Arvind Babu in Hindi Short Stories by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | अरविन्द बाबू

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अरविन्द बाबू

हमलोगों के आदि पुरखा पं.देवदत्त राम त्रिपाठी थे।उनके पांच पुत्र हुए-पं.विशेषर राम,शंकर राम,चंदर राम,चतुर्भुज राम और राजाराम त्रिपाठी।विशेषर राम,चतुर्भुज राम और राजाराम की आगे की वंशावली के बारे में जानकारी नहीं है।चंदर राम के दो पुत्र परसन राम और हरिदत्त राम हुए।उनके आगे के वंशजों के बारे में सूचना नहीं है।पं.शंकर राम त्रिपाठी के आगे की वंशावली उपलब्ध है जो हमलोगों से सीधे जुड़े थे।इनके यहां एक ही पुत्र का क्रम लम्बी अवधि तक चलता रहा।शंकर राम के पुत्र श्यामा राम,श्यामा राम के पुत्र बेनी राम,बेनीराम के पुत्र अयोध्या राम,अयोध्या राम के पुत्र रामसेवक राम,रामसेवक राम के पुत्र पं.घिसियावन राम त्रिपाठी हुए।उनके घिसियावन नामकरण के बारे में पहले ही बता चुका हूं।
यहां से वंशजों की वृद्धि का विवरण मिलता है।पं.घिसियावन राम के तीन पुत्र हुए-पं.यदुनाथ राम,पं.विन्देश्वरी राम और पं.त्रिलोक नाथ राम त्रिपाठी।पं.यदुनाथ और पं.त्रिलोक नाथ को संतानें नहीं हुईं।पं.विन्देश्वरी राम त्रिपाठी के तीन पुत्र हुए-पं.गंगा प्रसाद राम,पं.भानु प्रताप राम,पं.नागेश्वर प्रताप राम त्रिपाठी।पं.गंगा प्रसाद राम नावल्द रहे।पं.भानु प्रताप राम त्रिपाठी(हमारे बाबाजी)के एक पुत्र हुए-पं.प्रतापादित्य राम त्रिपाठी(पुकार नाम अरविंद)जिन्होंने आगे चलकर अपना जातिगत नाम हटाकर आचार्य प्रतापादित्य रख लिया।
उधर पं.नागेश्वर राम त्रिपाठी(हमारे चचेरे बाबाजी)को सात पुत्र हुए- पं.शिव प्रताप राम त्रिपाठी(सच्चा),पं.रुद्र प्रताप राम त्रिपाठी(पक्का ),पं.पद्मनाभ राम त्रिपाठी(मझले),पं.गिरिजेश राम त्रिपाठी, पं.प्रभाकर राम त्रिपाठी(मनकू),पं.शत्रुंजय राम त्रिपाठी(बंगाली) और सबसे छोटे पं.मृत्युंजय राम त्रिपाठी (जंगाली)जिनका अल्पायु में देहांत हो गया ।
पढ़ने वालों को आश्चर्य होता होगा कि इतने बड़े परिवार की देखभाल कैसे होती रही होगी !असल में ये लोग ज़मींदार थे और विपुल सम्पदा इनके पास थी।भरपूर पैदावार होती थी।इतनी कि नौकर चाकर को देने के बाद सालभर के खान पान ,दान दक्षिणा,उधार बट्टा ,बीया बेंग देकर भी बच जाता था।
बताते हैं कि चौरिया नामक गांव में एक साल तीसी(अलसी) की पैदावार इतनी हुई कि उसे बेंचकर हमारे बाबा सोनपुर मेले से हाथी लाये थे। जब दोनों परिवार (पं भानुप्रताप राम और पं.नागेश्वर प्रताप राम)एक में थे तो ऐसी ही भरपूर पैदावार से एक वर्ष गांव के छोर पर शिवजी का एक भव्य मंदिर (शिवाला)और उससे लगा विशाल तालाब बना था जो अब भी उस समृद्धशाली दौर की याद दिला रहा है।उस तालाब के बीच में बहुत बड़ा मलखम्ब गड़ा था।तालाब में कमल के फूल खिलते थे।
हमने अपने बचपन में हाथी की देखरेख करने वाले मेटी खां नामक पिलवान को देखा था और उनसे ढेर सारे पुराने किस्से भी सुने थे।उन दिनों वे पहलवानी भी करते थे।हाथी तो नहीं लेकिन अब वे रिक्शा चलाकर अपनी रोजी रोटी चलाते थे।उनके पर्दे लगे रिक्शे से मेरी दादीजी या बुआ अनेक बार गोरखपुर तक आई हैं।
घर से लगा राधाकृष्ण मंदिर की देख रेख पंडित प्रभाकर राम त्रिपाठी के द्वितीय पुत्र पं.चन्द्रप्रकाश राम त्रिपाठी उर्फ चंदू बाबू यथाशक्ति कर रहे हैं।घर से लगा एतिहासिक थारु का कुंआ किन्हीं दुर्घटना के चलते अब ढंक दिया गया है।उसकी भी अपनी विशिष्ट रोमांचक और रहस्यमयी कहानी है जिसे मेरे पिताजी ने वर्षों पहले लिखा था।हमारे दरखोला में मवेशियों और घोड़ों आदि के लिए नाद आदि सहित कमरे बने थे जो अब ढह चुके हैं।सरयां के पोखरे की खुदाई के चलते वहां से कुछ ऐतिहासिक मूर्तियां निकली थीं जिनसे इतिहास के अनखुले रहस्यों से पर्दा उठ सकता था,लेकिन वे सभी पुरातत्व विभाग की अनदेखी का शिकार होकर रह गईं।