Wo Maya he - 91 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 91

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वो माया है.... - 91



(91)

कांस्टेबल ललित और पुनीत को उनकी सेल में छोड़ गया था। दोनों अपनी सेल में बैठे थे। कल जबसे उन्हें गिरफ्तार किया गया था आराम नहीं कर पाए थे। दोनों ही थके हुए थे। पर इस समय पुलिस की पूछताछ का डर उनके दिमाग में था। पुनीत ने इधर उधर देखा। उसके बाद धीरे से ललित से बोला,
"यार मैं तो बुरी तरह डर गया था। तुम ना होते तो मैं डरकर सब कुबूल कर लेता।"
ललित ने उसकी तरफ देखा। गंभीर आवाज़ में उससे कहा,
"जब तक कुछ ठोस सबूत सामने नहीं रखा जाता है तब तक पुलिस कितना भी दबाव डाले कुछ कुबूल मत करना। एकबार गलती से भी कुछ कह दिया तो हम फंस जाएंगे। जब तक हम अपने मुंह से कुछ कुबूल नहीं करते हैं तब तक पुलिस हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती है।"
"ठीक है यार....पर सच कहूँ अगर तुम ना होते तो मैं कुछ ना कुछ बक देता।"
उसकी बात सुनकर ललित ने चेतावनी दी,
"ऐसा हो सकता है कि पुलिस हमें अलग अलग ले जाकर पूछताछ करे। दबाव बनाकर तुमसे सब कुबूल करने को कहे। पर डरना नहीं। अपनी तरफ से हर बात के लिए मना कर देना।"
पुनीत को उसकी बात समझ आ गई थी।‌ उसने आश्वासन दिया कि वह डरेगा नहीं पुलिस का डटकर मुकाबला करेगा। दोनों एकबार फिर चुप हो गए। कुछ देर में कांस्टेबल उनके लिए नाश्ता लेकर आया। नाश्ता करते हुए पुनीत ने कहा,
"यार इस चक्कर में हमारा अनुष्ठान पूरा नहीं हो पाएगा।"
ललित ने उसे चुप कराया। आसपास नज़र दौड़ाई। उसके बाद बोला,
"अब आज के बाद जब तक यहाँ हैं उस विषय में कोई बात मत करना। यहाँ से निकल पाए तो सोचेंगे।"
दोनों चुपचाप नाश्ता करने लगे। उन दोनों के मन में ही अनुष्ठान की बात घूम रही थी।
नाश्ता करने के बाद दोनों कुछ देर आराम करने के इरादे से लेट गए। पुनीत का मन इस बात को लेकर दुखी था कि अब उनका अनुष्ठान पूरा नहीं हो पाएगा। उसने इस अनुष्ठान से बहुत उम्मीदें लगाई थीं। वह सब किया था जो करने की उसमें हिम्मत नहीं थी। पर मुराबंध की आराधना से उसे वरदान मिलने वाला था। एक ऐसा वरदान जो उसे ऐसी ताकत प्रदान करने वाला था जिससे वह हर वह सुख पा सकता था जो उसे चाहिए था। उस वरदान को पाने के वह अपने अनुष्ठान से जुड़ी सारी क्रियाएं कर बिना डरे कर सका था। अब तो बस कुछ समय बाद अनुष्ठान का अंतिम दौर शुरू होने वाला था। लेकिन अचानक यह व्यवधान उत्पन्न हो गया।
इस व्यवधान के कारण वह छटपटा रहा था। उसने अपने आप को एक ताकतवर इंसान के तौर पर देखना शुरू कर दिया था। उसे बस यही लगता था कि कुछ ही दिनों की बात है। उसके पास वह सब होगा जिसके ना होने का उसे मलाल था। वह स्वयं को उस आदमी को सज़ा देते हुए देखता था जिसके कारण उसका बचपन बर्बाद हुआ था। उसका बचपन दूसरे बच्चों की तरह नहीं था। छोटेपन से ही उसने वह सब देखा था जो किसी के लिए भी सह पाना मुश्किल था। उसकी आँखों के सामने गर्मियों की वह दोपहरी घूमने लगी जो उसके लिए एक ऐसी सिहरन लेकर आई थी कि उसे याद करते हुए आज भी शरीर कांपने लगता था। उसे याद करते हुए वह कांप रहा था। उसके पास लेटे हुए ललित ने उसकी तरफ करवट बदल कर कहा,
"पुनीत अभी तक उसे भूले नहीं हो। भूल जाओ उस घटना को।"
"किसी और के लिए वह घटना हो सकती है ललित। मुझ पर घटा था। इतने सालों बाद आज भी मुझे उस लाचारगी, हताशा और गुस्से का एहसास होता है जो उस समय महसूस हुआ था। बारह साल का बच्चा कुछ कर नहीं पाया था। उस दिन से अपने शरीर से ही घिन लगने लगी थी। मैं एक डरपोक इंसान बनकर रह गया था। फिर एक उम्मीद जागी थी कि मुराबंध की आराधना पूरी करके इतनी ताकत पा लूँगा कि सारी दुनिया को अपने आगे झुकाऊँगा। पर अब उसकी उम्मीद भी नहीं रही।"
कहते हुए पुनीत ज़ोर ज़ोर से कांपने लगा। ललित डर गया कि उसकी इस हालत पर किसी की नज़र ना पड़ जाए। ऐसा हुआ तो पुलिस का शक गहरा हो जाएगा। उसने पुनीत को संभालते हुए कहा,
"पुनीत खुद पर काबू रखो। एक गलती होगी और हम पर कानून का शिकंजा कस जाएगा। हमें धैर्य से इसके बाहर निकलना है। अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। पुलिस को कुछ नहीं मिलेगा तो हम छूट जाएंगे। उसके बाद अपना अनुष्ठान पूरा कर लेंगे। उसके बाद कानून भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।"
ललित के समझाने पर पुनीत शांत हो गया। पर अब ललित के दिमाग में परेशानी पैदा हो गई थी। उसे लग रहा था कि पुनीत अगर इसी तरह कमज़ोर पड़ता रहा तो सब गड़बड़ हो जाएगा। उसे पुनीत को यह यकीन दिलाना पड़ेगा कि पुलिस उन दोनों का कुछ बिगाड़ नहीं पाएगी। पुनीत के शांत होने के बाद उसने समझाया,
"मैं मानता हूँ कि अचानक यह मुसीबत आ गई है। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि पुलिस के पास हमारे खिलाफ कुछ ठोस नहीं है। हमें तब तक इस बात से इंकार करना है जब तक कोई ठोस सबूत हमारे सामने नहीं रखा जाता है। अगर पुलिस जल्दी ही कुछ नहीं ढूंढ़ पाई तो हमें छोड़ना पड़ेगा। इसलिए फिर कह रहा हूँ। अपनी साधना पर भरोसा रखो। उसका फल अवश्य मिलेगा।"
पुनीत को समझाने के बाद ललित फिर करवट बदल कर लेट गया। उसके मन में भी इस व्यवधान के कारण डर पैदा हो गया था कि कहीं उनका अनुष्ठान अधूरा ना रह जाए। उसे भी अनुष्ठान पूरा करके वह सब पाना था जो वह चाहता था। उसकी ज़िंदगी में भी बहुत सारी तकलीफें थीं। उन सबसे छुटकारा पाने के लिए इस अनुष्ठान का पूरा होना आवश्यक था।
ललित एक ऐसा नौजवान था जो एक ही झटके में बहुत कुछ पा लेने के सपने देखता था। एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मा था जहाँ सीख मिली थी कि चादर देखकर पैर पसारो। पर उसकी इच्छाएं तो इतनी थीं कि पैर चादर क्या बिस्तर के भी बाहर निकल रहे थे। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह बहुत मेहनत भी नहीं करना चाहता था। उसका मानना था कि पैसा और ताकत मेहनत से नहीं बल्की किस्मत से मिलते हैं। एकबार एक ज्योतिषी ने उसकी कुंडली देखकर उससे कहा था कि तुम्हारे भाग्य में राजयोग है। तबसे वह भाग्य में लिखे राजयोग को तलाश कर रहा था।
वह एक कूरियर कंपनी में काम करता था। छोटी सी कमाई थी। वह उसे ही दांव पर लगाता रहता था। एक दो बार जीता पर अधिकांश समय हार मिली। पर अपनी किस्मत आज़माने का उसका चस्का खत्म नहीं हुआ। माँ थी नहीं‌। पिता रिटायर थे और उसकी इन हरकतों से त्रस्त थे। उसे सही राह पर लाने की सारी कोशिशें बेकार गईं। एकदिन वह खुद ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए। इसके अलावा पीछे छोड़ गए कुछ पैसे और एक मकान जहाँ वह रह रहा था।
अपने पिता के जाने के बाद ललित ने अपनी किस्मत आज़माने के क्रम में उनकी जमा पूंजी भी लुटा दी। वह उस जगह आ गया जहाँ अपनी नौकरी से मिली छोटी सी तनख्वाह बस उसे दो वक्त की रोटी और साधारण जीवन दे पा रही थी। पर अपनी किस्मत के राजयोग पर उसे अभी भी यकीन था। वह अपनी किस्मत चमकाने के नए रास्ते तलाशने लगा।‌ उसकी खोज उसे मुराबंध की आराधना तक ले आई। उसे लग रहा था कि किस्मत में लिखा राजयोग अब काम करने वाला है। पर उसकी और पुनीत की गिरफ्तारी ने एकबार फिर उसकी किस्मत को दांव दे दिया। लेकिन एक जुआरी की तरह अभी उसने हार नहीं मानी थी। वह अभी भी पासे फेंकने को तैयार था।

इंस्पेक्टर हरीश फौरेंसिक एग्ज़ामिनर के साथ हुसैनपुर पहुँचा। इंस्पेक्टर नासिर के साथ वह उस मकान में गया जहाँ ललित की बाइक थी। फौरेंसिक एग्ज़ामिनर अपने साथ पुष्कर की लाश के पास मिले टायर के निशान की तस्वीर लेकर गया था। दोनों टायरों के निशान को बारीकी से उन तस्वीरों से मिलान कराने के बाद उसने रिपोर्ट दी कि पुष्कर की लाश के पास मिले निशान से मैच नहीं हो रहा है।

साइमन इंस्पेक्टर हरीश के साथ अपने केबिन में बैठा था। पुष्कर की लाश के पास मिले टायर के निशान ललित की बाइक के निशान से मैच नहीं कर रहे थे। इस बात से साइमन और इंस्पेक्टर हरीश चिंता में थे। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"सर अगर टायर के निशान मैच कर जाते तो हमारे पास पुख्ता सबूत हो जाता। फिर तो उन दोनों को आसानी से घेरा जा सकता था।"
साइमन सोच में था। उसने कहा,
"अगर ऐसा होता तो....पर हुआ नहीं है हरीश। अब मुझे लग रहा है कि कहीं पुष्कर और चेतन की हत्या में इन दोनों के अलावा कोई और तो नहीं है। मेरा मतलब इस तंत्र मंत्र के पीछे पूरा एक गिरोह हो। मैंने पिछली चार हत्याओं के केस में जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाई है। उसके लिए आज दोपहर को निकल रहा हूँ। उस मीटिंग से कुछ लाभ अवश्य मिलेगा।"
"जी सर....कुलभूषण और कमाल से भी कोई अच्छी खबर मिल सकती है।"
"हरीश हमें जल्दी करना होगा। देर होने से मामला हमारे हाथ से निकल जाएगा। तुम खुद भी ललित और पुनीत के बारे में पता करने में जुट जाओ।"
इंस्पेक्टर हरीश चला गया। साइमन केस के बारे में सोचने लगा। उसे उम्मीद थी कि पिछली चार हत्याओं की जांच से जुड़े पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कोई ना कोई ऐसा पहलू ज़रूर सामने लाएगी जो एक नई दिशा दिखाएगी।