गायत्री मंत्र का जाप करने से मिलते हैं ये लाभ-
-गायत्री मंत्र का जाप करने से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है. रोगों से मुक्ति में गायत्री मंत्र का जाप अचूक माना गया है इसके साथ महामृत्युंजय मंत्र का जप साथ मे कर लिया जाये तो अद्भुत लाभ देखने को मिलता है । इसके लिए सबसे पहले किसी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में जल भरने के बाद एक लाल आसन पर बैठ जाएं. गायंत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायंत्री मंत्र का जाप करें. मंत्र जाप के बाद पात्र में भरे जल का सेवन करें. ऐसा करने से रोग से छुटकारा मिल जाएगा.
-हर क्षेत्र में सफलता के लिए ऐसे करें गायत्री मंत्र का प्रयोग-
गायत्री मंत्र का प्रयोग हर क्षेत्र में सफलता के लिए सिद्ध माना गया है. विद्यार्थि अगर इस मंत्र का नियम अऩुसार 108 बार जाप करें तो उन्हें सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है. विद्यार्थियों का पढ़ने में मन लगने लगता है. सच्चे मन और विधि पूर्वक गायत्री मंत्र का प्रयोग आपके लिए कल्यणकारी साबित हो सकता है. यदि आपके जीवन में कोई भी समस्या है तो नियम और संयम से गायत्री मंत्र का जाप करें, तो यकीनन आपकी समस्याओं का समाधान हो जाएगा.
गायंत्री मंत्र जाप के नियम-
-गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए.
-गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें.
-गायत्री मंत्र जप करने से पहले साफ धुले वस्त्र पहनें.
-कुशा के आसन पर बैठकर जाप करें.
-तुलसी या चन्दन की माला का प्रयोग करें.
-माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें।
-ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र का जाप करें और शाम को पश्चिम दिशा में मुख करके जाप करें.
- इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है.
इस मंत्र का संबंध सूर्य से है अतः सूर्य के अस्त होने के एक घंटे बाद तक जप करना श्रेष्ठ है । प्रातः 3 बजे बाद से जप करना श्रेष्ठ है ।
- गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए. किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं.
साधना का अर्थ जीवन के हर पक्ष में आदर्शवादिता और प्रामाणिकता का समावेश । जो भी इस कसौटी पर खरा उतरता है, उसको स्वर्ण की तरह हर जगह सम्मान मिलता है । पर पीतल को सोना बनाकर बेचने की फिराक में फिरने वाले को हर कहीं दुत्कारा जाता है ।
जप के बाद सूर्य को अर्घ्य अवश्य देना चाहिए ।
सूर्यार्घ्यदान :-
तांबे के लोटे को अपने सहस्रार चक्र के ऊपर कर जल की धारा छोड़े । निम्न मंत्र पढे या गायत्री मंत्र से ही अर्घ्य देवे ।
ॐ सूर्यदेव ! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, ॐआदित्याय नमः, ॐभास्कराय नमः॥
भावना यह करें कि जल आत्मसत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट् ब्रह्म का तथा हमारी सत्ता-सम्पदा समष्टि के लिए समर्पित-विसर्जित हो रही है।
इतना सब करने के बाद पूजा स्थल पर देवताओं को करबद्ध नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख दिया जाए। जप के लिए माला तुलसी या चंदन की ही लेनी चाहिए। सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है। मौन-मानसिक जप चौबीस घण्टे किया जा सकता है।