Horror Marathon - 31 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 31

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हॉरर मैराथन - 31

भाग 31

यार तेरी ये कहानी भूतों वाली तो नहीं लग रही है, अब तक की कहानी से तो ऐसा लग रहा है कि तू अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। राघव ने कहा।

यार तुम लोगों की ये आदत बहुत खराब है। बीच में टोक देते हो। उसकी कहानी अभी पूरी हुई नहीं है और तुम बोलने लगे। पहले उसकी पूरी कहानी तो सुनो। मानसी ने कहा।

हां तुझे कैसे पता कि कहानी में भूत नहीं है। अभी तो कहानी आधी ही हुई है। मीनू ने मानसी की बात का समर्थन करते हुए कहा।

हा, पहले कहानी पूरी सुनो फिर आगे कुछ कहना। चल अशोक तू अपनी कहानी आगे शुरू कर। साहिल ने कहा।

अशोक ने फिर अपनी कहानी आगे सुनाना शुरू की।

देवनगर में भी महामारी फैल गई। प्रशासन द्वारा महामारी से निपटने के लिए चुनिंदा अस्पताल को ही अनुमति दी गई। उनमें से एक अस्पताल आर.जी. मुखर्जी भी था। महामारी के डर से यहाँ के डॉक्टर व कर्मचारियों का रवैया शुरुआती दौर में बहुत बुरा रहा। मरीजों को न तो ठीक से दवाई दी जाती न ही भोजन। यहां मौत का आंकड़ा बढ़ने लगा जिसके कारण मृत्य दर में देवनगर का नाम देश के 20 महानगरों को पीछे छोड़कर पहले नंबर पर आ गया। प्रशासन में हड़कंप मच गया। कम आबादी वाले शहर में मृत्यु दर महानगरो की अपेक्षा सर्वाधिक कैसे..?

देवनगर के जिलाधीश ने आर.जी. मुखर्जी अस्पताल के महानिदेशक महाडिक को फटकार लगाई और चिकित्सा में हुई लापरवाही के कारण उन्हें निलंबित करने की बात कही। अखबारों की सुर्खियां रहीं- महाडिक को जिलाधीश की फटकार, फिर भीं महाढीठ आदत से लाचार। मीडिया ने हर तरह से अस्पताल प्रशासन पर अपनी लेखनी के माध्यम से हमले किये पर अस्पताल पर कोई असर नहीं हुआ। मीडिया द्वारा किया गया नामकरण- महाढीठ ही डॉ महाडिक पर सटीक लगता।

प्रशासन के तमाम दिशा-निर्देशो के बाद भी आर.जी. मुखर्जी अस्पताल में दवाइयों व इंजेक्शन की कालाबाजारी धड़ल्ले से चल रहीं थी। 2000 की कीमत के इंजेक्शन 20 से 30 हजार रुपये में बेचे जा रहे थे। अस्पताल में बेड की सौदेबाजी हो रहीं थीं। अमीरों को मुहमांगी कीमत पर बेड दिए जा रहे थे। गरीब लोग बेबस होकर अस्पताल में चक्कर काट रहे थे।

शैतान की दुनिया हो चुके अस्पताल के लोगो मे मानवता नाम मात्र भी न बचीं। आपदा को अवसर जानकर सभी अपनी जेबें भरने लगें। एक दिन डॉ उत्सव खुशी में झूमता हुआ डॉ महाडिक के केबिन में पहुंचा।

उत्सव : सर महामारी सिर्फ फेफड़ों को संक्रमित कर रहीं है किडनी तक इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा। मैंने अभी एक मृत पेशेन्ट की किडनी निकालकर देखी है।

महाडिक : वैरी गुड ! फिर तो मरने वाले सभी मरीजों की किडनी निकाल लो। महामारी की गाइडलाइंस के कारण परिजनों को मरीज का शव नहीं दिया जा रहा हैं, तो इस बात का पता किसी को भी नहीं चलेगा।

उत्सव (खुश होकर)- जी सर। कहते हुए उत्सव वहाँ से चला गया।

वह मृत शरीर के पास गया और किडनी निकालने की तैयारी करने लगा। जैसे ही उसने चीरा लगाने के लिए औजार को मृत शरीर पर लगाया। मुर्दे ने डॉ उत्सव का हाथ पकड़ लिया। डॉ उत्सव की आवाज भी नहीं निकल पाई। मुर्दे ने उसी औजार से उत्सव का पेट चीर दिया और उसकी किडनी निकालकर ट्रे में रख दी।

डॉ उत्सव की महिला मित्र जब उससे मिलने के लिए रूम में आई तो जोर से चिल्लाते हुए वहाँ से भाग गई। उसके शोर से कर्मचारी इकट्ठे हो गए। सभी महिला डॉक्टर के इर्दगिर्द जमा हो गए। वह बहुत डरी हुई थी उसने उँगली के इशारे से रूम दिखाया। सभी लोग रूम की और दौड़ पड़े। रूम का मंजर देखकर सबके दिल दहल गए। स्ट्रेचर पर मुर्दा पड़ा था व स्ट्रेचर के नीचे उत्सव की लाश। अस्पताल प्रबंधन टीम ने इस मामले को छुपा दिया। उत्सव की बॉडी को महामारी से पीड़ित मरीज की भांति बांध दिया गया। प्रशासन व अन्य किसी को इस घटना की भनक तक नहीं लगीं। उत्सव की मौत से अस्पताल कर्मचारी खौफजदा रहने लगें।

एक दिन वार्डबॉय आईसीयू यूनिट में था तभी उसे वहां एक युवा लड़की बेड पर दिखी। वार्डबॉय की नीयत डोल गई वह लड़की के पास गया और छेड़छाड़ करने लगा। लड़की बोल पाने में असमर्थ थी, और मरीज भी अतः वह बलपूर्वक विरोध नहीं कर पा रहीं थी। वार्डबॉय लड़की के ऊपर था तभी किसी ने उसकी पीठ पर मुक्का मारा। तिलमिलाए वार्डबॉय ने उठकर देखा तो उसके होश उड़ गए। एक मुर्दा खड़ा था। मुर्दा बोला और कितना नीचे गिरोगे तुम लोग? वार्डबॉय की घिग्गी बन्ध गई। मुर्दे ने उसके गाल पर कसकर तमाचा जड़ दिया। और घसीटते हुए उसे वहाँ से मुर्दाघर ले आया। मुर्दे ने वार्डबॉय को निर्वस्त्र कर दिया। रातभर ठंड से वार्डबॉय का शरीर अकड़ गया और वह मर गया।

वार्डबॉय की मृत्यु से अस्पताल के कर्मचारियों में भय पैदा हो गया। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। अस्पताल प्रबंधन ने सीसीटीवी फुटेज देखे पर वारदात के समय सारे कैमरे बंद थे। मैनेजमेंट को कोई भी पुख्ता सबूत नहीं मिला।

ऐसे ही एक दिन एक गरीब लड़का अपने पिता को जनरल वार्ड में भर्ती करवाकर रिशेप्शन से फाइल बनवा रहा था तभी उसे 20000 रुपये का बिल थमा दिया गया। गरीब लड़का मैं तो अभी ही अपने पिता को लेकर आया हूं अभी तो उनका इलाज भी शुरू नहीं हुआ। फिर ये बिल किस लिए?

महिला ने कहा मुझे नहीं पता डॉक्टर से पूछो। लड़का डॉ आकाश के पास जाकर सारी बात बताता है। ड़ॉ पहले से ही किसी बात से चिढ़ा हुआ था। वह उस गरीब लड़के पर बिगड़ गया और गुस्से से उसे मार देता हैं। डॉ और गरीब लड़के के बीच हाथापाई हो जाती हैं। बीच बचाव करने लड़के की माँ भी आई। डॉ ने उन्हें भी धक्का दे दिया जिससे उसका सर दीवार से टकराया और वे गिर पड़ी।

लड़का लाचारी से मुंह लटकाए अपनी माँ को लेकर वहाँ से चला गया। लड़का अब बिना बिल चुकाए अस्पताल से अपने पिता को दूसरे अस्पताल भी नहीं ले जा सकता था। वह पैसो की जुगाड़ करने लगा। रात का समय था डॉ आकाश अपने केबिन में थे तभी केबिन के दरवाजे को किसी ने खटखटाया। डॉ आकाश चिढ़कर- अंदर आ जाओ। डॉ आकाश अपने फोन में व्यस्त थे। उन्होनें मुंह उठाकर देखा तो कोई फाइल को मुंह के सामने रखे खड़ा था।

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