भाग 38
कहानी को बीच में रोकते हुए आकाश ने दूसरा चिप्स का पैकेट उठाया और उसे खोलकर चिप्स खाने लगा। इस बीच मानसी भी उठी और दो बोतल में पानी भरकर ले आई। मानसी ने मीनू को चाय के लिए इशारा किया और मीनू और शीतल ने चाय बनाना शुरू कर दी। जब चाय बन गई तो दोनों ने सभी को एक-एक कप चाय दे दी। आकाश चिप्स के साथ चाय का मजा लेने लगा। फिर उसने अपनी कहानी को आगे बढ़ाया।
कुंए की आत्मा का रहस्य जान लेने के बाद लक्ष्मीकांत तुंरत अपने घर की ओर चल दिए। घर पहुंचकर वह सीधे अपने छोटे भाई सूर्यकांत के कमरे में गए। सूर्यकांत गहरी नींद में सो रहा था। उसे जगाते हुए लक्ष्मीकांत बोले- सूर्या उठ। अपने भाई को यूं इतनी रात को अपने कमरे में आया देखकर सूर्यकांत हड़बड़ाहट में उठा। आँखे मलता हुआ बोला- भैया सब कुशल तो है न ?
लक्ष्मीकांत- हाँ, तू ये बता कि भगवती कहाँ हैं ?
भगवती का नाम सुनकर सूर्यकांत के चेहरे की हवाइयां उड़ गई।
भ... भ... भगवती तो अपने मायके चली गई मुझे छोड़कर। आपको बताया तो था भैया।
लक्ष्मीकांत- मैं अभी भगवती से मिलकर आ रहा हूँ, वो अपने मायके नहीं गई।
सूर्यकांत- ये नहीं हो सकता।
लक्ष्मीकांत- क्यों नहीं हो सकता ?
मरने वाले फिर लौटकर नहीं आते इसीलिए न ?
सूर्यकांत अपने बड़े भाई के कदमों में गिर पड़ा। उनके दोनों पैरों पर अपने सर को रखते हुए बोला भैया मुझे क्षमा कर दीजिए, मैं पापी दण्ड का अधिकारी हूं।
लक्ष्मीकांत- भगवती और मेरे लाडले की मृत्यु कैसे हुई ?
सूर्यकांत- भैया मैं भगवती से विवाह नहीं करना चाहता था। वह सर्वगुण सम्पन्न होने पर भी मेरे पापी ह्दय में जगह नहीं बना सकी। मैं एक शहरी लड़की से प्रेम करता था, पर आपने मेरा विवाह गाँव की लड़की से करवा दिया। मैंने हमेशा भगवती को तिरस्कृत किया, उसे सदैव खरी-खोटी सुनाई। पर उसने हमेशा मुझे भगवान ही माना और मेरे हर जुल्म सहती रही। आपको भी कभी भनक नहीं लगने दी कि मैं उस पर अत्याचार करता हूं। एक रात जब में नशे में धुत्त घर लौटा तो मुझे सम्भालते हुए भगवती बोली- आप मुझसे नफरत करते हैं, कोई दुख नहीं पर क्या अपने बच्चे से भी प्यार नहीं करते। उसी की खातिर आप शराब छोड़ दीजिए।
मैं अहंकारी अपनी सारी हदें पार करता हुआ उसके गाल पर तमाचा जड़ते हुए बोला- भैया को ही बच्चे देखने का मन था। मुझे तो याद भी नहीं कि मैंने तुझे कभी ठीक से भी देखा हैं। यह मेरा बच्चा नहीं है। किसी और के पाप को मेरे सर मत मड़।
मैं नशे में बहुत गलत बोल गया। मेरी इस बात से आहत हो भगवती कब बच्चे को लेकर घर से चली गई मुझे पता ही न चला।
अपनी गलती का अहसास होते ही मैं तुरन्त उसके कमरे में गया तो वहां एक पत्र मिला। जिसमें लिखा था- मैंने आपके हर अत्याचार को सहन किया, पर अपने चरित्र पर लगे इस इल्जाम को मैं सहन नहीं कर पाई। अब आपको मैं और मेरा बच्चा कभी नहीं दिखेगा। जब खेत के कुँए से हमारी लाश निकाली जाएगी तब भी आप वहां न आना।
पत्र पढ़ने के बाद में तुरन्त खेत की ओर भागा। पर मैंने बहुत देर कर दी थी। मेरी पत्नी और बच्चे को मैंने पानी में चिरकालीन सोता हुआ पाया। दोनों की लाश को मैंने खेत में ही दफना दिया। इस बात का साक्षी जमनादास भी हैं। उसकी सहायता से ही मैंने यह सब किया। इतना कहकर सूर्यकांत बिलख-बिलख कर रोने लगा।
अगली सुबह पंचायत बुलाई गई। गाँववासी अपराधी की जगह सूर्यकांत को देखकर, एक-दूसरे की ओर इशारों में बाते करने लगे।
लक्ष्मीकांत- प्रिय ग्रामवासियों, अपराधी छोटा हो या बड़ा, अपना हो या पराया उसे दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। मेरे अनुज ने एक घोर अपराध किया है। वह अपराध है एक स्त्री के मान-सम्मान को ठेस पहुँचाना, उसे अपने पैरों की जूती समझना, पत्नी को उपभोग का साधन मात्र मानना, अपने पुरुषत्व के बल का दिखावा उसे मार कर करना आदि। घरेलू हिंसा की मैं कड़ी निंदा करता हूँ। और इन अपराधों के लिए सख्त सजा के पक्ष में अपना फैसला सुनाता हूँ।
कोई हैं जो सूर्यकांत के पक्ष में अपनी गवाही देना चाहता है ?
एक-दूसरे का मुंह देखकर गाँव वाले ना में सिर हिला देते हैं। लक्ष्मीकांत अपना फैसला सुनाने ही वाले होते हैं कि- घूँघट ओढ़े एक महिला आती है। वह सूर्यकांत के पक्ष में अपनी गवाही देते हुए बोली- निःसन्देह इनके सभी अपराध दंडनीय हैं, पर दण्ड का पात्र वह इंसान भी हैं जो अत्याचारों को सहता है। जो अपने हक के लिए लड़ना नहीं जानता है और कायरता से मौत को अपने गले लगा लेता है। आत्महत्या कभी किसी समस्या का हल नहीं होती। अतः आप इन्हें क्षमा करें, जिससे मेरी आत्मा को भी मुक्ति मिल सके। एक बार फिर से महिला ने अपने प्रेममयी ह्दय से अपने पति की हर गलती को क्षमा कर दिया। और वह सबके सामने ही गायब हो गई। इस घटना के बाद चन्द्रावतीपुर में कभी किसी घर से घरेलू हिंसा व आत्महत्या जैसी घटना सामने नहीं आई।
अब आकाश चुप हो गया था।
कुछ देर तक सभी खामोश रहे और फिर मीनू ने कहा- कहानी अच्छी थी। घरेलू हिंसा और आत्महत्या वाला एंगल तुमने अच्छा जोड़ा था।
मानसी ले कहा- हां, आत्महत्या किसी भी समस्या का निदान नहीं है। इसलिए कोई परेशानी है तो उससे लड़ों, पर हारकर मानकर आत्महत्या जैसा कदम किसी को नहीं उठाना चाहिए।
बिल्कुल, अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान भी होता है। जितना ध्यान आप आत्महत्या जैसे कदम को सोचने में लगाते हो उतना ध्यान यदि परेशानी का समाधान निकालने में लगाओ तो आपको आत्महत्या करने की जरूरत ही नहीं होगी। अशोक ने कहा।
परेशानी कितनी भी बड़ी हो, इंसान को हार नहीं मानना चाहिए। मैं तो हमेशा ही यह कहूंगा। राघव ने कहा।
आत्महत्या वो करते हैं जो परेशानियों का सामना करने से घबराते हैं, इसलिए परेशानियों से लड़ों और उन्हें बता दो कि कोई भी परेशानी तुम्हारा हौंसला नहीं तोड़ सकती है। साहिल ने कहा।
एक औरत ने मजबूरी में उठाया कदम और गांव वालों ने उसे भूत समझ लिया। काश उसने एक बार अपने पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई होती तो वो और उसका बच्चा अच्छी जिंदगी जी रहे होते। शीतल ने कहा।
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