उसके बाद परीक्षा के लिए तैयार हो गए। सात चरणों में उन्हें अलग अलग तरह की परीक्षा देनी पड़ी। उन दोनों ने सातों चरणों की परीक्षा अच्छी तरह से पूरी कर ली। परीक्षा के सारे चरण पूरे होने के बाद कोमाराजू ने कहा,
"तुम लोगों ने मेरी परीक्षा पार कर ली है। तुम दोनों की इच्छा मुराबंध पूरी कर सकते हैं।‌ वह एक ऐसे देवता हैं जो हमारी किसी भी तरह की इच्छा को पूरी कर सकते हैं। लेकिन उनकी आराधना करना आसान नहीं है। एक कठिन साधना से उन्हें प्रसन्न करना पड़ता है। यदि मुराबंध को प्रसन्न कर लिया तो समझ लो कुछ भी असंभव नहीं है।"
मुराबंध के बारे में सुनकर ललित और पुनीत के मन में एक उम्मीद जागी। उन्होंने मुराबंध की आराधना करने की इच्छा जताई। उनकी इच्छा सुनकर कोमाराजू ने कहा,
"तुम लोगों ने परीक्षा पास की है इसलिए देवता के बारे में बताया था।‌ पर इतना समझ लो कि मुराबंध की आराधना आसान नहीं है। क्योंकी मुराबंध किसी भी तरह की इच्छा को पूरा करते हैं। इसलिए वह कठिन साधना चाहते हैं।"
ललित ने कहा,
"हम दोनों उनका वरदान चाहते हैं। इसलिए कितनी भी कठिन साधना हो करने को तैयार हैं। हमें अब किसी भी तरह मुराबंध का आशीर्वाद चाहिए।"
कोमाराजू ने उनसे कहा कि पहले उन्हें मुराबंध की आराधना के प्रथम चरण को पूरा करना होगा। उसके पूरा होने के बाद वास्तविक साधना शुरू होगी जो बहुत कठिन होगी। ललित और पुनीत प्रथम चरण की आराधना के लिए तैयार हो गए। उन दोनों ने प्रथम चरण अच्छी तरह से पूरा कर लिया।

ललित बीते दिनों को याद कर रहा था तभी कांस्टेबल ने आकर कहा,
"चलो मेरे साथ। तुमको पूछताछ के लिए बुलाया गया है।"
ललित यह सुनकर सोच में पड़ गया। उसे लगा कि ज़रूर पुनीत ने अस्पताल में सबकुछ कुबूल कर लिया है। यह सोचकर कि सबकुछ खत्म हो गया है वह कांस्टेबल के साथ उस कमरे की तरफ चल दिया जहाँ पूछताछ के लिए उसका इंतज़ार हो रहा था।

साइमन जब उस मूर्ति के बारे में पता करने के लिए अपने ज़ोन के लिए निकला था तो रास्ते में इंस्पेक्टर रवींद्र नाथ का फोन आया। उसने उस गांव का नाम बताया जहाँ उसने उस मूर्ति का विसर्जन देखा था। इंस्पेक्टर रवींद्र नाथ ने राजीगंज का नाम लिया था। जब साइमन राजीगंज पहुँचा उसी समय पुनीत की बीमारी की खबर मिली। उसने पुनीत को आवश्यक चिकित्सा देने का आदेश दिया।
राजीगंज में साइमन को राजीखारू समाज के एक देवता मुराबंध के बारे में भी पता चला। मुराबंध राजीखारू समाज के एक तामसिक देवता का नाम था। मुराबंध की आराधना लोग अपनी तामसिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए करते थे। इसके अलावा उसे ललित और पुनीत के बारे में भी बहुत सी बातें जानने को मिलीं। साइमन के पास इतनी जानकारी हो गई थी जिसके आधार पर ललित और पुनीत को आसानी से घेरा जा सकता था। वह शाहखुर्द वापस आ गया। लौटने से पहले उसने इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल को भी शाहखुर्द वापस लौट आने के लिए कहा।
ललित जब कांस्टेबल के साथ कमरे में पहुँचा तो वहाँ साइमन, इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल मौजूद थे। साथ ही पुनीत भी सर झुकाए हुए बैठा था।


(इस भाग में वर्णित समुदाय, देवता और जगह के नाम पूरी तरह काल्पनिक हैं। किसी भी समुदाय से इन्हें जोड़ा नहीं जाना चाहिए।)