Horror Marathon - 32 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 32

Featured Books
Categories
Share

हॉरर मैराथन - 32

भाग 32

बस अब तो खुश है तू आ गए कहानी में भूत। मानसी ने राघव से कहा।

हां, पर बहुत देर हो गई थी कोई भूत नजर नहीं आ रहा था कहानी में मैंने तो इसलिए कहा था। राघव ने मानसी से कहा।

इसलिए कहते हैं पहले पूरी बात सुनो और फिर कुछ कहो। मीनू ने कहा।

ठीक है बाबा गलती हो गई, अब कुछ नहीं बोलूंगा। जब तक कहानी पूरी नहीं हो जाती मैं चुप ही रहूंगा। राघव ने कहा।

करना भी यही ही चाहिए। कहानी है, कई बार भूमिका बनाने में समय लग जाता है और फिर असली कहानी शुरू होती है। तुने फिल्में नहीं देखी क्या, आधे घंटे की फिल्म हो जाती है और फिर हीरो की एंट््री होती है। वैसे ही भूतों की कहानी में भूत हीरो हैं, जिनकी एंट््री देर से ही सही, पर होगी जरूर। हा... हा... हा....। साहिल ने हंसते हुए कहा।

फिर आगे क्या हुआ अशोक। क्या भूत हॉस्पिटल में घूमते ही रहे ? मीनू ने प्रश्न किया।

मीनू की बात सुनकर अशोक ने फिर से अपनी कहानी को आगे बढ़ाया।

डॉ आकाश : खुद ही फाइल पढ़ लोगे या हमें भी मौका दोगे। कमाल है अब वार्डबॉय भी डॉक्टर बन गए। वह आदमी वैसे ही बुत बना फाइल लिए खड़ा रहा। चिढ़कर डॉ आकाश उठे और उससे फाइल छीन ली। जैसे ही फाइल उस आदमी के चेहरे से हटी। उसे देखकर डॉ आकाश के चेहरे की हवाइयां उड़ गई। पूरा सफेद चेहरा, सफेद बिना पुतली की आँखों वाला मुर्दा खड़ा था। मुर्दे ने ठीक वैसे ही डॉ आकाश को मारा जैसे उन्होंने गरीब लड़के को मारा था। उसके बाद मुर्दे ने उसी दीवार पर आकाश का सिर जोर से पटक दिया जिससे गरीब लड़के की माँ टकराई थीं। आकाश के केबिन से शोर सुनकर अस्पताल प्रबंधन की टीम आ गई। केबिन का दृश्य देखकर सब सकते में आ गए। आकाश का मृत शरीर नीचे पड़ा हुआ था और एक मुर्दा उस पर पैर रखकर खड़ा हुआ हँस रहा था।

आज कालाबाजारी करने वाले सभी डॉक्टर व कर्मचारी अस्पताल में एक साथ मौजूद थे। सबको मुर्दों ने चारों और से घेर लिया।

सभी मुर्दे अपनी आपबीती डॉक्टर से कहने लगे।

मुझे पहचाना डॉ साहब मैं वहीं श्यामलाल हूँ जिसके बेड को आपने वीआईपी को बेच दिया था और मैं इलाज के अभाव में तड़प-तड़प कर मर गया था ?

दूसरा मुर्दा : मुझे पहचाना डॉ साहब, मैं वही गिरधारी हूँ जिसका एक्सीडेंट हुआ था और आपने मेरा इलाज करने की बजाय फॉर्म भरने को कहा था ?

तीसरा मुर्दा : मुझे पहचाना डॉक्टर मैं वहीं शीला हूँ जिसे गलत इंजेक्शन लगा दिया था और जिससे मेरी मृत्यु हो गई थीं ?

सभी मुर्दे एक साथ कहते हैं- हमने तो सोचा था हम अपने जीवन की रक्षा के लिए एक मंदिर में जा रहे हैं जहाँ भगवान स्वरूप डॉक्टर हमें प्राणदान देंगे, हमें नवजीवन देंगे। पर हम यह नहीं जानतें थे कि हम शैतान की दुनिया में जा रहे हैं जहां हमें मृत्युदंड मिलेगा।

डॉक्टर को अपनी भूल का अहसास हुआ। सभी माफी मांगने लगे। पर मुर्दों ने कहा- शैतान कभी भगवान नहीं बन सकता और भगवान कभी शैतान नहीं बनता। आप लोग शैतान हैं भगवान नहीं। आपने लोगों के प्राण हरे हैं उन्हें जीवनदान नहीं दिया इसलिए अब आप सब मृत्युदंड के भागी हैं। सभी मुर्दे आगे बढ़ते हैं और इंसानी रूप में छिपे शैतानों को मौत के घाट उतार देते हैं।

इसके साथ ही अशोक ने कहा- तो बस इतनी ही थी मेरी ये कहानी। अब बोलो कैसी लगी कहानी ?

भूतों ने सभी डॉक्टर्स के साथ जो किया वो बिल्कुल सही किया। ऐसे डॉक्टर्स के साथ ऐसा ही होना चाहिए था। मीनू ने कहा।

हां, सबसे बड़ी बात सरकार या प्रशासन की ओर से कार्रवाई किए जाने की जगह उन लोगों ने ही डॉक्टर्स से बदला लिया, जिनकी जान के साथ उन डॉक्टर्स ने खिलवाड़ किया था। ऐसे लोगों को ऐसे ही सबक मिलना चाहिए। मानसी ने कहा।

वैसे में इस कहानी का नाम रखता भूतों का इंतकाम। साहिल ने फिर हंसते हुए कहा।

तू नामकरण बाद में कर लेना, जा देखकर आ शीतल क्या कर रही है ? राघव ने कहा।

अरे वो तो पहले भी सो रही थी और अब भी सो ही रही होगी। बार-बार क्या देखना उसे। साहिल ने कहा।

यार जंगल है, वो अकेली सो रही है एक बार और चेक कर ले। इस बार अशोक ने राघव की बात का समर्थन करते हुए कहा।

मैं नहीं जा रहा, तुम्हें चिंता है तो तुम देख आओ। मैं तो अब अगली कहानी सुनुगा। साहिल ने कहा।

हां, मानसी अशोक के बाद तू कहानी सुनाने वाली थी, अब तू अपनी कहानी शुरू कर। मीनू ने कहा।

ओके अब मैं सुनाती हूं एक कहानी। फिर मानसी ने अपनी कहानी शुरू की।

विमलेंद्र प्रताप सिंह अपनी दादी के साथ मुंबई में रहतें हैं। यहां वह अपना फैमिली बिजनेस संभालते हैं। एक कार एक्सीडेंट में विमलेंद्र के माता-पिता गुजर गए। दादी मां ने ही विमलेंद्र का पालन-पोषण किया। दादी माँ अब बूढ़ी हो गई थी अतः उनकी देखभाल के लिए विमलेंद्र ने अखबार में केअर टेकर के लिए इश्तिहार दे दिया था। विमलेंद्र ऑफिस में इसी ख्याल में डूबे हुए थे कि अच्छी केअर टेकर मिल पाएगी ? लोग मुंह मांगा वेतन देने पर भी ठीक से काम कहां करते हैं ?

तभी चपरासी ने विमलेंद्र के केबिन में प्रवेश किया। वह बोला सर एक लड़की आपसे मिलना चाहतीं है।

विमलेंद्र : ठीक हैं उन्हें अंदर भेज दो।

क्या मैं अंदर आ सकती हूँ ..? मिश्री सी मीठी आवाज विमलेंद्र के कानों में घुल गई।

विमलेंद्र (लड़की की ओर देखकर) : जी।

एक खूबसूरत सी लड़की विमलेंद्र के सामने खड़ी थी। विमलेंद्र ने इशारे से उसे बैठने को कहा। लड़की धन्यवाद सर कहकर विमलेंद्र के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गईं। लड़की ने अखबार में छपे इश्तिहार का जिक्र करते हुए बताया कि वह जॉब के सिलसिले में आई हैं। विमलेंद्र को लड़की ईमानदार लगीं। उसने लड़की को जॉब पर रख लिया।

अगले दिन से लड़की रोज विमलेंद्र के घर आने लगीं। कुछ ही दिनों में वह दादी से घुल-मिल गई। दोनों की हँसी ठिठौली विमलेंद्र के कमरे तक सुनाई देती। अब घर में चहल-पहल रहती। विमलेंद्र गम्भीर स्वभाव का था और दादी चुलबुली सी, नटखट बच्चों सी। दादी अब खुश दिखाई देतीं। विमलेंद्र ने दादी को छेड़ते हुए कहा- क्या बात है दादी आजकल तो सारा दिन मुस्कुराती रहती हो, पहले तो मुंह लटकाए गुमसुम बैठी रहती थीं।

-----------------------------