Andhayug aur Naari - 31 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | अन्धायुग और नारी - भाग(३१)

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अन्धायुग और नारी - भाग(३१)

मैं अब दुविधा में फँस चुका था,समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ,किसी ने कुछ भी ठीक ठीक जवाब नहीं दिया था कि आखिर वें सब भ्रमर की माँ चाँदतारा बाई को कैसें जानते हैं और चाँदतारा के अतीत से मेरे बाऊजी का कौन सा नाता था,फिर मैं कुछ दिन और घर पर रहा लेकिन सही सही सटीक उत्तर ना मिलने पर मैं घर से वापस शहर आ गया,क्योंकि घर पर भाभी के सिवाय कोई भी मुझसे बात नहीं कर रहा था,सब मुझसे इस बात को लेकर नाराज़ थे कि मैंने तवायफ़ की बेटी को पसंद किया है......
मैं शहर आया तो मैंने चाँदतारा बाई से ही सारी सच्चाई जानने की बात मन में सोची और मैं उनके पास पहुँचा,मैंने उनसे कहा कि....
"आप मेरे बाऊजी को जानती हैं ना!"
"नहीं! मुझे क्या लेना देना तुम्हारे बाऊजी से",वें बोलीं....
"तो फिर आपका नाम सुनकर मेरे घर में इतना हंगामा क्यों हो गया"? मैंने उनसे पूछा...
"मैं इस बारें में तुम्हें कुछ नहीं बता सकती,मेहरबानी करके मुझसे कुछ मत पूछो",वें बोलीं...
"मुझे कोई कुछ नहीं बता रहा है,कृपया करके आप ही बता दीजिए कि क्या बात है,आपका नाम सुनकर मेरे घरवाले इतना क्यों चिढ़ गए",मैंने पूछा....
"अब मैं तुम्हें क्या बताऊँ कि तुम मुझसे ऐसा राज खोलने के लिए कह रहे हो जिसे मैंने सालों से अपने सीने में दफ़न करके रखा है",चाँदतारा बाई बोलीं....
"मैं भी उस राज को जानना चाहता हूँ",मैंने उनसे कहा...
"तुम वो राज जान जाओगे तो तुम्हें खुद से नफरत हो जाएगी मेरे बच्चे",चाँदतारा बाई बोलीं...
"क्या है वो राज,जरा मैं भी तो सुनूँ",मैंने कहा....
"यही कि भ्रमर मेरी बेटी नहीं है",वें बोलीं....
"भ्रमर अगर आपकी बेटी नहीं है तो फिर वो किसकी बेटी है"?,मैंने पूछा....
"वो मैं तुम्हें बाद मैं बताऊँगी कि वो किसकी बेटी है लेकिन अब जो बात मैं तुम्हें बताने जा रही हूँ वो सुनने से पहले तुम अपना दिल थाम लो",वें बोलीं....
"ये क्या पहेलियाँ सी बुझा रहीं हैं आप? कभी कहती है कि भ्रमर आपकी बेटी नहीं है, तो कभी कहती है कि अपना दिल थाम लो,कहना क्या चाहतीं हैं आप,जरा खुलकर कहेगीं",मैंने गुस्से से कहा....
तब वें बोलीं....
"तुम मेरे बेटे हो,मैंने तुम्हें जन्म दिया था",वें बोलीं...
और उनकी बात सुनकर मैं सन्न सा रह गया,मुझे कुछ भी नहीं समझ आ रहा था कि वें ऐसा क्यों कह गईं,क्योंकि मुझे अपने घर में कभी ऐसा अहसास नहीं हुआ कि मेरी माँ कोई और है,जिनके साथ मैं बचपन से रहता आया था उन्होंने तो कभी मुझसे भेदभाव नहीं किया,कभी भी मुझे बड़े भइया के सामने गैर नहीं समझा,तो फिर मैं चाँदतारा बाई का बेटा कैसें हो सकता हूँ और इसी कश्मकश के चलते मैं उनसे बोला....
"ये क्या कह रहीं हैं आप?भगवान के लिए झूठ मत बोलिए",
"मैं सच कह रही हूँ मेरे लाल! तू ही मेरा बेटा है",चाँदतारा बाई बोलीं...
"तो फिर आपने मुझे क्यों छोड़ दिया,अगर मैं आपका बेटा होता तो आप मुझे अपने पास रखतीं",मैंने कहा...
"मैं तुम्हें अपने पास रखना चाहती थीं लेकिन तुम्हें मुझसे छीन लिया गया",वें बोलीं....
"लेकिन किसने छीना आपसे मुझे",मैंने पूछा...
"तुम्हारे पिता ने",वें बोलीं...
"मेरे बाऊजी ने,वो क्यों भला",मैंने पूछा....
"क्योंकि तुम्हें पालने वाली तुम्हारी माँ नहीं चाहती थी कि तुम मेरे पास रहो",वें बोलीं...
"लेकिन क्यों"?,मैंने पूछा....
"क्योंकि वें तुम्हारे पिता की ब्याहता थीं और मैं उनकी प्रेमिका और ये समाज प्रेम के बंधन से ज्यादा ब्याह के बंधन को मान्यता देता है",वें बोलीं....
"तो क्या आप मेरे बाऊजी की प्रेमिका थीं"?,मैंने पूछा....
"हाँ! वें मुझसे बहुत प्रेम करते थे और मैं उनसे",वें बोलीं...
"तो वें अब क्यों आपसे इतनी नफरत करते हैं"?,मैंने पूछा....
"इसके पीछे भी एक वजह है"वें बोलीं....
"वो वजह क्या थी,मुझे आज सबकुछ जानना है",मैंने उनसे कहा....
तो वें बोलीं....
"इसके पीछे बहुत लम्बी कहानी है",
"मुझे सुननी है वो कहानी",मैंने कहा....
और फिर वें मुझे उनके अतीत में ले गईं,उन्होंने बताया कि उन्हें याद ही नहीं है कि उनके माता पिता कौन थे,उन्होंने जब से होश सम्भाला था तो अपने पैरों में बँधे हुए घुँघरू और तबले की थाप पर खुद को रियाज़ करते हुए ही देखा था,वें जिस कोठे में रहतीं थीं तो उस कोठे की मालकिन गुलबदन बाई थी,जब वो छोटी थीं तो उस समय गुलबदन बाई मुजरा करके लोगों का दिल बहलाया करती थी,लेकिन गुलबदन बाई की उम्र बढ़ने के साथ साथ उसका हुस्न और जवानी भी जाती रही और पुरानी मालकिन के गुजरने के बाद गुलबदन बाई ने उस कोठे की बागडोर सम्भाल लीं,चूँकि पुरानी मालकिन गुलबदन बाई की अम्मी थीं इसलिए वाजिब सी बात थी कि गुलबदन ही आगें चलकर उस कोठे को सम्भालने वाली थी....
मैं तब सोलह साल की हुई थी और मैंने भी उस समय नाच गाकर लोगों का दिल बहलाना शुरु कर दिया था,एक रोज़ मैं यूँ ही मुजरा कर रही थी,तभी एक शख्स अपने बदन पर अचकन और पायजामा डाले,हाथों में किताबें लेकर महफ़िल में अपने किसी दोस्त के साथ हाजिर हुए,उनका दोस्त उन्हें बार बार उनके साथ महफ़िल में बैठने को कह रहा था लेकिन वें मना कर रहे थे,मैं उस समय नाच भी रही थी और उनकी उस हरकत पर गौर भी फरमा रही थी और फिर आखिरकार उनके दोस्त ने जबर्दस्ती उन्हें खींचकर अपने पास बैठा ही लिया और वें हजरत सड़ा सा मुँह बनाएँ हुए उनके साथ बैठ गए.....
जब मेरा नाच खतम हुआ तो मैंने उन नए मेहमानों के पास जाकर पान पेश किया जो कि कोठे का कायदा था,जब उन्होंने पान खा लिया तो उनमें से एक बोला....
"क्या ग़जब नाचतीं हैं आप! ऊपरवाले ने कितना सुरीला गला दिया है आपको,",
"जी! तारीफ़ के लिए शुक्रिया",मैंने कहा....
"जी! आप ही चाँदतारा बाई हैं,बहुत तारीफ़ सुनी है आपकी",वें शख्स बोलें....
"जी! शुक्रिया! क्या मैं आप दोनों की तारीफ़ जान सकती हूँ"मैं बोली....
"जी! शौक से,मैं मोहन लाल पन्त और ये हजरात हैं मधुसुदन त्रिपाठी",वें शख्स बोलें....
"जी! आपका नाम तो आपके मिज़ाज़ के माफ़िक है लेकिन आपके दोस्त का नाम तो उनके मिज़ाज़ से बिलकुल नहीं मिलता",मैंने कहा...
"जी! अब मैं क्या कहूँ",मोहन लाल जी बोलें....
"लगता है आपके दोस्त को हमारी महफ़िल में आना पसंद नहीं आया",मैंने कहा....
"जी!ये रंगीन मिज़ाज के शख्स नहीं है ना इसलिए"मोहन लाल जी बोलें....
"लगता है हमारा नाच देखने से भी इनकी तबियत रंगीन नहीं हुई,बड़ी ही रूखी तबियत के दोस्त हैं आपके",मैंने कहा...
अब मेरी बात मधुसुदन जी के बरदाश्त के बाहर हो गई और वें गुस्से से बोले....
"तुम इसे नाच कहती हो,दो पैसें की भीख माँगने वाली भिखारन भी सड़क पर तुमसे अच्छे कूल्हे मटका लेती है,अपनी जवानी और हुस्न की नुमाइश करना ये कहाँ की शराफ़त है,ये तुम्हारी नजरों में होगा तारीफ़ के काबिल,लेकिन मेरी नजरों में ये दुनिया का सबसे घटिया काम है और इसे करने वाला उससे भी घटिया"
और ऐसा कहकर वें हजरात कोठे से पाँव पटकते हुए बाहर चले गए और मैं उन्हें जाते हुए देखती रही......

क्रमशः....
सरोज वर्मा....