तब डाक्टर मोरमुकुट ने कस्तूरी से कहा.....
"कस्तूरी! मैं जिनका इलाज करने कलकत्ता गया था ना तो उनका नाम ही जुझार सिंह है,मैंने उस समय तुम्हें उनके बारें में बताते हुए उनका नाम लिया होगा इसलिए शायद तुम्हें ये नाम सुना सुना सा लग रहा है"
"हाँ! तब ऐसा ही होगा",कस्तूरी बोली...
"मुझे थोड़ा काम है तो मैं अब जाऊँ",डाक्टर मोरमुकुट सिंह ने कस्तूरी से पूछा...
"हाँ! डाक्टर बाबू! अब तुम जाकर अपना करो",कस्तूरी बोली...
"ठीक है तो मैं जाता हूँ, तुमने दवा खा ली है तो अब तुम भी आराम करना और अपनी हरी चूनर और चूड़ियों को सम्भालकर रख देना"डाक्टर मोरमुकुट सिंह कस्तूरी से बोले...
"ठीक है डाक्टर बाबू!", कस्तूरी बोली....
और मोरमुकुट सिंह फिर कस्तूरी के कमरें से वापस आकर अपने काम पर लग गए....
और उधर रामखिलावन,मालती,दुर्गेश और कस्तूरी जेल में श्यामा डकैत से मिलने पहुँचे,महिला हवलदार उन सभी को श्यामा के पास ले गई,श्यामा उन सब से मिलने के लिए जेल की सलाखों के पीछे आकर खड़ी हो गई तब रामखिलावन श्यामा से बोला....
"पाँय लागे जिज्जी"(जीजी! चरण स्पर्श)
"खुश रहो रामखिलावन भज्जा"(खुश रहो रामखिलावन भाई),श्यामा बोली...
"जिज्जी! हमाई औरन की चाल सफल हो गईं,जुझार सिंह अपने गाँव लौट आओ है"( जीजी! हम लोगों की चाल सफल हो गई है जुझार सिंह अपने गाँव वापस आ गया है),रामखिलावन बोला....
"जा तो तुमने भोत अच्छी खबर सुनाई"(ये तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई),श्यामा बोली....
"हव! और हमने उहाँ इतई सिनेमाहॉल खोले के लाने राजी भी कर लओ है"( हाँ! और हमने उसे इस इलाके में सिनेमाहॉल खोलने के लिए राजी भी कर लिया है),दुर्गेश बोला....
"जे कौन है,तुमाओ लरका है का"(ये कौन है तुम्हारा बेटा है क्या),श्यामा ने पूछा....
"हव!जिज्जी! जेई है हमाओ लरका"(हाँ!जीजी! यही है हमारा बेटा) ,मालती बोली.....
"भोत बढ़िया! खुश रहो,खूब तरक्की करो",(बहुत बढ़िया,खुश रहो,तरक्की करो),श्यामा ने दुर्गेश को आशीर्वाद देते हुए कहा....
"तो जिज्जी! हम जे कह रहे ते कि अब तुम अपने मन की कर सकती हों,एकाध महीना बाद जो तुमने सोची हती सो कर लइओ"(तो जीजी! अब तुम अपने मन का काम कर सकती हो,एकाध महीने बाद तुम वो कर लेना जो तुमने सोचा था),रामखिलावन ने श्यामा को जेल से भागने की बात का इशारा करते हुए कहा....
"ठीक है,अब तुम सब जने हमाई चिन्ता ना करो,तुम औरे निश्चिन्त होके इते से जाओ,अब आगें को काम हम देख लेहे हैं"(ठीक है अब तुम लोग मेरी चिन्ता ना करो,तुम सब निश्चिन्त होकर इधर से जाओ,अब आगें का काम हम देख लेगें),श्यामा उन सब बोली.....
"बस जिज्जी! तुम अब अपनो ख्याल रखिओ" (बस जीजी अब आप अपना ख्याल रखना),माधुरी बोली....
"अब कस्तूरी कैसीं है?"श्यामा ने पूछा....
"धीरे धीरे ठीक हो रही है"रामखिलावन बोला....
"तब तो भोत बढ़िया बात है",श्यामा बोली....
और फिर उनकी बातें खतम भी ना हुई थीं कि तभी महिला हवलदार उनके पास आकर बोलीं....
"आप लोगों के कैदी से मिलने का समय खतम हो गया"
और फिर सभी श्यामा से इजाज़त लेकर वापस चले गए और इधर श्यामा का जेल में एक अलग ही रुतबा था क्योंकि वो उस इलाके की जानी मानी डाकू थी और उस जेल में उसके मुकाबले की कोई भी नहीं थी क्योंकि सभी छोटे मोटे जुर्म में ही उस जेल में आईं थीं,इस तरह से जेल में जितनी भी महिलाएंँ थीं वें सभी श्यामा की बहुत इज्जत करतीं थीं,वैसें भी श्यामा किसी भी कैदी महिला को सताती नहीं थी,उनका जबरन फायदा भी नहीं उठाती थी,जो काम उसे जेल की चारदिवारी में दिया गया था वो उसे बड़ी मेहनत और सिद्दत के साथ कर रही थी,उसे जेल में साग सब्जियों उगाने और उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी मिली थी जिसे वो बखूबी निभा रही थी....
और कुछ ही समय में श्यामा ने जेल को हरा भरा कर दिया था,उसका उस काम में मन भी लगता था,उसके कारण जेल की रसोई में सब्जियों का ढ़ेर लगा रहता था,उसने तरह तरह की सब्जी भाजी की क्याँरियाँ बना रखीं थीं और दिन भर उन की ही देखरेख में लगी रहतीं थीं, फिर एक दिन श्यामा को पता चला कि को नई कैदी जेल में आई है जिसका नाम रागिनी परिहार है जो बड़ी ही खूँखार है और किसी की भी नहीं सुनती,उसने जेल में आते ही वहाँ मौजूद महिला कैदियों के संग मारपीट शुरु कर दी थी,हद तो तब हो गई जब उसने एक बहुत ही बुजुर्ग महिला कैदी पर हाथ उठा दिया,वो बेचारी अपनी उम्रकैद काट रही थी और इस बात से श्यामा को बहुत गुस्सा आया....
लेकिन श्यामा उस समय तो रागिनी परिहार से कुछ ना बोली,वैसें भी वो ज्यादा लड़ाई झगड़े में नहीं उलझना चाहती थी और एक दिन श्यामा को तब बहुत गुस्सा आया जब रागिनी परिहार ने श्यामा की टमाटर की क्यारी को तहस नहस कर दिया उसने वहाँ के सभी पौधे उखाड़ दिए और उन पौधे से पके पके टमाटर तोड़कर खा गई और बाकियों को उसने अपने पैरों से मसल दिया और जब श्यामा वहाँ पहुँची तो टमाटर की बर्बाद क्यारी को देखकर उसका गुस्सा साँतवें आसमान पर पहुँच गया,उसने वहाँ मौजूद महिला कैदियों से पूछा तो सबने उसका कारण रागिनी परिहार को बताया...
और अब सबकी बात सुनकर श्यामा गुस्से से पागल होकर रागिनी परिहार के पास पहुँचकर उससे बोली....
"क्यों री तूने हमारी टमाटर की क्यारी खराब की है ना"?
"हाँ! तो मेरा क्या बिगाड़ लेगी तू?",रागिनी परिहार बोली...
"तुझसे अपनी क्यारी वैसे की वैसी ना करवा ली तो हमारा नाम भी श्यामा नहीं",श्यामा बोली....
"तू और मुझसे क्यारी ठीक करवाऐगी,ऐसा करवाने की दम तो तेरे बाप में भी नहीं है",रागिनी परिहार बोली....
"अच्छा तो ऐसी बात है",श्यामा बोली....
"हाँ! ऐसी ही बात है",रागिनी परिहार बोली...
"तुझे तो हम अभी घसीटकर ले जाऐगें और क्यारी ठीक करवाकर ही दम ना लिया तो हम भी अपने बाप की बिटिया नहीं",श्यामा बोली...
"दम है तो घसीटकर दिखा",रागिनी परिहार बोली....
"अच्छा! तो अब देख",
और ऐसा कहकर श्यामा ने रागिनी के दोनों हाथ पकड़ लिए,लेकिन रागिनी भी कहाँ आसानी से श्यामा के हाथ आने वाली थी उसने श्यामा को बहुत जोर का धक्का दिया और श्यामा पल भर में धरती की धूल चाटने लगी....
अब श्यामा का खुद पर काबू ना रहा और वो जाकर रागिनी से चिपट पड़ी,पल भर में ही दोनों में गुत्थमगुत्थी हो गई,दोनों से जैसे बन रहा था तो दोनों ही एक दूसरे को मार रही थी,कभी तो कोई किसी के बाल पकड़ता तो कभी कोई किसी को धरती पर लेटा देता,फिर दोनों उठतीं और एकदूसरे पर जोंक की तरह चिपट जाती,लेकिन दोनों ही एकदूसरे से जीत नहीं पा रहीं थीं,लड़ाई का कोई नतीजा ही नहीं निकल रहा था और अब लड़ाई देखने वाली कैदी महिलाओं का हूजूम लग चुका था,अब ये बात महिला हवलदार तक पहुँची तो वो अपना डण्डा लेकर उनकी ओर भागी चली आई....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....