Horror Marathon - 28 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | हॉरर मैराथन - 28

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

Categories
Share

हॉरर मैराथन - 28

भाग 28

यार ये भूतों को सही है कोई भी एक पेड़ देखो और उस पर रहने लग जाओ। आते-जाते लोगों को डराओ और मस्त रहो। अशोक ने मजाक करते हुए यह बात कही।

हां, या मैं भी यही सोच रहा था ये सारे भूत पेड़ों पर ही क्यों रहते हैं। किसी के घर में रहने में उन्हें क्या प्रॉब्लम है। साहिल ने कहा।

भूत छोटे घरों में नहीं बड़ी हवेलियों में रहते हैं। मानसी ने साहिल और अशोक की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।

अरे यार ये डिस्कशन बाद में कर लेना पहले कहानी पूरी सुन लो। राघव तू आगे सुना क्या हुआ ? मीनू ने कहा।

राघव ने पानी के दो घूंट पीने के बाद फिर से अपनी कहानी शुरू की।

किशन कुछ कदम ही चला था कि उसे एक लंबा साया दिखा। वह डर गया और चुपचाप तेज कदमो से चलने लगा। तभी किसी ने उसकी कॉलर पकड़ ली। अब तो किशन की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसने पलटकर देखा तो मास्क वाला खौफनाक चेहरा दिखा। उसे देखकर किशन अपना सारा सामान वहीं छोड़कर भाग गया। अब तो ऐसी घटनाएं आम हो गई। आए दिन कोई न कोई यह कहता मिल जाता कि उसका सामना भूत से हो गया था।

एक दिन भैरोसिंह पुलिया से गुजर रहा था कि उसे बीच रास्ते वहीं खौफनाक भूत पड़ा दिखा। भैरोंसिंह अब समझ गया कि आज यह भूत मुझे नहीं छोड़ेगा। मेरे स्वर्ण पदक जीतने के जुनून के कारण आज मैं अपनी जान से हाथ धो बैठूंगा। उसने विचार किया कि फिर से शहर चला जाता हूँ। उसने अपनी गाड़ी शहर की ओर घुमा दी।

तभी वह भूत कराहता हुआ भैरोसिंह से हाथ उठाकर बोला- ठहरो... मुझे अकेला छोड़कर मत जाओ।

भैरोंसिंह अचरज में पड़ गया। वह सोचने लगा कि जरूर मुझें फांसने के लिए इस भूत का ये नया षडयंत्र हैं। वह जाने लगा तो कराहते हुए भूत ने अपने चेहरे से खौफनाक मास्क निकाल दिया। वह तो बिल्कुल सामान्य चेहरे वाला आदमी था। भैरोसिंह उसकी तरफ गया। वह आदमी बोला- भाई मैं भी तुम्हारी तरह इंसान ही हूं, मुझे अपने साथ गाँव ले चलो। मुझें गाँववालो से बहुत जरूरी बात करना है।

भैरोसिंह ने उसे सहारा देकर उठाया और अपनी गाड़ी पर बैठा लिया। उस आदमी के हाथ में मास्क था। जब भैरोसिंह की गाड़ी गाँव की गली से गुजरती हैं तो उसके पीछे मास्क देखकर गाँव वाले भयभीत होकर भागने लगे। गाड़ी को गाँव की चौपाल पर टिकाकर भैरोसिंह ने गाँव वालो को बुलाया। सभी गाँव वाले अपने घर के झरोखों से झांककर देखने लगें। उन्होंने देखा कि एक आदमी हाथ में मास्क लिए भैरोसिंह के साथ खड़ा था। सभी लोग घर से निकलकर चौपाल पर एकत्रित होने लगे।

आदमी की शक्ल देखकर सरपंच जी बोले- कालू तू.... तो तू ही है वह घर का भेदी जो लंका ढहा रहा था।

कालू सिर को झुकाकर हाथ जोड़कर सभी से क्षमायाचना करने लगा। वह बोला हमारा सोनापुर गाँव पूरे देश में अफीम की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। काले सोने का लालच मेरे मन में इतना बढ़ गया कि मैं अफीम की चोरी करके उसकी तस्करी करने लगा। मेरा सम्पर्क बड़े-बड़े माफिया से हो गया जो मुझे अफीम के बदले मुंह माँगी कीमत देते हैं। तस्करी के लिए मैंने कबीट के पेड़ की भूतिया कहानी का लाभ उठाकर ही मास्क लगाकर ग्रामवासियों को डराना शुरू कर दिया। ताकि सब कबीट के पेड़ के भूत से डरकर रात को पुलिया से न निकले और मेरा तस्करी का काम आसान हो जाएं।

सरपंच जी : तो आज ऐसा क्या हो गया की तू सत्यवादी हरिश्चन्द्र बन बैठा...?

कालू : आज भी मैं मास्क लगाकर अपनी तैयारी से कबीट के पेड़ के पीछे छुपकर बैठा था। तभी मेरे सामने कबीट के पेड़ का भूत आ गया। उसने कसकर एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ दिया। जिससे मैं सड़क पर जा गिरा और फिर उठ न सका। भूत ने मुझसे कहा- लोभी मेरे नाम का नाजायज फायदा उठाकर भोलेभाले गाँव वालो के खेतों से अफीम चुराता हैं, और कालाबाजारी करके स्वयं का पेट भरता हैं। आज अगर तूने गाँव वालों को सारी सच्चाई नहीं बताई तो आज मैं तुझे मृत्युदंड दूँगा।

कालू की बात सुनकर गाँव वाले एक दूसरे का मुंह देखने लगे। भैरोसिंह सारी कहानी सुनकर बोला- इतने वर्षों से हम एक अच्छी आत्मा से डरते रहें। और कालू जैसे लोभी धन के भूत को आदर व प्रेम देते रहे। सभी भैरोसिंह की बात से सहमत हुए। कालू द्वारा अपनी भूल का प्रायश्चित कर लेने पर उसे जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया।

अगले दिन सरपंच जी के साथ सभी गाँव वाले कबीट के पेड़ के पास गए और उस पर बंधे धागे खोल दिये गए। पेड़ के चारों और एक चबूतरा बना दिया गया। जहाँ पर प्रतिदिन लोग प्रसाद चढ़ाने लगे।

फिर आगे क्या हुआ ? अशोक ने पूछा।

फिर क्या कहानी खत्म। राघव ने कहा।

मतलब एक और शरीफ भूत। क्या भूत सच में इतने शरीफ होते हैं। यार ये केसा भूत था जो बदनाम होकर भी बदनामी से डर रहा था। हा..हा..हा.. साहिल ने हंसते हुए कहा।

ओए तू ना भूतों को कैटेगिरी में मत बांट। कहानी है कहानी का मजा ले। तुझे कौन सी भूतो पर थीसिस लिखना है जो तू कहानी में भी शरीफ और बदमाश भूत को तलाश कर रहा है। मीनू ने कहा।

नहीं यार मैंने तो अक्सर फिल्मों में देखा है। फिल्मों में कभी कोई शरीफ भूत नजर नहीं आया है, इसलिए मेरे दिमाग में यह ख्याल आ गया। साहिल ने अपनी बात को साफ करते हुए कहा।

चल रहने दे। अब सफाई मत दे। फिल्मों में भी कहानी ही होती है, कोई असल घटना नहीं होती है। इसलिए ये नौटंकी बंद कर दे। हम यहां भूतों को चरित्र सर्टीफिकेट देने के लिए नहीं एन्जॉय करने के लिए बैठे हैं। अशोक ने कहा।

हां इसकी फालतू बातों पर गौर पर मत करो और जल्दी से कोई बंदा अगली कहानी सुनाए। वैसे राघव की कहानी भी अच्छी थी। मानसी ने कहा।

ठीक है अब मैं एक कहानी सुनाती हूं। मीनू ने कहा।

ओके तू सुना। साहिल ने कहा।

------------------------------